PDF NCERT Solution for class 8 chapter 4 दीवानों की हस्ती कविता

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दीवानों की हस्ती chapter 4 NCERT Class 8 solution

काव्यांश

हम दीवानों की क्या हस्ती,

हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम जैसे मस्त-मौला लोगों का स्वभाव या व्यक्तित्व कुछ अलग , कुछ अनोखा ही होता हैं। हमारा कोई निश्चित ठौर-ठिकाना भी नहीं होता है। हम आज इस जगह पर हैं तो कल किसी और स्थान की तरफ चले जाते हैं अर्थात हम कभी भी एक स्थान पर टिके नहीं रहते हैं।

लेकिन हमारा स्वभाव कुछ ऐसा होता है कि हम बेफिक्र होकर जहां भी चले जाते हैं। हमारे साथ – साथ हमारा खुशनुमा स्वभाव व लोगों के सुखों व दुखों को बांटने की आदत भी हमारे साथ जाती हैं। और फिर अपने प्रसन्न व फक़्कड़ स्वभाव से हम उस जगह पर भी खुशियाँ बिखेर देते हैं ।

काव्यांश 2.

आए बन कर उल्लास अभी,

आँसू बन कर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गए, अरे,

तुम कैसे आए, कहाँ चले

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि वो जहां भी जाते हैं। अपने मस्त-मौला स्वभाव के कारण वहां के माहौल को खुशनुमा बना देते हैं। साथ में वो लोगों के दुखों को बांटने का भी प्रयास करते हैं। इसलिए उनके आ जाने से लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उनके चले जाने पर लोग दुखी हो जाते हैं जिस कारण उनके आँखों से आंसू निकल आते हैं।

ऐसे लोगों के साथ रहने पर लोगों को समय कैसे निकल (बीत) गया। इस बात का पता ही नहीं चलता हैं और कवि जैसे मस्त मौला स्वभाव के लोग एक स्थान पर अधिक समय तक टिक कर नहीं रह सकते हैं। अपने स्वभाव के अनुरूप वो निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं। इसीलिए लोग कवि से कहते हैं कि आप तो अभी-अभी ही आए थे और अभी जाने भी लगे हैं।

यहां पर कवि लोगों को स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि रुकने का नाम नहीं बल्कि चलते रहने का नाम जिन्दगी है। इसीलिए जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

काव्यांश 3.

किस ओर चले ? यह मत पूछो,

चलना है, बस इसलिए चले,

जग से उसका कुछ लिए चले,

जग को अपना कुछ दिए चले,

भावार्थ –

कवि अपने घुमक्क्ड स्वभाव के कारण लोगों से यह कह रहे हैं कि हम किस तरफ चल पड़ेंगे। यह हमें खुद भी नहीं पता हैं क्योंकि हमारी कोई निश्चित मंजिल नहीं है। पता – ठिकाना नही है। बस चलते जाने की हमारी आदत है। इसलिए हम निरन्तर चलते जाते हैं।

चूंकि कवि पल दो पल के लिए जहां भी ठहरते हैं। अपने मस्तमौला स्वभाव के कारण लोगों में निस्वार्थ भाव से प्रेम बाँटते हैं। उनका सुख-दुख बाँटते हैं। उनसे कुछ अच्छी व ज्ञान की बातें सिखाते हैं। और कुछ सच्ची बातें उनको भी सिखाते हैं।

इसीलिए कवि कहते हैं कि मैंने इस संसार के लोगों से बहुत कुछ सीखा हैं और आगे बढ़ने से पहले मैंने भी हमेशा इस संसार के लोगों को थोड़ा किसी न किसी रूप में अवश्य वापस किया हैं।

काव्यांश 4.

दो बात कही, दो बात सुनी।

कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।

छककर सुख-दुख के घूँटों को

हम एक भाव से पिए चले।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम जहाँ भी जाते हैं वहाँ पर लोगों की सुख-दुःख भरी बातें को सुन लेते हैं और अपने दिल की बात भी लोगों से कर लेते हैं। कभी-कभी उनकी खुशियों भरी बातों को सुनकर हम उनके साथ हँस लेते हैं तो कभी उनके दुःख से दुखी होकर रो भी पड़ते हैं।

सुख व दुःख , दोनों भावनायें हमारे लिए एक समान ही हैं। हम लोगों की दोनों तरह की बातों को एक समान भाव से सुनते हैं। सुखी व्यक्ति के साथ उसकी खुशी बाँट कर उसको दुगना करने की कोशिश करते हैं , तो दुखी व्यक्ति के दुख को सुनकर अपने मधुर वचनों से उसको दिलासा देकर उसके दुखों को आधा करने का प्रयास करते हैं।

यानि लोगों के सुख में हँस लेते हैं तो उनके दुख में दुखी होकर रो भी जाते हैं। पर हम सुख और दुःख दोनों को एक समान भाव से देखते हैं। उसको सुनते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।

यहां पर कवि लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि इस दुनिया के दुख में ज्यादा दुखी और सुख में ज्यादा खुश होने की जगह , दोनों को एक समान भाव से देखो और आगे बढ़ते रहो।

काव्यांश 5.

हम भिखमंगों की दुनिया में,

स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,

हम एक निसानी – सी उर पर,

ले असफलता का भार चले।

भावार्थ –

कवि कहते हैं कि ये पूरा संसार भिखारी है। जो हरदम या तो एक दूसरे से या भगवान से रुपया-पैसा , धन दौलत मांगते ही रहते हैं। यानि स्वार्थ भरी इस दुनिया में धन दौलत तो सबको चाहिए लेकिन प्रेम की दौलत को चाहने वाले बहुत कम है । जिस वजह से लोगों के पास प्रेम की दौलत की कमी हो गयी हैं। इसीलिए कवि इस दुनिया को “भिखमंगों की दुनिया” कहते हैं।

कवि कहते हैं कि वो प्रेम के मामले में बहुत अमीर हैं। इसीलिए वह दुनिया भर वालों में पूरी आजादी से अपना प्यार व अपनी खुशियां लुटाते रहते हैं। फिर भी उनकी दौलत कभी कम नहीं होती है बल्कि बढ़ती ही जाती है।

कवि अपना प्यार व खुशियां लोगों में खुले हृदय से बांटते रहते हैं और उनके दुख और परेशानियों को भी कम करने की कोशिश करते हैं। अगर किसी के दर्द या परेशानी को कम करके उसके चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं भी ला पाते हैं तो उसे अपनी असफलता मानकर उसकी जिम्मेदारी का भार खुद अपने सिर पर लेकर आगे बढ़ जाते हैं।

काव्यांश 6.

अब अपना और पराया क्या?

आबाद रहें रुकने वाले!

हम स्वयं बँधे थे और स्वयं

हम अपने बँधन तोड़ चले।

भावार्थ –

कवि कहते है कि हमारे लिए इस दुनिया में न कोई अपना हैं न कोई पराया। सब मेरे लिए एक समान हैं। यानि मेरे लिए सारा संसार एक परिवार हैं और यहाँ रहने वाले सभी लोग मेरे लिए एक समान हैं । वो एक जगह टिक कर अपने लिए धन-सम्पति इकठ्ठा करने वालों , माया मोह , लोभ लालच में फंसे लोगों को दिल से दुआएं देते हैं कि सब लोग आबाद रहें व खुशहाल रहें।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 8 CHAPTER 4 Deewano ki Hasti

कविता से  प्रश्न (पृष्ठ संख्या 21)

प्रश्न 1 कवि ने अपने आने को 'उल्लास' और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना' क्यों कहा है?

उत्तर- कवि कहीं पर भी जाता है तो वहाँ की प्रकृति और वातावरण का आनंद लेता है। मगर जब वह वहाँ से वापस आता है तो वहॉ से अलग होने पर उसकी आँखों में ऑसू आ जाते हैं। इसीलिए कवि ने अपने आने को ‘उल्लास' और जाने को 'आँसू कहा है।

प्रश्न 2 भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?

उत्तर- कवि ने अपने आप को भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि इसलिए कहा है। क्योंकि उसने पूरी दुनिया को प्यार दिया मगर उसे बदले में कुछ नहीं मिला जिसके कारण वह दुखी है और कह रहा है कि यह दुनिया कितनी कूर है जो सिर्फ लेना जानती है देना नहीं। कवि इस स्थिति से निराश है।

प्रश्न 3 कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?

उत्तर- कवि का अपने जीवन के प्रति द्रष्टिकोण अच्छा लगा वह दुनिया के ऐसे रूप को देखकर भी उम्मीद की एक किरण को देख रहा है।

अनुमान और कल्पना  प्रश्न (पृष्ठ संख्या 22)

प्रश्न 1 एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि "हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।" दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि "मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।" यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?

उत्तर-

      i.   विरोधाभास वाली काव्य-पंक्तियाँ:

आए बनकर उल्लास अभी,

आँसू बनकर बह चले अभी।

(यहाँ उल्लास भी है और आँसू भी है) कवि सुख- दुख को समान भाव से लेता है।

    ii.   हम भिखमंगों की दुनिया में,

स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले।

(यहाँ भिखमंगों का उल्लेख है और लुटाना भी है) कवि दूसरों को प्यार व खुशियाँ देकर खुद बिना कुछ लिए चला जाता है।

   iii.   हम स्वयं बँधे थे और स्वयं,

हम अपने बंधन तोड़ चले।

(यहाँ स्वयं बंधकर फिर स्वयं अपने बंधनो को तोड़ने की बात की गई है।)

भाषा की बात  प्रश्न (पृष्ठ संख्या 22)

प्रश्न 1 संतुष्टि के लिए कवि ने 'छककर' 'जी भरकर' और 'खुलकर' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करनेवाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे -हँसकर, गाकर।

उत्तर-

·       प्यार लुटाकर

·       मुस्कराकर

·       देकर

·       मस्त होकर

·       सराबोर होकर

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