NCERT Class 6 Jhansi Ki Rani Class 6 Worksheets with Answer

NCERT Class 6 Jhansi Ki Rani Class 6 Worksheets with Answer
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एनसीईआरटी कक्षा 6 हिंदी अध्याय 8 झाँसी की रानी कक्षा 6 उत्तर सहित वर्कशीट

Embark on a courageous journey through history with the Jhansi Ki Rani Class 6 Worksheets with Answer, a pivotal educational resource that enthralls and educates. Designed meticulously for students of Class 6 Hindi Chapter 8, these worksheets delve deep into the saga of bravery and resilience exhibited by Jhansi Ki Rani, bringing to light her unwavering spirit and strategic acumen. Offering a comprehensive toolkit for learning, these worksheets are not merely academic exercises but also an invitation to explore the rich narrative of one of India’s most iconic freedom fighters.

These detailed Class 6 Jhansi Ki Rani Worksheets ensure that each student engages fully with the historical content, enhancing understanding and retention through a variety of question formats. From multiple-choice to long-answer questions, every exercise is crafted to challenge the mind and provoke a deeper appreciation of the chapter's themes. The Jhansi Ki Rani Class 6 question answer sections are replete with insights that encourage students to analyze and reflect, pushing them to formulate their own opinions about leadership and resistance.

As students navigate through the Jhansi Ki Rani Class 6 material, they encounter strategic thinking, critical analysis, and the profound moral questions that the story raises. These aspects are thoughtfully embedded within the Class 6 Hindi chapter 8 worksheets, which are not only about memorizing facts but also about understanding the broader significance of Jhansi Ki Rani’s struggle and what it means for contemporary society.

Thus, the Jhansi Ki Rani Class 6 Worksheets with Answers are more than just homework assignments; they are a comprehensive module designed to inculcate a sense of history, honor, and heroism among young learners. This holistic approach ensures that the legacy of Jhansi Ki Rani is not only learned but lived by students as they draw parallels between historical valor and modern-day challenges.

सारांश

प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई द्वारा दिखाए गए अदम्य शौर्य का उल्लेख किया है। उस युद्ध में लक्ष्मीबाई ने अपनी अद्भुत युद्ध कौशल और साहस का परिचय देकर बड़े-बड़े वीर योद्धाओं को भी हैरान कर दिया था। उनकी वीरता और पराक्रम से उनके दुश्मन भी प्रभावित थे। उन्हें बचपन से ही तलवारबाज़ी, घुड़सवारी, तीरंदाजी और निशानेबाज़ी का शौक था।

वह बहुत छोटी उम्र में ही युद्ध-विद्या में पारंगत हो गई थीं। अपने पति की असमय मृत्यु के बाद उन्होंने एक कुशल शासक की तरह झाँसी का राजपाट सँभाला तथा अपनी अंतिम साँस तक अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों से अत्यंत वीरता से लड़ती रहीं। उनके पराक्रम की प्रशंसा उनके शत्रु भी करते थे।

भावार्थ

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह उन्होंने गुलाम भारत को आज़ाद करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। रानी लक्ष्मी बाई के साहस से हर भारतवासी जोश से भर उठा और सबके मन में अंग्रेजों को दूर भगाने की भावना पैदा होने लगी। 1857 में उन्होंने जो तलवार उठाई थी यानी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, उससे सभी ने अपनी आज़ादी की कीमत पहचानी थी।

कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथाएँ उसको याद ज़बानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका ने कहा है कि कानपुर के नाना साहब ने बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई की अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित होकर, उन्हें अपनी मुँह-बोली बहन बना लिया था। नाना साहब उन्हें युद्ध विद्या की शिक्षा भी दिया करते थे। लक्ष्मीबाई बचपन से ही बाकी लड़कियों से अलग थीं। उन्हें गुड्डे-गुड़ियों के बजाय तलवार, कृपाण, तीर और बरछी चलाना अच्छा लगता था।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार।

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने बताया है कि लक्ष्मीबाई व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में माहिर थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वे वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झाँसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने लक्ष्मीबाई के झाँसी के राजा श्री गंगाधर राव के साथ विवाह का उल्लेख किया है। उनकी जोड़ी को शिव-पार्वती और अर्जुन-चित्रा की उपमा दी गई है। उनके आने से झाँसी में ख़ुशियाँ और सौभाग्य आ गया था।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में लक्ष्मीबाई के जीवन के कठिन समय का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके पति की असमय मृत्यु के बाद रानी अत्यंत दुखी थीं। उनके कोई संतान भी नहीं थी। वे झाँसी को संभालने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई थीं।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में यह बताया गया है कि झाँसी के राजा की असमय मृत्यु के बाद उस समय के अंग्रेज़ अधिकारी डलहौजी को झांसी को हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया था। उसने अपनी सेना को अनाथ हो चुकी झाँसी पर कब्ज़ा जमाने के लिए भेज दिया था।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में कवयित्री बता रही हैं कि अंग्रेज़ लोग भारत में व्यापारी बनकर आए थे और फिर धीरे-धीरे उन्होने यहाँ के सभी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं और रानियों से दया और सहायता की भीख माँगकर, उनका ही राज्य हड़प लिया था। परंतु लक्ष्मीबाई अन्य राजा-रानियों से विपरीत थीं और उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी एक महारानी की तरह झाँसी को सँभाला।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,

कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?

जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में उन सभी राज्यों की चर्चा की गई है, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा हड़प लिया गया था, जो कि निम्न हैं– दिल्ली, लखनऊ, बिठुर, नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक, सिंध प्रांत, पंजाब, बंगाल और मद्रास। अर्थात् ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा था, जहाँ बेईमान अंग्रेज़ों ने अपना अधिकार नहीं जमाया हो।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,

नागपुर के ज़ेवर ले लो’ ‘लखनऊ के लो नौलख हार’।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में क्रूर अंग्रेज़ों की निर्लज्जता का वर्णन है कि कैसे वे लोग सभी राजाओं तथा नवाबों की हत्या के बाद, वहाँ के राज्य तो हड़पते ही थे, साथ ही साथ वे उनकी रानियों और बेगमों की इज़्ज़त से भी खिलवाड़ करते थे। चाहे वह लखनऊ की बेगम हों, या कलकत्ता और नागपुर की रानियाँ। उनके कपड़े और ज़ेवर तक छीन कर नीलाम कर दिए जाते थे और अब उनका अगला कदम झाँसी की ओर था।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में बताया गया है कि चाहे वो गरीब हो या अमीर, सभी के मन में अंग्रेज़ों के लिए विद्रोह की चिंगारी धधक रही थी। सभी सैनिक नाना साहब, पेशवा जी के नेतृत्व में युद्ध करने को तैयार थे। साथ में उनकी मुँहबोली बहन लक्ष्मीबाई ने भी हार ना मानकर, उनके साथ अंग्रेज़ों से लड़ने का निर्णय कर लिया था।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,

मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में यह बताया गया है कि विद्रोह की चिंगारी देश के हर राज्य से सुलग रही थी, चाहे वो झाँसी हो या लखनऊ। दिल्ली, मेरठ, कानपुर तथा पटना राज्यों के राजाओं ने भी इसमें अपना पूरा साथ दिया। साथ ही साथ जबलपुर और कोल्हापुर जैसे बड़े शासकों ने भी सन 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में हमारे स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने और शहीद होने वाले कई बड़े वीरों का उल्लेख किया गया है। नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवर सिंह, तथा सैनिक अभिराम आदि ऐसे ही वीर और साहसी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने युद्ध में दुश्मनों से जमकर संघर्ष किया था।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्व असमानों में।

ज़ख्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में इन सभी वीरों के अलावा वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का परिचय है। झाँसी में हुए युद्ध में जब लेफ्टिनेंट वॉकर अंग्रेज़ों की तरफ से युद्ध करने आए, तो उनसे लड़ने के लिए अकेली झाँसी की रानी ही काफी थीं। उन्होंने दोनों हाथों में तलवारें लेकर रण-चंडी की तरह वॉकर पर प्रहार किया। इस प्रहार से वो बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया तथा रानी के शौर्य बल से वह भी अचंभित रह गया।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में रानी की वीरता का अद्भुत वर्णन है। कवयित्री ने बताया है कि वे सौ मील घोड़े पर बैठकर अंग्रेज़ों को खदेड़ती हुईं यमुना तट तक ले आईं और अंग्रेज़ वहाँ रानी से पराजित हुए। परंतु यहाँ पर उनके घोड़े ने वीरगति प्राप्त कर ली अर्थात् उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उन्होंने ग्वालियर पर भी अपना अधिकार जमाया, जहाँ के राजा सिंधिया ने अंग्रेज़ों डर से उनसे मित्रता कर ली थी और अपनी राजधानी को छोड़कर वहाँ से चले गए थे।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,

अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,

युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में यह बताया गया है कि अब जनरल स्मिथ ने सेना की कमान संभाल ली थी। रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने के लिए उनकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा युद्ध मैदान में उतर गई थीं। इन तीनों ने अपनी वीरता और साहस के दम पर कई अंग्रेज़ सैनिकों की लाशें बिछा दी थी। परंतु तभी पीछे से जनरल ह्यूरोज ने आकर रानी को घेर लिया था और यहीं रानी उसके शिकंजे में फँस गई थीं।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,

किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में बताया गया है कि रानी जैसे-तैसे बचते हुए दुश्मनों के बीच से निकल कर बाहर आ ही गई थीं, लेकिन अचानक उनके सामने एक चौड़ा नाला आ गया। उनका घोड़ा नया होने के कारण उसे पार नहीं कर पाया और वहीं अड गया। बस यहीं शत्रुओं ने मौका देखकर अकेली रानी पर कई वार पर वार किए और झाँसी की रानी ने यहीं अपनी अंतिम साँस तक लड़ते हुए वीर-गति प्राप्त की।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में रानी की दिव्यता का वर्णन है कि रानी अब परलोक सिधार चुकी थीं, परन्तु उनके चेहरे पर सूरज के जैसी चमक छाई हुई थी। उनकी उम्र केवल तेईस साल थी, इतनी छोटी-सी उम्र में वह एक अवतारी-नारी की तरह आकर हम सभी देशवासियों को जीवन का सही मार्ग दिखा गई थीं। क्रांति की चिंगारी का बीज सही मायनों में उन्होंने ही देशवासियों के मन में बोया था।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

भावार्थ- प्रस्तुत पक्तियों में कवयित्री कहती है कि रानी का यह बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। चाहे दुश्मन अपनी वीरता का परचम लहरा रहा हो या फिर वो अपनी तोप के गोलों से झाँसी को ही मिटा दे, लेकिन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हमारे मन में हमेशा बसी रहेंगी। चाहे उनका कोई स्मारक ना बने, लेकिन वो वीरता और साहस का एक उदाहरण बनकर हमारे इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहेंगी।


 

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कविता से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 77-78)

प्रश्न 1 किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई'

a.   इस पंक्ति में किस घटना की ओर संकेत है?

b.   काली घटा घिरने की बात क्यों कही गई है?

उत्तर-

a.   इस पंक्ति में रानी लक्ष्मीबाई के पति झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु की घटना की ओर संकेत है।

b.   राजा जी की मृत्यु से रानी के जीवन की खुशियों का अंत हो गया। उनके जीवन में दुख का अंधकार छा गया। इसलिए काली घटा घिरने की बात कही गई है।

प्रश्न 2 कविता की दूसरी पंक्ति में भारत को 'बूढ़ा' कहकर और उसमें 'नयी जवानी' आने की बात कहकर सुभद्रा कुमारी चौहान क्या बताना चाहती हैं?

उत्तर- इन शब्दों के प्रयोग द्वारा सुभद्रा कुमारी चौहान यह कहना चाहती हैं कि वर्षों की गुलामी ने भारत को किसी वृद्ध की भाँति जर्जर एवं निस्तेज कर दिया था लेकिन सन् सत्तावन की क्रांति भारत वर्ष में एक नयी जवानी और नया जोश लेकर आई। भारतवासियों में स्वतंत्रता प्राप्त करने की एक नयी उमंग दिखने लगी थी।

प्रश्न 3 झाँसी की रानी के जीवन की कहानी अपने शब्दों में लिखो और यह भी बताओ कि उनका बचपन तुम्हारे बचपन से कैसे अलग था।

उत्तर- रानी लक्ष्मीबाई अपने पिता की इकलौती संतान थी। नाना धुंधूपंत पेशवा उनके मुँह बोले भाई थे। बचपन से ही वह उनके साथ पढ़ी और खेली थी। रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ परंतु विवाह के कुछ ही समय बाद राजा जी का निधन हो गया। रानी की कोई संतान नहीं थी। झाँसी को लावारिस समझ कर लॉर्ड डलहौजी ने अपनी सेना भेजकर दुर्ग पर अपना झंडा फहरा दिया। रानी यह सब देखकर क्रोधित हो गई। उन्होंने युद्ध का ऐलान कर दिया और किसी वीर पुरुष की भाँति रणक्षेत्र में जा डटी। लेफ्टिनेंट वॉकर को उन्होंने परास्त किया। वह जख्मी होकर भाग गया। रानी सौ मील लगातार घोड़ा दौड़ाते हुए कालपी पहुँची। उनका घोड़ा थककर मर गया। यमुना किनारे उन्होंने फिर से अंग्रेजों को हराया और ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों का मित्र सिंधिया राजधानी छोड़कर भाग खड़ा हआ। अंग्रेजों की सेना ने फिर से रानी को घेर लिया। इस बार जनरल स्मिथ सामने था। रानी ने उसे भी हराया। रानी के साथ उनकी सखियाँ काना और मंदरा थीं। उन्होंने युद्ध क्षेत्र में भारी तबाही मचाई थी। जनरल स्मिथ को रानी ने परास्त किया ही था कि पीछे से यूरोज ने आकर उन्हें घेर लिया। रानी फिर भी दुश्मनों से लड़ती हुई उनकी सेना को पार कर निकल गई लेकिन तभी सामने एक नाला आ गया। रानी का नया घोड़ा नाले को पार करने से हिचक रहा था और वह वहीं रुक गया। इतने में अंग्रेज घड़सवार वहाँ पहँच गए। अकेली रानी और इतने दुश्मन। वार पर वार होने लगे और आखिरकार घायल होकर रानी लक्ष्मीबाई गिर पड़ी और वीरगति को प्राप्त हो गयी।

झाँसी की रानी का बचपन हमारे बचपन से बहुत अलग था। बचपन से ही उन्होंने तलवार चलाना सीखा था। बरछी, ढाल और कटारी से ही उनकी दोस्ती थी। उन्हें वीर शिवाजी की कहानियाँ जुबानी याद थीं। नकली युद्ध करना, दुश्मन को घेरने के तरीके ढूँढ़ना, शिकार खेलना, किले तोड़ना-उनके प्रिय खेल थे। वह महाराष्ट्र की कुल देवी दुर्गा भवानी की पूजा किया करती थी। वीरता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनकी तलवारों के वार देखकर मराठे खुश हुआ करते थे। हमारे बचपन में ऐसी कोई खासियत नहीं है।

प्रश्न 4 वीर महिला की इस कहानी में कौन-कौन से पुरुषों के नाम आए हैं? इतिहास की कुछ अन्य वीर स्त्रियों की कहानियाँ खोजो।

उत्तर- वीर महिला की इस कहानी में कई पुरुषों के नाम आए हैं। जैसे-वीर शिवाजी, नाना धुंधूपंत पेशवा, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह। इतिहास की कुछ वीर स्त्रियाँ हैं-कित्तूर की रानी चेन्नमा, रजिया सुल्तान, हाड़ा रानी, चित्तौड़ की रानी पद्मिनी, पन्नाधाय। छात्र इनकी कहानियाँ खोज कर पढ़ें।

अनुमान और कल्पना प्रश्न (पृष्ठ संख्या 78)

प्रश्न 1 कविता में किस दौर की बात है? कविता से उस समय के माहौल के बारे में क्या पता चलता है?

उत्तर- कविता में सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय की बात है। उस समय अंग्रेजों ने देश की विभिन्न रियासतों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था। आम जनता पर उनका अत्याचार बढ़ता जा रहा था। राजाओं और नवाबों की मान मर्यादा को उन्होंने मिट्टी में मिला दिया था। इन कारणों से देशवासियों में उनके विरुद्ध आक्रोश व्याप्त हो गया था और क्रांति की लहर फूट पड़ी थी।

प्रश्न 2 सुभद्रा कुमारी चौहान लक्ष्मीबाई को 'मर्दानी' क्यों कहती हैं?

उत्तर- वीरता, साहस, हिम्मत, ताकत, युद्ध कौशल, घुड़सवारी, तलवारबाजी-ये सब मर्दो के गुण स्वभाव और कार्य माने जाते हैं। इतिहास में संभवतः पहली बार एक स्त्री इन गुणों और स्वभाव के साथ अवतरित हुई और उसने जमकर दुश्मनों से लोहा लिया और उनके दाँत खट्टे किए। यही कारण है कि सुभद्रा कुमारी चौहान लक्ष्मीबाई को 'मर्दानी' कहती हैं।

खोजबीन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 78)

प्रश्न 1 'बरछी', 'कृपाण', 'कटारी' उस ज़माने के हथियार थे। आजकल के हथियारों के नाम पता करो।

उत्तर- आजकल के हथियार हैं-बंदूक, मशीनगन, ए.के. 47, ए.के. 56, राइफल, पिस्तौल, टैंक, एटम बम, तोप, मिसाइलें आदि।

प्रश्न 2 लक्ष्मीबाई के समय में ज्यादा लड़कियाँ 'वीरांगना' नहीं हुईं क्योंकि लड़ना उनका काम नहीं माना जाता था। भारतीय सेनाओं में अब क्या स्थिति है? पता करो।

उत्तर- लक्ष्मीबाई के समय की तुलना में आजकल लड़कियाँ बड़ी संख्या में भारतीय सेना का हिस्सा हैं। यद्यपि आज के समय को देखते हुए यह स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती, फिर भी उस समय की तुलना में यह बेहतर है।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 78)

प्रश्न 1  लक्ष्मीबाई के समय में ज्यादा लड़कियाँ 'वीरांगना' नहीं हुईं क्योंकि लड़ना उनका काम नहीं माना जाता था। भारतीय सेनाओं में अब क्या स्थिति है? पता करो।

झाँसी की रानी

मिट्टी का घरौंदा

प्रेमचंद की कहानी

पेड़ की छाया

ढाक के तीन पात

नहाने का साबुन

मील का पत्थर

रेशमा के बच्चे

बनारस के आम

का, के और की दो संज्ञाओं का संबंध बताते हैं। ऊपर दिए गए वाक्यांशों में अलग-अलग जगह इन तीनों का प्रयोग हुआ है। ध्यान से पढ़ो और कक्षा में बताओ कि का, के और की का प्रयोग कहाँ और क्यों हो रहा है?

उत्तर-  का, के और की संबंध कारक के चिह्न हैं। इन्हें परसर्ग भी कहते हैं। इनका प्रयोग संबंधी संज्ञा के अनुसार होता है। स्त्रीलिंग संबंधी संज्ञा के पूर्व 'की' पुल्लिंग संबंधी संज्ञा के पूर्व 'का' और बहुवचन पुल्लिंग संबंधी संज्ञा के पूर्व 'के' का प्रयोग होता है।

झाँसी की रानी-रानी स्त्रीलिंग है, इसलिए उसके पूर्व 'की' लगा है।

पेड़ की छाया-छाया स्त्रीलिंग है, अतएव उसके पूर्व 'की' लगा है।

मील का पत्थर-पत्थर पुल्लिंग है और एकवचन है, इसलिए उससे पहले 'का' का प्रयोग है।

मिट्टी का घरौंदा-घरौंदा एकवचन पुल्लिंग है, इसलिए उसके पहले 'का' प्रयुक्त है।

ढाक के तीन पात-पात पुल्लिंग है और बहुवचन है, अतः उसके पूर्व 'के' का प्रयोग हुआ है।

रेशमा के बच्चे-बच्चे पुल्लिंग बहुवचन है, तो उनके पहले 'के' लगा है।

प्रेमचंद की कहानी कहानी स्त्रीलिंग है, इसलिए उसके पहले 'की' का प्रयोग है।

नहाने का साबुन-साबुन पुल्लिंग एकवचन है, अतएव उसके पहले 'का' का प्रयोग हुआ है।

बनारस के आम-आम पुल्लिंग बहुवचन है, अतः उसके पहले 'के' प्रयुक्त है।



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