Bhaktin Class 12 Question Answer


अध्याय-10: भक्तिन

भक्तिन महादेवी वर्मा जी का प्रसिद्ध संस्मळणात्मक रेखाचित्र है जो ‘स्मृति की रेखाओं में संकलित है। इसमें महादेवी जी ने अपनी सेविका। भक्तिन के अतीत एवं वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का चित्रण किया है। लेखिका के घर में काम करने से पहले भक्तिन । ने कैसे एक संघर्षशील, स्वाभिमानी और कर्मशील जीवनयापन किया। वह कैसे पितृसत्तात्मक मान्यताओं और उसके छल-छद्मपूर्ण समाज में अपने और अपनी बेटियों की हक की लड़ाई लड़ती रही तथा हार कर कैसे जिंदगी की राह पूरी तरह बदल लेने के निर्णय तक पहुंची। इन सबका इस पाठ में अत्यंत संवेदनशील चित्रण हुआ है।

लेखिका ने इस पाठ में आत्मीयता से परिपूर्ण भक्तिन के द्वारा स्त्री-अस्मिता की संघर्षपूर्ण आवाज उठाने का भी प्रयास किया है। भक्तिन का शरीर दुबला-पतला है। उसका कद छोटा है। बह ऐतिहासिक सी गाँव के प्रसिद्ध अहीर सूरमा की इकलौती बेटी है। उसकी माता का नाम धन्या गोपालिका है। उसका वास्तविक नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी है। भक्तिन नाम तो बाद में लेखिका ने अपने घर में नौकरानी रखने के बाद रखा था। भक्तिन एक दृढ़ संकल्प, ईमानदार, जिज्ञासु और बहुत समझदार महिला है। वह विमाता की ममता की। छाया में पली-बढ़ी। पाँच वर्ष की छोटी-सी आयु में उसके पिता ने इसका विवाह हँडिया ग्राम के एक संपन्न गोपालक के छोटे बेटे के।

साथ कर दिया। नौ वर्ष की आयु में सौतेली माँ ने इसका गौना कर ससुराल भेज दिया। भक्तिन अपने पिता से बहुत प्रेम करती थी लेकिन उसकी विमाता उससे ईर्ष्या किया करती थी। उसके पिता की मृत्यु का समाचार उसकी विमाता ने बहुत दिनों के बाद भेजा फिर उसकी सास ने भी रोने-पीटने को अपशकुन समझ कुछ नहीं बताया। अपने मायके जाने पर उसे अपने पिता की दुखद मृत्यु का समाचार मिला।


NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 12 HINDI CHAPTER 10 AAROH

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 81-83)

पाठ के साथ

प्रश्न 1. भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?

उत्तर- भक्तिन का वास्तविक नाम था-लछमिन अर्थात लक्ष्मी। लक्ष्मी नाम समृद्ध व ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है, परंतु यहाँ नाम के साथ गुण नहीं मिलता। लक्ष्मी बहुत गरीब तथा समझदार है। वह जानती है कि समृद्ध का सूचक यह नाम गरीब महिला को शोभा नहीं देता। उसके नाम व भाग्य में विरोधाभास है। वह सिर्फ़ नाम की लक्ष्मी है। समाज उसके नाम को सुनकर उसका उपहास न उड़ाए इसीलिए वह अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी। भक्तिन को यह नाम लेखिका ने दिया। उसके गले में कंठी-माला व मुँड़े हुए सिर से वह भक्तिन ही लग रही थी। उसमें सेवा-भावना व कर्तव्यपरायणता को देखकर ही लेखिका ने उसका नाम ‘भक्तिन’ रखा।

प्रश्न 2. दो कन्या रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जेठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है? क्यों इससे आप सहमत हैं?

उत्तर- हाँ मैं इस बात से बिलकुल सहमत हूँ। जब भक्तिन अर्थात् लछिमन ने दो पुत्रियों को जन्म दिया तो उसके ससुराल वालों ने उस पर घोर अत्याचार किए। उसकी जेठानियों ने उस पर बहुत जुल्म ढाए। इसी कारण उसकी बेटियों को दिन भर काम करना पड़ता था। इन सभी बातों से सिद्ध होता है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है। उसकी जेठानियों ने तो जमीन हथियाने के लिए लछमिन की विधवा बेटी से अपने भाई का विवाह करने की योजना बनाई, जब यह योजना नहीं सफल हुई तो लछमिन पर अत्याचार बढ़ते गए।

प्रश्न 3. भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?

उत्तर- भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जबरदस्ती करने की कोशिश की। लड़की ने उसकी खूब पिटाई की, परंतु पंचायत ने अपीलहीन फ़ैसले में उसे तीतरबाज युवक के साथ रहने का फ़ैसला सुनाया। यह सरासर स्त्री के मानवाधिकारों का हनन है। भारत में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहाँ शादी करने का निर्णय सिर्फ़ पुरुष के हाथ में होता है। महाभारत में द्रौपदी को उसकी इच्छा के विरुद्ध पाँच पतियों की पत्नी बनना पड़ा। मीरा की शादी बचपन में ही कर दी गई तथा लक्ष्मीबाई की शादी अधेड़ उम्र के राजा के साथ कर दी गई। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ अयोग्य लड़के के साथ गुणवती कन्या का विवाह किया गया तथा लड़की की जिंदगी नरक बना दी गई।

प्रश्न 4. भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर- जब भक्तिन लेखिका के घर काम करने आई तो वह सीधी-सादी, भोली-भाली लगती थी लेकिन ज्यों-ज्यों लेखिका के साथ उसका संबंध और संपर्क बढ़ता गया त्यों-त्यों वह उसके बारे में जानती गई। लेखिका को उसकी बुराइयों के बारे में पता चलता गया। इसी कारण लेखिका को यह लगा कि भक्तिन अच्छी नहीं है। उसमें कई दुर्गुण हैं अतः उसे अच्छी कहना और समझना लेखिका के लिए कठिन है।

प्रश्न 5. भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?

उत्तर- भक्तिन की यह विशेषता है कि वह हर बात को, चाहे वह शास्त्र की ही क्यों न हो, अपनी सुविधा के अनुसार ढाल लेती है। वह सिर घुटाए रखती थी, लेखिका को यह अच्छा नहीं लगता था। जब उसने भक्तिन को ऐसा करने से रोका तो उसने अपनी बात को ऊपर रखा तथा कहा कि शास्त्र में यही लिखा है। जब लेखिका ने पूछा कि क्या लिखा है? उसने तुरंत उत्तर दिया-तीरथ गए मुँड़ाए सिद्ध। यह बात किस शास्त्र में लिखी गई है, इसका ज्ञान भक्तिन को नहीं था। जबकि लेखिका जानती थी कि यह कथन किसी व्यक्ति का है, न कि शास्त्र का। अत: वह भक्तिन को सिर घुटाने से नहीं रोक सकी तथा हर बृहस्पतिवार को उसका मुंडन होता रहा।

प्रश्न 6. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?

उत्तर- भक्तिन के आ जाने से महादेवी ने लगभग उन सभी संस्कारों को, क्रियाकलापों को अपना लिया जो देहातों में अपनाए जाते हैं। देहाती की हर वस्तु, घटना और वातावरण का प्रभाव महादेवी पर पड़ने लगा। वह भक्तिन से सब कुछ जान लेती थी ताकि किसी बात की जानकारी अधूरी न रह जाए। धोती साफ़ करना, सामान बांधना आदि बातें भक्तिन ने ही सिखाई थी। वैसे देहाती भाषा भी भक्तिन के आने के बाद ही महादेवी बोलने लगी। इन्हीं कारणों से महादेवी देहाती हो गई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1. ‘आलो आँधारि’ की नायिका और लेखिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते हैं?

उत्तर- ‘आलो आँधारि’ की नायिका एक घरेलू नौकरानी है। भक्तिन भी लेखिका के घर में नौकरी करती है। दोनों में यही समानता है। दूसरे, दोनों ही घर में पीड़ित हैं। परिवार वालों ने उन्हें पूर्णत: उपेक्षित कर दिया था। दोनों ने आत्मसम्मान को बचाते हुए जीवन-निर्वाह किया।भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज बात नहीं हैं। अखबारों या टी०वी० समाचारों में आने वाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रस7 के साथ रखकर उस पर चचा करें। भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फ़ैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज बात नहीं है। अब भी पंचायतों का तानाशाही रवैया बरकरार है। अखबारों या टी०वी० पर अकसर समाचार सुनने को मिलते हैं कि प्रेम विवाह को पंचायतें अवैध करार देती हैं तथा पति-पत्नी को भाई-बहिन की तरह रहने के लिए विवश करती हैं। वे उन्हें सजा भी देती हैं। कई बार तो उनकी हत्या भी कर दी जाती है। यह मध्ययुगीन बर्बरता आज भी विद्यमान है। पाँच वर्ष की वय में ब्याही जाने वाली लड़कियों में सिर्फ भक्तिन नहीं हैं, बल्कि आज भी हज़ारों अभागिनियाँ हैं।

प्रश्न 2. भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह फैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज़ बात नहीं है। अखबारों या टी०वी० समाचारों में आने वाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर चर्चा करें।

उत्तर- पिछले दिनों अखबारों में पढ़ा और टी०वी० पर देखा कि राजस्थान के एक गाँव में केवल दो साल की बच्ची के साथ एक 20 वर्षीय युवक ने बलात्कार किया। आरोपी को बाद में लोगों ने पकड़ भी लिया। पंचायत हुई। इस पंचायत में फैसला सुनाया गया कि आरोपी को दस जूते लगाए जाएँ। दस जूते लगाकर उसे छोड़ दिया गया। यह निर्णय हैरतअंगेज़ करने वाला था क्योंकि पंच लोग केवल दबंग लोगों का साथ देते हैं। चाहे वे कितना ही गलत कार्य क्यों न करें।

प्रश्न 3. पाँच वर्ष की वय में ब्याही जानेवाली लड़कियों में सिर्फ भक्तिन नहीं है, बल्कि आज भी हज़ारों अभागिनियाँ हैं। बाल-विवाह और उम्र के अनमेलपन वाले विवाह की अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर दोस्तों के साथ परिचर्चा करें।

उत्तर- हमारे देश में नारी पर आज भी अत्याचार हो रहे हैं। अनपढ़ जनता पुरानी लीक पर चल रही है। पाँच वर्ष तो क्या दुधमुँही बच्ची की शादी की जा रही है। पश्चिमी राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के देहातों में एक महीने की बच्चियों का विवाह (गौना) किया जा रहा है। आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं कि दो दिन की बच्ची की शादी कर दी। कई बार तो दस वर्ष की बच्ची की शादी तीस वर्ष के युवक के साथ कर दी जाती है।

प्रश्न 4. महादेवी जी इस पाठ में हिरनी सोना, कुत्ता वसंत, बिल्ली गोधूलि आदि के माध्यम से पशु-पक्षी को मानवीय संवेदना से उकेरने वाली लेखिका के रूप में उभरती हैं। उन्होंने अपने घर में और भी कई-पशु-पक्षी पाल रखे थे तथा उन पर रेखाचित्र भी लिखे हैं। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूँढ़कर पढ़े। जो ‘मेरा परिवार’ नाम से प्रकाशित है।

उत्तर- यह बात बिलकुल सत्य है कि महादेवी जी पशु-पक्षी के प्रति अधिक संवेदनशील थीं। उन्होंने कई प्रकार के पशु पक्षी पाल रखे थे। महादेवीजी ने अपने घर में हिरनी सोना, कुत्ता वसंत, बिल्ली गोधूलि के अतिरिक्त लक्का कबूतर, चित्रा बिल्ली, नीलकंठ मोर, कजली कुतिया, गिल्लू कौवा, दुर्मुख खरगोश, गौरा गऊ, रोजी कुतिया, निक्की नेवला और रानी घोड़ी आदि पशु पक्षी पाल रखे थे।

भाषा की बात

प्रश्न 1. नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए

     i.        पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले

   ii.        खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी

 iii.        अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण

उत्तर- किसी पूर्व-प्रकाशित पुस्तक को पुन: प्रकाशित करना उसका नया संस्करण कहलाता है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। भक्तिन ने एक कन्या के बाद पुन: दो और कन्याएँ पैदा कीं। ‘संस्करण’ से तात्पर्य यह है कि उसने एक लिंग की संतान को जन्म दिया।

टकसाल सिक्के ठालने वाली मशीन को कहते हैं। भारतीय समाज में ‘लड़के’ को खरा सिक्का तथा लड़कियों को ‘खोटा सिक्का’ कहा जाता है। समाज में लड़कियों का कोई महत्व नहीं होता। भक्तिन को खोटे सिक्कों की टकसाल की संज्ञा दी गई है क्योंकि उसने एक के बाद एक तीन लड़कियाँ उत्पन्न कीं, जबकि समाज पुत्र जन्म देने वाली स्त्रियों को महत्व देता है।

भक्तिन अपने पिता की मृत्यु के कई दिन बाद पहुँची। उसे सिर्फ़ पिता की बीमारी के बारे में बताया गया था। जब वह अपने मायके के गाँव की सीमा में पहुँची तो लोग कानाफूसी करते हुए पाए गए कि बेचारी लछमिन अब आई है। आमतौर पर शोक की खबर प्रत्यक्ष तौर पर नहीं कही जाती। कानाफूसी के जरिए अस्पष्ट शब्दों में एक ही बात बार-बार कही जाती है। इन्हें लेखिका ने अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ कहा है। पिता की मृत्यु हो जाने पर लोग उसे सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देख रहे थे तथा ढाँढ़स बँधा रहे थे। ये बातें स्पष्ट तौर पर की जा रही थीं, अत: उन्हें स्पष्ट सहानुभूति कहा गया है।

प्रश्न 2. ‘बहनोई’-शब्द ‘बहन (स्त्री) + ओई’ से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुल्लिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषाओं में दिखती है, परे स्त्रीलिंग शब्द में कुछ पुं. प्रत्यय जोड़कर पुल्लिंग शब्द बनाने की घटना प्रायः अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती। यहाँ पुं. प्रत्यय ‘ओई’ हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिंदी

तथा और भाषाओं की खोज करें।

उत्तर- ननद + आई = ननदोई।

प्रश्न 3. पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझकर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में ढालकर प्रस्तुत कीजिए।

     i.        ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित है, दाल रांध लेइत है, साग-भाजी बँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।

   ii.        हमारे मलकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।

 iii.        ऊ बिचरिअउ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं, अउर तुम पचै घूमती-फिरती हौ चलौ तनिक हाथ बटाय लेउ।

 iv.        तब ऊ कुच्छौ करिहैं-धरिहैं ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।

   v.        तुम पचै का का बताई-यहै पचास बरिस से संग रहित है।

 vi.        हम कुकुरी बिलारी न होयँ, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा पूँजब और राज करब, समुझे रहो।

उत्तर-

     i.        यह कौन-सी बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ, दाल बना लेती हूँ, साग-भाजी छौंक सकती हूँ, और शेष क्या रहा।

   ii.        हमारी मालकिन तो रात-दिन किताबों में डूबी रहती हैं। अब हम भी पढ़ने लगे तो घर-गृहस्थी कौन देखेगा-सुनेगा।

 iii.        वह बेचारी तो रात-दिन काम में लगी रहती हैं और तुम लोग घूमती-फिरती हो। चलो, तनिक हाथ बँटा लो।

 iv.        तब वह कुछ करता-धरता नहीं होगा, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता होगा।

   v.        तुम्हें हम क्या-क्या बताएँ-यही पचास वर्ष से साथ रहती हूँ।

 vi.        हम कुतिया-बिल्ली नहीं हैं। हमारा मन चाहेगा तो हम दूसरे के यहाँ (पत्नी बनकर) जाएँगे नहीं तो तुम्हारी छाती पर ही होरहा भूलूँगी और राज करूंगी-यह समझ लेना।

प्रश्न 4. भक्तिन पाठ में पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है, साथ ही वे प्रयोग कथ्य को संप्रेषणीय बनाने में भी मददगार हैं। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता की खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ, है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक हैं?

    अरे ! उससे सावधान रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर देता है।

    घबरा मत ! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज्यादा फ़ाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन भेज दूंगा।

    जॉनी टेंसन नयी लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।

उत्तर- इस प्रकार की शब्दावलियों का प्रयोग पिछले कुछ समय से बढ़ गया है। यह टपोरी शब्दावली है। वास्तव में यह हिंग्लिश शब्दावली के नाम से जानी जाती है। पहले वाक्य में कंप्यूटर शब्दावली का प्रयोग हुआ। दूसरे वाक्य में खेलात्मक शब्दावली का प्रयोग किया है। अंतिम वाक्य में मुंबईया शब्दावली का प्रयोग हुआ है। इन प्रयोगों से भाषा का मूल स्वरूप बिगड़ जाता है। ऐसी शब्दावली भाषा को समृद्धि नहीं बल्कि कंगाली देती है अर्थात् भाषा की अपनी सार्थकता खत्म हो जाती है। कुछ और उदाहरणों को देखें

     i.        तुम अपन को जानताई छ नहीं है।

   ii.        तेरा रामू के साथ टांका भिड्रेला है भेडू।

 iii.        जो तुम कहते हो वह कंप्यूटर की तरह मेरे दिमाग में फीड हो जाता है।

 iv.        इस बार दलजीत ने कुछ कहा तो उसे स्टेडियम की फुटबाल की तरह बाहर भेज दूंगा।

   v.        तेरे नखरे भी शेयर बाजार जैसे चढ़ते जा रहे हैं।

IconDownload