The chapter Appu Ke Sath Dhai Saal is an important part of the Class 11 Hindi curriculum and it often fascinates students with its depth and narrative. It captures the journey and experiences over two and a half years with Appu, offering a rich tapestry of events and emotions.
For students and teachers looking for the Class 11 Hindi Appu Ke Sath Dhai Saal question answer, it's crucial to understand the storyline and its nuances. These question answers help students grasp the themes and the detailed happenings in the story, preparing them for their exams by ensuring they understand the chapter thoroughly.
The Appu Ke Sath Dhai Saal ke question answer segment requires attention to the story's events, characters, and underlying messages. Students often find it helpful to refer to well-structured answers that explain the story's finer points, which can be crucial for scoring well in exams.
Parents can support their children's learning by discussing the Appu Ke Dhai Saal question answer with them, ensuring they comprehend the story's essence. The shared reading and discussion can be a bonding experience and reinforce the child's learning process.
When it comes to Class 11 Hindi Chapter 3 question answer, which includes Appu Ke Sath Dhai Saal, it's all about detailed understanding. Teachers play a significant role in guiding students through the literary aspects and helping them find the right answers.
For those who prefer to read and prepare in Hindi, अपू के साथ ढाई साल and Appu Ke Sath Dhai Saal Prashn Uttar in the original language provide an immersive experience. The story's summary, or Appu Ke Sath Dhai Saal summary, is a concise version that covers all the main points, helping students to recall the story quickly during revisions.
Lastly, Appu Ke Sath Dhai Saal Class 11 NCERT solutions can be a goldmine for students. These solutions often include summaries, question answers, and explanations that align with the NCERT curriculum, making them highly reliable for exam preparation.
In summary, the chapter Appu Ke Sath Dhai Saal offers a wonderful learning opportunity for Class 11 students. With the right resources and guidance, they can explore the depths of this story and excel in their Hindi exams.
अध्याय-3: अपू के साथ ढाई साल
सारांश
अपू के साथ ढाई साल नामक
संस्मरण पथेर पांचाली फिल्म के अनुभवों से संबंधित है जिसका निर्माण भारतीय फिल्म के
इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है। इससे फिल्म के सृजन और उनके व्याकरण से
संबंधित कई बारीकियों का पता चलता है। यही नहीं, जो फिल्मी दुनिया हमें अपने ग्लैमर
से चुधियाती हुई जान पड़ती है, उसका एक ऐसा सच हमारे सामने आता है, जिसमें साधनहीनता
के बीच अपनी कलादृष्टि को साकार करने का संघर्ष भी है। यह पाठ मूल रूप से बांग्ला भाषा
में लिखा गया है जिसका अनुवाद विलास गिते ने किया है।
किसी फिल्मकार के लिए उसकी
पहली फिल्म एक अबूझ पहेली होती है। बनने या न बन पाने की अमूर्त शंकाओं से घिरी। फिल्म
पूरी होने पर ही फिल्मकार जन्म लेता है। पहली फिल्म के निर्माण के दौरान हर फिल्म निर्माता
का अनुभव संसार इतना रोमांचकारी होता है कि वह उसके जीवन में बचपन की स्मृतियों की
तरह हमेशा जीवंत बना रहता है। इस अनुभव संसार में दाखिल होना उस बेहतरीन फिल्म से गुजरने
से कम नहीं है।
लेखक बताता है कि पथेर
पांचाली फिल्म की शूटिंग ढाइ साल तक चली। उस समय वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था।
काम से फुर्सत मिलते ही और पैसे होने पर शूटिंग की जाती थी। शूटिंग शुरू करने से पहले
कलाकार इकट्ठे करने के लिए बड़ा आयोजन किया गया। अपू की भूमिका निभाने के लिए छह साल
का लड़का नहीं मिल रहा था। इसके लिए अखबार में विज्ञापन दिया। रासबिहारी एवेन्यू के
एक भवन में किराए के कमरे पर बच्चे इंटरव्यू के लिए आते थे। एक सज्जन तो अपनी लड़की
के बाल कटवाकर लाए थे। लेखक परेशान हो गया। एक दिन लेखक की पत्नी की नज़र पड़ोस में
रहने वाले लड़के पर पड़ी और वह सुबीर बनर्जी ही ‘पथेर पांचाली’ में अपू बना।
फिल्म में अधिक समय लगने
लगा तो लेखक को यह डर लगने लगा कि अगर अपू और दुर्गा नामक बच्चे बड़े हो गए तो दिक्कत
हो जाएगी। सौभाग्य से वे नहीं बढ़े। फिल्म की शूटिंग के लिए वे पालसिट नामक गाँव गए।
वहाँ रेल-लाइन के पास काशफूलों से भरा मैदान था। उस मैदान में शूटिंग शुरू हुई। एक
दिन में आधी शूटिंग हुई। निर्देशक, छायाकार, कलाकार आदि सभी नए होने के कारण घबराए
हुए थे। बाकी का सीन बाद में शूट करना था। सात दिन बाद वहाँ दोबारा पहुँचे तो काशफूल
गायब थे। उन्हें जानवर खा गए। अत: आधे सीन की शूटिंग के लिए अगली शरद ऋतु की प्रतीक्षा
करनी पड़ी।
अगले वर्ष शूटिंग हुई।
उसी समय रेलगाड़ी के शॉट्स भी लिए गए। कई शॉट्स होने के लिए तीन रेलगाड़ियों से शूटिंग
की गई। कलाकार दल का एक सदस्य पहले से ही गाड़ी के इंजन में सवार होता था ताकि वह शॉट्स
वाले दृश्य में बायलर में कोयला डालता जाए और रेलगाड़ी का धुआँ निकलता दिख सके। सफेद
काशफूलों की पृष्ठभूमि पर काला धुआँ अच्छा सीन दिखाता है। इस सीन को कोई दर्शक नहीं
पहचान पाया।
लेखक को धन की कमी से कई
समस्याएँ झेलनी पड़ीं। फिल्म में ‘भूलो’ नामक कुत्ते के लिए गाँव का कुत्ता लिया गया।
दृश्य में कुत्ते को भात खाते हुए दिखाया जाना था, परंतु जैसे ही यह शॉट शुरू होने
को था, सूरज की रोशनी व पैसे-दोनों ही खत्म हो गए। छह महीने बाद पैसे इकट्ठे करके बोडाल
गाँव पहुँचे तो पता चला कि वह कुत्ता मर गया था। फिर भूलो जैसा दिखने वाला कुत्ता पकड़ा
गया और उससे फिल्म की शूटिंग पूरी की गई। लेखक को आदमी के संदर्भ में भी यही समस्या
हुई। फिल्म में मिठाई बेचने वाला है-श्रीनिवास। अपू व दुर्गा के पास पैसे नहीं थे।
वे मुखर्जी के घर गए जो उससे मिठाई खरीदेंगे और बच्चे मिठाई खरीदते देखकर ही खुश होंगे।
पैसे के अभाव के कारण दृश्य का कुछ अंश चित्रित किया गया। बाद में वहाँ पहुँचे तो श्रीनिवास
का देहांत हो चुका था। किसी तरह उनके शरीर से मिलता-जुलता व्यक्ति मिला और उनकी पीठ
वाले दृश्य से शूटिंग पूरी की गई।
श्रीनिवास के सीन में भूलो
कुत्ते के कारण भी परेशानी हुई। एक खास सीन में दुर्गा व अपू को मिठाई वाले के पीछे
दौड़ना होता है तथा उसी समय झुरमुट में बैठे भूलो कुत्ते को भी छलाँग लगाकर दौड़ना
होता है। भूलो प्रशिक्षित नहीं था, अत: वह मालिक की आज्ञा को नहीं मान रहा था। अंत
में दुर्गा के हाथ में थोड़ी मिठाई छिपा कुत्ते को दिखाकर दौड़ने की योजना से शूटिंग
पूरी की गई।
बारिश के दृश्य चित्रित
करने में पैसे का अभाव परेशान करता था। बरसात में पैसे नहीं थे। अक्टूबर में बारिश
की संभावना कम थी। वे हर रोज देहात में बारिश का इंतजार करते। एक दिन शरद ऋतु में बादल
आए और धुआँधार बारिश हुई। दुर्गा व अप्पू ने बारिश में भीगने का सीन किया। ठंड से दोनों
काँप रहे थे, फिर उन्हें दूध में ब्रांडी मिलाकर पिलाई गई। बोडाल गाँव में अपू-दुर्गा
का घर, स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट आदि मिले। यहाँ उन्हें
कई तरह के विचित्र व्यक्ति भी मिले। सुबोध दा साठ वर्ष से अधिक के थे और झोंपड़ी में
अकेले रहकर बड़बड़ाते रहते थे। फिल्मवालों को देखकर उन्हें मारने की कहने लगे। बाद
में वे वायलिन पर लोकगीतों की धुनें बजाकर सुनाते थे। वे सनकी थे।
इसी तरह शूटिंग के साथ
वाले घर में एक धोबी था जो पागल था। वह किसी समय राजकीय मुद्दे पर भाषण देने लगता था।
शूटिंग के दौरान उसके भाषण साउंड के काम को प्रभावित करता था। पथेर पांचाली की शूटिंग
के लिए लिया गया घर खंडहर था। उसे ठीक करवाने में एक महीना लगा। इस घर के कई कमरों
में सामान रखा था तथा उन्हें फिल्म में नहीं दिखाया गया था। भूपेन बाबू एक कमरे में
रिकॉर्डिंग मशीन लेकर बैठते थे। वे साउंड के बारे में बताते थे। एक दिन जब उनसे साउंड
के बारे में पूछा गया तो आवाज नदारद थी। उनके कमरे से एक बड़ा साँप खिड़की से नीचे
उतर रहा था। उनकी बोलती बंद थी। लोगों ने उसे मारने से रोका, क्योंकि वह वास्तुसर्प
था जो बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।
NCERT SOLUTIONS
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 41-42)
पाठ के
साथ
प्रश्न 1 पथेर पांचाली
फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?
उत्तर- ‘पथेर पांचाली’
फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला। इसके कारण निम्नलिखित थे
i.
लेखक को पैसे का अभाव था। पैसे इकट्ठे होने पर ही वह शूटिंग करता था।
ii.
वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था। इसलिए काम से फुर्सत होने पर ही लेखक तथा
अन्य कलाकार फिल्म का काम करते थे।
iii.
तकनीक के पिछड़ेपन के कारण पात्र, स्थान, दृश्य आदि की समस्याएँ आ जाती थीं।
प्रश्न 2 अब अगर हम उस
जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें
से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती-इस कथन के पीछे क्या भाव है?
उत्तर- इसके पीछे भाव यह
है कि कोई भी फिल्म हमें तभी प्रभावित कर पाती है जब उसमें निरंतरता हो। यदि एक दृश्य
में ही एकरूपता नहीं होती तो फिल्म कैसे चल पाती। दर्शक भ्रमित हो जाता है। पथेर पांचाली
फ़िल्म में काशफूलों के साथ शूटिंग पूरी करनी थी, परंतु एक सप्ताह के अंतराल में पशु
उन्हें खा गए। अत: उसी पृष्ठभूमि में दृश्य चित्रित करने के लिए एक वर्ष तक इंतजार
करना पड़ा। यदि यह आधा दृश्य काशफूलों के बिना चित्रित किया जाता तो दृश्य में निरंतरता
नहीं बन पाती।
प्रश्न 3 किन दो दृश्यों
में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
उत्तर- प्रथम दृश्य-इस
दृश्य में ‘भूलो’ नामक कुत्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में डाले गए भात को खाते हुए
चित्रित करना था, परंतु सूर्य के अस्त होने तथा पैसे खत्म होने के कारण यह दृश्य चित्रित
न हो सका। छह महीने बाद लेखक पुन: उस स्थान पर गया तब तक उस कुत्ते की मौत हो चुकी
थी। काफी प्रयास के बाद उससे मिलता-जुलता कुत्ता मिला और उसी से भात खाते हुए दृश्य
को फ़िल्माया गया। यह दृश्य इतना स्वाभाविक था कि कोई भी दर्शक उसे पहचान नहीं पाया।
दूसरा दृश्य-इस दृश्य में
श्रीनिवास नामक व्यक्ति मिठाई वाले की भूमिका निभा रहा था। बीच में शूटिंग रोकनी पड़ी।
दोबारा उस स्थान पर जाने से पता चला कि उस व्यक्ति का देहांत हो गया है, फिर लेखक ने
उससे मिलते-जुलते व्यक्ति को लेकर बाकी दृश्य फ़िल्माया। पहला श्रीनिवास बाँस वन से
बाहर आता है और दूसरा श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर
जाता है। इस प्रकार इस दृश्य में दर्शक अलग-अलग कलाकारों की पहचान नहीं पाते।
प्रश्न 4 ‘भूलो’ की जगह
दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया?
उत्तर- भूलो की मृत्यु
हो गई थी, इस कारण उससे मिलता-जुलता कुत्ता लाया गया। फ़िल्म का दृश्य इस प्रकार था
कि अप्पू की माँ उसे भात खिला रही थी। अपू तीर-कमान से खेलने के लिए उतावला है। भात
खाते-खाते वह तीर छोड़ता है तथा उसे लाने के लिए भाग जाता है। माँ भी उसके पीछे दौड़ती
है। भूलो कुत्ता वहीं खड़ा सब कुछ देख रहा है। उसका ध्यान भात की थाली की ओर है। यहाँ
तक का दृश्य पहले भूलो कुत्ते पर फ़िल्माया गया था। इसके बाद के दृश्य में अपू की माँ
बचा हुआ भात गमले में डाल देती है और भूलो वह भात खा जाता है। यह दृश्य दूसरे कुत्ते
से पूरा किया गया।
प्रश्न 5 फिल्म में श्रीनिवास
की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार
फिल्माया गया?
उत्तर- फिल्म में श्रीनिवास
की भूमिका मिठाई बेचने वाले की थी। उसके देहांत के बाद उसकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति
ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फ़िल्मकार
ने तरकीब लगाई। नया – आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आता
है, अत: कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।
प्रश्न 6 बारिश का दृश्य
चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर- फ़िल्मकार के पास
पैसे का अभाव था, अत: बारिश के दिनों में शूटिंग नहीं कर सके। अक्टूबर माह तक उनके
पास पैसे इकट्ठे हुए तो बरसात के दिन समाप्त हो चुके थे। शरद ऋतु में बारिश होना भाग्य
पर निर्भर था। लेखक हर रोज अपनी टीम के साथ गाँव में जाकर बैठे रहते और बादलों की ओर
टकटकी लगाकर देखते रहते। एक दिन उनकी इच्छा पूरी हो गई। अचानक बादल छा गए और धुआँधार
बारिश होने लगी। फिल्मकार ने इस बारिश का पूरा फायदा उठाया और दुर्गा और अपू का बारिश
में भीगने वाला दृश्य शूट कर लिया। इस बरसात में भीगने से दोनों बच्चों को ठंड लग गई,
परंतु दृश्य पूरा हो गया।
प्रश्न 7 किसी फिल्म की
शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबदध
कीजिए।
उत्तर- किसी फ़िल्म की
शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है-
i.
धन की कमी।
ii.
कलाकारों का चयन।
iii.
कलाकारों के स्वास्थ्य, मृत्यु आदि की स्थिति।
iv.
पशु-पात्रों के दृश्य की समस्या।
v.
बाहरी दृश्यों हेतु लोकेशन ढूँढ़ना।
vi.
प्राकृतिक दृश्यों के लिए मौसम पर निर्भरता।
vii.
स्थानीय लोगो का हस्तक्षेप व असहयोग।
viii.
संगीत।
ix.
दृश्यों की निरंतरता हेतु भटकना।
पाठ के
आस-पास
प्रश्न 1 तीन प्रसंगों
में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ की हैं कि दशक पहचान नहीं पाते कि… या फिल्म देखते
हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि. इत्यादि। ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और
इस पर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फिल्म को देखते समय कैसे छिप जाती
है।
उत्तर- फ़िल्म शूटिंग के
समय तीन प्रसंग प्रमुख हैं-
i.
भूलो कुत्ते के स्थान पर दूसरे कुत्ते को भूलो बनाकर प्रस्तुत किया गया।
ii.
एक रेलगाड़ी के दृश्य को तीन रेलगाड़ियों से पूरा किया गया ताकि धुआँ उठने का
दृश्य चित्रित किया जा सके। यह दृश्य काफी बड़ा था।
iii.
श्रीनिवास का पात्र निभाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। अत: उसके स्थान
पर मिलती-जुलती कद-काठी वाले व्यक्ति से मिठाई वाला दृश्य पूरा करवाया गया। हालाँकि
उसकी पीठ दिखाकर काम चलाया गया।
शूटिंग के समय अनेक तरह की दिक्कतें आती हैं, परंतु निरंतरता बनाए रखने के लिए
बनावटी दृश्य डालने पड़ते हैं। दर्शक फ़िल्म के आनंद में डूबा होता है, अत: उसे छोटी-छोटी
बारीकियों का पता नहीं चल पाता।
प्रश्न 2 मान लीजिए कि
आपको अपने विदयालय पर एक डॉक्यूमैंट्री फिल्म बनानी है। इस तरह की फिल्म में आप किस
तरह के दृश्यों को चित्रित करेंगे? फिल्म बनाने से पहले और बनाते समय किन बातों पर
ध्यान देंगे?
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं
करें।
प्रश्न 3 पथेर पांचाली
फ़िल्म में इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई
साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो
जाती तो सत्यजित राय क्या करते? चर्चा करें।
उत्तर- यदि इंदिरा ठाकरुन
की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी की मृत्यु हो जाती तो सत्यजित
राय उससे मिलती-जुलती शक्ल की वृद्धा को ढूँढ़ते। यदि वह संभव नहीं हो पाता तो संकेतों
के माध्यम से इस फिल्म में उसकी मृत्यु दिखाई जाती। कहानी में बदलाव किया जा सकता था।
प्रश्न 4 पठित पाठ के आधार
पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते
हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं?
उत्तर- यह बात पूर्णतया
उचित है कि फ़िल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम
के रूप में नहीं। वे फिल्मों के दृश्यों के संयोजन में कोई लापरवाही नहीं बरतते। वे
दृश्य को पूरा करने के लिए समय का इंतजार करते हैं। काशफूल वाले दृश्य में उन्होंने
साल भर इंतजार किया। पैसे की तंगी के कारण वे परेशान हुए, परंतु उन्होंने किसी से पैसा
नहीं माँगा। वे स्टूडियो के दृश्य की बजाय प्राकृतिक दृश्य फिल्माते थे। वे कला को
साधन मानते थे।
भाषा की
बात
प्रश्न 1 पाठ में कई स्थानों
पर तत्सम, तदभव, क्षेत्रीय सभी प्रकार के शब्द एक साथ सहज भाव से आए हैं। ऐसी भाषा
का प्रयोग करते हुए अपनी प्रिय फिल्म पर एक अनुच्छेद लिखें।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं
करें।
प्रश्न 2 हर क्षेत्र में
कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है। जैसे
अपू के साथ ढाई साल पाठ में फिल्म से जुड़े शब्द शूटिंग, शॉट, सीन आदि। फिल्म से जुड़ी
शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए।
उत्तर- ग्लैमर, लाइट्स,
सीन, रिकार्डिंग, कैमरा, फिल्म, हॉलीवुड, कट, अभिनेता, एक्शन, डबिंग, रोल।
प्रश्न 3 नीचे दिए गए शब्दों
के पर्याय इस पाठ में ढूँढ़िए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन,
वृष्टि, जमा
उत्तर-
i.
इश्तहार-विज्ञापन-आजकल अभिनेता व खिलाड़ी विज्ञापनों में छाए रहते हैं।
ii.
खुशकिस्मती-सौभाग्य-यह मेरा सौभाग्य है कि आप हमारे घर पधारे।
iii.
सीन-दृश्य-वाह! क्या दृश्य है।
iv.
वृष्टि-बारिश-मुंबई की बारिश ने प्रशासन की पोल खोल दी।
v. जमा-इकट्ठा-सामान इकट्ठा कर ली, कल हरिद्वार जाना है।