वर्ण | Varn
वर्ण किसे कहते हैं
ध्वनियों के वे मौलिक और सूक्ष्मतम रूप जिन्हें और विभाजित नहीं किया जा सकता
है, उन्हें वर्ण कहा जाता है। वर्ण के मौखिक रूप को ध्वनि एवं लिखित रूप को अक्षर कहते
हैं।
जैसे - क्, ख्, ग्, अ, ए इत्यादि।
किसी शब्द को अगर हम विभाजित करें तो हमें इसमें छिपे हुए वर्णों का पता चल
जाएगा।
उदाहरण के लिए,
सभा = स् + अ + भ् + आ
वर्ण की परिभाषा
वर्ण की परिभाषा की बात करें तो वर्ण उस मूल ध्वनि को कहा जाता है, जिसके खंड
व टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं।
वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है व इसके टुकड़े या खण्ड नहीं किये जा सकते
हैं।
जैसे - क, ख, व, च, प आदि।
वर्ण के भेद
हिंदी भाषा के अनुसार वर्ण 2 प्रकार के होते हैं।
· स्वर
· व्यंजन
हिन्दी वणमाला में 11 स्वर और 33 व्यंजन
है।
स्वर
वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में वायु बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, स्वर
कहलाते है।
स्वरों के भेद
उच्चारण समय या मात्रा के आधार पर स्वरो
के तीन भेद है।
1. ह्रस्व स्वर :- इन्हे मूल स्वर तथा एकमात्रिक
स्वर भी कहते है। इनके उच्चारण में सबसे कम समय लगता है।
जैसे - अ, इ, उ, ऋ
2. दीर्घ स्वर :- इनके उच्चारण में हस्व स्वर
की अपेक्षा दुगुना समय लगता है अर्थात दो मात्राए लगती है, उसे दीर्घ स्वर कहते है।
जैसे - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
3. प्लुत स्वर :- संस्कृत में प्लुत को एक तीसरा
भेद माना जाता है, पर हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं होता |
जैसे - ओउम
प्रयत्न के आधार पर :- जीभ के प्रयत्न के आधार पर तीन भेद है।
1. अग्र स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में
जीभ का अगला भाग ऊपर नीचे उठता है, अग्र स्वर कहते है |
जैसे - इ, ई, ए, ऐ
2. पश्च स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में
जीभ का पिछला भाग सामान्य स्थिति से उठता है, पश्च स्वर कहे जाते है |
जैसे - ओ, उ, ऊ, ओ, औ तथा ऑ
3. मध्य स्वर :- हिन्दी में ‘अ’ स्वर केन्द्रीय
स्वर है। इसके उच्चारण में जीभ का मध्य भाग थोड़ा - सा ऊपर उठता है।
मुखाकृति के आधार पर
1. संवृत :- वे स्वर जिनके उच्चारण में
मुँह बहुत कम खुलता है।
जैसे - इ, ई, उ, ऊ
2. अर्द्ध संवृत :- वे स्वर जिनके उच्चारण
में मुख संवृत की अपेक्षा कुछ अधिक खुलता है |
जैसे - ए, ओ
3. विवृत :- जिन स्वरों के उच्चारण में
मुख पूरा खुलता है।
जैसे - आ
4. अर्द्ध विवृत :- जिन स्वरों के उच्चारण
में मुख आधा खुलता है।
जैसे - अ, ऐ, औ।
ओष्ठाकृति के आधार पर
1. वृताकार :- जिनके उच्चारण में होठो की
आकृति वृत के समान बनती है।
जैसे - उ, ऊ, ओ, औ
2. अवृताकार :- इनके उच्चारण में होठो की
आकृति अवृताकार होती है।
जैसे - इ, ई, ए,
3. उदासीन :- ‘अ’ स्वर के उच्चारण में होठ
उदासीन रहते है।‘ऑ’ स्वर अग्रेजी से हिन्दी में आया है।
व्यंजन
जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते
है। व्यंजन कहलाते है।
प्रयत्न के आधार पर व्यंजन
के भेद
1. स्पर्श :- जिनके उच्चारण में मुख के दो
भिन्न अंग - दोनों ओष्ठ, नीचे का ओष्ठ और ऊपर के दांत, जीभ की नोक और दांत आदि एक दूसरे
से स्पर्श की स्थिति में हो, वायु उनके स्पर्श करती हुई बाहर आती हो।
जैसे - क्, च्, ट्, त्, प्, वर्गो
की प्रथम चार ध्वनियाँ
2. संघर्षी :- जिनके उच्चारण में मुख के
दो अवयव एक - दूसरे के निकट आ जाते है और वायु निकलने का मार्ग संकरा हो जाता है तो
वायु घर्षण करके निकलती है, उन्हें संघर्षी व्यंजन कहते है।
जैसे - ख, ग, ज्, फ, श, ष, स्
3. स्पर्श संघर्षी :- जिन व्यंजनों के उच्चारण
में पहले स्पर्श फिर घर्षण की स्थिति हो।
जैसे - छ, ज, झ्
4. नासिक्य :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में
दात, ओष्ठ, जीभ आदि के स्पर्श के साथ वायु नासिका मार्ग से बाहर आती है।
जैसे - ड्, न्, म्, अ, ण
5. पाश्विक :- जिन व्यंजनो के उच्चारण में
मुख के मध्य दो अंगो के मिलने से वायु मार्ग अवरूद्ध होने के बाद होता है।
जैसे - ल्
6. लुण्ठित :- जिनके उच्चारण में जीभ बेलन
की भाँति लपेट खाती है।
जैसे - र्
7. उत्क्षिप्त :- जिनके उच्चरण में जीभ की नोक
झटके से तालु को छूकर वापस आ जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते है।
जैसे - ड, ढ़
8. अर्द्ध स्वर :- जिन वर्णों का उच्चारण
अवरोध के आधार पर स्वर व व्यंजन के बीच का है।
जैसे - य, व् –
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन
के भेद
1. स्वर - यन्त्रमुखी :- जिन व्यंजनों
का उच्चारण स्वर - यन्त्रमुख से हो।
जैसे - ह्, स
2. जिह्वामूलीय :- जिनका उच्चारण जीभ के मूल भाग से होता है।
जैसे - क्, ख्, ग्
3. कण्ठय :- जिन व्यंजनो के उच्चारण कण्ठ
से होता है, इनके उच्चारण में जीभ का पश्च भाग कोमल तालु को स्पर्श करता है।
जैसे - ‘क’ वर्ग
4. तालव्य :- जिनका उच्चारण जीभ की नोक
या अग्रभाग के द्वारा कठोर तालु के स्पर्श से होता है।
जैसे - ‘क’ वर्ग, य् और श्
5. मूर्धन्य :- जिन व्यंजनों का उच्चारण मूर्धा
से होता है। इस प्रक्रिया में जीभ मूर्धा का स्पर्श करती है।
जैसे - ‘ट’ वर्ग, ष
6. वर्साय :- जिन ध्वनियों का उद्भव जीभ
के द्वारा वर्ल्स या ऊपरी मसूढ़े के स्पर्श से हो ।
जैसे - न्, र्, ल्
7. दन्त्य :- जिन व्यंजनों का उच्चारण दाँत
की सहायता से होता है। इसमें जीभ की नोक उपरी दंत पंक्ति का स्पर्श करती है।
जैसे - ‘त’ वर्ग, स्
8. दंतोष्ठ्य :- इन ध्वनियों के उच्चारण के
समय जीभ दाँतो को लगती है तथा होंठ भी कुछ मुड़ते है।
जैसे - व्, फ्
9. ओष्ठ्य :- ओष्ठ्य व्यंजनो के उच्चारण
में दोनो होंठ परस्पर स्पर्श करते हैं तथा जिह्म निष्क्रिय रहती है |
जैसे - ‘प’ वर्ग
स्वर तंत्रियों में उत्पन्न
कम्पन के आधार पर
1. घोष :- जिन ध्वनियों के उच्चारण के
समय में स्वर-तन्त्रियाँ एक-दूसरे के निकट होती है और निःश्वास वायु निकलने में उसमें
कम्पन हो। प्रत्येक वर्ग की अन्तिम तीन ध्वनियाँ घोष होती है।
2. अघोष :- जिनके उच्चारण-समय स्वर-तंत्रियों
में कम्पन न हो। प्रत्येक वर्ग की प्रथम दो ध्वनियाँ अघोष होती है।
श्वास (प्राण) की मात्रा के
आधार पर
1. अल्पप्राण :- जिनके उच्चारण में सीमित वायु
निकलती है, उन्हें अल्प्राण व्यंजन कहते है ऐसी ध्वनियाँ ‘ह’ रहित होती है। प्रत्येक
वर्ग की पहली, तीसरी, पांचवी ध्वनियाँ अल्पप्राण होती है।
2. महाप्राण :- जिनके उच्चारण में अपेक्षाकृत अधिक वायु निकलती है। ऐसी ध्वनि ‘ह’ युक्त होती है। प्रत्येक वर्ग की दूसरी और पाँचवी ध्वनि महाप्राण होती है।
FAQs
वर्ण क्या है?
वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है जिसका उच्चारण करते समय हमारे कंठ, जीभ आदि का कोई न कोई भाग संघर्षित होता है। यह शब्दों को गठन करने के लिए आवश्यक होते हैं।
वर्ण कितने प्रकार के होते हैं?
वर्ण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं: स्वर, व्यंजन और अयोगवाह।
स्वर वर्ण क्या है?
स्वर वर्ण वह होते हैं जिनका उच्चारण करते समय हमारे कण्ठ के किसी भी भाग का संघर्षण नहीं होता। हिंदी में इनकी संख्या 11 होती है।
व्यंजन वर्ण क्या है?
व्यंजन वर्ण वह होते हैं जिनका उच्चारण करते समय हमारे कण्ठ, जीभ आदि का कोई न कोई भाग संघर्षित होता है। हिंदी में इनकी संख्या 33 होती है।
अयोगवाह वर्ण क्या है?
अयोगवाह वर्ण वे होते हैं जो स्वतंत्र रूप से उच्चारण नहीं होते हैं, बल्कि किसी स्वर या व्यंजन के साथ मिलकर ही उच्चारित होते हैं। हिंदी में इनकी संख्या 3 होती है: अनुस्वार, विसर्ग और अनुनासिक।