लोकोक्तियों के बारे में रोचक तथ्य और जानकारी कक्षा 7

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लोकोक्तियाँ की परिभाषा

किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को ‘लोकोक्ति’ कहते हैं।

जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।

उदाहरण –

‘उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’। यहाँ ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है ‘एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता’।

‘लोकोक्ति’ शब्द ‘लोक + उक्ति’ शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है-लोक में प्रचलित उक्ति या कथन’। संस्कृत में ‘लोकोक्ति’ अलंकार का एक भेद भी है तथा सामान्य अर्थ में लोकोक्ति को ‘कहावत’ कहा जाता है।

चूँकि लोकोक्ति का जन्म व्यक्ति द्वारा न होकर लोक द्वारा होता है अतः लोकोक्ति के रचनाकार का पता नहीं होता। इसलिए अँग्रेजी में इसकी परिभाषा दी गई है-अर्थात लोकोक्ति ऐसी उक्ति है जिसका कोई रचनाकार नहीं होता।

वृहद् हिंदी कोश में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-

‘विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों और लोक विश्वासों आदि पर आधारित चुटीली, सारगर्भित, संक्षिप्त, लोकप्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं, जिनका प्रयोग किसी बात की पुष्टि, विरोध, सीख तथा भविष्य-कथन आदि के लिए किया जाता है।

‘लोकोक्ति’ के लिए यद्यपि सबसे अधिक मान्य पर्याय ‘कहावत’ ही है पर कुछ विद्वानों की राय है कि ‘कहावत’ शब्द ‘कथावृत्त’ शब्द से विकसित हुआ है अर्थात कथा पर आधारित वृत्त, अतः ‘कहावत’ उन्हीं लोकोक्तियों को कहा जाना चाहिए जिनके मूल में कोई कथा रही हो।

जैसे - ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा’ या ‘अंगूर खट्टे होना’ कथाओं पर आधारित लोकोक्तियाँ हैं। फिर भी आज हिंदी में लोकोक्ति तथा ‘कहावत’ शब्द परस्पर समानार्थी शब्दों के रूप में ही प्रचलित हो गए हैं।

लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब ‘लोकोक्ति’ हो जाती है।

लोकोक्ति : प्रमुख अभिलक्षण

1.    लोकोक्तियाँ ऐसे कथन या वाक्य हैं जिनके स्वरूप में समय के अंतराल के बाद भी परिवर्तन नहीं होता और न ही लोकोक्ति व्याकरण के नियमों से प्रभावित होती है। अर्थात लिंग, वचन, काल आदि का प्रभाव लोकोक्ति पर नहीं पड़ता। इसके विपरीत मुहावरों की संरचना में परिवर्तन देखे जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए ‘अपना-सा मुँह लेकर रह जाना’ मुहावरे की संरचना लिंग, वचन आदि व्याकरणिक कोटि से प्रभावित होती है

जैसे –

a)  लड़का अपना सा मुँह लेकर रह गया।

b)  लड़की अपना-सा मुँह लेकर रह गई।

जबकि लोकोक्ति में ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए ‘यह मुँह मसूर की दाल’ लोकोक्ति का प्रयोग प्रत्येक स्थिति में यथावत बना रहता है

जैसे -

c)   है तो चपरासी पर कहता है कि लंबी गाड़ी खरीदूँगा। यह मुँह और मसूर की दाल।

2.    लोकोक्ति एक स्वतः पूर्ण रचना है अतः यह एक पूरे कथन के रूप में सामने आती है। भले ही लोकोक्ति वाक्य संरचना के सभी नियमों को पूरा न करे पर अपने में वह एक पूर्ण उक्ति होती है जैसे - ‘जाको राखे साइयाँ, मारि सके न कोय’।

3.    लोकोक्ति एक संक्षिप्त रचना है। लोकोक्ति अपने में पूर्ण होने के साथ-साथ संक्षिप्त भी होती है। आप लोकोक्ति में से एक शब्द भी इधर-उधर नहीं कर सकते। इसलिए लोकोक्तियों को विद्वानों ने ‘गागर में सागर’ भरने वाली उक्तियाँ कहा है।

4.    लोकोक्ति सारगर्भित एवं साभिप्राय होती है। इन्हीं गुणों के कारण लोकोक्तियाँ लोक प्रचलित होती हैं।

5.    लोकोक्तियाँ जीवन अनुभवों पर आधारित होती है तथा ये जीवन-अनुभव देश काल की सीमाओं से मुक्त होते हैं। जीवन के जो अनुभव भारतीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को होते हैं वे ही अनुभव योरोपीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित लोकोक्तियों में अनुभूति लगभग समान है-

1)   एक पंथ दो काज

2)   नया नौ दिन पुराना सौ दिन

6.    लोकोक्ति का एक और प्रमुख गुण है उनकी सजीवता। इसलिए वे आम आदमी की जुबान पर चढ़ी होती है।

7.    लोकोक्ति जीवन के किसी-न-किसी सत्य को उद्घाटित करती है जिससे समाज का हर व्यक्ति परिचित होता है।

8.    सामाजिक मान्यताओं एवं विश्वासों से जुड़े होने के कारण अधिकांश लोकोक्तियाँ लोकप्रिय होती है।

9.    चुटीलापन भी लोकोक्ति की प्रमुख विशेषता है। उनमें एक पैनापन होता है। इसलिए व्यक्ति अपनी बात की पुष्टि के लिए लोकोक्ति का सहारा लेता है।

मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर

मुहावरे

लोकोक्तियाँ

1.   मुहावरे वाक्यांश होते हैं, पूर्ण वाक्य नहीं; जैसे- अपना उल्लू सीधा करना, कलम तोड़ना आदि। जब वाक्य में इनका प्रयोग होता तब ये संरचनागत पूर्णता प्राप्त करती है।

1.   लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य होती हैं। इनमें कुछ घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। भाषा में प्रयोग की दृष्टि से विद्यमान रहती है; जैसे- चार दिन की चाँदनी फेर अँधेरी रात।

2.   मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है।

2.   लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।

3.   मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।

3.   लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।

4.   वाक्य में प्रयुक्त होने के बाद मुहावरों के रूप में लिंग, वचन, काल आदि व्याकरणिक कोटियों के कारण परिवर्तन होता है; जैसे- आँखें पथरा जाना।
प्रयोग- पति का इंतजार करते-करते माला की आँखें पथरा गयीं।

4.   लोकोक्तियों में प्रयोग के बाद में कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए।
प्रयोग- वह अपनी योग्यता की डींगे मारता रहता है जबकि वह कितना योग्य है सब जानते हैं। उसके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है किअधजल गगरी छलकत जाए।

5.   मुहावरों का अंत प्रायः इनफीनीटिवनायुक्त क्रियाओं के साथ होता है; जैसे- हवा हो जाना, होश उड़ जाना, सिर पर चढ़ना, हाथ फैलाना आदि।

5.   लोकोक्तियों के लिए यह शर्त जरूरी नहीं है। चूँकि लोकोक्तियाँ स्वतः पूर्ण वाक्य हैं अतः उनका अंत क्रिया के किसी भी रूप से हो सकता है; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए, अंधी पीसे कुत्ता खाए, बैल मुझे मार, इस हाथ दे, उस हाथ ले, अकेली मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।

6.   मुहावरे किसी स्थिति या क्रिया की ओर संकेत करते हैं; जैसे हाथ मलना, मुँह फुलाना?

6.   लोकोक्तियाँ जीवन के भोगे हुए यथार्थ को व्यंजित करती हैं; जैसे- रहेगा बाँस, बजेगी बाँसुरी, ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती, नाच जाने आँगन टेढ़ा।

7.   मुहावरे किसी क्रिया को पूरा करने का काम करते हैं।

7.   लोकोक्ति का प्रयोग किसी कथन के खंडन या मंडन में प्रयुक्त किया जाता है।

8.   मुहावरों से निकलने वाला अर्थ लक्ष्यार्थ होता है जो लक्षणा शक्ति से निकलता है।

8.   लोकोक्तियों के अर्थ व्यंजना शक्ति से निकलने के कारण व्यंग्यार्थ के स्तर के होते हैं।

9.   मुहावरेतर्कपर आधारित नहीं होते अतः उनके वाच्यार्थ या मुख्यार्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता;
जैसे- ओखली में सिर देना, घाव पर नमक छिड़कना, छाती पर मूँग दलना।

9.   लोकोक्तियाँ प्रायः तर्कपूर्ण उक्तियाँ होती हैं। कुछ लोकोक्तियाँ तर्कशून्य भी हो सकती हैं; जैसे-
तर्कपूर्ण :
(i)
काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती।
(ii)
एक हाथ से ताली नहीं बजती।
(iii)
आम के आम गुठलियों के दाम।
तर्कशून्य :
(i)
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल।

10.  मुहावरे अतिशय पूर्ण नहीं होते।

10.   लोकोक्तियाँ अतिशयोक्तियाँ बन जाती हैं।

लोकोक्तियाँ के उदाहरण

(अ)

Ø  अन्धों में काना राजा = (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)

प्रयोग :- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही इसलिए गाँव वाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।

Ø  अन्धा क्या चाहे दो आँखें = (मनचाही बात हो जाना)

प्रयोग :- अभी मैं विद्यालय से अवकाश लेने की सोच ही रही थी कि मेघा ने मुझे बताया कि कल विद्यालय में अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या चाहे दो आँखें।

Ø  अस्सी की आमद, चौरासी खर्च = (आमदनी से अधिक खर्च)

प्रयोग :- राजू के तो अस्सी की आमद, चौरासी खर्च हैं। इसलिए उसके वेतन में घर का खर्च नहीं चलता।

(आ)

Ø  आ बैल मुझे मार = (स्वयं मुसीबत मोल लेना)

प्रयोग :- लोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार।

Ø  आँखों के अन्धे नाम नयनसुख = (गुण के विरुद्ध नाम होना)

प्रयोग :- उसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते है- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।

Ø  आम के आम गुठलियों के दाम = (अधिक लाभ)

प्रयोग :- सब प्रकार की पुस्तकें ‘साहित्य भवन’ से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ इसी को कहते हैं।

(इ, ई)

Ø  इतनी-सी जान, गज भर की जुबान = (बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करना)

प्रयोग :- चार साल की बच्ची जब बड़ी-बड़ी बातें करने लगी तो दादाजी बोले- इतनी सी जान, गज भर की जुबान।

Ø  इधर कुआँ और उधर खाई = (हर तरफ विपत्ति होना)

प्रयोग :- न बोलने में भी बुराई है और बोलने में भी; ऐसे में मेरे सामने इधर कुआँ और उधर खाई है।

Ø  ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया = (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)

प्रयोग :- कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

Ø  ईंट की लेनी, पत्थर की देनी = (बदला चुकाना)

प्रयोग :- अशोक ईंट की लेनी, पत्थर की देनी वाले स्वभाव का आदमी है।

(उ)

Ø  उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = (अपराधी निरपराध को डाँटे)

प्रयोग :- एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

Ø  उसी का जूता उसी का सिर = (किसी को उसी की युक्ति या चाल से बेवकूफ बनाना)

प्रयोग :- जब चोर पुलिस की बेल्ट से पुलिस को ही मारने लगा तो सबने यही कहा कि ये तो उसी का जूता उसी का सिर वाली बात हो गई।

(ऊ)

Ø  ऊँट के मुँह में जीरा = (जरूरत के अनुसार चीज न होना)

प्रयोग :- विद्यालय के ट्रिप में जाने के लिए 2,500 रुपये चाहिए थे, परंतु पिता जी ने 1,000 रुपये ही दिए। यह तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।

Ø  ऊधो का लेना न माधो का देना = (केवल अपने काम से काम रखना)

प्रयोग :- प्रोफेसर साहब तो बस अध्ययन और अध्यापन में लगे रहते हैं। गुटबन्दी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं- ऊधो का लेना न माधो का देना।

(ए)

Ø  एक पन्थ दो काज = (एक काम से दूसरा काम हो जाना)

प्रयोग :- दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।

Ø  एक हाथ से ताली नहीं बजती = (झगड़ा एक ओर से नहीं होता।)

प्रयोग :- आपसी लड़ाई में राम और श्याम-दोनों स्वयं को निर्दोष बता रहे थे, परंतु यह सही नहीं हो सकता, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती।

Ø  एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा = (कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य बुरी संगत में पड़ कर और बिगड़ जाते है।)

प्रयोग :- कालू तो पहले से ही बिगड़ा हुआ था अब उसने आवारा लोगों का साथ और कर लिया है- एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।

Ø  एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी = (गलत काम करके आँख दिखाना)

प्रयोग :- एक तो उसने मेरी किताब चुरा ली, ऊपर से आँखें दिखा रहा है। इसी को कहते हैं- ‘एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी।’

(ऐ)

Ø  ऐरा-गैरा नत्थू खैरा = (मामूली आदमी)

प्रयोग :- कोई ‘ऐरा-गैरा नत्थू खैरा’ महेश के ऑंफिस के अन्दर नहीं जा सकता।

Ø  ऐरे गैरे पंच कल्याण = (ऐसे लोग जिनके कहीं कोई इज्जत न हो)

प्रयोग :- पंचों की सभा में ऐरे गैरे पंच कल्याण का क्या काम!

(ओ)

Ø  ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर = (कष्ट सहने के लिए तैयार व्यक्ति को कष्ट का डर नहीं रहता।)

प्रयोग :- बेचारी शांति देवी ने जब ओखली में सिर दे ही दिया है तब मूसलों से डरकर भी क्या कर लेगी!

Ø  ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती = (किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति न हो।)

प्रयोग :- किसी के देने से कब तक गुजर होगी, तुम्हें यह जानना चाहिए कि ‘ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती’।

(क)

Ø  कोयले की दलाली में मुँह काला = (बुरों के साथ बुराई ही मिलती है)

प्रयोग :- तुम्हें हजार बार समझाया चोरी मत करो, एक दिन पकड़े जाओगे। अब भुगतो। कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है।

Ø  कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा = (बेमेल वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना)

प्रयोग :- शर्मा जी ने ऐसी किताब लिखी है कि किताब में कहीं कुछ मेल नहीं खाता। उन्होंने तो वही हाल किया है- ‘कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा’।

Ø  काला अक्षर भैंस बराबर = (बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति)

प्रयोग :- कालू तो अख़बार भी नहीं पढ़ सकता, वह तो काला अक्षर भैंस बराबर है।

(ख)

Ø  खोदा पहाड़ निकली चुहिया = (बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ)

प्रयोग :- बच्चा बेचारा दिन भर लाल बत्ती पर अख़बार बेचता रहा, परंतु उसे कमाई मात्र बीस रुपये की हुई। यह वही बात है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

Ø  खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे = (किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना)

प्रयोग :- दस लोगों के सामने जब मोहन की बात किसी ने नहीं सुनी, तो उसकी हालत उसी तरह हो गई ; जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।

Ø  खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है = एक को देखकर दूसरा बालक या व्यक्ति भी बिगड़ जाता है।

प्रयोग :- रोहन अन्य बालकों को देखकर बिगड़ गया है। सच ही है- ‘खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है’।

(ग)

Ø  गागर में सागर भरना = (कम शब्दों में बहुत कुछ कहना)

प्रयोग :- बिहारी कवि ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।

Ø  गया वक्त फिर हाथ नहीं आता = (जो समय बीत जाता है, वह वापस नहीं आता)

प्रयोग :- अध्यापक ने बताया कि हमें अपना समय व्यर्थ नहीं खोना चाहिए, क्योंकि गया वक्त फिर हाथ नहीं आता।

(घ)

Ø  घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने = (झूठा दिखावा करना)

प्रयोग :- रामू निर्धन है फिर भी ऐसा बन-ठन कर निकलता है जैसे लखपति हो। ऐसे ही लोगों के लिए कहते हैं- ‘घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने’।

Ø  घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या = (मेहनताना या पारिश्रमिक माँगने में संकोच नहीं करना चाहिए।)

प्रयोग :- भाई, मैंने दो महीने काम किया है। संकोच में तनख्वाह न माँगू तो क्या करूँ- ‘घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या’

(च)

Ø  चोर पर मोर = (एक दूसरे से ज्यादा धूर्त)

प्रयोग :- मृदुल और करन दोनों को कम मत समझो। ये दोनों ही चोर पर मोर हैं।

Ø  चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय = (अत्यधिक कंजूसी करना)

प्रयोग :- जेबकतरे ने सौ रुपए उड़ा लिए तो कुछ नहीं, पर मुन्ना ने मुझे पाँच रुपए उधार नहीं दिए। ये तो वही बात हुई कि चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।

(छ)

Ø  छोटा मुँह बड़ी बात = (कम उम्र या अनुभव वाले मनुष्य का लम्बी-चौड़ी बातें करना)

प्रयोग :- किशन तो हमेशा छोटा मुँह बड़ी बात करता है।

(ज)

Ø  जो करेगा, सो भरेगा = (जो जैसा काम करेगा वैसा फल पाएगा)

प्रयोग :- छोड़ो मित्र, जो करेगा, सो भरेगा, तुम्हें क्या

(झ)

Ø  झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला = (अंत में सच्चे आदमी की ही जीत होती है।)

प्रयोग :- किसी आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि- ‘झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला’ होता है।

(ट)

Ø  टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई = (थोड़े ही खर्च में किसी के चरित्र को जान लेना)

प्रयोग :- जब रमेश ने पैसे वापस नहीं किए तो सोहन ने सोच लिया कि अब वह उसे दोबारा उधार नहीं देगा- ‘टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई’।

(ठ)

Ø  ठेस लगे, बुद्धि बढ़े = (हानि मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है।)

प्रयोग :- राजेश ने व्यापार में बहुत क्षति उठाई है, तब वह सफल हुआ है। ठीक ही कहते हैं- ‘ठेस लगे, बुद्धि बढ़े’।

(ड)

Ø  डरा सो मरा = (डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता)

प्रयोग :- रामू उस जेबकतरे के चाकू से डर गया, वर्ना वह जेबकतरा पकड़ा जाता। कहते भी हैं- ‘जो डरा सो मरा’।

(ढ)

Ø  ढाक के वही तीन पात = (परिणाम कुछ नहीं निकलना, बात वहीं की वहीं रहना)

प्रयोग :- अध्यापक ने रामू को इतना समझाया कि वह सिगरेट पीना छोड़ दे, पर परिणाम ‘ढाक के वही तीन पात’, और एक दिन रामू के मुँह में कैंसर हो गया।

(त)

Ø  तेल देखो, तेल की धार देखो = (किसी कार्य का परिणाम देखने की बात करना)

प्रयोग :- रामू बोला- ‘तेल देखो, तेल की धार देखो’, घबराते क्यों हो

(थ)

Ø  थका ऊँट सराय तके = (दिनभर काम करने के बाद मजदूर को घर जाने की सूझती है।)

प्रयोग :- दिनभर काम करने के बादराजू घर जाने के लिए चलने लगा। ठीक ही है-‘थका ऊँट सराय तके’।

(फ)

Ø  फूंक दो तो उड़ जाय = (बहुत दुबला-पतला आदमी)

प्रयोग :- रमा तो ऐसी दुबली-पतली थी कि ‘फूंक दो तो उड़ जाय’।

(ब)

Ø  बहती गंगा में हाथ धोना = (अवसर का लाभ उठाना)

प्रयोग :- सत्संग के लिए काफी लोग एकत्रित हुए थे। ऐसे में क्षेत्रीय नेता भी वहाँ आ गए और उन्होंने अपना लंबा-चौड़ा भाषण दे डाला। इसे कहते हैं- बहती गंगा में हाथ धोना।

(भ)

Ø  भरी मुट्ठी सवा लाख की = (भेद न खुलने पर इज्जत बनी रहती है।)

प्रयोग :- रामपाल को वेतन बहुत कम मिलता है, लेकिन वह किसी को कुछ नहीं बताता। सही बात है- ‘भरी मुट्ठी सवा लाख की’ होती है।

(म)

Ø  मुँह में राम बगल में छुरी = (बाहर से मित्रता पर भीतर से बैर)

प्रयोग :- सुरभि और प्रतिभा दोनों आपस में अच्छी सहेलियाँ बनती हैं, परंतु मौका पाते ही एक-दूसरे की बुराई करना शुरू कर देती हैं। यह तो वही बात हुई- मुँह में राम बगल में छुरी।

Ø  मान न मान मैं तेरा मेहामन = (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)

प्रयोग :- जब एक अजनबी जबरदस्ती रामू से आत्मीयता दिखाने लगा तो रामू बोला- ‘मान न मान मैं तेरा मेहामन’।

Ø  मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है = (मनुष्य को अपने नाती-पोते अपने बेटे-बेटियों से अधिक प्रिय होते हैं)

प्रयोग :- सेठ अमरनाथ ने अपने बेटे के पालन-पोषण पर उतना खर्च नहीं किया जितना अपने पोते पर करता है। सच ही कहा गया है कि मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है।

(य)

Ø  यहाँ परिन्दा भी पर नहीं मार सकता = (जहाँ कोई आ-जा न सके)

प्रयोग :- मेरे ऑफिस में इतना सख्त पहरा है कि यहाँ कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता।

Ø  यथा राजा, तथा प्रजाा = (जैसा स्वामी वैसा ही सेवक)

प्रयोग :- जिस गाँव का मुखिया ही भ्रष्ट और पाखंडी हो उस गाँव के लोग भले कैसे हो सकते हैं। वे भी वही सब करते हैं जो उनका मुखिया करता है। किसी ने ठीक ही तो कहा है कि यथा राजा, तथा प्रजा।

(ल)

Ø  लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का = (काम बन जाए तो अच्छा है, नहीं बने तो कोई बात नहीं)

प्रयोग :- देखा-देखी रहीम ने भी आज लॉटरी खरीद ही ली। ‘लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का’।

Ø  लाख जाए, पर साख न जाए = (धन व्यय हो जाए तो कोई बात नहीं, पर सम्मान बना रहना चाहिए)

प्रयोग :- विवेक बात का पक्का है, उसका एक ही सिद्धांत है-‘लाख जाए, पर साख न जाए’।

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