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Karak in Hindi grammar refers to the various cases that indicate the relationship between a noun and the verb in a sentence. Understanding Karak ke Bhed is not just important but also interesting for Class 6 students. Are you wondering about what Karak ke Bhed are or looking for examples to understand them better? We at Witknowlearn provide a thorough explanation of each type of Karak with examples, making it easier for students to grasp these concepts.
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कारक
अगर हम आसानी से इसे समझें तो ऐसे कि क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले वे सभी शब्द
जो संज्ञा या सर्वनाम के रूप में होते हैं, उन्हें कारक कहते हैं।
अर्थात कारक संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का वह रूप होता है जिसका सीधा सम्बन्ध
क्रिया से ही होता है।
किसी कार्य को करने वाला कारक यानि जो भी क्रिया को करने में मुख्य भूमिका
निभाता है, वह कारक कहलाता है।
परिभाषा –
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के
साथ जाना जाए, उसे कारक कहते हैं। वाक्य में प्रयुक्त शब्द आपस में सम्बद्ध होते हैं।
क्रिया के साथ संज्ञा का सीधा सम्बन्ध ही कारक है। कारक को प्रकट करने के लिये संज्ञा
और सर्वनाम के साथ जो चिन्ह लगाये जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं।
जैसे – पेङ पर फल लगते हैं। इस वाक्य में पेङ कारकीय पद हैं और ’पर’ कारक सूचक चिन्ह
अथवा विभक्ति है।
कारक के भेद - Karak ke Bhed
कारक |
विभक्तियाँ |
1. कर्ता |
ने |
2. कर्म |
को |
3. करण |
से, द्वारा |
4. सम्प्रदान |
को, के लिये, हेतु |
5. अपादान |
से (अलग होने के अर्थ में) |
6. सम्बन्ध |
का, की, के, रा, री, रे |
7. अधिकरण |
में, पर |
8. सम्बोधन |
हे! अरे! ऐ! ओ! हाय! |
1.
कर्ता कारक
2.
कर्मकारक
3.
करण कारक
4.
सम्प्रदान कारक
5.
अपादान कारक
6.
सम्बन्ध कारक
7.
अधिकरण कारक
8.
सम्बोधन कारक
कर्ता कारक - Karta Karak
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता
कारक(Karta Karak) कहते हैं। इसका चिन्ह ’ने’ कभी कर्ता के साथ लगता है, और कभी वाक्य
में नहीं होता है,अर्थात लुप्त होता है ।
उदाहरण –
· रमेश ने पुस्तक पढ़ी।
· सुनील खेलता है।
· पक्षी उङता है।
· मोहन ने पत्र पढ़ा।
इन वाक्यों में ’रमेश’, ’सुनील’ और ’पक्षी’ कर्ता कारक हैं, क्योंकि इनके द्वारा
क्रिया के करने वाले का बोध होता है।
कर्मकारक - Karm Karak
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का प्रभाव या फल पङे, उसे कर्म कारक
कहते हैं। कर्म के साथ ’को’ विभक्ति आती है। इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी
वाक्यों में ’को’ विभक्ति का लोप भी हो जाया
करता है।
उदाहरण –
· उसने सुनील को पढ़ाया।
· मोहन ने चोर को पकङा।
· लङकी ने लङके को देखा।
· कविता पुस्तक पढ़ रही है।
’कहना’ और ’पूछना’ के साथ
’से’ प्रयोग होता हैं। इनके साथ ’को’ का प्रयोग नहीं होता है , जैसे –
· कबीर ने रहीम से कहा।
· मोहन ने कविता से पूछा।
यहाँ ’से’ के स्थान पर ’को’ का प्रयोग उचित नही है।
करण कारक - karan karak
जिस साधन से अथवा जिसके द्वारा क्रिया पूरी की जाती है, उस संज्ञा
को करण कारक कहते हैं।
इसकी मुख्य पहचान ’से’ अथवा ’द्वारा’ है
उदाहरण –
· रहीम गेंद से खेलता है।
· आदमी चोर को लाठी द्वारा मारता है।
यहाँ ’गेंद से’ और ’लाठी द्वारा’ करण कारक है।
सम्प्रदान कारक - Sampadan karak
जिसके लिए क्रिया की जाती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक
’को’ भी प्रयुक्त होता है, किन्तु उसका अर्थ ’के लिये’ होता है।
उदाहरण –
· सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।
· हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
· माँ बच्चे को खिलौना देती है।
उपरोक्त वाक्यों में ’मोहन के लिये’ ’पढ़ने के लिए’ और बच्चे को
सम्प्रदान है।
अपादान कारक - upadan karak
अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी
वस्तु का अलग होना ज्ञात हो, उसे अपादान कारक कहते हैं।
करण कारक की भाँति अपादान कारक का चिन्ह भी ’से’ है, परन्तु करण कारक
में इसका अर्थ सहायता होता है और अपादान में अलग होना होता है।
उदाहरण –
· हिमालय से गंगा निकलती है।
· वृक्ष से पत्ता गिरता है।
· राहुल छत से गिरता है।
इन वाक्यों में ’हिमालय से’, ’वृक्ष से’, ’छत से ’ अपादान
कारक है।
सम्बन्ध कारक -
संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस
रूप से एक वस्तु का सम्बन्ध दूसरी वस्तु से जाना जाये, उसे सम्बन्ध कारक कहते
हैं।
इसकी मुख्य पहचान है – ’का’, ’की’, के।
उदाहरण –
· राहुल की किताब मेज पर है।
· सुनीता का घर दूर है।
सम्बन्ध कारक क्रिया से भिन्न
शब्द के साथ ही सम्बन्ध सूचित करता है।
अधिकरण कारक - Adhikaran karak
संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते
हैं। इसकी मुख्य पहचान है ’में’, ’पर’ होती है ।
उदाहरण –
· घर पर माँ है।
· घोंसले में चिङिया है।
· सङक पर गाङी खङी है।
यहाँ ’घर पर’, ’घोंसले में’, और ’सङक पर’, अधिकरण है।
सम्बोधन कारक - Sambodhan Karak
संज्ञा या जिस रूप से किसी को पुकारने
तथा सावधान करने का बोध हो, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।
इसका सम्बन्ध न क्रिया से और न किसी दूसरे शब्द से होता है। यह वाक्य से
अलग रहता है। इसका कोई कारक चिन्ह भी नहीं है।
उदाहरण –
· खबरदार !
· रीना को मत मारो।
· रमा ! देखो कैसा सुन्दर दृश्य है।
· लङके ! जरा इधर आ।