हिंदी व्याकरण लिंग के प्रकार औद उदहारण कक्षा 6

लिंग

शब्द के जिस रूप से उसकी जाति (नर, मादा) का बोध होता है, उसे लिंग (Gender in hindi)कहते हैं।

लिंग दो प्रकार के होते हैं –

1.   पुल्लिंग

2.   स्त्रीलिंग

शब्दों के जिस रूप में उनके ’नरत्व’ (पुरुषत्व) का बोध होता है, उसे ’पुल्लिंग ’ तथा शब्दों के जिस रूप से उसके ’स्त्रीत्व’ का बोध होता है, उसे ’स्त्रीलिंग’ कहते हैं |

जैसे –

पुल्लिंग शब्द – लङका, बैल, पेङ, नगर आदि।

स्त्रीलिंग शब्द – गाय, लङकी, लता, नदी आदि।

हिन्दी भाषा में सृष्टि के समस्त पदार्थों को दो ही लिंगों में विभक्त किया गया है।

निर्जीव शब्दों का लिंग निर्धारण कठिन होता है, सजीव शब्दों का लिंग निर्धारण सरलता से हो जाता है।

संस्कृत के पुल्लिंग तथा नपुंसकलिंग शब्द, जो हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं, उसी रूप में स्वीकार कर लिए गए हैं, जैसे- तन, मन, धन, देश, जगत् आदि पुल्लिंग तथा सुन्दरता, आशा, लता दिशा जैसे शब्द स्त्रीलिंग है।

पुल्लिंग

हिन्दी में जो शब्द रूप या बनावट के आधार पर पुल्लिंग होते हैं, उनका परिचय इस प्रकार है

·       अकारान्त पुल्लिंग शब्द- राम, बालक, गृह, सूर्य, सागर आदि।

·       आकारान्त पुल्लिंग शब्द- घङा, चूना, बूरा आदि।

·       इकारान्त पुल्लिंग शब्द- कवि, हरि, कपि, वारि।

·       ईकारान्त पुल्लिंग शब्द- मोती, पानी, घी आदि।

·       उकारान्त पुल्लिंग शब्द- भानु, शिशु, गुरु आदि।

·       ऊकारान्त पुल्लिंग शब्द- बाबू, चाकू, आलू, भालू आदि।

·       प्रत्यान्त पुल्लिंग शब्द – आव या आवा (घुमाव, पङाव, बढ़ावा, चढ़ावा), ना (चलना, तैरना, सोना, जागना,) पन (लङकपन, भोलापन, बङप्पन, बचपन), आन (मिलान, खानपान, लगान), खाना (डाकखाना, चिङियाखाना)।

·       अर्थ की दृष्टि से पुल्लिंग शब्द प्रायः धातुओं और रत्नों के नाम – सोना, लोहा, हीरा, मोती आदि (चाँदी को छोङकर)

·       भोज्य पदार्थ पेङा, लड्डू, हलुवा, अनाजों के नाम गेहूँ, जौ, चना।

·       दिनों-महीनों के नाम सोमवार से रविवार तक सभी दिन, हिन्दी महीनों के नाम चैत्र, बैसाख, सावन, भादों आदि।

·       हिमालय, हिन्दमहासागर, भारत, चन्द्रमा आदि पर्वत, सागर, देश और ग्रहों के नाम (पृथ्वी) पुल्लिंग होते हैं।

स्त्रीलिंग –

रूप या बनावट के आधार पर

·       आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द - लता, सरिता, मामला, उदारता

·       इकारान्त स्त्रीलिंग शब्द - मति, रुचि, छवि।

·       अग्नि संस्कृत में पुल्लिंग है, परन्तु हिन्दी में स्त्रीलिंग है। (अपवाद)।

·       ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्द - नदी, सरस्वती।

·       उकारान्त एवं ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्द- धातु, बालू, सरयू।

·       प्रत्यान्त स्त्रीलिंग शब्द – ’इया’ (डिबिया, खटिया, बछिया, बिटिया)। ’अन’ (लगन, जलन, उलझन, तपन, सूजन), ’अ’ (चहक, महक, तङप आदि।) ’आई’ (लङाई, मिठाई, लिखाई, पढ़ाई, खटाई), ’त’ (अदालत, वकालत, कीमत, इज्जत, वसीयत आदि)।

·       वे संज्ञा, जिनके अन्त में ’ख’ स्त्रीलिंग-भूख, आँख, साख, कोख आदि।

·       अपवाद दुःख, सुख, मुख आदि पुल्लिंग हैं।

अर्थ की दृष्टि से

नक्षत्रों (रोहिणी, भरणी), नदियों व झीलों (गंगा, यमुना, सरस्वती, सरयू, सांभर, डल), तिथियों (पङवा, दोयज, तीज), भाववाचक संज्ञाएँ इच्छा, अर्चना, ऋद्धि-सिद्धि कटुता, महानता, सरलता आदि।

वाक्य रचना में लिंग के शुद्ध प्रयोग

·       संज्ञा शब्द पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होते हैं।

·       सर्वनाम में लिंग भेद नहीं होता, क्योंकि सर्वनाम का लिंग निर्णय ’क्रिया’ के आधार पर होता है।

·       विशेषण पद प्रायः अपने निकटतम विशेष्य के अनुसार ही स्त्रीलिंग या पुल्लिंग होते हैं – अच्छा लङका, अच्छी बात, काला बछङा, काली गाय, बङा बेटा, बङी बेटी आदि।

·       क्रिया पदों का लिंग कर्ता के अनुसार होता है, नदी बहती है। झरना बहता है।

·       कर्ता में विकल्प होने पर क्रिया का लिंग बाद वाले कर्ता के समान होता है, जैसे-राम या सीता गई। वहाँ कुआँ या नदी दिखाई पङेगी।

लिंग – परिवर्तन

पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के कतिपय नियम इस प्रकार हैं –

1.   शब्दान्त ’अ’ को ’आ’ में बदलकर-

छात्र-छात्रा

वृद्ध-वृद्धा

पूज्य-पूज्या

भवदीय-भवदीया

सुत-सुता

अनुज-अनुजा

2.   शब्दान्त ’अ’ को ’ई’ में बदलकर –

देव-देवी

पुत्र -पुत्री

ब्राह्मण-ब्राह्मणी

मेंढक-मेंढकी

गोप-गोपी

दास-दासी

3.   शब्दान्त ’आ’ को ’ई’ में बदलकर-

नाना-नानी

बेटा-बेटी

लङका-लङकी

रस्सा-रस्सी

घोङा-घोङी

चाचा-चाची

4.   शब्दान्त ’आ’ को ’इया’ में बदलकर –

बूढ़ा-बुढ़िया

चूहा-चुहिया

कुत्ता-कुतिया

डिब्बा-डिबिया

बेटा-बेटिया

लोटा-लुटिया

5.   शब्दान्त प्रत्यय ’अक’ को ’इका’ में बदलकर –

बालक-बालिका

लेखक-लेखिका

पाठक-पाठिका

गायक-गायिका

नायक-नायिका

6.   ’आनी’ प्रत्यय लगाकर –

देवर-देवरानी

चौधरी -चौधरानी

भव-भवानी

जेठ-जेठानी

सेठ-सेठानी

7.   ’नी’ प्रत्यय लगाकर –

शेर-शेरनी

मोर-मोरनी

सिंह-सिंहनी

ऊँट-ऊँटनी

जाट-जाटनी

भील-भीलनी

8.  शब्दान्त मेंके स्थान परइनीलगाकर

हाथी-हथिनी

तपस्वी-तपस्विनी

स्वामी-स्वामिनी

9.   ’इन’ प्रत्यय लगाकर –

माली-मालिन

चमार-चमारिन

नाई-नाइन

कुम्हार-कुम्हारिन

धोबी-धोबिन

सुनार-सुनारिन

10.  ’आइन’ प्रत्यय लगाकर –

चौधरी – चौधराइन

ठाकुर-ठकुराइन

मुंशी -मुंशियाइन

11.  शब्दान्त ’मान’ के स्थान पर ’मती’ लगाकर –

श्रीमान्-श्रीमती                                                   

बुद्धिमान-बुद्धिमती

आयुष्मान-आयुष्मती

12.  शब्दान्त ’ता’ के स्थान पर ’त्री’ लगाकर –

कर्ता -कर्त्री

नेता-नेत्री

दाता-दात्री

13.  शब्द के पूर्व में ’मादा’ शब्द लगाकर –

खरगोश-मादा खरगोश

भालू-मादा भालू

भेङिया-मादा भेङिया

14.  भिन्न रूप वाले कतिपय शब्द –

कवि-कवयित्री

वर-वधू

वीर-वीरांगना

मर्द-औरत

दूल्हा-दुलहिन

नर-नारी

राजा-रानी

पुरुष-स्त्री

बादशाह-बेगम

युवक-युवती

विद्वान-विदुषी

साधु-साध्वी

बैल-गाय

भाई-भाभी

ससुर-सास

महत्त्वपूर्ण तथ्य –

·       शब्द के जिस रूप से उसकी जाति (नर-मादा) का बोध हो, वह लिंग है।

·       हिन्दी में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग का निर्धारण ’रूप या बनावट’ तथा ’अर्थ’ की दृष्टि से किया जाता है।

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