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अध्याय-8: गीत - अगीत
रामधारी सिंह दिनकर
गाकर गीत विरह के तटिनी
वेगवती बहती जाती है,
दिल हलका कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता,
“देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।
गा-गाकर बह रही निर्झरी,
पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
रामधारी सिंह दिनकर की कविता गीत अगीत भावार्थ : रामधारी
सिंह दिनकर जी की कविता गीत अगीत की इन पंक्तियों में कवि ने जंगलों एवं पहाड़ों के
बीच बहती हुई एक नदी का बड़ा ही आकर्षक वर्णन किया है। उन्होंने कहा है कि विरह अर्थात
बिछड़ने का गीत गाती हुई नदी, अपने मार्ग में बड़ी तेजी से बहती जाती है।
अपने दिल से विरह का बोझ हल्का करने के लिए नदी, अपने किनारों
पर उगी घास व उपलों से बात करते हुए आगे बढ़ती चली जा रही है। वहीँ दूसरी ओर, नदी के
किनारे तट पर उगा हुआ एक गुलाब का फूल यह सोच रहा है कि अगर भगवान उसे भी बोलने की
शक्ति देता, तो वह भी गा-गा कर सारे जगत को अपने पतझड़ के सपनों का गीत सुनाता।
तो इस प्रकार, जहाँ एक ओर नदी अपनी विरह के गीत गाते हुए,
कल-कल की आवाज़ करते हुए बह रही है, वहीँ दूसरी ओर, गुलाब का पौधा चुपचाप अपने गीत
को अपने मन में दबाये किनारे पर खड़ा हुआ नदी को बहते देख रहा है।
बैठा शुक उस घनी डाल पर
जो खोंते को छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अंडे है सेती।
गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर
रह जाते सनेह में सनकर।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में,
फूला मग्न शुकी का पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
रामधारी सिंह दिनकर की कविता गीत अगीत भावार्थ : खेतों में
एक घने वृक्ष पर तोता बैठा हुआ है और उसी वृक्ष की छांव में उसका घोंसला है। जिसमें मैना बड़े प्यार से अपने पंखों को फैलाये
अंडे से रही है। ऊपर पेड़ की डाल पर तोता बैठा हुआ है, जिसके ऊपर पेड़ के पत्तों से
छनकर सूर्य की किरणें पड़ रही हैं।
वह गाते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो सूर्य की किरणों
को शब्द प्रदान कर रहा हो। पूरा का पूरा खेत तोते के स्वर से गूंज उठता है। जिसे सुनकर
मैना भी गाने को उमड़ पड़ती है, परन्तु उसके स्वर बाहर नहीं निकल पाते और वह चुप रहकर
ही पंख फैलाते हुए अपनी ख़ुशी का इज़हार करती है।
दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब
बड़े साँझ आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा को
घर से यहीं खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की
छाया में छिपकर सुनती है,
हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना’, यों मन में गुनती है।
वह गाता, पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अंतर है।
गीत, अगीत कौन सुंदर है?
रामधारी सिंह दिनकर की कविता गीत अगीत भावार्थ : रामधारी
सिंह दिनकर की कविता गीत-अगीत की इन पंक्तियों में कवि ने दो प्रेमियों का वर्णन किया
है। एक प्रेमी जब शाम के समय अपनी प्रेमिका को बुलाने के लिए गीत गाता है, तो वो उसके
स्वर को सुनकर खिंची चली आती है और पेड़ों के पीछे छुपकर चुपचाप अपने प्रेमी को गाते
हुए सुनती है। वह सोचती है कि मैं इस गाने का हिस्सा क्यों नहीं हूँ। नीम के पेड़ों
के नीचे अपने प्रेमी के गीत को सुनकर उसका हृदय फूला नहीं समाता। वह चुपचाप अपने प्रेमी
के गीत का आनंद लेती रहती है।
इस प्रकार जहाँ एक ओर प्रेमी गीत गाकर अपनी सुंदरता का बखान
कर रहा है, वहीँ दूसरी ओर, चुप रहकर भी प्रेमिका उतने ही प्रभावशाली रूप से अपने प्यार
को व्यक्त कर रही है। इसलिए उसका अगीत भी किसी मधुर गीत से कम नहीं है।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
i.
नदी
का किनारों से कुछ कहते हुए बह जाने पर गुलाब क्या सोच रहा है? इससे संबंधित पंक्तियों
को लिखिए।
ii.
जब
शुक गाता है, तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
iii.
प्रेमी
जब गीत गाता है, तो प्रेमी की क्या इच्छा होती है?
iv.
प्रथम
छंद में वर्णित प्रकृति-चित्रण को लिखिए।
v.
प्रकृति
के साथ पशु-पक्षियों के संबंध की व्याख्या कीजिए।
vi.
मनुष्य
को प्रकृति किस रूप में आंदोलित करती है? अपने शब्दों में लिखिए।
vii.
सभी
कुछ गीत है, अगीत कुछ नहीं होता। कुछ अगीत भी होता है क्या? स्पष्ट कीजिए।
viii.
“गीत-अगीत’
के केंद्रीय भाव को लिखिए।
उत्तर-
i.
जब नदी किनारों से कुछ कहते हुए बह जाती है तो गुलाब
सोचता है-‘यदि परमात्मा ने मुझे भी स्वर दिए होते तो मैं भी अपने पतझड़ के दिनों की
वेदना को शब्दों में सुनाता। निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए-
गाकर गीत विरहं के तटिनी
वेगवती बहती जाती है,
दिल हलको कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता,
“देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।”
ii.
जब शुकः गाता है तो शुकी का
हृदय प्रसन्नता से फूल जाता है। वह उसके प्रेम में मग्न हो जाती है।
iii.
जब प्रेमी प्रेम के गीत गाता है तो प्रेमी
(प्रेमिका) की इच्छा होती है कि वह उस प्रेम गीत की पंक्ति में डूब जाए, उसमें लयलीन
हो जाए। उसके शब्दों में –
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की बिधना’
।
iv.
सामने नदी बह रही है। वह मानो अपनी विरह
वेदना को कलकल स्वर में गाती हुई चली जा रही है। वह किनारों को अपनी व्यथा सुनाती जा
रही है। उसके किनारे के पास एक गुलाब का फूल अपनी डाल पर हिल रहा है। वह मानो सोच रहा
है कि यदि परमात्मा ने उसे स्वर दिया होता तो वह भी अपने दुख को व्यक्त करता।
v.
प्रकृति
का पशु-पक्षियों के साथ गहरा रिश्ता है। पशु-पक्षी प्रकृति की उमंग के साथ उमंगित होते
हैं। कविता में कहा गया है
गाता शुक जब किरण वसंती,
छूती अंग पर्ण से छनकर।
जब सूर्य की वासंती किरणें शुक के
अंगों को छूती हैं तो वह प्रसन्नता से गा उठता है।
vi.
प्रकृति
मनुष्य को भी आह्लादित करती है। साँझ के समय स्वाभाविक रूप से प्रेमी का मन आल्हा गाने
के लिए ललचा उठता है। यह साँझ की ही मधुरिमा है जिसके कारण प्रेमी के हृदय में प्रेम
उमड़ने लगता है।
vii.
गीत
और अगीत में थोड़ा-सा अंतर होता है। मन के भावों को प्रकट करने से गीत बनता है और उन्हें
मन-ही-मन ।
अनुभव करना ‘अगीत’ कहलाता है। यद्यपि
‘अगीत’ को प्रकट रूप से कोई अस्तित्व नहीं होता, किंतु वह होता अवश्य है।
जिस भावमय मनोदशा में गीत का जन्म
होता है, उसे ‘अगीत’ कहा जाता है।
viii.
“गीत
अगीत’ का मूल भाव यह है कि गीत के साथ-साथ गीत रचने की मनोदशा भी महत्त्वपूर्ण होती
है। मन-ही-मन भावानुभूति को अनुभव करना भी कम सुंदर नहीं होता। उसे ‘अगीत’ कहा जा सकता
है। माना कि गीत सुंदर होता है, परंतु गीत के भावों को मन में अनुभव करना भी सुंदर
होता है।
प्रश्न 2 संदर्भ-सहित व्याख्या कीजिए–
i.
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता
ii.
गाता
शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर
iii.
हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना यों मन में गुनती है
उत्तर-
i.
संदर्भ– प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक
स्पर्श भाग– 1 में संकलित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं। इसके कवि रामधारी सिंह दिनकर
है।
व्याख्या– नदी के तट पर खड़ा गुलाब सोचता है
कि यदि विधाता उसे भी स्वर देते तो वह भी अपने पतझर की व्यथा सुनाता।
ii.
संदर्भ– प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक
स्पर्श भाग– 1 में संकलित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं। इसके कवि रामधारी सिंह दिनकर
है।
व्याख्या– जब सूरज की वासंती किरणें पत्तों
से छनकर आती है और शुक के अंगों को छूती है तो वह प्रसन्न होकर गा उठता है।
iii.
संदर्भ– प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक
स्पर्श भाग– 1 में संकलित कविता ‘गीत-अगीत’ से ली गई हैं। इसके कवि रामधारी सिंह दिनकर
है।
व्याख्या– यहाँ पर जब प्रेमिका अपने प्रेमी
के गीत को छिपकर सुनती है तो वह विधाता से यही कहती है कि काश वह भी इस गीत की कड़ी
बन पाती।
प्रश्न 3 निम्नलिखित उदाहरण में 'वाक्य-विचलन'को समझने का
प्रयास कीजिए। इसी आधार पर प्रचलित वाक्य-विन्यास लिखिए–
उदाहारण-
तट पर गुलाब सोचता
एक गुलाब तट पर सोचता है।
i.
देते
स्वर यदि मुझे विधाता
ii.
उस
धनी डाल पर शुक बैठा है।
iii.
शुक
का स्वर वन में गूँज रहा है।
iv.
मैं
गीत की कड़ी क्यों न हो सकी।
v.
शुकी
बैठ कर अंडे सेती है।
उत्तर-
i.
यदि
विधाता मुझे स्वर देते।
ii.
उस
धनी डाल पर शुक बैठा है।
iii.
शुक
का स्वर वन में गूँज रहा है।
iv.
मैं
गीत की कड़ी क्यों न हो सकी।
v.
शुकी
बैठ कर अंडे सेती है।