Raskhan ke Savaiye class 9 Worksheet with Answers

Premium Raskhan ke Savaiye class 9 Worksheet with Answers
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Acknowledging the complexity and the rich imagery of Raskhan's poetry, Raskhan ke Savaiye class 9 Extra questions and answers, along with worksheet on Raskhan ke Savaiye class 9, become pivotal in encouraging a deeper engagement with the text. These resources invite learners to delve beyond the surface, to question, reflect, and connect with the emotions and philosophies presented through the verses.

As part of the broader class 9th Hindi Raskhan ke Savaiye curriculum, the chapters are dissected and explained in depth, with class 9th Hindi Raskhan ke Savaiye explanation ensuring that no stone is left unturned in the quest for a complete understanding. Every class 9 Hindi chapter Raskhan ke Savaiye question answer session becomes a dialogue, not just between the teacher and the students, but also among the students themselves, fostering an environment of collaborative learning and shared discovery.

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मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।

जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

रसखान के सवैये भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रसखान के श्री कृष्ण एवं उनके गांव गोकुल-ब्रज के प्रति लगाव का वर्णन हुआ है। रसखान मानते हैं कि ब्रज के कण-कण में श्री कृष्ण बसे हुए हैं। इसी वजह से वे अपने प्रत्येक जन्म में ब्रज की धरती पर जन्म लेना चाहते हैं। अगर उनका जन्म मनुष्य के रूप में हो, तो वो गोकुल के ग्वालों के बीच में जन्म लेना चाहते हैं। पशु के रूप में जन्म लेने पर, वो गोकुल की गायों के साथ घूमना-फिरना चाहते हैं।

अगर वो पत्थर भी बनें, तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं, जिसे श्री कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से गोकुलवासियों को बचाने के लिए अपनी उँगली पर उठाया था। अगर वो पक्षी भी बनें, तो वो यमुना के तट पर कदम्ब के पेड़ों में रहने वाले पक्षियों के साथ रहना चाहते हैं। इस प्रकार कवि चाहे कोई भी जन्म लें, वो रहना ब्रज की भूमि पर ही चाहते हैं।

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥

रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।

कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

रसखान के सवैये भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रसखान का भगवान श्री कृष्ण एवं उनसे जुड़ी वस्तुओं के प्रति बड़ा गहरा लगाव देखने को मिलता है। वे कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए तीनों लोकों का राज-पाठ तक छोड़ने के लिए तैयार हैं। अगर उन्हें नन्द की गायों को चराने का मौका मिले, तो इसके लिए वो आठों सिद्धियों एवं नौ निधियों के सुख को भी त्याग सकते हैं। जब से कवि ने ब्रज के वनों, बगीचों, तालाबों इत्यादि को देखा है, वे इनसे दूर नहीं रह पा रहे हैं। जब से कवि ने करील की झाड़ियों और वन को देखा है, वो इनके ऊपर करोड़ों सोने के महल भी न्योछावर करने के लिए तैयार हैं।

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।

ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥

भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

रसखान के सवैये भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में रसखान ने कृष्ण से अपार प्रेम करने वाली गोपियों के बारे में बताया है, जो एक-दूसरे से बात करते हुए कह रही हैं कि वो कान्हा द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की मदद से कान्हा का रूप धारण कर सकती हैं। मगर, वो कृष्ण की मुरली को धारण नहीं करेंगी। यहाँ गोपियाँ कह रही हैं कि वे अपने सिर पर श्री कृष्ण की तरह मोरपंख से बना मुकुट पहन लेंगी। अपने गले में कुंज की माला भी पहन लेंगी। उनके सामान पीले वस्त्र पहन लेंगी और अपने हाथों में लाठी लेकर वन में ग्वालों के संग गायें चराएंगी।

गोपी कह रही है कि कृष्ण हमारे मन को बहुत भाते हैं, इसलिए मैं तुम्हारे कहने पर ये सब कर लूँगी। मगर, मुझे कृष्ण के होठों पर रखी हुई मुरली अपने होठों से लगाने के लिए मत बोलना, क्योंकि इसी मुरली की वजह से कृष्ण हमसे दूर हुए हैं। गोपियों को लगता है कि श्री कृष्ण मुरली से बहुत प्रेम करते हैं और उसे हमेशा अपने होठों से लगाए रहते हैं, इसीलिए वे मुरली को अपनी सौतन या सौत की तरह देखती हैं।

काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।

मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥

टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।

माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥

रसखान के सवैये भावार्थ :- रसखान ने इन पंक्तियों में गोपियों के कृष्ण प्रेम का वर्णन किया है, वो चाहकर भी कृष्ण को अपने दिलो-दिमाग से निकल नहीं सकती हैं। इसीलिए वे कह रही हैं कि जब कृष्ण अपनी मुरली बजाएंगे, तो वो उससे निकलने वाली मधुर ध्वनि को नहीं सुनेंगी। वो सभी अपने कानों पर हाथ रख लेंगी। उनका मानना है कि भले ही, कृष्ण किसी महल पर चढ़ कर, अपनी मुरली की मधुर तान क्यों न बजायें और गीत ही क्यों न गाएं, जब तक वो उसे नहीं सुनेंगी, तब तक उन पर मधुर तानों का कोई असर नहीं होने वाला।

लेकिन अगर गलती से भी मुरली की मधुर ध्वनि उनके कानों में चली गई, तो फिर हम अपने वश में नहीं रह पाएंगी। फिर चाहे हमें कोई कितना भी समझाए, हम कुछ भी समझ नहीं पाएंगी। गोपियों के अनुसार, कृष्ण की मुस्कान इतनी प्यारी लगती है कि उसे देख कर कोई भी उनके वश में आए बिना नहीं रह सकता है। इसी कारणवश, गोपियाँ कह रही हैं कि श्री कृष्ण का मोहक मुख देख कर, उनसे ख़ुद को बिल्कुल भी संभाला नहीं जाएगा। वो सारी लाज-शर्म छोड़कर श्री कृष्ण की ओर खिंची चली जाएँगी।

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NCERT SOLUTIONS

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1 ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?

उत्तर- रसखान जी अगले जन्म में ब्रज के गाँव में ग्वाले के रूप में जन्म लेना चाहते हैं ताकि वह वहाँ की गायों को चराते हुए श्री कृष्ण की जन्मभूमि में अपना जीवन व्यतीत कर सकें। श्री कृष्ण के लिए अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते हुए वे आगे व्यक्त करते हैं कि वे यदि पशु रुप में जन्म लें तो गाय बनकर ब्रज में चरना चाहते हैं ताकि वासुदेव की गायों के बीच घूमें व ब्रज का आनंद प्राप्त कर सकें और यदि वह पत्थर बने तो गोवर्धन पर्वत का ही अंश बनना चाहेंगे क्योंकि श्री कृष्ण ने इस पर्वत को अपनी अगुँली में धारण किया था। यदि उन्हें पक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा तो वहाँ के कदम्ब के पेड़ों पर निवास करें ताकि श्री कृष्ण की खेल क्रीड़ा का आनंद उठा सकें। इन सब उपायों द्वारा वह श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करना चाहते हैं।

प्रश्न 2 कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?

उत्तर- कवि का ब्रज के वन, बाग़ और तालाब को इसलिए निहारना चाहता है क्योंकि इसके साथ कृष्ण की यादें जुड़ी हुई है। कभी कृष्ण इन्हीं में विहार किया करते थे। इसलिए कवि उन्हें देखकर धन्य हो जाते है।

प्रश्न 3 एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?

उत्तर- श्री कृष्ण रसखान जी के आराध्य देव हैं। उनके द्वारा डाले गए कंबल और पकड़ी हुई लाठी उनके लिए बहुत मूल्यवान है। श्री कृष्ण लाठी व कंबल डाले हुए ग्वाले के रुप में सुशोभित हो रहे हैं। जो कि संसार के समस्त सुखों को मात देने वाला है और उन्हें इस रुप में देखकर वह अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। भगवान के द्वारा धारण की गई वस्तुओं का मूल्य भक्त के लिए परम सुखकारी होता है।

प्रश्न 4 सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिये।

उत्तर- सखी गोपी से कृष्ण का मोहक रूप धारण करने का आग्रह करती है। सखी गोपी से वही सब कुछ धारण करने के लिए कहती है जो कृष्ण धारण करते हैं, सखी ने गोपी से आग्रह किया था कि वह कृष्ण के समान सिर पर मोरपंखों का मुकुट धारण करें। गले में गुंजों की माला पहने। तन पर पीले वस्त्र पहने। हाथों में लाठी थामे वन में गायों को चराने जाए।

प्रश्न 5 आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?

उत्तर- श्रीकृष्ण कवि के आराध्य देव हैं। वे सदैव उनका सान्निध्य चाहता है। पहाड़ को अपनी अंगुली में उठाकर कृष्ण ने उसे अपने समीप रखा था। पशु-पक्षी सदैव कृष्ण के प्रिय रहे हैं। अतः वे इनके माध्यम से सरलतापूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त कर सकता है। इनके माध्यम से अपने आराध्य देव की लीलाओं का रसपान कर सकता है। अन्य साधनों से प्रभु का साथ मिल पाने में कठिनाई हो सकती है परन्तु इनके माध्यम से सरलतापूर्वक प्रभु का सान्निध्य मिल जाएगा। इसलिए वे पशु, पक्षी तथा पहाड़ बनकर ही प्रभु का सान्निध्य चाहता है।

प्रश्न 6 चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?

उत्तर- चौथे सवैये के अनुसार कृष्ण का रूप अत्यंत मोहक है तथा उनकी मुरली की धुन बड़ी मादक है। इन दोनों से बचना गोपियों के लिए अत्यंत कठिन है। गोपियाँ कृष्ण की सुन्दरता तथा तान पर आसक्त हैं इसलिए वे कृष्ण के समक्ष विवश हो जाती हैं।

प्रश्न 7 भाव स्पष्ट कीजिए –

     i.        कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

   ii.        माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।

उत्तर-

     i.        भाव यह है कि रसखान जी ब्रज की काँटेदार झाड़ियों व कुंजन पर सोने के महलों का सुख न्योछावर करदेना चाहते हैं। अर्थात् जो सुख ब्रज की प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने में है वह सुख सांसारिक वस्तुओं को निहारने में दूर-दूर तक नहीं है।

   ii.        भाव यह है कि कृष्ण की मुस्कान इतनी मोहक है कि गोपी से वह झेली नहीं जाती है अर्थात् कृष्ण की मुस्कान पर गोपी इस तरह मोहित हो जाती है कि लोक लाज का भी भय उनके मन में नहीं रहता और गोपी कृष्ण की तरफ़ खीची चली जाती है।

प्रश्न 8 ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर- ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 9 काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।

उत्तर- इस छंद में गोपी अपनी दूसरी सखी से श्री कृष्ण की भाँति वेशभूषा धारण करने का आग्रह करती है। वह कहती है तू श्री कृष्ण की भाँति सिर पर मोर मुकुट व गले में गुंज की माला धारण कर, शरीर पर पीताम्बर वस्त्र पहन व हाथ में लाठी डाल कर मुझे दिखा ताकि मैं श्री कृष्ण के रूप का रसपान कर सकूँ। उसकी सखी उसके आग्रह पर सब करने को तैयार हो जाती है परन्तु श्री कृष्ण की मुरली को अपने होठों से लगाने को तैयार नहीं होती। उसके अनुसार उसको ये मुरली सौत की तरह प्रतीत होती है और वो अपनी सौत रुपी मुरली को अपने होठों से लगने नहीं देना चाहती।

यहाँ पर 'ल' वर्ण और 'म' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है इस कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।छंद में सवैया छंद का प्रयोग हुआ है तथा ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है जिससे छंद की छटा ही निराली हो जाती है। साथ में माधुर्य गुण का समावेश हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 

प्रश्न 1 प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।

उत्तर- मुझे अपनी मातृभूमि से प्यार है। हम इसकी धूल में खेलकर, इसका अन्न जल पीकर बड़े हुए हैं अत:हमारा भी फ़र्ज बनता है कि हम अपनी मातृभूमि का कर्ज अदा करें। इसलिए जब भी मौका मिलेगा तब – तब मैं अपनी मातृभूमि के लिए अपना त्याग देने के लिए तैयार रहूँगा। मैं ऐसा कोई कार्य नहीं करूँगा जिससे मेरी मातृभूमि का सिर नीचा हो। जहाँ तक संभव होगा मैं अपनी मातृभूमि के उत्थान के लिए प्रयास करूँगा।

प्रश्न 2 रसखान के इन सवैयों  का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिये। साथ ही किन्ही दो सवैयों को कंठस्थ कीजिये।

उत्तर- छात्र स्वयं करने का प्रयत्न करे।


  • Tags :
  • रसखान के सवैया

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