भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 Question Answer

भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 Question Answer
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Exploring the Hindi Vitan book of class 11, students uncover the life of Lata Mangeshkar, a beloved icon in Indian music. This first chapter isn't simply words on a page; it's a cultural journey, showcasing the resilience and artistry that Lata Ji embodies. Each line in the chapter offers a window into the soul of Indian melodies and the dedication behind them.

This isn't just another chapter to memorize but an interactive session where every question answered enriches the students' understanding of a legend's life. The detailed answers serve as a bridge connecting learners to the profound cultural heritage Lata Mangeshkar represents.

For educators and parents, this chapter provides an opportunity to mentor young minds about the intricacies of Hindi literature and the significance of iconic figures like Lata Mangeshkar. The answers to the questions in this chapter are more than just academic responses; they are narratives that weave together the threads of talent, passion, and perseverance that marked Lata Ji's journey.

The Vitan class 11 chapter 1 question answer segment transforms a simple Q&A into an engaging discourse on the Nightingale of India, Bhartiya gayikaon mein bejod Lata Mangeshkar. The summary of this chapter not only covers the curriculum requirements but also inspires students to see the value in pursuing excellence, much like the musical maestro herself. Engage with this chapter and let the story of Lata Mangeshkar in Hindi Vitan class 11 guide you through a melody of learning and discovery.

अध्याय-1: भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ -लता मंगेशकर

सारांश

प्रस्तुत पाठ में लेखक कुमार गंधर्व ने सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के अद्भुत गायकी पर प्रकाश डाला है| उन्होंने लता मंगेशकर के गायन के विशेषताओं को उजागर किया है| उनके अनुसार चित्रपट संगीत में लता जैसी अन्य गायिका नहीं हुई| उनसे पहले प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में अपना जमाना था| लेकिन लता मंगेशकर उनसे भी आगे निकल गई| उन्होंने चित्रपट संगीत अत्यधिक लोकप्रिय बनाया| चित्रपट संगीत के कारण लोगों को स्वर के सुरीलेपन की समझ हो रही है| लता मंगेशकर का सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि पैदा करने में बहुत बड़ा योगदान है|

एक सामान्य श्रोता शास्त्रीय गान और लता के गान में से लता का गान ही पसंद करते हैं| इसका कारण है लता के गानों में गानपन का होना| गानपन का आशय है गाने की वह मिठास, जिसे सुनकर श्रोता मस्त हो जाए| लेखक के अनुसार उनके स्वर में निर्मलता उनके गानों की विशेषता है| जहाँ प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ के गाने में एक मादक उत्तान दीखता था, वहीँ लता मंगेशकर के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है| उनके गानों की एक और विशेषता है, उसका नादमय उच्चार| उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुंदर रीति से भरा रहता है| लेखक के अनुसार लता मंगेशकर ने करूण रस के गाने इतनी अच्छी तरह नहीं गाए हैं| उन्होंने मुग्ध श्रृंगार की अभिव्यक्ति करने वाले मध्य या द्रुतलय के गाने बड़ी उत्कटता से गाए हैं| लता का ऊँचे स्वर में गाना भी लेखक को उनके गायन की कमी लगती है| इसका दोष वह संगीत दिग्दर्शक को देते हैं जिन्होंने उनसे ऊँची पट्टी के गाने गवाए हैं|

चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है और यह लता मंगेशकर के पास निःसंशय है| शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत की तुलना नहीं की जा सकती है| शास्त्रीय संगीत की विशेषता उसकी गंभीरता है तथा चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है| चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है| चित्रपट संगीत की विशेषता उसकी सुलभता और लोचता है| लता मंगेशकर का एक-एक गाना संपूर्ण कलाकृति होता है| उनके गानों में स्वर, लय और शब्दार्थ का त्रिवेणी संगम होता है| चाहे वह चित्रपट संगीत हो या शास्त्रीय संगीत, अंत में उसी का अधिक महत्त्व है जिसमें रसिक को आनंद देने का सामर्थ्य अधिक है| गाने की सारी ताकत उसकी रंजकता पर मुख्यतः अवलंबित रहती है|

संगीत के क्षेत्र में लता मंगेशकर का स्थान अव्वल दर्जे के खानदानी गायक के समान है| खानदानी गवैयों का दावा है कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं| लेकिन लेखक का मानना है कि चित्रपट संगीत के कारण लोगों को संगीत की अधिक समझ हो गई है| लेखक के अनुसार शास्त्रीय गायकों ने संगीत के क्षेत्र में अपनी हुकुमशाही स्थापित कर रखी है| उन्होंने शास्त्र-शुद्धता के कर्मकांड को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दे रखा है| आज लोगों को शास्त्र-शुद्ध और नीरस गाना नहीं, बल्कि सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिए| चित्रपट संगीत के कारण यह संभव हो पाया है| इसमें नवनिर्मिति की बहुत गुंजाइश है| बड़े-बड़े संगीतकार लोकगीत, पहाड़ी गीत तथा खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषिगीतों का भी अच्छा प्रयोग कर रहे हैं| इस प्रकार चित्रपट संगीत दिनोंदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है और इस संगीत की अनभिषिक्त साम्राज्ञी लता मंगेशकर हैं|


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 11 HINDI VITAN CHAPTER 1

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 8)

प्रश्न. 1 लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?

उत्तर- ‘गानपन’ का शाब्दिक अर्थ है-वह गायकी जो एक आम इनसान को भी भाव-विभोर कर दे। वास्तव में, यह कला लता जी में है। गीत को गाने में मन की गहराइयों से भाव पिरोए जाएँ, यही उनका प्रयास रहता है। इस प्रयास में उन्हें काफ़ी हद तक सफलता भी मिली है। जिस प्रकार एक मनुष्य के लिए ‘मनुष्यता’ का होना जरूरी है, उसी प्रकार संगीत के लिए गानपन होना बहुत ज़रूरी है। लता जी की लोकप्रियता का मुख्य कारण यही गानपन है। यह गुण अपनी गायकी में लाने के लिए गायक को भरपूर रियाज़ करना चाहिए। साथ ही गीत के बोल, स्वरों के साथ-साथ भावों में भी पिरोए जाने चाहिए। गानों में गानपन के लिए स्वरों का उचित ज्ञान के साथ-साथ स्पष्टता व निर्मलता भी होनी चाहिए। स्वरों का जितना स्पष्ट व निर्मल उच्चारण होगा, संगीत उतना ही मधुर होगा। रसों के अनुसार उनकी लयात्मकता भी होनी चाहिए। स्वर, लय, ताल, उच्चारण आदि का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर उनको अपने संगीत में उतारने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न. 2 लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नज़र आती हैं? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर- लेखक ने लता की गायकी की निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है

     i.        सुरीलापन – लता के गायन में सुरीलापन है। उनके स्वर में अद्भुत मिठास, तन्मयता, मस्ती, लोच आदि हैं। उनका उच्चारण मधुर पूँज से परिपूर्ण रहता है।

   ii.        निर्मल स्वर – लता के स्वरों में निर्मलता है। लता का जीवन की ओर देखने का जो दृष्टिकोण है, वही उसके गायन की निर्मलता में झलकता है।

 iii.        कोमलता – लता के स्वरों में कोमलता व मुग्धता है। इसके विपरीत नूरजहाँ के गायन में मादक उत्तान दिखता था।

 iv.        नादमय उच्चार – यह लता के गायन की अन्य विशेषता है। उनके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अंतर स्वरों के आलाप द्वारा सुंदर रीति से भरा रहता है। ऐसा लगता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल | जाते हैं। लता के गानों में यह बात सहज व स्वाभाविक है।

   v.        शास्त्रीये शुद्धता – लता के गीतों में शास्त्रीय शुद्धता है। उन्हें शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी है। उनके गीतों में स्वर, लय व शब्दार्थ का संगम होने के साथ-साथ रंजकता भी पाई जाती है।

हमें लता की गायकी में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ नजर आती हैं। उन्होंने भक्ति, देशप्रेम, श्रृंगार, विरह आदि हर भाव के गीत गाए हैं। उनका हर गीत लोगों के मन को छू लेता है। वे गंभीर या अनहद गीतों को सहजता से गा लेती हैं। एक तरफ ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से सारा देश भावुक हो उठता है तो दूसरी तरफ ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे’ फ़िल्म के अल्हड़ गीत युवाओं को मस्त करते हैं। वास्तव में, गायकी के क्षेत्र में लता सर्वश्रेष्ठ हैं।

प्रश्न. 3 लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं। इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर- लेखक का यह कथन पूर्णतया सत्य नहीं प्रतीत होता। यह संभव है कि किसी विशेष चित्रपट में लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया हो, किंतु सभी चित्रपटों पर यह बात लागू नहीं होती। लता ने कई चित्रपटों में अपनी आवाज़ दी है तथा उनमें करुण रस के गीत बड़ी मार्मिकता व रसोत्कटता के साथ गाए हैं। उनकी वाणी में एक स्वाभाविक करुणा विद्यमान है। उनके स्वरों में करुणा छलकती-सी प्रतीत होती है। फ़िल्म ‘रुदाली’ में उनका ‘दिल-हुँ-हुँ करे…….’ गीत विरही जनों के हृदयों को उत्कंठित ही नहीं करता अपितु अपनी मार्मिकता से हृदय को बींध-सा देता है। इसी प्रकार अन्य। कई चित्रपटों पर भी यह बात लागू होती है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि लता जी केवल श्रृंगार के गीत ही भली प्रकार गा सकती हैं। वे सभी गीतों को समान रसमयता के साथ गा सकती हैं।

प्रश्न. 4 संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अब तक अलक्षित असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रांत है, तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं-इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- भारतीय संगीत शास्त्र बहुत प्राचीन है। इसमें वैदिक काल से ही नाना प्रकार के प्रयोग होते रहे हैं। इतनी प्राचीन परंपरा होने के कारण उसका क्षेत्र भी बहुत विशाल हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति भी बहुरंगी संस्कृति है। इसमें केवल भारतीय ही नहीं अपितु विदेशों से आने वाली संस्कृतियों का भी समावेश समय-समय पर होता रहा है। आज भी संगीत में नए-नए प्रयोग होते देखे जा सकते हैं। शास्त्रीय व लोकसंगीत की परंपरा आज भी निरंतर चल रही है, किंतु उनमें नाना प्रकार के प्रयोग करके संगीत को नया आयाम आज की फ़िल्मों में दिया जा रहा है। फ़िल्मों में गीत-संगीतकार कुछ-न-कुछ नया करने का प्रयास पहले से ही करते आए हैं। आजकल के फ़िल्मी संगीत पर भी यह बात लागू होती है। कभी इसमें पॉप संगीत का मिश्रण किया जाता है तो कभी सूफी संगीत का तथा कभी लोक संगीत का। लोक संगीतों में भी अनेकानेक प्रांतों के संगीत को आधार बनाकर नए-नए गीतों की रचना कर उन पर संगीत दिया जाता है। इसका फ़िल्मकार लोग बहुत जोर-शोर से प्रचार भी करते हैं। इस प्रकार वर्तमान फ़िल्मी संगीत में भी नए प्रयोगों के माध्यम से संगीत का विस्तार हो। रहा है।

प्रश्न. 5 ‘चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए’-अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस संदर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।

उत्तर- शास्त्रीय संगीतकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग हमारे देश में रहता है। शास्त्रीय संगीत की परंपरा बहुत प्राचीन व उत्कृष्ट है। शास्त्रीय संगीत में प्रत्येक राग के अनुसार स्वर, लय, ताल आदि निश्चित होते हैं, उनमें थोड़ा-सा भी परिवर्तन असहनीय होता है। लोक संगीत या फ़िल्मी संगीत स्वर, लय, ताल आदि के संबंध में इतना सख्त रवैया नहीं रखता। इसमें जो भी श्रोताओं को आह्लादित करे, वही श्रेष्ठ समझा जाता है। इसे सीखने के लिए भी शास्त्रीय संगीत की तरह वर्षों के अभ्यास की जरूरत नहीं होती। शास्त्रीय संगीत के आचार्य चित्रपट या फ़िल्मी संगीत पर यह दोष मढ़ते रहते हैं कि उसने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं; अर्थात् उसके कारण लोगों को केवल कर्णप्रिय धुनें सुनने की आदत पड़ गई है।

इस विषय में कुमार गंधर्व का मत है कि वस्तुतः फ़िल्मी संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं अपितु सुधारे हैं। आज फ़िल्मी संगीत के कारण एक साधारण श्रोता भी स्वर, लय, ताल आदि के विषय में जानकारी रखने लगा है। लोगों की रुचि संगीत में बढ़ी है। शास्त्रीय संगीत के काल में कितने लोग संगीत का ज्ञान रखते थे? कितने लोग उसके दीवाने होते थे? अर्थात् बहुत कम। आज लोग केवल फ़िल्मी संगीत ही नहीं शास्त्रीय संगीत की ओर भी मुड़ने लगे हैं। यह भी फ़िल्मी संगीत के कारण ही संभव हुआ है। हमारा मत भी कुमार गंधर्व से मिलता है। हमारा भी यही मानना है कि आज के फ़िल्मी संगीत के कारण ही शास्त्रीय संगीतकारों की पूछ भी बढ़ी है। जब उन्हें फ़िल्मों में संगीत देने व कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है तो लाखों लोग उन्हें पहचानते हैं। अतः फ़िल्मी संगीत पर उपर्युक्त दोष लगाना उचित नहीं है।

प्रश्न. 6 शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है? स्वयं आप क्या सोचते हैं?

उत्तर- कुमार गंधर्व का स्पष्ट मत है कि चाहे शास्त्रीय संगीत हो या फ़िल्मी संगीत, वही संगीत अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाएगा, जो ‘रसिकों या श्रोताओं को अधिक आनंदित कर सकेगा। वस्तुतः यह तथ्य बिलकुल सही है कि संगीत का मूल ही आनंद है। संगीत की उत्पत्ति उल्लास से हुई है। श्रोता भी संगीत अपने मनोविनोद के लिए ही सुनते हैं न कि ज्ञान के लिए। अतः संगीत का चरम उद्देश्य आनंद प्राप्ति ही है। जो भी संगीत श्रोताओं को अधिक-से-अधिक आनंदित करेगा, वही अधिक लोकप्रिय भी होगा। अतः उसी को अधिक महत्त्व भी श्रोताओं द्वारा दिया जाएगा। यह बात संगीत ही नहीं अन्य सभी कलाओं पर भी लागू होती है। शास्त्रीय संगीत भी रंजक या आनंददायक न हो तो वह बिलकुल नीरस ही कहलाएगा। कुछ करने और सोचने के लिए।

कुछ करने और सोचने के लिए

प्रश्न. 1 पाठ में दिए गए अंतरों के अलावा संगीत शिक्षक से चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत का अंतर पता करें। इन अंतरों को सूचीबद्ध करें।

उत्तर-

शास्त्रीय संगीत

चित्रपट संगीत

1. इसे मार्गी संगीत भी कहा जाता है।

1. इसमें लोकसंगीत तथा शास्त्रीय संगीत दोनों का ही प्रयोग हो सकता है।

2. यह स्वरों के अधार पर गाया जाता है।

2. इसे स्वरों या बिना स्वरों के अनुसार परिस्थिति के अनुरूप गाया जाता है।

3. इसमें लय, ताल आदि का ल्लंघन वर्जित होता है।

3. इसका मुख्य आधार लोकप्रियता है, अतः सके गायन में स्वतंत्रता है।

4. यह रागों पर आधारित होता है।

4. इसमें रागों के साथ-साथ लोकगीतों का श्रण भी किया जाता है

5. इसमें आरोह, अवरोह आदि पर शेष ध्यान दिया|

5. इसमें कर्णप्रियता पर अधिक ध्यान दिया ता है। जाता है।

6. इसमें हास्यरस का प्रायः अभाव रहता है।

6. फ़िल्मी संगीत में हास्य प्रधान गीतों का गायन भी खूब होता है।

 

प्रश्न. 2 कुमार गंधर्व ने लिखा है-चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है? क्या शास्त्रीय मानकों को भी चित्रपट संगीत से कुछ सीखना चाहिए? कक्षा में विचार-विमर्श करें।

उत्तर- यह बात बिलकुल सत्य है कि चित्रपट संगीत को गाने के लिए शास्त्रीय संगीत का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। यह उतना सरल भी नहीं है, जितना इसे समझा जाता है। प्रायः फ़िल्मों में शास्त्रीय संगीत का भी प्रयोग देखा जाता है। उसमें भी स्वरों में उतार-चढ़ाव व लय आदि का ध्यान रखना होता है, अत: बिना शास्त्रीय संगीत सीखे एक अच्छा चित्रपट संगीत गायक नहीं बना जा सकता। किंतु शास्त्रीय संगीत के गायकों को स्वर-ताल आदि के विषय में चित्रपट संगीत से कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं होती। हाँ, उन्हें इस विषय में अवश्य कुछ सीखना चाहिए कि शास्त्रीय संगीत को भी चित्रपट संगीत के समान लोकप्रिय कैसे बनाया जाए? ताकि अधिक-से-अधिक लोग शास्त्रीय संगीत की ओर आकर्षित हो सकें। इसके अतिरिक्त इसमें नए-नए प्रयोगों के लिए भी अवकाश रखना चाहिए। शास्त्रीय संगीत वर्षों से उन्हीं नियमों में बँधा। हुआ है। उसमें नएपन का अभाव है, इसी कारण वह इतना लोकप्रिय नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार चित्रपट संगीत में नई धुनों व गीतों का समावेश किया जाता है, उसी प्रकार शास्त्रीय संगीत में भी नए-नए रागों की रचना निरंतर होती रहनी चाहिए। तभी यह लोकरंजक होकर लोकप्रिय हो सकेगा। अतः शास्त्रीय गायकों को ये तथ्य चित्रपट संगीत के गायकों से सीखने चाहिए।


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