समास: समास की परिभाषा, प्रकार और समास के उदहारण कक्षा 6

Welcome to Witknowlearn, your trusted guide for mastering Class 6 Hindi Grammar! Our Hindi Vyakarana Class 6 course is specially designed to make learning fun and easy. Are you struggling with concepts like समास (Samas) and its types (samas ke prakar)? Worry not, because we've got you covered.

Our interactive lessons and engaging activities make understanding Hindi grammar a breeze. From the basics to the complexities of समास in Class 6 Hindi, we ensure that every aspect of Hindi Vyakarana is comprehensively covered. Join our community of learners and unlock the door to excellence in Hindi grammar for Class 6. With Witknowlearn, you're not just learning, you're enjoying the journey of knowledge. Let's embark on this educational adventure together and make Hindi grammar your strength!

समास - Samas

आपस में संबंध रखने वाले जब दो या दो से अधिक शब्दों के बीच में से विभक्ति हटाकर उन दोनों शब्दों को मिलाया जाता है तब इस मेल को समास कहते हैं।

दो या दो से अधिक शब्द मिलकर जब एक नया उस से मिलता जुलता शब्द का निर्माण करते हैं वह समास कहलाता है। समास शब्द ‘सम्’ (पूर्ण रूप से) एवं ‘आस’ (शब्द) से मिलकर बना होता है। जिसका अर्थ होता है विस्तार से कहना। और इसी के अंतर्गत समास के नियमों से बना शब्द सामासिक पद या समस्त पद कहलाता है। जैसे – देश भक्ति, चौराहा, महात्मा, रसोईघर।

समास की परिभाषा – Samas ki paribhasha

समास का संक्षिप्त तात्पर्य है – “संछिप्तीकरण”। इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समास कहलाता है।

उदाहरण:

1.   हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी

2.   रसोई के लिए घर = रसोईघर

3.   नील और कमल = नीलकमल

सामासिक शब्द

समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।

उदाहरण: नीलकमल

समास विग्रह

सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किय जाते हैं उसे समास-विग्रह कहते हैं।

उदाहरण:– माता-पिता = माता और पिता।

समास के भेद - Samas ke bhed

समास के मुख्यतः छह प्रकार या भेद होते हैं जो निम्नलिखित इस प्रकार है–

1.   अव्ययीभाव समास

2.   तत्पुरुष समास

3.   कर्मधारय समास

4.   द्विगु समास

5.   द्वन्द समास

6.   बहुव्रीहि समास

अव्ययीभाव समास

अव्ययीभाव समास में प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।

दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।

अव्ययीभाव समास के उदाहरण

·       प्रतिदिन = प्रत्येक दिन

·       घर-घर = प्रत्येक घर

·       रातों रात = रात ही रात में

·       प्रतिवर्ष =हर वर्ष

·       आजन्म = जन्म से लेकर

·       यथासाध्य = जितना साधा जा सके

·       धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ

·       आमरण = म्रत्यु तक

·       यथाकाम = इच्छानुसार

·       यथास्थान = स्थान के अनुसार

·       अभूतपूर्व = जो पहले नहीं हुआ

·       निर्भय = बिना भय के

·       निर्विवाद = बिना विवाद के

·       निर्विकार = बिना विकार के

·       प्रतिपल = हर पल

·       अनुकूल = मन के अनुसार

·       अनुरूप = रूप के अनुसार

·       यथासमय = समय के अनुसार

·       यथाशीघ्र = शीघ्रता से

·       अकारण = बिना कारण के

·       यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार

·       यथाविधि = विधि के अनुसार

·       भरपेट = पेट भरकर

·       हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में

·       बेशक = शक के बिना

तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य-विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       राजा का कुमार = राजकुमार

·       धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ

·       रचना करने वाला = रचनाकार

·       राजा का पुत्र = राजपुत्र

·       शर से आहत = शराहत

·       राह के लिए खर्च = राहखर्च

·       तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत

·       राजा का महल = राजमहल

तत्पुरुष समास के भेद

वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद तथा द्वतीय पद दोनों भिन्न-भिन्न विभक्तियों में हो, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। उदाहरणतया- राज्ञ: पुरुष: – राजपुरुष: में प्रथम पद राज्ञ: षष्ठी विभक्ति में है तथा द्वतीय पद पुरुष: में प्रथमा विभक्ति है। इस प्रकार दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ होने से व्यधिकरण तत्पुरुष समास हुआ।

इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं :-

1.   कर्म तत्पुरुष समास

2.   करण तत्पुरुष समास

3.   सम्प्रदान तत्पुरुष समास

4.   अपादान तत्पुरुष समास

5.   सम्बन्ध तत्पुरुष समास

6.   अधिकरण तत्पुरुष समास

1.   कर्म तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। ‘को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।

कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ

·       माखनचोर =माखन को चुराने वाला

·       वनगमन =वन को गमन

·       मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला

·       स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त

·       देशगत = देश को गया हुआ

·       जनप्रिय = जन को प्रिय

·       मरणासन्न = मरण को आसन्न

·       गिरहकट = गिरह को काटने वाला

·       कुंभकार = कुंभ को बनाने वाला

·       गृहागत = गृह को आगत

·       कठफोड़वा = कांठ को फोड़ने वाला

·       शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला

·       गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला

·       मनोहर = मन को हरने वाला

2.   करण तत्पुरुष समास

जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के द्वारा’ और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।

करण तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       मनचाहा = मन से चाहा

·       शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त

·       भुखमरी = भूख से मरी

·       धनहीन = धन से हीन

·       बाणाहत = बाण से आहत

·       ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त

·       मदांध = मद से अँधा

·       रसभरा = रस से भरा

·       आचारकुशल = आचार से कुशल

·       भयाकुल = भय से आकुल

·       आँखोंदेखी = आँखों से देखी

·       तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित

·       रोगातुर = रोग से आतुर

·       पर्णकुटीर = पर्ण से बनी कुटीर

·       कर्मवीर = कर्म से वीर

·       रक्तरंजित = रक्त से रंजित

·       जलाभिषेक = जल से अभिषेक

·       रोगग्रस्त = रोग से ग्रस्त

3.   सम्प्रदान तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के लिए’ होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।

सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       विद्यालय = विद्या के लिए आलय

·       रसोईघर = रसोई के लिए घर

·       सभाभवन = सभा के लिए भवन

·       विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह

·       गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा

·       प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला

·       देशभक्ति = देश के लिए भक्ति

·       स्नानघर = स्नान के लिए घर

·       सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह

·       यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला

·       डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी

·       देवालय = देव के लिए आलय

·       गौशाला = गौ के लिए शाला

·       युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि

·       हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी

·       धर्मशाला = धर्म के लिए शाला

·       पुस्तकालय = पुस्तक के लिए आलय

·       राहखर्च = राह के लिए खर्च

·       परीक्षा भवन = परीक्षा के लिए भवन

4.   अपादान तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।

अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       कामचोर = काम से जी चुराने वाला

·       दूरागत = दूर से आगत

·       रणविमुख = रण से विमुख

·       नेत्रहीन = नेत्र से हीन

·       पापमुक्त = पाप से मुक्त

·       देशनिकाला = देश से निकाला

·       पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट

·       पदच्युत = पद से च्युत

·       जन्मरोगी = जन्म से रोगी

·       रोगमुक्त = रोग से मुक्त

·       जन्मांध = जन्म से अँधा

·       कर्महीन = कर्म से हीन

·       वनरहित = वन से रहित

·       अन्नहीन = अन्न से हीन

·       जलहीन = जल से हीन

·       गुणहीन = गुण से हीन

·       फलहीन = फल से हीन

·       भयभीत = भय से डरा हुआ

5.   सम्बन्ध तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।

सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       गंगाजल = गंगा का जल

·       लोकतंत्र = लोक का तंत्र

·       दुर्वादल = दुर्व का दल

·       देवपूजा = देव की पूजा

·       आमवृक्ष = आम का वृक्ष

·       राजकुमारी = राज की कुमारी

·       जलधारा = जल की धारा

·       राजनीति = राजा की नीति

·       सुखयोग = सुख का योग

·       मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा

·       श्रधकण = श्रधा के कण

·       शिवालय = शिव का आलय

·       देशरक्षा = देश की रक्षा

·       सीमारेखा = सीमा की रेखा

·       जलयान = जल का यान

·       कार्यकर्ता = कार्य का करता

·       सेनापति = सेना का पति

·       कन्यादान = कन्या का दान

·       गृहस्वामी = गृह का स्वामी

·       पराधीन – पर के अधीन

6.   अधिकरण तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘में’, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति

·       आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास

·       दीनदयाल = दीनों पर दयाल

·       दानवीर = दान देने में वीर

·       आचारनिपुण = आचार में निपुण

·       जलमग्न = जल में मग्न

·       सिरदर्द = सिर में दर्द

·       क्लाकुशल = कला में कुशल

·       शरणागत = शरण में आगत

·       आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न

·       आपबीती = आप पर बीती

·       नगरवास = नगर में वास

·       रणधीर = रण में धीर

·       क्षणभंगुर = क्षण में भंगुर

·       पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम

·       लोकप्रिय = लोक में प्रिय

·       गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश

·       युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर

·       शोकमग्न = शोक में मग्न

तत्पुरुष समास के उपभेद

1.   नञ् तत्पुरुष समास

2.   उपपद तत्पुरुष समास

3.   लुप्तपद तत्पुरुष समास

उपपद तत्पुरुष समास

ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा इत्यादि ।

लुप्तपद तत्पुरुष समास

जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है ।जैसे –

·       दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा

·       ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी

·       पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि ।

नञ तत्पुरुष समास

इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।

नञ तत्पुरुष समास के उदाहरण

·       असभ्य =न सभ्य

·       अनादि =न आदि

·       असंभव =न संभव

·       अनंत = न अंत

कर्मधारय समास

कर्मधारय समास का उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास में विशेषण-विशेष्य और उपमेय-उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

कर्मधारय समास के उदाहरण

·       नीलगगन = नीला है जो गगन

·       चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख

·       पीताम्बर = पीत है जो अम्बर

·       महात्मा = महान है जो आत्मा

·       लालमणि = लाल है जो मणि

·       महादेव = महान है जो देव

·       देहलता = देह रूपी लता

·       नवयुवक = नव है जो युवक

·       अधमरा = आधा है जो मरा

·       प्राणप्रिय = प्राणों से प्रिय

·       श्यामसुंदर = श्याम जो सुंदर है

·       नीलकंठ = नीला है जो कंठ

·       महापुरुष = महान है जो पुरुष

·       नरसिंह = नर में सिंह के समान

·       कनकलता = कनक की सी लता

·       नीलकमल = नीला है जो कमल

·       परमानन्द = परम है जो आनंद

कर्मधारय समास के भेद

1.   विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास

2.   विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास

3.   विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास

4.   विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

1.   विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास :-

जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है।

जैसे :-

·       नीलीगाय = नीलगाय

·       पीत अम्बर = पीताम्बर

·       प्रिय सखा = प्रियसखा

2.   विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास :-

इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।

जैसे :- कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा

3.   विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास :-

इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।

जैसे :- नील – पीत, सुनी – अनसुनी, कहनी – अनकहनी

4.   विशेष्योभयपद कर्मधारय समास :-

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।

जैसे :- आमगाछ, वायस-दम्पति।

कर्मधारय समास के उपभेद

1.   उपमानकर्मधारय समास

2.   उपमितकर्मधारय समास

3.   रूपककर्मधारय समास

1.   उपमानकर्मधारय समास :-

इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद, चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति, वचन और लिंग के होते हैं, इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला

2.   उपमितकर्मधारय समास :-

यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं।

जैसे :- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव, नर सिंह के समान = नरसिंह।

3.   रूपककर्मधारय समास :-

जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है।

जैसे :- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।

द्विगु समास

इस समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं। इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।

द्विगु समास के उदाहरण

·       दोपहर = दो पहरों का समाहार

·       त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह

·       पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह

·       त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार

·       शताब्दी = सौ अब्दों का समूह

·       पंसेरी = पांच सेरों का समूह

·       सतसई = सात सौ पदों का समूह

·       चौगुनी = चार गुनी

·       त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार

·       चौमासा = चार मासों का समूह

·       नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह

·       अठन्नी = आठ आनों का समूह

·       सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह

·       त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार

·       सप्ताह = सात दिनों का समूह

द्विगु समास के भेद

1.   समाहारद्विगु समास

2.   उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

1.   समाहारद्विगु समास

समाहार का मतलब होता है समुदाय, इकट्ठा होना, समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।

जैसे :-

·       तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक

·       पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी

·       तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन

2.   उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।

1.   बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में।

जैसे :-

·       दो माँ का =दुमाता

·       दो सूतों के मेल का = दुसूती।

2.   जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।

जैसे :-

पांच प्रमाण = पंचप्रमाण

पांच हत्थड = पंचहत्थड

द्वंद्व समास

द्वंद्व समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।

द्वन्द समास उदाहरण

·       पाप-पुण्य = पाप और पुण्य

·       राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण

·       अन्न-जल = अन्न और जल

·       नर-नारी = नर और नारी

·       गुण-दोष = गुण और दोष

·       देश-विदेश = देश और विदेश

·       अमीर-गरीब = अमीर और गरीब

·       नदी-नाले = नदी और नाले

·       धन-दौलत = धन और दौलत

·       सुख-दुःख = सुख और दुःख

·       आगे-पीछे = आगे और पीछे

·       ऊँच-नीच = ऊँच और नीच

·       आग-पानी = आग और पानी

·       मार-पीट = मारपीट

·       राजा-प्रजा = राजा और प्रजा

·       ठंडा-गर्म = ठंडा या गर्म

·       माता-पिता = माता और पिता

·       दिन-रात = दिन और रात

द्वन्द्व समास के भेद

इतरेतरद्वंद्व समास

समाहारद्वंद्व समास

वैकल्पिकद्वंद्व समास

1.   इतरेतरद्वंद्व समास

वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।

जैसे :-

·       राम और कृष्ण = राम-कृष्ण

·       माँ और बाप = माँ-बाप

·       अमीर और गरीब = अमीर-गरीब

·       गाय और बैल = गाय-बैल

·       ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि

·       बेटा और बेटी = बेटा-बेटी

2.   समाहारद्वंद्व समास

समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं, तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।

जैसे :-

·       दालरोटी = दाल और रोटी

·       हाथपॉंव = हाथ और पॉंव

·       आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा

3.   वैकल्पिक द्वंद्व समास

इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या, अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।

जैसे :-

·       पाप-पुण्य = पाप या पुण्य

·       भला-बुरा = भला या बुरा

·       थोडा-बहुत = थोडा या बहुत

बहुब्रीहि समास

बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर “वाला , है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।

बहुव्रीहि समास के उदाहरण

·       त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)

·       नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव)

·       लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)

·       दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)

·       चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)

·       पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)

·       चक्रधर= चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)

·       वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)

·       स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)

·       सुलोचना = सुंदर हैं लोचन जिसके (मेघनाद की पत्नी)

·       दुरात्मा = बुरी आत्मा वाला (दुष्ट)

·       घनश्याम = घन के समान है जो (श्री कृष्ण)

·       मृत्युंजय = मृत्यु को जीतने वाला (शिव)

·       निशाचर = निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)

·       गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला (कृष्ण)

·       पंकज = पंक में जो पैदा हुआ (कमल)

·       त्रिलोचन = तीन है लोचन जिसके (शिव)

·       विषधर = विष को धारण करने वाला (सर्प)

बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद

1.   समानाधिकरण बहुब्रीहि समास

2.   व्यधिकरण बहुब्रीहि समास

3.   तुल्ययोग बहुब्रीहि समास

4.   व्यतिहार बहुब्रीहि समास

5.   प्रादी बहुब्रीहि समास

1.   समानाधिकरण बहुब्रीहि समास

इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

जैसे :-

·       प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क

·       जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ

·       दत्त है भोजन जिसके लिए = दत्तभोजन

·       निर्गत है धन जिससे = निर्धन

·       नेक है नाम जिसका = नेकनाम

·       सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा

2.    व्यधिकरण बहुब्रीहि समास

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।

जैसे :-

·       शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी

·       वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी

3.   तुल्ययोग बहुब्रीहि समास

जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।

इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।

जैसे :-

·       जो बल के साथ है = सबल

·       जो देह के साथ है = सदेह

·       जो परिवार के साथ है = सपरिवार

4.   व्यतिहार बहुब्रीहि समास

जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।

जैसे :-

·       मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की

·       बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती

5.    प्रादी बहुब्रीहि समास

जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।

जैसे :-

·       नहीं है रहम जिसमें = बेरहम

·       नहीं है जन जहाँ = निर्जन

समास और संधि में अंतर:

समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।

उदाहरण:– विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।

जबकि…..

संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।

उदाहरण:– पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।

द्विगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर:

द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।

जैसे –

·       चतुर्भुज -चार भुजाओं का समूह

·       चतुर्भुज -चार हैं भुजाएं जिसकी

कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर:

समास के कुछ उदहारण है जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं ,इन दोनों में अंतर होता है। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।

इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।

जैसे: – नीलकंठ = नीला कंठ और बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है।

जैसे- नीलकंठ = नील + कंठ

द्विगु और कर्मधारय समास में अंतर:

द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।

द्विगु का पहला पद्द ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है।

जैसे –

·       नवरात्र – नौ रात्रों का समूह

·       रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल

संयोगमूलक समास

संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है।

जैसे :-

माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।

आश्रयमूलक समास

आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण, विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है।

जैसे :- कच्चाकेला, शीशमहल, घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब, राजबहादुर।

वर्णनमूलक समास

इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं।s

जैसे :- यथाशक्ति, प्रतिमास, घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य।

IconDownload