पानी की कहानी NCERT Solutions for class 8 Hindi Chapter 16 Vasant

पानी की कहानी NCERT Solutions for class 8 Hindi Chapter 16 Vasant
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NCERT Solutions for class 8 Hindi chapter 16 पानी की कहानी | Pani ki Kahani class 8 chapter 16 

सारांश

कहानी की शुरुआत में लेखक ने बताया हैं कि बेर की झाड़ी से मोती-सी चमकती पानी की एक बूँद उनके हाथ में आ गई और उनकी दृष्टि उस बूँद पर पड़ते ही वह रुक गई। लेखक कहते हैं कि थोड़ी देर बाद उनकी हथेली से सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी । ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि पानी की वह बूँद दो भागों में बँट गई हैं और अब वो दोनों ही हिल – हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रही हैं। लेखक को ऐसा लगा मानो जैसे वो बोल रही हों।

लेखक ने यहां पर पानी की बूंदों का मानवीकरण किया है। उसके बाद लेखक उन बूंदों से बातें करने लगते हैं। ओस की बूँद अपने बारे में बताती है कि वह लेखक की हथेली पर बेर के पेड़ से आई है। वह लेखक को यह भी बताती हैं कि बेर के पेड़ की जड़ों के रोएँ उस जैसी असंख्य छोटी-छोटी बूंदों को धरती से खींच लेते हैं और फिर उनका उपयोग कर उन्हें बाहर फेंक देते हैं।

पानी की बूंद बेर के पेड़ से अत्यधिक नाराज थी। वह कहती हैं कि इस पेड़ को इतना बड़ा करने के लिए मेरी जैसी असंख्य बूंदों ने अपनी कुर्बानी दी हैं। लेखक उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे ।

उसके बाद बूँद , बेर के पेड़ की जड़ों द्वारा पानी को खींचा जाना और उनका प्रयोग अपना खाना बनाने के लिए करना और अंत में पेड़ के पत्तों के छोटे-छोटे छिद्रों से बाहर निकल आने की अपनी कहानी लेखक को बताती हैं। और साथ में यह भी बताती है कि सूरज के ढल जाने के कारण अब वह भाप बनकर उड़ नहीं सकती। इसीलिए वह सूरज के आने का इंतजार कर रही है। 

लेखक उसे आशवासन देते हैं कि अब वह उनकी हथेली पर बिल्कुल सुरक्षित हैं। इसके बाद पानी की वह छोटी सी बूँद लेखक को अपनी उत्पत्ति की कहानी बताती हैं।

बूँद कहती हैं कि जब हमारे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल हो रही थी। अनेक नये ग्रह और उपग्रह बन रहे थे यानि ब्रह्मांड की रचना हो रही थी , तब मेरे दो पूर्वज हद्रजन (हाइट्रोजन और ऑक्सीजन गैस) सूर्यमंडल में आग के रूप में मौजूद थे।और सूर्यमंडल लगातार अपने निश्चित मार्ग पर चक्कर काटता रहता था। 

लेकिन एक दिन अचानक ब्रह्मांड में ही बहुत दूर सूर्य से लाखों गुना बड़ा एक प्रकाश-पिंड दिखाई पड़ा। यह पिंड बड़ी तेज़ी से सूर्य की ओर बढ़ रहा था। उसकी आकर्षण शक्ति से हमारा सूर्य भी काँप रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह सूर्य से टकरा जाएगा।

मगर वह सूर्य से सहस्रों मील दूर से ही दूसरी दिशा की ओर निकल गया । परंतु उसकी भीषण आकषर्ण-शक्ति के कारण सूर्य का एक भाग टूटकर कई छोटे टुकड़ों में बंट गया। उन्हीं में से एक टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। यह प्रारंभ में एक बड़ा आग का गोला थी।

लेखक ने बूँद से प्रश्न किया कि अगर पृथ्वी आग का गोला थी तो , तुम पानी कैसे बनी ? बूँद ने जबाब दिया । अरबों वर्षों में धीरे-धीरे पृथ्वी ठंडी होती चली गई और मेरे पूर्वजों ने आपस में रासायनिक क्रिया कर मुझे पैदा किया।

पैदा होते समय मैं भाप के रूप में पृथ्वी के चारों ओर घूमती थी। फिर धीरे धीरे ठोस ब़र्फ में बदल गई । फिर लाखों वर्षों बाद सूर्य की किरणें पड़ने और गर्म जल धारा से मिलने के कारण मैं पानी में परिवर्तित समुद्र में पहुंच गई।

बूँद कहती हैं कि नमक से भरे समुद्र में बहुत ही अनोखा नजारा था।वहाँ एक से एक अनोखे जीव भरे पड़े थे। जैसे रेंगने वाले घोंघे , जालीदार मछलियाँ , कई-कई मन भारी कछुवे और हाथों वाली मछलियाँ आदि।और समुद्र की अधिक गहराई में जगंल , छोटे ठिंगने व मोटे पत्ते वाले पेड़ भी उगे थे। वहाँ पर पहाडिय़ाँ , गुफायें और घाटियाँ भी थी। जहाँ आलसी और अँधे अनेक जीव रहते थे। 

बूँद लेखक को आगे बताती है कि समुद्र के अन्दर से बाहर आना भी आसान काम नहीं था। उसने समुद्र से बाहर आने के लिए कई कोशिशें की। कभी चट्टानों में घुसकर बाहर निकलने की कोशिश की तो , कभी धरती के अंदर ही अंदर किसी सुरक्षित जगह से बाहर निकलने की कोशिश। ऐसी तमाम कोशिशों के बाद अंततः ज्वालामुखी के निकट पहुंच गई।

ज्वालामुखी की गर्मी के कारण वह फिर से भाप में परिवर्तित हो आसमान में उड़ चली। फिर बादल रूप में परिवर्तित होकर दोबारा बरस कर जमीन में आ गिरी। जमीन में आने के पश्चात नदी के रूप में बहने लगी। तभी एक नगर के पास एक नल द्वारा उसे खींच लिया गया।

महीनों तक नलों में धूमने के बाद एक दिन नल के टूटे हिस्से से बाहर निकल आयी और बेर के पेड़ के पास अटक गयी। अब सुबह होने तक का इंतजार कर रही है ताकि वह दोबारा भाप बन सके। और सूर्योदय होते ही ओस की बूँद धीरे-धीरे घटी और देखते-देखते ही लेखक की हथेली से गायब हो गई।


 

NCERT SOLUTIONS

पाठ से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 106)

प्रश्न 1 लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?

उत्तर- लेखक जब बेर की झाड़ी के नीचे से गुजर रहा था तभी मोती-सी एक बूंद उसके हाथ पर आ पड़ी। लेखक के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और वह बूंद लेखक की कलाई पर से सरक कर हथेली पर आ गई।

प्रश्न 2 ओस की बूंद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?

उत्तर- बूंद जब पेड़ पर से पृथ्वी पर गिरी तो उसका सारा शरीर भारीर कोध और घृणा से कॉप गया उसे पौधे की जड़ ने अपने में समा लिया और उससे अपना पोषण किया उसकी इस क्रिया में बूंद का अस्तित्व ही समाप्त हो गया।

प्रश्न 3 हाइाडोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज/ पुरखा क्यों कहा?

उत्तर- जब पृथ्वी व उसके सहायक उपग्रहों का जन्म भी नहीं हुआ था तब भी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसें विद्यमान थी। जब पृथ्वी का निर्माण हुआ और इन दोनों गैसों के मेल से पानी का निर्माण हुआ। इसीलिए पानी ने हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अपना पूर्वज कहा है।

प्रश्न 4 "पानी की कहानी" के आधार पर पानी के जन्म और जीवनयात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर- पृथ्वी पर पानी का जन्म हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों के मिश्रण से हुआ इन दोनों गैसों में रासायनिक क्रिया होने पर ये बादल का रूप लेकर धरती पर पानी के रूप में आईं फिर बर्फ के रूप में उसके बाद फिर बादल फिर पानी ऐसा यह सिलसिला करोड़ों वर्शों तक चलता रहा धीरे-धीरे धरती ठंडी हुई और पानी भी अपने अतित्व में आ गया।

प्रश्न 5 कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूंद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?

उत्तर-ओस की बूंद यह प्रतीक्षा कर रही भी कि कब सूर्योदय हो और मैं अपनी कहानी लेखक को सुनाऊँ।

पाठ से आगे प्रश्न (पृष्ठ संख्या 106-107)

प्रश्न 1 जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन सी बातें विस्तार से बताई हैं।

उत्तर- धरती पर से जल का वाश्प के रूप में बदलना उसके बाद पानी बनकर बरसना फिर नदियों से होकर समुद्र में मिल जाना फिर भाप बनकर उड़ जाना यही जलचक कहलाता है। लेखक ने विस्तार से पानी के बनने और उसके हर क्षण बदलने की प्रक्रिया को बड़े ही सुन्दर ठंग से पाठ में प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 2 "पानी की कहानी" पाठ में ओस की बूंद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।

उत्तर- ओस की बूंद कहानी में लेखक श्रोता है। ठीक उसी तरह हमारे आसपास भी बहुत सी चीजें होती है जो हमसे बहुत कुछ कहती हैं मगर हम सुन नहीं पाते हैं। आज ओस की कहानी की तरह मैं आपको एक पेड़ की कहानी सुनाती हूं- एक दिन मैं गर्मी में कालेज से घर आ रही थी। आधे रास्ते में मैं आकर थक गई चारों और सूर्य अपने तपीश से सबको गर्मी दे रहा था। मैं पेड़ की छाया तलाश रही थी। मुझे एक पेड़ दिखा भी जो अर्धमरा था। मैं बैठ गई और पानी पी रही थी तभी पेड़ का एक शिखर आकर मेरे पानी के बोतल से पानी गिरा दिया। मैं सहम गई और पेड़ को देखी तो ऐसा लगा कि मानो पेड़ मुझसे कहना चाहता था। फिर पेड़ की आवाज सुनाई दी की मुझे पानी की जरूरत है आज सालों बाद पानी देखकर मैं रोक नहीं पाया और तुम्हारे पानी को गिरा दिया क्योंकि तुम मानव की तरह हम मानव को भी प्यास लगती है।

मैं चाहता हूं कि तुम भी मेरी रक्षा करो। मैंने पेड़ से कहा कि मैं पेड़ पौधों को पसंद करती हूं और पर्याप्त पानी देती हूं। मगर अबसे तुमको भी हर रोज़ पानी दूंगी पेड़ खुश हो गया और तब से वह पेड़ और मैं एक दोस्त हो गए। आज वह पेड़ फिर से मेरे प्रयास से जीवित हो पाया है। मुझे देखकर भी लोग उस पेड़ को पानी देते हैं और पेड़ सबको शीतलता प्रदान करता है।

प्रश्न 3 समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती?

उत्तर- समुद्र के तक पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गर्मी इसलिए नहीं पड़ती क्योंकि वहाँ पर नमी ज्यादा होती है जिसके मौसम में संतुलन बना रहता है। इसलिए अधिक ठंड और अधिक गर्मी नहीं पड़ती।

प्रश्न 4 पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर- वनस्पति शास्त्र में इस क्रिया को वाश्पोत्सर्जन कहते हैं। छात्र अपने विज्ञान शिक्षक के सहयोग से उपरोक्त कार्य को पूर्ण करेंगे।

पाठ से आगे प्रश्न (पृष्ठ संख्या 107)

प्रश्न 1 पानी की कहानी में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर ओस की बूंद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूंद अनेक अवस्थाओं में सूर्यमंडल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नदी और जल से होते हुऐ पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती है। इस कहानी की भांति आप भी लोहे अथवा प्लास्टिक पर कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर-  आज मैं अपने घर के मेन गेट में लगे लोहे के दरवाजे की कहानी उसी की जुबानी सुना रहा हूं। तो सुनिये। मैं पहले लौह अयस्क के रुप में था। इस प्रकार मैं कच्ची अवस्था मे था। वहां से मैं कारखाने में लाया गया। कारखाने में मुझे पिघला कर सांचे में ढाला गया। इस प्रकार मैंने एक आकार ग्रहण किया। इस आकार को और आगे पीट-पीटकर चौरस कर दिया गया। फिर मुझे आपकी आज्ञानुसार एक निश्चित डिजाइन में ढालकर दरवाजे की शक्ल दे दी गयी। फिर नट-वोल्ट से कसकर कस दिया गया। इसे पेंट इत्यादि कर खूबसूरत बनाकर आपके घर की सुरक्षा के साथ-साथ शोभा सुंदरता बढाने हेतु आपके घर की चारदीवारी में उपयुक्त स्थान पर फिट कर दिया गया। आज मैं आपके यहां एक निर्जीव पर भरोसेमंद द्वारपाल की भूमिका निभा रहा हूं।

प्रश्न 2 अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। अन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अंतर यह होता है कि जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बर्फ) हलकी होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।

उत्तर- जल से वर्फ हल्की होती है। यह निर्विवाद सत्य है। वैज्ञानिक कारण से ऐसा होता है। प्रस्तुत तथ्य के अन्तर्गत वैज्ञानिक कारण यह है कि वर्फ ठोस अवस्था में होने के कारण इसका घनत्व जल के घनत्व की अपेक्षा कम होता है। इसे उदाहरण के रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है कि एक लीटर के आयतन में जितना जल समायेगा उसी आयतन में जल की अधिक मात्रा आयेगी। समान आयतन या मिलाजुलाकर कर कहें उस क्षेत्र में वर्फ की कम मात्रा आ पाने के कारण ही यह पानी से हल्की होती है।

प्रश्न 3 पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन-सामग्री 'हम पृथ्वी की संतान!' का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।

उत्तर- पर्यावरण अर्थात् एक ऐसा आवरण जो हम चारों ओर से ढके हुए हें। पूरी प्रकृति विशाल पारिस्थिति की तंत्र है। मनुष्य के जीवन में धरती, आकाश, नदियाँ, पेड़-पौधे, हवा, जल, खनिज पदार्थ सभी अपना विशेष महत्व रखते हैं। लेकिन मनुष्य केवल अपने स्वार्थ से प्रेरित रहता हें। आज विश्व की सभी प्रसिद्ध नदियाँ गंगा, यमुना, नर्मदा, राइन, सीन, मास, टेम्स आदि पूर्णतया प्रदूषित हो चुकी हैं। पृथ्वी के ऊपर जोन गैस की मोटी परत जो हमारा रक्षा कवच है वह भी खतरे में पड़ी है। इसीलिए सूर्य का ताप धरती की और बढ़ता जा रहा है। यह पूरे विश्व हेतु चिंता का विषय है। इसलिए पूरे विश्व में वायु, ध्वनि, जल व संपूर्ण पृथ्वी को प्रदूषित होने से बचाने हेतु प्रयास जारी हें। इसी हेतु! ‘पर्यावरण दिवस’ व ‘पृथ्वी सम्मेलन’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है ‘पृथ्वी को बचाओ’।

आज सभी का यह कर्तव्य बनता है कि राष्ट्र सीमाओं के बंधनों में न रहकर पूरे विश्व के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया जाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन यापन की सभी आवश्यकताएँ यह धरती हमें प्रदान करती है। हमें आत्मरक्षा हेतु पृथ्वी की रक्षा करनी होगी। ‘भूमि माता है और हम पृथ्वी की संतान’ इस कथन को चरितार्थ करना होगा।

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