काव्य की शोभा बढ़ाने वाले उपकरणों को अलंकार करते हैं। जैसे अलंकरण धारण
करने से शरीर की शोभा बढ़ जाती है, वैसे ही अलंकरण के प्रयोग से काव्य में चमक
उत्पन्न हो जाती है। संस्कृत आचार्य दंडी के अनुसार ‘अलंकार काव्य का शोभाकारक
धर्म है’ और आचार्य वामन के अनुसार ‘अलंकार ही सौंदर्य है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, “कथन की रोचक, सुंदर और प्रभावपूर्ण
प्रणाली अलंकार है। गुण और अलंकार में यह अंतर है की गुण सीधे रस का उत्कर्ष करते
हैं, अलंकार सीधे रस का उत्कर्ष नहीं करते हैं।
अलंकार की
परिभाषा –
अलंकार दो सब्दो से मिलकर बना है- ‘अलम’ और ‘कार’ | जहा ‘अलम’ का शाब्दिक
अर्थ है, आभूषण और ‘कार’ का अर्थ है धारण करना |
जिस प्रकार स्त्रिया अपने शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण को पहनती है
उसी प्रकार किसी भाषा या कविता को सुन्दर बनाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता
है |
दूसरे सब्दो में कहे तो जो ” शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार
कहते हैं।”
उदाहरण: “चारु चंद्र की चंचल
किरणें ”
अलंकार के
भेद -
1)शब्दालंकार
2)अर्थालंकार
3)उभयालंकार
1.शब्दालंकार
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता
है – शब्द + अलंकार। शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनी और अर्थ। ध्वनि के आधार पर
शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और
उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न
रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
शब्दालंकार के भेद
–
1.अनुप्रास अलंकार
2.यमक अलंकार
3.पुनरुक्ति अलंकार
4.विप्सा अलंकार
5.वक्रोक्ति अलंकार
6.शलेष अलंकार
1.अनुप्रास अलंकार –
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना
है – अनु + प्रास | यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार-बार और प्रास का अर्थ होता है, –
वर्ण। जब किसी वर्ण की बार – बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास
अलंकार कहते है।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण –
1)“मैया मोरी मैं नही माखन
खायो”
[यहाँ पर ‘म’ वर्ण की आवृत्ति बार बार
हो रही है।]
2)“चारु चंद्र की चंचल
किरणें”
[यहाँ पर ‘च’ वर्ण की आवृत्ति बार बार
हो रही है।]
3)“कन्हैया किसको कहेगा तू
मैया”
[यहाँ पर ‘क’ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है।]
अनुप्रास के
भेद –
1)छेकानुप्रास अलंकार
2)वृत्यानुप्रास अलंकार
3)लाटानुप्रास अलंकार
4)अन्त्यानुप्रास अलंकार
5)श्रुत्यानुप्रास अलंकार
1.छेकानुप्रास अलंकार :- जहाँ पर स्वरुप और क्रम
से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :-
रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।
2.वृत्यानुप्रास अलंकार:- जब एक व्यंजन की आवर्ती
अनेक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण :-
“चामर-सी, चन्दन – सी, चंद – सी,
चाँदनी चमेली चारु चंद-सुघर है।”
3.लाटानुप्रास
अलंकार :-
जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो तथा
प्रत्येक जगह पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये वहाँ लाटानुप्रास
अलंकार होता है। अथार्त जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवर्ती उसी अर्थ में हो वहाँ
लाटानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :–
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
4.अन्त्यानुप्रास अलंकार :– जहाँ अंत में तुक मिलती
हो वहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :-
“लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग?”
5.श्रुत्यानुप्रास अलंकार:- जहाँ पर कानों को मधुर
लगने वाले वर्णों की आवर्ती हो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है।
उदाहरण:–
“दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।”
2.यमक अलंकार –
यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर
बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है।
यमक अलंकार
के उदाहरण –
उदाहरण :-
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।
3.पुनरुक्ति
अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर
बना है – पुन: +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति
अलंकार होता है।
4.विप्सा
अलंकार
जब आदर, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक आदि
भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति को ही
विप्सा अलंकार कहते है।
उदाहरण :–
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।
5.वक्रोक्ति
अलंकार
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों
का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है।
वक्रोक्ति अलंकार के भेद :-
काकु वक्रोक्ति अलंकार
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
1.काकु वक्रोक्ति अलंकार:– जब वक्ता के द्वारा बोले
गये शब्दों का उसकी कंठ ध्वनी के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकाले वहाँ पर काकु
वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण :- मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
2.श्लेष वक्रोक्ति अलंकार :- जहाँ पर श्लेष की वजह से
वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाये वहाँ श्लेष वक्रोक्ति
अलंकार होता है।
उदाहरण :–
को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।
6.श्लेष अलंकार –
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर
उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
श्लेष
अलंकार के उदाहरण –
उदाहरण :–
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।
श्लेष अलंकार के भेद –
अभंग श्लेष अलंकार
सभंग श्लेष अलंकार
1.अभंग श्लेष अलंकार :- जिस अलंकार में शब्दों
को बिना तोड़े ही एक से अधिक या अनेक अर्थ निकलते हों वहां पर अभंग श्लेष अलंकार
होता है।
उदाहरण :-
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।
2.सभंग श्लेष अलंकार :– जिस अलंकार में शब्दों
को तोडना बहुत अधिक आवश्यक होता है क्योंकि शब्दों को तोड़े बिना उनका अर्थ न
निकलता हो वहां पर सभंग श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण :– सखर सुकोमल मंजु,
दोषरहित दूषण सहित।
2.अर्थालंकार
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में
चमत्कार होता हो वहाँ अर्थालंकार होता है।
अर्थालंकार के भेद –
1.उपमा अलंकार
2.रूपक अलंकार
3.उत्प्रेक्षा अलंकार
4.द्रष्टान्त अलंकार
5.संदेह अलंकार
6.अतिश्योक्ति अलंकार
7.उपमेयोपमा अलंकार
8.प्रतीप अलंकार
9.अनन्वय अलंकार
10.भ्रांतिमान अलंकार
11.दीपक अलंकार
12.अपहृति अलंकार
13.व्यतिरेक अलंकार
14.विभावना अलंकार
15.विशेषोक्ति अलंकार
16.अर्थान्तरन्यास अलंकार
17.उल्लेख अलंकार
18.विरोधाभाष अलंकार
19.असंगति अलंकार
20.मानवीकरण अलंकार
21.अन्योक्ति अलंकार
22.काव्यलिंग अलंकार
23.स्वभावोती अलंकार
1.उपमा अलंकार –
उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना। जब
किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा
अलंकार होता है।
उपमा अलंकार
के उदाहरण –
उदाहरण :-
सागर-सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी-सा ऊँचा हो जिसका मन।
उपमा अलंकार के अंग –
1)उपमेय
2)उपमान
3)वाचक शब्द
4)साधारण धर्म
1.उपमेय :– उपमेय का अर्थ होता है – उपमा देने के
योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता
है।
2.उपमान :– उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे
उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते
हैं।
3.वाचक शब्द :- जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई
जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।
4.साधारण धर्म:– दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के
लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में
हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।
2.रूपक अलंकार
–
जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न
दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद
को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है।
रूपक अलंकार के उदाहरण –
उदाहरण :-
“उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।”
रूपक अलंकार की निम्न बातें :-
उपमेय को उपमान का रूप देना।
वाचक शब्द का लोप होना।
उपमेय का भी साथ में वर्णन होना।
3.उत्प्रेक्षा
अलंकार –
जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही
उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर
उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। अगर किसी पंक्ति में मनु, जनु, मेरे जानते, मनहु,
मानो, निश्चय, ईव आदि आते हैं वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण –
उदाहरण :-
सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल
बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद –
वस्तुप्रेक्षा अलंकार
हेतुप्रेक्षा अलंकार
फलोत्प्रेक्षा अलंकार
1.वस्तुप्रेक्षा अलंकार :– जहाँ पर प्रस्तुत में
अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाए वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण:-
“सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।”
2.हेतुप्रेक्षा अलंकार :- जहाँ अहेतु में हेतु की
सम्भावना देखी जाती है। अथार्त वास्तविक कारण को छोडकर अन्य हेतु को मान लिया जाए
वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।
3.फलोत्प्रेक्षा अलंकार :- इसमें वास्तविक फल के न
होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण:-
खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।
4.दृष्टान्त
अलंकार
जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्यों
में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता हो वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार
में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दुसरे वाक्य में
होती है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।
उदाहरण :-
‘एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है।।
5.संदेह
अलंकार
जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय
नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है , तब
संदेह अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे
वहाँ संदेह अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।
उदाहरण :-
यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
संदेह अलंकार की मुख्य बातें :-
विषय का अनिश्चित ज्ञान।
यह अनिश्चित समानता पर निर्भर हो।
अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण वर्णन हो।
6.अतिश्योक्ति
अलंकार –
जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने
में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं अथार्त
जब किसी वस्तु का बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाये वहां पर अतिश्योक्ति
अलंकार होता है।
उदाहरण:-
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
सगरी लंका जल गई, गये निसाचर भागि।
7.उपमेयोपमा
अलंकार
इस अलंकार में उपमेय और उपमान को परस्पर
उपमान और उपमेय बनाने की कोशिश की जाती है इसमें उपमेय और उपमान की एक दूसरे से
उपमा दी जाती है।
उदाहरण :- तौ मुख सोहत है ससि सो अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो।
8.प्रतीप
अलंकार
इसका अर्थ होता है उल्टा। उपमा के अंगों
में उल्ट – फेर करने से अथार्त उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलट कर उपमान को ही
उपमेय कहा जाता है वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। इस अलंकार में दो वाक्य होते हैं
एक उपमेय वाक्य और एक उपमान वाक्य। लेकिन इन दोनों वाक्यों में सदृश्य का साफ कथन
नहीं होता, वह व्यंजित रहता है। इन दोनों में साधारण धर्म एक ही होता है परन्तु
उसे अलग-अलग ढंग से कहा जाता है।
उदाहरण :- “नेत्र के समान कमल है।”
9.अनन्वय
अलंकार
जब उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता और कहा जाता है कि उसके समान वही
है, तब अनन्वय अलंकार होता है।
उदाहरण :- “यद्यपि अति आरत – मारत है. भारत के सम भारत है।
10.भ्रांतिमान अलंकार
जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो
जाये वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता है अथार्त जहाँ उपमान और उपमेय दोनों को एक
साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाये मतलब जहाँ एक वस्तु को देखने पर
दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार
का भी अंग माना जाता है।
उदाहरण :-
पायें महावर देन को नाईन बैठी आय ।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये।।
11.दीपक अलंकार
जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही
धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है।
उदाहरण:-
चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।
अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।।
12. अपहृति अलंकार
अपहृति का अर्थ होता है छिपाव। जब किसी
सत्य बात या वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है
वहाँ अपहृति अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।
उदाहरण :-
“सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला,
बन्धु न होय मोर यह काला।”
13.व्यतिरेक अलंकार
व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है
आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण
होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है।
उदाहरण :- का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ?
14.विभावना अलंकार
जहाँ पर कारण के न होते हुए भी कार्य का
हुआ जाना पाया जाए वहाँ पर विभावना अलंकार होता है।
उदाहरण :-
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
15.विशेषोक्ति अलंकार
काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त
कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण :-
नेह न नैनन को कछु, उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास
बुझाई।।
16. अर्थान्तरन्यास
अलंकार
जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का
अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाये वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार
होता है।
उदाहरण :-
बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।।
17.उल्लेख अलंकार
जहाँ पर किसी एक वस्तु को अनेक रूपों
में ग्रहण किया जाए, तो उसके अलग-अलग भागों में बटने को उल्लेख अलंकार कहते हैं।
अथार्त जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाये वहाँ पर उल्लेख अलंकार होता
है।
उदाहरण :- विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।
18.विरोधाभाष अलंकार
जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न
होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है।
उदाहरण :-
‘आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।’
19. असंगति अलंकार
जहाँ आपतात: विरोध दृष्टिगत होते हुए,
कार्य और कारण का वैयाधिकरन्य रणित हो वहाँ पर असंगति अलंकार होता है।
उदाहरण :- “ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।”
20.मानवीकरण अलंकार
जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप
होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय
भावनाओं और क्रियांओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है। जब प्रकृति के
द्वारा निर्मित चीजों में मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन किया जाए वहां पर
मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण :- बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तास घट उषा
नगरी।
21.अन्योक्ति अलंकार
जहाँ पर किसी उक्ति के माध्यम से किसी
अन्य को कोई बात कही जाए वहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण :- फूलों के आस-पास रहते
हैं, फिर भी काँटे उदास रहते हैं।
22.काव्यलिंग अलंकार
जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी
बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में
कोई-न-कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है।
उदाहरण :-
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।
23.स्वभावोक्ति अलंकार
किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को
स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं।
उदाहरण :-
सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल।
इहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल।।
3.उभयालंकार
जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित
रहकर दोनों को चमत्कारी करते हैं वहाँ उभयालंकार होता है।