Aise Aise Class 6 Question Answer

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अध्याय 6: ऐसे ऐसे

ऐसे ऐसे पाठ का सारांश

प्रस्तुत एकांकी लेखक विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित है। इस पाठ ने लेखक ने एक ऐसे बच्चे के बारे में बताया है जो छुट्टी के दिनों में अपना गृहकार्य नहीं कर पाता इसलिए बीमारी का बहाना बनाता है ताकि उसे विद्यालय न जाना पड़े।

नाटक का सार कुछ इस प्रकार है-

मोहन बेड पर लेटा है और बार-बार पेट पकड़ कर कराह रहा है। मोहन के बगल में बैठकर उसकी माँ गरम पानी से उसके पेट को सेंक रही है। वह मोहन के पिता से पूछती है कि कहीं मोहन ने कोई खराब चीज तो नहीं खा ली थी। पिता माँ को तसल्ली देते हुए समझाते हैं कि मोहन ने केवल केला और संतरा खाया है। दफ़्तर से तो ठीक ही आया था बस बस अड्डे पहुँचने पर अचानक से बोला-पेट में ऐसे-ऐसे हो रहा है।

माँ पिता से पूछती है कि डॉक्टर अभी तक क्यों नहीं आया। माँ पिता को बताती है कि हींग, चूरन, पिपरमेंट सब दे दिया परन्तु इससे भी मोहन को कोई लाभ नहीं हुआ। तभी फोन की घंटी बजती है और बताते हैं कि डॉक्टर आ रहे हैं।

कुछ देर में ही वैद्यजी आते हैं और मोहन की नाड़ी छूकर बताते हैं कि शरीर में वायु बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है। वैद्यजी कब्ज कहकर कुछ पुड़िया खाने के लिए देते हैं और कहते हैं कि इसे खाने से मोहन ठीक हो जाएगा। वैद्यजी के जाने के बाद डॉक्टर साहब भी आ जाते हैं।

वे मोहन की जीभ को देखकर उसे बदहजमी की शिकायत बताकर दवाई भेजने की बात करते हुए निकल जाते हैं।

डॉक्टर जाने के बाद मोहन की पड़ोसिन आती है। वह मोहन की माँ को नयी-नयी बीमारियों के बारे में बताती है। उसी समय मोहन के मास्टरजी भी आ जाते हैं। मास्टरजी समझ जाते हैं कि मोहन ने गृहकार्य पूरा नहीं किया है इसलिए बीमारी का बहाना बना रहा है। मास्टरजी सभी को बताते हैं कि मोहन ने छुट्टियों में महीने भर मस्ती की जिसके कारण वह अपना विद्यालय का कार्य पूरा न कर पाया। अत: अब वो बीमारी का बहाना बना रहा है। मास्टरजी मोहन को गृहकार्य करने के दो-दिन का समय देते हैं। मास्टरजी की बात सुनकर माँ दंग रह जाती है। पिताजी के हाथ से दवाई की शीशी गिरकर टूट जाती है। सभी लोग हँस पड़ते हैं।


 

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ऐसे ऐसे पाठ के प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1 ‘सड़क के किनारे एक सुंदर फ्लैट में बैठक का दृश्य। उसका एक दरवाजा सड़क वाले बरामदे में खुलता है... उस पर एक फ़ोन रखा है।’ इस बैठक की पूरी तस्वीर बनाओ।

उत्तर- सड़क के किनारे एक सुंदर फ्लैट में बैठक का दृश्य। उसका एक दरवाजा सड़क वाले बरामदे में खुलता है। बरामदे में रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ रखी है, अंदर बैठक में दीवारों पर हल्का पीला रंग लगा है। एक तरफ़ सोफे-सेट और दूसरी तरफ़ टी.वी रखा हुआ है। टी.वी के पास में एक छोटी मेज पर गुलाबी कपड़ा बिछा है उस पर एक फोन रखा है।

प्रश्न 2 माँ मोहन के ‘ऐसे-ऐसे’ कहने पर क्यों घबरा रही थी?

उत्तर- मोहन को पेट में दर्द हो रहा था जिसका कारण भी पता नहीं चल रहा था। इस वजह से वह कल स्कूल भी नहीं जा पाएगा न जाने क्या बीमारी हो गई है। यह सोच-सोचकर मोहन की माँ घबरा रही थी।

प्रश्न 3 ऐसे कौन-कौन से बहाने होते हैं जिन्हें मास्टर जी एक ही बार में सुनकर समझ जाते है? ऐसे कुछ बहानों के बारे में लिखो।

उत्तर- निम्नलिखित बहानों को मास्टरजी अच्छी तरह से जानते थे-

1.   पेट में दर्द।

2.   सिर में दर्द।

3.   चक्कर आना व जी घबराना।

4.   होमवर्क की कॉपी घर भूल आना।

अनुमान और कल्पना प्रश्न (पृष्ठ संख्या 57)

प्रश्न 1 स्कूल के काम से बचने के लिए मोहन ने कई बार पेट में ऐसे-ऐसे' होने के बहाने बनाए। मान लो, एक बार उसे सचमुच पेट में दर्द हो गया और उसकी बातों पर लोगों ने विश्वास नहीं किया, तब मोहन पर क्या बीती होगी?

उत्तर- यदि कभी सचमुच दर्द हो जाए और लोग उसकी बातों पर विश्वास न करें, तब जाकर मोहन को पता चलेगा कि झूठ बोलने से क्या नुकसान होता है। उसे अपनी आदत पर पछतावा होगा और संभवतः वह भविष्य में कभी झूठ बोलने से तौबा कर ले।

प्रश्न 2 पाठ में आए वाक्य- ‘लोचा-लोचा फिरे है' के बदले ‘ढीला-ढाला हो गया है या बहुत कमज़ोर हो गया है'- लिखा जा सकता है लेकिन, लेखक ने संवाद में विशेषता लाने के लिए बोलियों के रंग-ढंग का उपयोग किया है। इस पाठ में इस तरह की अन्य पंक्तियाँ भी हैं। जैसे-

1.   इत्ती नयी-नयी बीमारियाँ निकली हैं

2.   राम मारी बीमारियों ने तंग कर दिया

3.   तेरे पेट में तो बहुत बड़ी दाढ़ी है।

अनुमान लगाओ, इन पंक्तियों को दूसरे ढंग से कैसे लिखा जा सकता है?

उत्तर-

1.   इतनी नयी-नयी बीमारियाँ निकली हैं।

2.   इन बीमारियों ने परेशान कर दिया है।

3.   तुम तो बहुत चालाक हो।

प्रश्न 3 मान लो कि तुम मोहन की तबीयत पूछने जाते हो। तुम अपने और मोहन के बीच की बातचीत को संवाद के रूप में लिखो।

उत्तर- मैं- अरे मोहन ! कैसे हो? क्या हुआ है तुम्हें?

मोहन- कुछ नहीं भाई। बस पेट में ऐसे-ऐसे हो रहा है।

मैं- ऐसे कैसे?

मोहन- बस ऐसे-ऐसे।

मैं- डॉक्टर को दिखाया?

मोहन- डॉक्टर को भी दिखाया और वैद्य की भी दवा मिली है खाने को।

मैं- क्या कहा उन्होंने?

मोहन- उन्होंने कब्ज और बदहज़मी बताया है।

मैं- ठीक है, दवा खाओ और जल्दी ठीक होने की कोशिश करो। कल से स्कूल खुल रहा है, याद है न।

मोहन- हाँ, हाँ, याद है। मैं-अब मैं चलता हूँ। कल स्कूल जाते समय आऊँगा। अगर पेट ठीक हो जाए तो तुम भी तैयार रहना।

मोहन- अच्छा भाई! धन्यवाद।

प्रश्न 4 संकट के समय के लिए कौन-कौन से नंबर याद रखने चाहिए? ऐसे वक्त में पुलिस, फायर ब्रिगेड और डॉक्टर से तुम कैसे बात करोगे? कक्षा में करके बताओ।

उत्तर- संकट के समय के लिए पुलिस स्टेशन का नंबर 100, फायर ब्रिगेड का नंबर 101, तथा एंबुलेंस बुलाने का नंबर 102 याद रखना चाहिए। यदि कहीं कोई दुर्घटना, चोरी या मार-पीट हो जाए तो पुलिस स्टेशन का 100 नंबर डायल करके घटना की सूचना देते हुए उस स्थान का पता देना चाहिए और शीघ्र आने का निवेदन करना चाहिए। इसी प्रकार आग लग जाने पर फायर ब्रिगेड का 101 नंबर और किसी के अचानक बीमार पड़ जाने पर शीघ्र इलाज के लिए एंबुलेंस बुलाने हेतु 102 नंबर डायल कर घटना की जानकारी देते हुए उस स्थान का पता जरूर बता देना चाहिए, जहाँ उनकी जरूरत है। छात्र कक्षा में करके बताएँ कि ये सारी बातें फोन पर कैसे करेंगे।

ऐसा होता तो क्या होता प्रश्न (पृष्ठ संख्या 57-58)

प्रश्न 1 मास्टर- ''स्कूल का काम तो पूरा कर लिया है?

(मोहन हाँ में सिर हिलाता है।)

मोहन-जी, सब काम पूरा कर लिया है।

इस स्थिति में नाटक का अंत क्या होता? लिखो।

उत्तर- ऐसी स्थिति में मास्टर जी समझ जाते कि मोहन बहाना नहीं कर रहा है। उसके पेट में सचमुच दर्द है। वह मोहन के माता-पिता को उसका ठीक तरह से इलाज कराने की सलाह देते।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 58)

प्रश्न 1

1.   मोहन ने केला और संतरा खाया।

2.   मोहन ने केला और संतरा नहीं खाया।

3.   मोहन ने क्या खाया?

4.   मोहन केला और संतरा खाओ।

उपर्युक्त वाक्यों में से पहला वाक्य एकांकी से लिया गया है। बाकी तीन वाक्य देखने में पहले वाक्य से मिलते-जुलते हैं, पर उनके अर्थ अलग-अलग हैं। पहला वाक्य किसी कार्य या बात के होने के बारे में बताता है। इसे विधिवाचक वाक्य कहते हैं। दूसरे वाक्य का संबंध उस कार्य के न होने से है, इसलिए उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। (निषेध का अर्थ नहीं या मनाही होता है।) तीसरे वाक्य में इसी बात को प्रश्न के रूप में पूछा जा रहा है, ऐसे वाक्य प्रश्नवाचक कहलाते हैं। चौथे वाक्य में मोहन से उसी कार्य को करने के लिए कहा जा रहा है। इसलिए उसे आदेशवाचक वाक्य कहते हैं। आगे एक वाक्य दिया गया है। इसके बाकी तीन रूप तुम सोचकर लिखो

बताना- रुथ ने कपड़े अलमारी में रखे।

उत्तर- नहीं/ मना करना- रुथ ने कपड़े अलमारी में नहीं रखे।

पूछना- क्या रुथ ने कपड़े अलमारी में रखे?

आदेश देना- रुथ कपड़े अलमारी में रखो।

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