भाषा की परिभाषा
भाषा वह साधन है,
जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का
आदान-प्रदान करता है।
अथवा
जिसके द्वारा हम
अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को
समझ सके उसे भाषा कहते है।
अथवा
सरल शब्दों में:
सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।
मनुष्य और मनुष्य
के बीच वस्तुअों के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त
ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है।
भाषा के प्रकार
भाषा के तीन रूप
होते है:
1.मौखिक भाषा
2.लिखित भाषा
3.सांकेतिक भाषा
1. मौखिक भाषा
विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में
वक्ताओं ने बोलकर अपने विचार प्रकट किए तथा श्रोताओं ने सुनकर उनका आनंद उठाया। यह
भाषा का मौखिक रूप है। इसमें वक्ता बोलकर अपनी बात कहता है व श्रोता सुनकर उसकी
बात समझता है।
इस प्रकार, भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और
दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है, मौखिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो
को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है।
उदाहरण: टेलीफ़ोन, दूरदर्शन, भाषण, वार्तालाप, नाटक, रेडियो आदि।
मौखिक या उच्चरित भाषा, भाषा का बोल-चाल का रूप है। उच्चरित भाषा का इतिहास
तो मनुष्य के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य ने जब से इस धरती पर जन्म लिया
होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया
होगा। इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा मूलतः मौखिक है।
यह भाषा का प्राचीनतम रूप है। मनुष्य ने पहले बोलना सीखा। इस रूप का प्रयोग
व्यापक स्तर पर होता है।
मौखिक भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
· यह भाषा का अस्थायी रूप है।
· उच्चरित होने के साथ ही यह समाप्त हो जाती है।
· वक्ता और श्रोता एक-दूसरे के आमने-सामने हों प्रायः तभी मौखिक भाषा का
प्रयोग किया जा सकता है।
· इस रूप की आधारभूत इकाई ‘ध्वनि’ है। विभिन्न ध्वनियों के संयोग से शब्द
बनते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में
किया जाता हैं।
· यह भाषा का मूल या प्रधान रूप हैं।
2. लिखित भाषा
मुकेश छात्रावास में रहता है। उसने पत्र लिखकर अपने माता-पिता को अपनी
कुशलता व आवश्यकताओं की जानकारी दी। माता-पिता ने पत्र पढ़कर जानकारी प्राप्त की।
यह भाषा का लिखित रूप है। इसमें एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है,
दूसरा पढ़कर उसे समझता है।
इस प्रकार भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति अपने विचार या मन के भाव लिखकर
प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझता है, लिखित भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हों की सहायता से हम अपने मन के
विचारो को लिखकर प्रकट करते है, उसे लिखित भाषा कहते है।
उदाहरण: पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, तार आदि।
उच्चरित भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद का है। मनुष्य को जब यह
अनुभव हुआ होगा कि वह अपने मन की बात दूर बैठे व्यक्तियों तक या आगे आने वाली
पीढ़ी तक भी पहुँचा दे तो उसे लिखित भाषा की आवश्यकता हुई होगी। अतः मौखिक भाषा को
स्थायित्व प्रदान करने हेतु उच्चरितध्वनि प्रतीकों के लिए ‘लिखित-चिह्नों’ का
विकास हुआ होगा।
इस तरह विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों ने अपनी-अपनी भाषिक ध्वनियों के लिए
तरह-तरह की आकृति वाले विभिन्न लिखित-चिह्नों का निर्माण किया और इन्हीं
लिखित-चिह्नों को ‘वर्ण’ (letter) कहा गया। अतः जहाँ मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई
ध्वनि (Phone) है तो वहीं लिखित भाषा की आधारभूत इकाई ‘वर्ण‘ (letter) हैं।
लिखित भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
· यह भाषा का स्थायी रूप है।
· इस रूप में हम अपने भावों और विचारों को अनंत काल के लिए सुरक्षित रख सकते
हैं।
· यह रूप यह अपेक्षा नहीं करता कि वक्ता और श्रोता आमने-सामने हों।
· इस रूप की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ हैं जो उच्चरित ध्वनियों को अभिव्यक्त
(represent) करते हैं।
· यह भाषा का गौण रूप है।
इस तरह यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि भाषा का मौखिक रूप ही प्रधान
या मूल रूप है। किसी व्यक्ति को यदि लिखना-पढ़ना (लिखित भाषा रूप) नहीं आता तो भी
हम यह नहीं कह सकते कि उसे वह भाषा नहीं आती। किसी व्यक्ति को कोई भाषा आती है,
इसका अर्थ है- वह उसे सुनकर समझ लेता है तथा बोलकर अपनी बात संप्रेषित कर लेता है।
3. सांकेतिक भाषा
जिन संकेतो के द्वारा बच्चे या गूँगे अपनी बात दूसरों को समझाते है, वे सब
सांकेतिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जब संकेतों (इशारों) द्वारा बात समझाई और समझी जाती है,
तब वह सांकेतिक भाषा कहलाती है।
जैसे- चौराहे पर खड़ा यातायात नियंत्रित करता सिपाही, मूक-बधिर व्यक्तियों
का वार्तालाप आदि।
इसका अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।
बोली और भाषा में
अन्तर क्या है
बोली और भाषा में
अन्तर है। भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है। भाषा में लिखित और मौखिक दोनों रूप
होते हैं। बोली भाषा का ऐसा रूप है जो किसी छोटे क्षेत्र में बोला जाता है। जब
बोली इतनी विकसित हो जाती है कि वह किसी लिपि में लिखी जाने लगे, उसमें
साहित्य-रचना होने लगे और उसका क्षेत्र भी अपेक्षाकृत विस्तृत हो जाए तब उसे भाषा
कहा जाता है।
हिन्दी भाषा
बहुत सारे
विद्वानों का मत है कि हिन्दी भाषा संस्कृत से निष्पन्न है; परन्तु यह बात सत्य
नहीं है। हिन्दी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से हुई है और अपभ्रंश की उत्पत्ति
प्राकृत से। प्राकृत भाषा अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है।
स्पष्ट है कि हमारे
आदिम आर्यों की भाषा पुरानी संस्कृत थी। उनके नमूने ऋग्वेद में दिखते हैं। उसका
विकास होते-होते कई प्रकार की प्राकृत भाषाएँ पैदा हुई। हमारी विशुद्ध संस्कृत
किसी पुरानी प्राकृत से ही परिमार्जित हुई है। प्राकृत भाषाओं के बाद अपभ्रशों और
शौरसेनी अपभ्रंश से निकली है।
हिन्दी भाषा और
उसका साहित्य किसी एक विभाग और उसके साहित्य के विकसित रूप नहीं हैं; वे अनेक
विभाषाओं और उनके साहित्यों की समष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
एक बहुत बड़े
क्षेत्र- जिसे चिरकाल से मध्यदेश कहा जाता रहा है- की अनेक बोलियों के ताने-बाने
से बुनी यही एक ऐसी आधुनिक भाषा है, जिसने अनजाने और अनौपचारिक रीति से देश की ऐसी
व्यापक भाषा बनने का प्रयास किया था, जैसी संस्कृत रहती चली आई थी; किन्तु जिसे
किसी नवीन भाषा के लिए अपना स्थान तो रिक्त करना ही था।
वर्तमान हिन्दी
भाषा का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक हो चला। है इसे निम्नलिखित विभागों में बाँटा गया
हैं-
·
बिहारी
भाषा : बिहारी भाषा बँगला
भाषा से अधिक संबंध रखती है। यह पूर्वी उपशाखा के अंतर्गत है और बँगला, उड़िया और
आसामी की बहन लगती है। इसके अंतर्गत निम्न बोलियाँ हैं- मैथली, मगही, भोजपुरी,
पूर्वी आदि। मैथली के प्रसिद्ध कवि विद्यापति ठाकुर और भोजपुरी के बहुत बड़े
प्रचारक भिखारी ठाकुर हुए।
·
पूर्वी
हिन्दी : अर्द्धमागधी
प्राकृत के अप्रभ्रंश से पूर्वी हिन्दी निकली है। गोस्वामी तुलसीदास ने
रामचरितमानस जैसे महाकाव्यों की रचना पूर्वी हिन्दी में ही की। दूसरी तीन बोलियाँ
हैं- अवध, बघेली और छत्तीसगढ़ी। मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी प्रसिद्ध रचनाएँ इसी
भाषा में लिखी हैं।
·
पश्चिमी
हिन्दी : पूर्वी हिन्दी तो
बाहरी और भीतरी दोनों शाखाओं की भाषाओं के मेल से बनी हैं; परन्तु पश्चिमी हिन्दी
का संबंध भीतरी शाखा से है।