Struggling with the Class 9 Hindi Chapter 1 Dukh Ka Adhikar? Want to ace all the Dukh Ka Adhikar question answers? You've come to the right place. Our platform offers a comprehensive guide to the Class 9th Hindi chapter 1 Sparsh, including the tricky topic of Dukh Ka Adhikar. We make it easy for students, parents, and teachers alike. Whether it's understanding the profound themes in दुःख का अधिकार or tackling the Dukh Ka Adhikar MCQs, we have you covered.
It's not just about getting the right answers; it's about understanding the core themes. The chapter delves into the concept of suffering and the human experience, providing a rich field for study and reflection. With our straightforward explanations, the Dukh Ka Adhikar summary will become as simple as ABC for Class 9 students. And don't worry, if you have more questions, our Dukh Ka Adhikar Class 9 question answers section will sort you out. From easy to complicated, we break down each question and provide an easy-to-understand answer.
If you are a parent trying to help your child, our resources offer an accessible guide to understanding the Class 9 Hindi Chapter 1 Sparsh and the complex topic of Dukh Ka Adhikar. We make sure that our explanations are simple yet detailed, making it easy for you to help your child succeed. Teachers can also benefit from our materials, enhancing their classroom instruction and ensuring their students excel in exams.
What's more, if you are looking to practice and perfect your understanding, our Dukh Ka Adhikar MCQs are the ultimate test of your knowledge. And if you're looking for something more, our दुःख का अधिकार प्रश्न उत्तर section offers a deep dive into all the possible questions and their answers.
So, don't miss out. Dive into our one-stop solution for Class 9th Hindi Dukh Ka Adhikar question answer, summaries, and much more. Let's turn your woes into wins and make Dukh Ka Adhikar Class 9 Summary in Hindi a cakewalk for you!
अध्याय-1: दुःख का अधिकार
प्रस्तुत
पाठ या कहानी दुःख का अधिकार लेखक यशपाल जी के द्वारा लिखित है | इस कहानी के माध्यम
से लेखक देश या समाज में फैले अंधविश्वासों और ऊँच-नीच के भेद भाव को बेनकाब करते हुए
यह बताने का प्रयास किए हैं कि दुःख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है | प्रस्तुत
कहानी धनी लोगों की अमानवीयता और गरीबों की मजबूरी को भी पूरी गहराई से चित्रण करती
है|
पाठ के अनुसार,
लेखक कहते हैं कि मानव की पोशाकें या पहनावा ही उन्हें अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित
करती हैं | वास्तव में पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित
करती है | जिस तरह वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिरने देतीं, ठीक
उसी प्रकार जब हम झुककर निचली श्रेणियों या तबके की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो
यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है |
पाठ के अनुसार,
आगे लेखक कहते हैं कि बाज़ार में खरबूजे बेचने आई एक अधेड़ उम्र की महिला कपड़े में
मुँह छिपाए और सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी | आस-पड़ोस के लोग उसे घृणित
नज़रों से देखते हुए बुरा-भला कहते नहीं थक रहे थे |
लेखक आगे
कहते हैं कि आस-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता चला कि उस महिला का तेईस बरस का लड़का
परसों सुबह साँप के डसने के कारण मृत्यु को प्राप्त हुआ था | जो कुछ भी घर में बचा
था , वह सब मृत बेटे को विदा करने में चला गया | घर में उसकी बहू और पोते भूख से परेशान
थे |
इन्हीं सब कारणों से वह वृद्ध महिला बेबस होकर भगवाना के बटोरे हुए खरबूज़े बेचने बाज़ार चली आई थी, ताकि वह घर के लोगों की मदद कर सके | परन्तु, बाजार में सब मजाक उड़ा रहे थे | इसलिए वह रो रही थी | बीच-बीच में बेहोश भी हो जाती थी | वास्तव में, लेखक उस महिला के दुःख की तुलना अपने पड़ोस के एक संभ्रांत महिला के दुःख से करने लगता है, जिसके दुःख से शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे | लेखक अपने मन में यही सोचता चला जा रहा था कि दु:खी होने और शोक करने का भी एक अधिकार होना चाहिए…||
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न-अभ्यास (मौखिक) प्रश्न (पृष्ठ संख्या 10)
निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए–
प्रश्न 1
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर- किसी
व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसका दर्जा और अधिकार का पता चलता है तथा
उसकी अमीरी-गरीबी श्रेणी का पता चलता है।
प्रश्न 2
खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर- उसके
बेटे की मृत्यु के कारण लोग उससे खरबूजे नहीं खरीद रहे थे।
प्रश्न 3
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उत्तर- उस
स्त्री को देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा। उनके मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना
उत्पन्न हुई थी।
प्रश्न 4
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर- उस
स्त्री का लड़का एक दिन मुँह-अंधेरे खेत में से बेलों से तरबूजे चुन रहा था की गीली
मेड़ की तरावट में आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस लिया।
ओझा के झाड़-फूँक आदि का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 5
बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नही देता?
उत्तर- बुढ़िया
के परिवार में एकमात्र कमाने वाला बेटा मर गया था। ऐसे में पैसे वापस न मिलने के डर
के कारण कोई उसे उधार नही देता।
प्रश्न-अभ्यास (लिखित) प्रश्न (पृष्ठ संख्या 10-11)
निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए–
प्रश्न 1
मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
उत्तर- मनुष्य
के जीवन में पोशाक का बहुत महत्व है। पोशाकें ही व्यक्ति का समाज में अधिकार व दर्जा
निश्चित करती हैं। पोशाकें व्यक्ति को ऊँच-नीच की श्रेणी में बाँट देती है। कई बार
अच्छी पोशाकें व्यक्ति के भाग्य के बंद दरवाज़े खोल देती हैं। सम्मान दिलाती हैं।
प्रश्न 2
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर- जब
हमारे सामने कभी ऐसी परिस्थिति आती है कि हमें किसी दुखी व्यक्ति के साथ सहानुभूति
प्रकट करनी होती है, परन्तु उसे छोटा समझकर उससे बात करने में संकोच करते हैं।उसके
साथ सहानुभूति तक प्रकट नहीं कर पाते हैं। हमारी पोशाक उसके समीप जाने में तब बंधन
और अड़चन बन जाती है।
प्रश्न 3
लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर- वह
स्त्री घुटनों में सिर गड़ाए फफक-फफककर रो रही थी। इसके बेटे की मृत्यु के कारण लोग
इससे खरबूजे नहीं ले रहे थे। उसे बुरा-भला कह रहे थे। उस स्त्री को देखकर लेखक का मन
व्यथित हो उठा। उनके मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई थी। परंतु लेखक
उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि उसकी पोशाक रुकावट बन गई थी।
प्रश्न 4
भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर- भगवाना
शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में खरबूज़ों को बोकर परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों
की डलियाँ बाज़ार में पहुँचाकर लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता था।
प्रश्न 5
लड़के के मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर- लड़के
के मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
प्रश्न 6
बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर- लेखक
को बुढ़िया के दुःख को देखकर अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि उसके
बेटे का भी देहांत हुआ था। वह दोनों के दुखों के तुलना करना चाहता था। दोनों के शोक
मानाने का ढंग अलग था। धनी परिवार के होने की वजह से वह उसके पास शोक मनाने को असीमित
समय था और बुढ़िया के पास शोक का अधिकार नही था।
निम्नलिखित
प्रश्न का उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए–
प्रश्न 1
बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों
में लिखिए।
उत्तर- बाज़ार
के लोग खरबूज़ेबेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कह रहे थे। कोई घृणा
से थूककर बेहया कह रहा था, कोई उसकी नीयत को दोष दे रहा था, कोई कमीनी, कोई रोटी के
टुकड़े पर जान देने वाली कहता, कोई कहता इसके लिए रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून
वाला लाला कह रहा था, इनके लिए अगर मरने-जीने का कोई मतलब नही है तो दुसरो का धर्म
ईमान क्यों ख़राब कर रही है।
प्रश्न 2
पास पड़ोस की दूकान से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर- पास
पड़ोस की दूकान से पूछने पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का जवान बेटा सांप के काटने से
मर गया है। वह परिवार में एकमात्र कमाने वाला था। उसके घर का सारा सामान बेटे को बचाने
में खर्च हो गया। घर में दो पोते भूख से बिलख रहे थे। इसलिए वो खरबूजे बेचने बाजार
आई है।
प्रश्न 3
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर- लड़के
को बचाने के लिए बुढ़िया जो कुछ वह कर सकती थी उसने वह सब सभी उपाय किए। वह पागल सी
हो गई। झाड़-फूँक करवाने के लिए ओझा को बुला लाई, साँप का विष निकल जाए इसके लिए नाग
देवता की भी पूजा की, घर में जितना आटा अनाज था वह दान दक्षिणा में ओझा को दे दिया
परन्तु दुर्भाग्य से लड़के को नहीं बचा पाई।
प्रश्न 4
लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
उत्तर- लेखक
उस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र
की मृत्यु से दु:खी माता की बात सोचने लगा। वह महिला अढ़ाई मास से पलंग पर थी,उसे १५
-१५ मिनट बाद पुत्र-वियोग से मूर्छा आ जाती थी। डॉक्टर सिरहाने बैठा रहता था। शहर भर
के लोगों के मन पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।
प्रश्न 5
इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस
पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि यह अभिव्यक्त
करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार होता है। यद्यपि
दु:ख का अधिकार सभी को है। गरीब बुढ़िया और संभ्रांत महिला दोनों का दुख एक समान ही
था। दोनों के पुत्रों की मृत्यु हो गई थी परन्तु संभ्रांत महिला के पास सहूलियतें थीं,
समय था। इसलिए वह दु:ख मना सकी परन्तु बुढ़िया गरीब थी, भूख से बिलखते बच्चों के लिए
पैसा कमाने के लिए निकलना था। उसके पास न सहूलियतें थीं न समय। वह दु:ख न मना सकी।
उसे दु:ख मनाने का अधिकार नहीं था। इसलिए शीर्षक पूरी तरह सार्थक प्रतीत होता है।
निम्नलिखित
के आशय स्पष्ट कीजिए–
प्रश्न 1
जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास
परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर- प्रस्तुत
कहानी समाज में फैले अंधविश्वासों और अमीर-गरीबी के भेदभाव को उजागर करती है। यह कहानी
अमीरों के अमानवीय व्यवहार और गरीबों की विवशता को दर्शाती है। मनुष्यों की पोशाकें
उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार
और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी
ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम ज़रा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति
को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु की लहरें
कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास पारिस्थितियों में
हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
प्रश्न 2
इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।
उत्तर- समाज
में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमों, कानूनों व परंपराओं का पालन करना पड़ता है।
दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व जीवन मूल्यों को दिया जाता है।यह वाक्य गरीबों पर एक
बड़ा व्यंग्य है। गरीबों को अपनी भूख के लिए पैसा कमाने रोज़ ही जाना पड़ता है चाहे
घर में मृत्यु ही क्यों न हो गई हो। परन्तु कहने वाले उनसे सहानुभूति न रखकर यह कहते
हैं कि रोटी ही इनका ईमान है, रिश्ते-नाते इनके लिए कुछ भी नहीं है।
प्रश्न 3
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और… दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर- शोक
करने, गम मनाने के लिए सहूलियत चाहिए। यह व्यंग्य अमीरी पर है क्योंकि अमीर लोगों के
पास दुख मनाने का समय और सुविधा दोनों होती हैं। इसके लिए वह दु:ख मनाने का दिखावा
भी कर पाता है और उसे अपना अधिकार समझता है। जबकि गरीब विवश होता है। वह रोज़ी रोटी
कमाने की उलझन में ही लगा रहता है। उसके पास दु:ख मनाने का न तो समय होता है और न ही
सुविधा होती है। इसलिए उसे दु:ख का अधिकार भी नहीं होता है।
भाषा - अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 11-12)
प्रश्न 1
निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो–
(क) कड्.घा,
पतड्.ग, चञ्च्ल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(ख) कंधा,
पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(ग) अक्षुण,
समिमलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(घ) संशय,
संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(ड) अंधेरा,
बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में,मैं।
ध्यान दो
कि ड्., ञ्, ण्, न्, म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने
ऊपर देखीं – इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके
से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार
का प्रयोग नहीं होगा, जैसे – अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र,
य, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा,
परंतु उसका
उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है ; जैसे – संशय, संरचना
में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ड्.’। (ं) यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ)
यह चिह्न है अनुनासिका का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों
के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिका
का स्वर के साथ।
उत्तर- छात्रों
के स्वयं के समझने के लिए।
प्रश्न 2
निम्नलिखित शब्द के पर्याय लिखिए–
ईमान, बदन,
अंदाज़ा, बेचैनी, गम, दर्ज़ा, ज़मीन, ज़माना, बरकत
उत्तर-
ईमान - ज़मीर,
विवेक
बदन - शरीर,
तन, देह
अंदाज़ा –
अनुमान
बेचैनी -
व्याकुलता, अधीरता
गम - दुख,
कष्ट, तकलीफ
दर्ज़ा -
स्तर, कक्षा
ज़मीन - धरती,
भूमि, धरा
ज़माना -
संसार, जग, दुनिया
बरकत - वृद्धि,
बढ़ना
प्रश्न 3
निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्म को छाँटकर लिखिए–
उदाहरण :
बेटा-बेटी
उत्तर-
i.
फफक – फफककर
ii.
दुअन्नी – चवन्नी
iii.
ईमान – धर्म
iv.
आते – जाते
v.
छन्नी – ककना
vi.
पास – पड़ोस
vii.
झाड़ना – फूँकना
viii.
पोता – पोती
ix.
दान – दक्षिणा
x.
मुँह - अँधेरे
प्रश्न 4
पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांश की व्याख्या कीजिए–
i.
बंद दरवाज़े खोल देना
ii.
निर्वाह करना
iii.
भूख से बिलबिलाना
iv.
कोई चारा न होना
v.
शोक से द्रवित हो जाना
उत्तर-
i.
बंद दरवाज़े खोल देना– प्रगति में बाधक तत्व हटने से बंद दरवाज़े खुल जाते हैं।
ii.
निर्वाह करना– परिवार का भरण-पोषण करना।
iii.
भूख से बिलबिलाना– बहुत तेज भूख लगना।
iv.
कोई चारा न होना– कोई और उपाय न होना।
v.
शोक से द्रवित हो जाना– दूसरों का दु:ख देखकर भावुक हो जाना।
प्रश्न 5
निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए–
i.
छन्नी-ककना अढ़ाई-मास पास-पड़ोस
दुअन्नी-चवन्नी
मुँह-अँधेरे झाड़ना-फूँकना।
ii.
फफक-फफककर बिलख-बिलखकर
तड़प-तड़पकर
लिपट-लिपटकर।
उत्तर-
i.
a. छन्नी-ककना– गरीब माँ ने अपना छन्नी-ककना
बेचकर बच्चों को पढ़ाया-लिखाया।
b. अढ़ाई-मास– वह विदेश में अढ़ाई – मास
के लिए गया है।
c. पास-पड़ोस– पास-पड़ोस के साथ मिल-जुलकर
रहना चाहिए, वे ही सुख-दुःख के सच्चे साथी होते है।
d. दुअन्नी-चवन्नी– आजकल दुअन्नी-चवन्नी
का कोई मोल नहीं है।
e. मुँह-अँधेरे– वह मुँह-अँधेरे उठ कर काम
ढूँढने चला जाता है ।
f. झाड़-फूँकना– आज के जमाने में भी कई लोग
झाँड़ने-फूँकने पर विश्वास करते हैं।
ii.
a. फफक-फफककर– भूख के मारे गरीब बच्चे फफक-फफककर
रो रहे थे।
b. तड़प-तड़पकर– अंधविश्वास और इलाज न करने
के कारण साँप के काटे जाने पर गाँव के लोग तड़प-तड़पकर मर जाते है।
c. बिलख-बिलखकर– बेटे की मृत्यु पर वह बिलख-बिलखकर
रो रही थी।
d. लिपट-लिपटकर– बहुत दिनों बाद मिलने पर
दोनों सहेलियाँ लिपट-लिपटकर मिली।
प्रश्न 6
निम्नलिखित वाक्य संरचना को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए:
i.
लड़के सुबह उठते ही
भूख से बिलबिलाने लगे।
ii.
उसके लिए तो बजाज की दुकान
से कपड़ा लाना ही होगा।
iii.
चाहे उसके लिए माँ के हाथों
के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
iv.
अरे जैसी नीयत होती
है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
v.
भगवाना जो एक दफे चुप
हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर-
i.
लड़के सुबह उठते ही
भूख से बिलबिलाने लगे।
बुढ़िया के
पोता-पोती भूख से बिलबिला रहे थे।
ii.
उसके लिए तो बजाज की दुकान
से कपड़ा लाना ही होगा।
बच्चों के
लिए खिलौने लाने ही होंगे।
iii.
चाहे उसके लिए माँ के हाथों
के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
उसने बेटी
की शादी के लिए खर्चा करने का इरादा किया चाहे इसके लिए उसका सब कुछ ही क्यों
न बिक जाए।
iv.
अरे जैसी नीयत होती
है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
जैसा दूसरों के लिए करोगे वैसा ही फल पाओगे।
v.
भगवाना जो एक दफे चुप
हुआ तो फिर न बोला।
जो समय निकल गया तो फिर मौका नहीं मिलेगा।