Are you a Class 9 student, parent, or teacher searching for comprehensive resources on the topic Upbhoktavad Ki Sanskriti? Look no further! Upbhoktavad Ki Sanskriti is a vital chapter in Class 9 Hindi that sheds light on the culture of consumerism that surrounds us. It's more than just a chapter; it's a mirror reflecting our modern society. As you navigate the syllabus, you might have questions that pop up. Whether you need Upbhoktavad Ki Sanskriti question answer sets, a summary of the chapter, or multiple-choice questions, we've got it all!
Parents, understanding Upbhoktavad Ki Sanskriti is not just beneficial for your kids but for you as well. It helps you grasp the consumer-driven world we live in. Teachers, our detailed resources can help you guide your students effectively, making your teaching journey smoother.
Why is Upbhoktavad Ki Sanskriti so essential? It brings to the forefront the impact of consumer culture on our lives, our decisions, and our values. It's not just about learning Hindi; it's also about understanding the implications of consumerism. Whether you're working through Upbhoktavad Ki Sanskriti MCQ or looking for पाठ 3 के प्रश्न उत्तर, our comprehensive guides will provide you with the answers you seek in a straightforward manner.
The chapter is an essential part of the Class 9 Hindi curriculum, and whether you're a student, a parent, or a teacher, our resources aim to provide holistic support. It's not just about chapter 3 Hindi Class 9; it's about building a strong foundation in the subject. So don't miss out on grasping the essence and complexities of Upbhoktavad Ki Sanskriti in Class 9.
If you're aiming for top grades in your Class 9 Hindi exams or want to help your child or student achieve them, mastering this chapter is key. Clear all your doubts, from Upbhoktavad Ki Sanskriti summary to Class 9th Hindi Chapter 3 question answer sets. We're your one-stop destination for all things related to Upbhoktavad Ki Sanskriti in Class 9 Hindi. So dive in and enrich your understanding today!
अध्याय-3: उपभोक्तावाद की संस्कृति
upbhoktavad ki sanskriti
सारांश
उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश
लेखक ने इस पाठ में उपभोक्तावाद के बारे में बताया है। उनके अनुसार सबकुछ बदल
रहा है। नई जीवनशैली आम व्यक्ति पर हावी होती जा रही है। अब उपभोग-भोग ही सुख बन गया
है। बाजार विलासिता की सामग्रियों से भरा पड़ा है।
एक से बढ़कर एक टूथपेस्ट बाजार में उपलब्ध हैं। कोई दाँतो को मोतियों जैसा
बनाने वाले, कोई मसूढ़ों को मजबूत रखता है तो कोई वनस्पति और खनिज तत्वों द्वारा निर्मित
है। उन्ही के अनुसार रंग और सफाई की क्षमता वाले ब्रश भी बाजार में मौजूद हैं। पल भर
में मुह की दुर्गन्ध दूर करने वाले माउथवाश भी उपस्थित है। सौंदर्य-प्रासधन में तो
हर माह नए उत्पाद जुड़ जाते हैं। अगर एक साबुन को ही देखे तो ऐसे साबुन उपलब्ध हैं
जो तरोताजा कर दे, शुद्ध-गंगाजल से निर्मित और कोई तो सिने-स्टार्स की खूबसूरती का
राज भी है। संभ्रांत महिलओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार के आराम से मिल जाती
है।
वस्तुओं और परिधानों की दुनिया से शहरों में जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं। अलग-अलग
ब्रांडो के नई डिज़ाइन के कपडे आ गए हैं। घड़ियां अब सिर्फ समय देखने के लिए बल्कि
प्रतिष्ठा को बढ़ाने के रूप में पहनी जाती हैं। संगीत आये या न पर म्यूजिक सिस्टम बड़ा
होना चाहिए भले ही बजाने न आये। कंप्यूटर को दिखावे के लिए ख़रीदा जा रहा है। प्रतिष्ठा
के नाम पर शादी-विवाह पांच सितारा होटलों में बुक होते हैं। इलाज करवाने के लिए पांच
सितारा हॉस्पिटलों में जाया जाता है। शिक्षा के लिए पांच सितारा स्कूल मौजूद हैं कुछ
दिन में कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बन जाएंगे। अमेरिका और यूरोप में मरने के पहले ही
अंतिम संस्कार के बाद का विश्राम का प्रबंध कर लिया जाता है। कब्र पर फूल-फव्वारे,
संगीत आदि का इंतज़ाम कर लिया जाता है। यह भारत में तो नही होता पर भविष्य में होने
लग जाएगा।
हमारी परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। हमारी मानसिकता
में गिरावट आ रही है। हमारी सिमित संसाधनों का घोर अप्व्यय हो रहा है। आलू चिप्स और
पिज़्ज़ा खाकर कोई भला स्वस्थ कैसे रह सकता है? सामाजिक सरोकार में कमी आ रही है। व्यक्तिगत
केन्द्रता बढ़ रही है और स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। गांधीजी के अनुसार हमें
अपने आदर्शों पर टिके रहते हुए स्वस्थ बदलावों को अपनाना है। उपभोक्ता संस्कृति भविष्य
के लिए एक बड़ा खतरा साबित होने वाली है।
NCERT Solutions For
upbhoktavad ki sanskriti question answer
प्रश्न 1
लेखक के अनुसार जीवन में 'सुख' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- लेखक
के अनुसार उपभोग का भोग करना ही सुख है। अर्थात् जीवन को सुखी बनाने वाले उत्पाद का
ज़रूरत के अनुसार भोग करना ही जीवन का सुख है।
प्रश्न 2
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर- आज
की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर रही है। इसके कारण
हमारी सामाजिक नींव खतरे में है। मनुष्य की इच्छाएँ बढ़ती जा रही है, मनुष्य आत्मकेंद्रित
होता जा रहा है। सामाजिक दृष्टिकोण से यह एक बड़ा खतरा है।
प्रश्न 3
लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर- गाँधी जी सामाजिक मर्यादाओं और नैतिकता
के पक्षधर थें। गाँधी जी चाहते थे कि लोग सदाचारी, संयमी और नैतिक बनें, ताकि लोगों
में परस्पर प्रेम, भाईचारा और अन्य सामाजिक सरोकार बढ़े। लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति
इन सबके विपरीत चलती है। वह भोग को बढ़ावा देती है जिसके कारण नैतिकता तथा मर्यादा
का ह्रास होता है। गाँधी जी चाहते थें कि हम भारतीय अपनी बुनियाद और अपनी संस्कृति
पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास हो रहा है।
उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित होकर मनुष्य स्वार्थ-केन्द्रित होता जा रहा है। भविष्य
के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह बदलाव हमें सामाजिक पतन की ओर अग्रसर कर रहा
है।
प्रश्न 4
आशय स्पष्ट कीजिए–
i.
जाने-अनजाने आज के माहौल में
आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
ii.
प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते
हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न ह।
उत्तर-
i.
उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव
अप्रत्यक्ष हैं। इसके प्रभाव में आकर हमारा चरित्र बदलता जा रहा है। हम उत्पादों का
उपभोग करते-करते न केवल उनके गुलाम होते जा रहे हैं बल्कि अपने जीवन का लक्ष्य को भी
उपभोग करना मान बैठे हैं। आज हम भोग को ही सुख मान बैठे हैं।
ii.
सामाजिक प्रतिष्ठा विभिन्न
प्रकार की होती है जिनके कई रूप तो बिलकुल विचित्र हैं। हास्यास्पद का अर्थ है- हँसने
योग्य। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने के
लिए ऐसे– ऐसे कार्य और व्यवस्था करते हैं कि अनायास हँसी फूट पड़ती है। जैसे
अमरीका में अपने अंतिम संस्कार और अंतिम विश्राम-स्थल के लिए अच्छा प्रबंध करना ऐसी
झूठी प्रतिष्ठा है जिसे सुनकर हँसी आती है।
रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 39)
प्रश्न 1
कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने
के लिए अवश्यलालायित होते हैं? क्यों?
उत्तर- आज
का मनुष्य विज्ञापन के बढ़ते प्रभाव से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाया है। आज विज्ञापन
का सम्बन्ध केवल सुख-सुविधा से नहीं है बल्कि समाज में अपने प्रतिष्ठा की साख को कायम
रखना ही विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य बन चुका है। यही कारण है कि जब भी टी.वी. पर किसी
नई वस्तु का विज्ञापन आता है तो लोग उसे खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं।
प्रश्न 2
आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन?
तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर- वस्तुओं
को खरीदने का एक ही आधार होना चाहिए - वस्तु की गुणवत्ता। विज्ञापन हमें गुणवत्ता वाली
वस्तुओं का परिचय करा सकते हैं। अधिकतर विज्ञापन हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक
आकर्षण पैदा करते हैं। वे आकर्षक दृश्य दिखाकर गुणहीन वस्तुओं का प्रचार करते हैं।
प्रश्न 3
पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही “दिखावे की संस्कृति” पर विचार
व्यक्त कीजिए।
उत्तर- यह
बात बिल्कुल सच है की आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। आज लोग अपने को आधुनिक से
अत्याधुनिक और कुछ हटकर दिखाने के चक्कर में क़ीमती से क़ीमती सौंदर्य-प्रसाधन, म्युज़िक-सिस्टम,
मोबाईल फोन, घड़ी और कपड़े खरीदते हैं। समाज में आजकल इन चीज़ों से लोगों की हैसियत आँकी
जाती है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रूपए खर्च करने लगे हैं
ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें। “दिखावे की संस्कृति” के बहुत
से दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। इससे हमारा चरित्र स्वत: बदलता जा रहा है। हमारी
अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध
संकुचित होने लगा है। मन में अशांति एवं आक्रोश बढ़ रहे हैं। नैतिक मर्यादाएँ घट रही
हैं। व्यक्तिवाद, स्वार्थ, भोगवाद आदि कुप्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं।
प्रश्न
4 आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित
कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए। |
उत्तर- आज
की उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को प्रभावित कर रखा है।
त्योहारों का मतलब एक दूसरे से अच्छे लगने की प्रतिस्पर्धा हो गई है। नई – नई कम्पनियाँ
जैसे इस मौके की तलाश में रहती है। त्यौहार के नाम पर ज्यादा से ज्यादा ग्राहक को विज्ञापन
द्वारा आकर्षित करे। पहले त्यौहार में सारे काम परिवार के लोग मिलजुल कर करते थे। आज
सारी चीजें बाजार से तैयार खरीद ली जाती है और बचकुचा काम नौकर से करवा लिया जाता है।
भाषा- अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 39-40)
प्रश्न 1
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य
में 'बदल रहा है' क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है - धीरे-धीरे। अत: यहॉँ धीरे-धीरे
क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह
शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
i.
ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान
में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
ii.
धीरे-धीरे, ज़ोर से, लगातार,
हमेशा, आजकल, कम, ज़्यादा, यहाँ, उधर, बाहर -
इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
iii.
नीचे दिए गए वाक्यों में से
क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-
|
वाक्य |
क्रिया-विशेषण |
विशेषण |
1. |
कल
रात से निरंतर बारिश हो रही है। |
- |
- |
2. |
पेड़
पर लगे पके आम देखकर |
- |
- |
3. |
रसोईघर
से आती पुलाव की हलकी |
- |
- |
4. |
उतना
ही खाओ जितनी भूख है। |
- |
- |
5. |
विलासिता
की वस्तुओं से आजकल बाज़ार भरा पड़ा है। |
- |
- |
उत्तर-
i.
क्रिया-विशेषण से युक्त शब्द-
a. एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज की।
b. आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें।
c. हमारा समाज भी अन्य-निर्देशित होता जा रहा है।
d. लुभाने की जी तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती हैं।
e. एक सुक्ष्म बदलाव आया है।
ii.
क्रिया-विशेषण शब्दों से बने
वाक्य-
a. धीरे-धीरे - धीरे-धीरे मनुष्य के स्वभाव
में बदलाव आया है।
b. ज़ोर से - इतनी ज़ोर से शोर मत करो।
c. लगातार - बच्चे शाम से लगातार खेल
रहे हैं।
d. हमेशा - वह हमेशा चुप रहता है।
e. आजकल - आजकर बहुत बारिश हो रही
है।
f. कम - यह खाना राजीव के लिए कम है।
g. ज़्यादा - ज़्यादा क्रोध करना हानिकारक
है।
h. यहाँ - यहाँ मेरा घर है।
i. उधर - उधर बच्चों का स्कूल है।
j. बाहर - अभी बाहर जाना मना है।
क्रिया-विशेषण | विशेषण |
निरंतर | कल रात |
मुँह में पानी | पके आम |
भूख | हल्की खुशबू |
भूख | उतना, जितना |
आजकल | भरा |