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अध्याय-7: साखियाँ एवं सबद
सारांश
साखियाँ
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं,
अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
अर्थ – इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों
की तुलना हंसों से करते हुए कहा है की जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती
चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं नही जाना चाहते ठीक उसी तरह मनुष्य भी जीवन के मायाजाल
में बंध जाता है और इसे ही सच्चाई समझने लगता है।
प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।
अर्थ – यहां कबीर यह कहते हैं की
प्रेमी यानी ईश्वर को ढूंढना बहुत मुश्किल है। वे उसे ढूंढ़ते फिर रहे हैं परन्तु वह
उन्हें मिल नही रहा है। प्रेमी रूपी ईश्वर मिल जाने पर उनका सारा विष यानी कष्ट अमृत
यानी सुख में बदल जाएगा।
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।3।
अर्थ – यहां कबीर कहना चाहते हैं
की व्यक्ति को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलीचा बिछाना
चाहिए। संसार की तुलना कुत्तों से की गयी है जो आपके ऊपर भौंकते रहेंगे जिसे अनदेखा
कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वे स्वयं ही झक मारकर चुप हो जायेंगे।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।
अर्थ – संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष
के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है।
जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही
अर्थों में मनुष्य है।
हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।5।
अर्थ – कबीर ने कहा है की हिन्दू राम-राम
का भजन और मुसलमान खुदा-खुदा कहते मर जाते हैं, उन्हें कुछ हासिल नही होता। असल में
वह व्यक्ति ही जीवित के समान है जो इन दोनों ही बातों से अपने आप को अलग रखता है।
काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चुन मैदा भया, बैठी कबीरा जीम।6।
अर्थ – कबीर कहते हैं की आप या तो
काबा जाएँ या काशी, राम भंजे या रहीम दोनों का अर्थ समान ही है। जिस प्रकार गेहूं को
पीसने से वह आटा बन जाता है तथा बारीक पीसने से मैदा परन्तु दोनों ही खाने के प्रयोग
में ही लाए जाते हैं। इसलिए दोनों ही अर्थों
में आप प्रभु के ही दर्शन करेंगें।
उच्चे कुल का जनमिया, जे करनी उच्च न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई।7।
अर्थ – इन पंक्तियों में कबीर कहते
हैं की केवल उच्च कुल में जन्म लेने कुछ नही हो जाता, उसके कर्म ज्यादा मायने रखते
हैं। अगर वह व्यक्ति बुरे कार्य करता है तो उसका कुल अनदेखा कर दिया जाता है, ठीक उसी
प्रकार जिस तरह सोने के कलश में रखी शराब भी शराब ही कहलाती है।
सबद
मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे , मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में ।
ना तो कौने क्रिया – कर्म में, नहीं योग वैराग में ।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पलभर की तलास में ।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वासों की स्वास में॥
अर्थ – इन पंक्तियों में कबीरदास
जी ने बताया है मनुष्य ईश्वर में चहुंओर भटकता रहता है। कभी वह मंदिर जाता है तो कभी
मस्जिद, कभी काबा भ्रमण है तो कभी कैलाश। वह इश्वार को पाने के लिए पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र
करता है जिसे कबीर ने महज आडम्बर बताया है। इसी प्रकार वह अपने जीवन का सारा समय गुजार
देता है जबकि ईश्वर सबकी साँसों में, हृदय में, आत्मा में मौजूद है, वह पलभर में मिल
जा सकता है चूँकि वह कण-कण में व्याप्त है।
संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे ।
भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी ॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिण्डा तूटा ।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबुधि का भाण्डा फूटा॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी ।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछै जो जल बूठ , प्रेम हरि जन भींनाँ ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटै, उदित भया तम खीनाँ ॥
अर्थ – इन पंक्तियों में कबीर जी
ने ज्ञान की महत्ता को स्पष्ट किया है। उन्होंने ज्ञान की तुलना आंधी से करते हुए कहा
है की जिस तरह आंधी चलती है तब कमजोर पड़ती हुई झोपडी की चारों ओर की दीवारे गिर जाती
हैं, वह बंधन मुक्त हो जाती है और खम्भे धराशायी हो जाते हैं उसी प्रकार जब व्यक्ति
को ज्ञान प्राप्त होता है तब मन के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं, सारे बंधन टूट जाते
हैं।
छत को गिरने से रोकने वाला लकड़ी का टुकड़ा जो खम्भे को जोड़ता है वो भी टूट
जाता है और छत गिर जाती है और रखा सामान नष्ट हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान प्राप्त
होने पर व्यक्ति स्वार्थ रहित हो जाता है, उसका मोह भंग हो जाता है जिससे उसके अंदर
का लालच मिट जाता है और मन का समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं। परन्तु जिनका घर मजबूत
रहता है यानी जिनके मन में कोई कपट नही होती, साधू स्वभाव के होते हैं उन्हें आंधी
का कोई प्रभाव नही पड़ता है।
आंधी के बाद वर्षा से सारी चीज़ें धुल जाती हैं उसी तरह ज्ञान प्राप्ति के
बाद मन निर्मल हो जाता है। व्यक्ति ईश्वर के भजन में लीन हो जाता है।
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 93)
kabir ki sakhiyan class 9 question answer
प्रश्न 1
'मानसरोवर' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- 'मानसरोवर'
से कवि का आशय हृदय रुपी तालाब से है। जो हमारे मन में स्थित है।
प्रश्न 2
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर- कवि
के अनुसार सच्चे प्रेमी की कसौटी यह है की उससे मिलने पर मन की सारी मलिनता नष्ट हो
जाती है। पाप धुल जाते हैं और सदभावनाएँ जाग्रत हो जाती है।
प्रश्न 3
तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर- तीसरे
दोहे में कवि ने अनुभव से प्राप्त ज्ञान को महत्त्व दिया है।
प्रश्न 4
इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर- कबीर
के अनुसार सच्चा संत वही कहलाता है जो साम्प्रदायिक भेदभाव, सांसारिक मोह माया से दूर,
सभी स्तिथियों में समभाव (सुख दुःख, लाभ-हानि, ऊँच-नीच, अच्छा-बुरा) तथा निश्छल भाव
से प्रभु भक्ति में लीन रहता है।
प्रश्न 5
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर- अंतिम
दो दोहों के माध्यम से कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णताओं, समाज की
जाति पाति की असमानता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है।
प्रश्न 6
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीरदास जी ने समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णताओं,
समाज की जाति पाति की असमानता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है।
उत्तर- किसी
भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है। आज तक हजारों राजा पैदा हुए और मर गए।
परन्तु लोग जिन्हें जानते हैं, वे हैं- राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि। इन्हें इसलिए
जाना गया क्योंकि ये केवल कुल से ऊँचे नहीं थे, बल्कि इन्होंने ऊँचें कर्म किए। इनके
विपरीत कबीर, सूर, युल्सी बहुत सामान्य घरों से थे। इन्हें बचपन में ठोकरें भी कहानी
पड़ीं। परन्तु फ़िर भी वे अपने श्रेष्ठ कर्मों के आधार पर संसार-भर में प्रसिद्ध हो गए।
इसलिए हम कह सकते हैं कि महत्व ऊँचे कर्मों का होता है, कुल का नहीं।
प्रश्न 7
काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए–
हस्ती चढ़िये
ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप
संसार है, भूँकन दे झख मारि।
उत्तर- प्रस्तुत
दोहे में कबीरदास जी ने ज्ञान को हाथी की उपमा तथा लोगों की प्रतिक्रिया को स्वान
(कुत्ते) का भौंकना कहा है। यहाँ रुपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। दोहा छंद का प्रयोग
किया गया है। यहाँ सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है। यहाँ शास्त्रीय ज्ञान का
विरोध किया गया है तथा सहज ज्ञान को महत्व दिया गया है।
प्रश्न 8
मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढता फिरता है?
उत्तर- हिन्दू
अपने ईश्वर को मंदिर तथा पवित्र तीर्थ स्थलों में ढूँढता है तो मुस्लिम अपने अल्लाह
को काबे या मस्जिद में और मनुष्य ईश्वर को योग, वैराग्य तथा अनेक प्रकार की धार्मिक
क्रियाओं में खोजता फिरता है।
प्रश्न 9
कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर- कबीर
ने समाज द्वारा ईश्वर-प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों का खंडन किया है। वे इस प्रकार
हैं-
i.
कबीरदास जी के अनुसार ईश्वर
की प्राप्ति मंदिर या मस्जिद में जाकर नहीं होती।
ii.
ईश्वर प्राप्ति के लिए कठिन
साधना की आवश्यकता नहीं है।
iii.
कबीर ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य-आडम्बर
का खंडन किया है। कबीर ईश्वर को निराकार ब्रह्म मानते थे।
iv.
कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति
के लिए योग-वैराग (सन्यास) जीवन का विरोध किया है।
प्रश्न
10 कबीर ने ईश्वर को सब स्वाँसों की स्वाँस में क्यों कहा है?
उत्तर- 'सब
स्वाँसों की स्वाँस में' से कवि का तात्पर्य यह है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं,
सभी मनुष्यों के अंदर हैं। जब तक मनुष्य की साँस (जीवन) है तब तक ईश्वर उनकी आत्मा
में हैं।
प्रश्न 11
कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर- कबीर
ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से की है क्योंकि सामान्य हवा
में स्थिति परिवर्तन की क्षमता नहीं होती है। परन्तु हवा तीव्र गति से आँधी के रुप
में जब चलती है तो स्थिति बदल जाती है। आँधी में वो क्षमता होती है कि वो सब कुछ उड़ा
सके। ज्ञान में भी प्रबल शाक्ति होती है जिससे वह मनुष्य के अंदर व्याप्त अज्ञानता
के अंधकार को दूर कर देती है।
प्रश्न 12
ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- ज्ञान
की आँधी का मनुष्य के जीवन पर यह प्रभाव पड़ता है कि उसके सारी शंकाए और अज्ञानता का
नाश हो जाता है। वह मोह के सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। मन पवित्र तथा निश्छल
होकर प्रभु भक्ति में तल्लीन हो जाता है।
प्रश्न 13
भाव स्पष्ट कीजिए-
i.
हिति चिन की द्वै थूँनी गिराँनी,
मोह बलिंडा तूटा।
ii.
आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम
हरि जन भींनाँ।
उत्तर-
i.
ज्ञान की आँधी ने स्वार्थ तथा
मोह दोनों स्तम्भों को गिरा कर समाप्त कर दिया तथा मोह रुपी छत को उड़ाकर चित्त को
निर्मल कर दिया।
ii.
ज्ञान की आँधी के पश्चात् जो
जल बरसा उस जल से मन हरि अर्थात् ईश्वर की भक्ति में भीग गया।
रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 93)
प्रश्न 1
संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव सम्बन्धी
विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- कबीर
ने अपने विचारों दवारा जन मानस की आँखों पर धर्म तथा संप्रदाय के नाम पर पड़े परदे को
खोलने का प्रयास किया है। उन्होंने हिंदु- मुस्लिम एकता का समर्थन किया तथा धार्मिक
कुप्रथाओं जैसे मूर्तिपूजा का विरोध किया है। ईश्वर मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारे में
नहीं होते हैं बल्कि मनुष्य की आत्मा में व्याप्त हैं। कबीर ने हर एक मनुष्य को किसी
एक मत, संप्रदाय, धर्म आदि में न पड़ने की सलाह दी है। ये सारी चीजें मनुष्य को राह
से भटकाने तथा बँटवारे की और ले जाती है अत:कबीर के अनुसार हमें इन सब चक्करों में
नहीं पड़ना चाहिए। मनुष्य को चाहिए की वह निष्काम तथा निश्छल भाव से प्रभु की आराधना
करें।
भाषा- अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 93)
प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए–
पखापखी, अनत,
जोग, जुगति, बैराग, निरपख
उत्तर-
i.
पखापखी– पक्ष-विपक्ष
ii.
अनत– अन्यत्र
iii.
जोग– योग
iv.
जुगति– युक्ति
v.
बैराग– वैराग्य
vi.
निरपख– निष्पक्ष