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अध्याय-4: विदाई-संभाषण
सारांश
vidai sambhashan Summary
विदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वोत्तम उपयोग करना था। कर्जन ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वे सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता पर उन्होंने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें देश-विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गए।
लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्जन जैसा वायसराय। यह निबंध उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना है।
लेखक कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि आखिरकार आपके शासन का अंत हो ही गया, अन्यथा आप तो यहाँ के स्थाई वायसराय बनने की इच्छा रखते थे। इतनी जल्दी देश को छोड़ने की बात आपको व देशवासियों को पता नहीं थी। इससे ईश्वर-इच्छा का पता चलता है। आपके दूसरी बार आने पर भारतवासी प्रसन्न नहीं थे। वे आपके जाने की प्रतीक्षा करते थे, परंतु आपके जाने से लोग दु:खी हैं। बिछड़न का समय पवित्र, निर्मल व कोमल होता है। यह करुणा पैदा करने वाला होता है। भारत में तो पशु-पक्षी भी ऐसे समय उदास हो जाते हैं। शिवशंभु की दो गाएँ थीं। बलशाली गाय कमजोर को टक्कर मारती रहती थी। एक दिन बलशाली गाय को पुरोहित को दान दे दिया गया, परंतु उसके जाने के बाद कमजोर गाय प्रसन्न नहीं रही। उसने चारा भी नहीं खाया। यहाँ पशु ऐसे हैं तो मानव की दशा का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।
इस देश में पहले भी अनेक शासक आए और चले गए। यह परंपरा है, परंतु आपका शासनकाल दु:खों से भरा था। कर्जन ने सारा राजकाज सुखांत समझकर किया था, उसका अंत दु:ख में हुआ। वास्तव में लीलामय की लीला का किसी को पता नहीं चलता। दूसरी बार आने पर आपने ऐसे कार्य करने की सोची थी जिससे आगे के शासकों को परेशानी न हो, परंतु सब कुछ उलट गया। आप स्वयं बेचैन रहे और देश में अशांति फैला दी। आने वाले शासकों को परेशान रहना पड़ेगा। आपने स्वयं भी कष्ट सहे और जनता को भी कष्ट दिए।
लेखक कहता है कि आपका स्थान पहले बहुत ऊँचा था। आज आपकी दशा बहुत खराब है। दिल्ली दरबार में ईश्वर और एडवर्ड के बाद आपका सर्वोच्च स्थान था। आपकी कुर्सी सोने की थी। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे व ऊँचा था, परंतु जंगी लाट के मुकाबले में आपको नीचा देखना पड़ा। आप धीर व गंभीर थे, परंतु कौंसिल में गैरकानूनी कानून पास करके और कनवोकेशन में अनुचित भाषण देकर अपनी धीरता का दिवाला निकाल दिया। आपके इस्तीफे की धमकी को स्वीकार कर लिया गया। आपके इशारों पर राजा, महाराजा, अफसर नाचते थे, परंतु इस इशारे में देश की शिक्षा और स्वाधीनता समाप्त हो गई। आपने देश में बंगाल विभाजन किया, परंतु आप अपनी मजी से एक फौजी को इच्छित पद पर नहीं बैठा सके। अत: आपको इस्तीफा देना पड़ा।
लेखक कहता है कि आपका मनमाना शासन लोगों को याद रहेगा। आप ऊँचे चढ़कर गिरे हैं, परंतु गिरकर पड़े रहना अधिक दुखी करता है। ऐसे समय में व्यक्ति स्वयं से घृणा करने लगता है। आपने कभी प्रजा के हित की नहीं सोची। आपने आँख बंदकर हुक्म चलाए और किसी की नहीं सुनी। यह शासन का तरीका नहीं है। आपने हर काम अपनी जिद से पूरे किए। कैसर और जार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुनते थे। आपने कभी प्रजा को अपने समीप ही नहीं आने दिया। नादिरशाह ने भी आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर कत्लेआम रोक दिया था, परंतु आपने आठ करोड़ जनता की प्रार्थना पर बंग-भंग रद्द करने का फैसला नहीं लिया। अब आपका जाना निश्चित है, परंतु आप बंग-भंग करके अपनी जिद पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में प्रजा कहाँ जाकर अपना दु:ख जताए।
यहाँ की जनता ने आपकी जिद का फल देख लिया। जिद ने जनता को दु:खी किया, साथ ही आपको भी जिसके कारण आपको भी पद छोड़ना पड़ा। भारत की जनता दु:ख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। उन्हें भगवान पर विश्वास है। वे दु:ख सहकर भी पराधीनता का कष्ट झेल रहे हैं। आप ऐसी जनता की श्रद्धा-भक्ति नहीं जीत सके।
कर्जन अनपढ़ प्रजा का नाम एकाध बार लेते थे। यह जनता नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाती है। यह राजकुमार संकट में नरवरगढ़ नामक स्थान पर कई साल रहा। उसने चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद तक काम किया। जाते समय उसने नगर का अभिवादन किया कि वह यहाँ की जनता, भूमि का अहसान नहीं चुका सकता। अगर उससे सेवा में कोई भूल न हुई हो तो उसे प्रसन्न होकर जाने की इजाजत दें। जनता आज भी उसे याद करती है। आप इस देश के पढ़े-लिखों को देख नहीं सकते।
लेखक कर्जन को कहता है कि राजकुमार की तरह आपका विदाई-संभाषण भी ऐसा हो सकता है जिसमें आप-अपने स्वार्थी स्वभाव व धूर्तता का उल्लेख करें और भारत की भोली जनता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कह सकेंगे कि आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त कर। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे। आपकी इस बात पर देश आपके पिछले कार्यों को भूल सकता है, परंतु आप में इतनी उदारता कहाँ?
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 11 HINDI AAROH CHAPTER 4
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 51-53)
vidai sambhashan class 11 question answer
प्रश्न. 1 शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर- लेखक ने शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से बताया है कि भारत में मनुष्य तो मनुष्य, पशुओं में भी अपने साथ रहने वालों के प्रति लगाव होता है। वे स्वयं को दुख पहुँचाने वाले व्यक्ति के बिछुड़ने पर भी दुखी होते हैं। यहाँ भावनाएँ प्रधान होती हैं। शिवशंभु की मारने वाली गाय के जाने पर दुर्बल गाय ने चारा नहीं खाया। यहाँ बिछुड़ते समय वैर-भाव को भुला दिया जाता है। विदाई का समय करुणा उत्पन्न करने वाला होता है।
प्रश्न. 2 आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया-यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर- लेखक ने बंगाल के विभाजन की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लार्ड कर्जन दो बार भारत के वायसराय बने। उन्होंने भारत में ब्रिटिश राज की मजबूती के लिए कार्य किया। भारत में राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए उसने बंगाल का विभाजन किया। करोड़ों लोगों ने उनसे यह विभाजन रद्द करने के लिए प्रार्थना की, परंतु उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी। वे नादिरशाह से भी आगे निकल गए।
प्रश्न. 3 कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?
उत्तर- कज़न द्वारा इस्तीफा देने के निम्नलिखित करण थे-
i. कर्ज़न ने बंगाल विभाजन लागू किया। इसके विरोध में सारा देश खड़ा हो गया। कर्ज़न द्वारा राष्ट्रीय ताकतों को खत्म करने का प्रयास विफल हो गया, उलटे ब्रिटिश शासन की जड़ें हिल गई।
ii. कर्ज़न इंग्लैंड में एक फौजी अफसर को इच्छित पद पर नियुक्त करवाना चाहता था। उसकी सिफारिश को नहीं माना गया। उसने इस्तीफे की धमकी से काम करवाना चाहा, परंतु ब्रिटिश सरकार ने उसका इस्तीफा ही मंजूर कर लिया।
प्रश्न. 4 विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे। – आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- यह कथन लेखक द्वारा लार्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहा गया है। उस समय जबकि कौंसिल में मनपसंद सदस्यों की नियुक्ति करवाने के मुद्दे पर लॉर्ड को अपमानित होना पड़ा था, लेखक याद दिला रहे हैं कि आपको भारत में बादशाह के बराबर सोने की कुरसी मिली, आपको सबसे ऊँचा ओहदा मिला। आपकी सवारी सबसे ऊँची निकलती थी और कैसी विडंबना है कि आज आप न इंग्लैंड में मान पा सके, न ही भारत में उस पद पर रह सके। कहने का तात्पर्य यह है कि जिनका हुक्म बजाने के लिए आप भारतीय जनता का शोषण करते रहे, आज उन्होंने ही आपको ठुकरा दिया। आपका मान-सम्मान सब मिट्टी में मिल गया। लेखक चाहता है कि कर्जन सोचकर देखे कि अकारण हमारे हितों को कुचलकर हमारे देश को काटकर आज उसे क्या हासिल हुआ?
प्रश्न. 5 आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है-यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?
उत्तर- यहाँ ‘तीसरी शक्ति’ से अभिप्राय ब्रिटिश शासकों से है। इंग्लैंड में रानी विक्टोरिया का राज था। उन्हीं के आदेशों का पालन वायसराय करता था। वह ब्रिटिश हितों की रक्षा करता था। कर्ज़न की नियुक्ति भी इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई थी। जब ब्रिटिश शासकों को लगा कि कर्ज़न ब्रिटिश शासकों के हित नहीं बचा पा रहा तो उन्होंने उसे हटा दिया। उस समय कज़न को भारत छोड़ने की आशा नहीं थी।
पाठ के आसपास
प्रश्न. 1 पाठ का यह अंश ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुन्द गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?
उत्तर- ‘शिवशंभु’ एक काल्पनिक पात्र है जो भाँग के नशे में डूबा रहता है तथा खरी-खरी बात कहता है। यह पात्र अंग्रेजों की कुनीतियों का पर्दाफाश करता है। लेखक ने इस नाम का उपयोग सरकारी कानून के कारण किया। कर्ज़न ने प्रेस की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। वह निरंकुश शासक था। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य से सीधी टक्कर लेने के हालात नहीं थे, परंतु शासन की पोल खोलकर जनता को जागरूक भी करना था। अत: काल्पनिक पात्रों के जरिए अपनी इच्छानुसार बातें कहलवाई जाती थीं।
प्रश्न. 2 नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है-कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर- कर्जन के संदर्भ में यह बात बिलकुल सही है। नादिरशाह निरंकुश शासक था। जरा-सी बात पर उसने दिल्ली में कत्लेआम करवाया, परंतु आसिफ जाह ने गले में तलवार डालकर उसके आगे समर्पण कर कत्लेआम रोकने की प्रार्थना की तो तुरंत उसे रोक दिया गया। कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया। आठ करोड़ भारतीयों ने बार-बार विनती की, परंतु उसने जिद नहीं छोड़ी। इस संदर्भ में कर्जन की जिद नादिरशाह से बड़ी है। उसने जनहित की उपेक्षा की।
प्रश्न. 3 क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? – इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन क्या है? इस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर- शासन का अर्थ हैं-सुव्यवस्था या प्रबंध। यह प्रबंध जनता के हितों के अनुसार होना चाहिए। कोई भी शासक अपनी इच्छा से शासन नही कर सकता। जिद्दी शासक के कारण जनता दुखी रहती है और उसके खिलाफ खड़ी हो जाती है। शासक को सभी वर्गों के अनुसार काम करना होता है। प्रजा को अपनी बात कहने का हक होता है। यदि शासन में कोई परिवर्तन करना भी हो तो उसमें प्रजा की सहमति होनी चाहिए।
प्रश्न. 4 इस पाठ में आए अलिफ़ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफ़ा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर- परीक्षोपयोगी नहीं। गौर करने की बात
i. इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासनकाल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा।
ii. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को । पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए।
भाषा की बात
प्रश्न. 1 वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्दी श्रीमान् यहाँ से पधारें। सामान्य तौर पर आने के लिए पधारें शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ पधारें शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर- यहाँ ‘पधारें’ शब्द का अर्थ है- चले जाएँ।
प्रश्न. 2 पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग ( भारतेंदु युगीन हिंदी ) हुआ है। उन्हें सामान्य हिंदी में लिखिए –
i. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत को उनको जाना पड़ा।
ii. आप किस को आए थे और क्या कर चले?
iii. उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा।
iv. पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करे।
उत्तर-
i. पहले भी इस देश में जो प्रधान शासक हुए, अंत में उन्हें जाना पड़ा।
ii. आप किसलिए आए थे और क्या करके चले?
iii. उनके रखवाने से एक आदमी नौकर न रखा गया।
iv. पर आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे।
नोट –
· कैसर-रोमन तानाशाह जूलियस सीज़र के नाम से बना शब्द जो तानाशाह जर्मन शासकों (962 से 1876 तक) के लिए प्रयोग होता था।
· ज़ार-यह भी जूलियस सीज़र से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था।
· नादिरशाह (1688-1747)-1736 से 1747 तक ईरान के शाह रहे। अपने तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ़ परशिया’ के नाम से भी जाने जाते थे। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने ही आक्रमण के लिए भेजा था।