अध्याय-13: पहलवान की ढोलक
‘पहलवान की ढोलक’ फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखित
एक श्रेष्ठ कहानी है। फणीश्वर एक आंचलिक कथाकार माने जाते हैं। प्रस्तुत कहानी उनकी
एक आंचलिक कहानी है, जिसमें उन्होंने भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को प्रतीकात्मक
रूप से अभिव्यक्त किया है। यह व्यवस्था बदलने के साथ लोक कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक
हो जाने की कहानी है।
श्यामनगर के समीप का एक गाँव सरदी के मौसम में मलेरिया
और हैजे से ग्रस्त था। चारों ओर सन्नाटे से युक्त बाँस-फूस । की झोंपड़ियाँ खड़ी थीं।
रात्रि में घना अंधेरा छाया हुआ था। चारों ओर करुण सिसकियों और कराहने की आवाजें गूंज
रही थीं।। सियारों और पेचक की भयानक आवाजें इस सन्नाटे को बीच-बीच में अवश्य थोड़ा-सा
तोड़ रही थीं। इस भयंकर सन्नाटे में कुत्ते । समूह बाँधकर रो रहे थे। रात्रि भीषणता
और सन्नाटे से युक्त थी, लेकिन लुट्टन पहलवान की ढोलक इस भीषणता को तोड़ने का प्रयास
कर रही थी। इसी पहलवान की ढोलक की आवाज इस भीषण सन्नाटे से युक्त मृत गाँव में संजीवनी
शक्ति भरा करती थी।
लुट्टन सिंह के माता-पिता नौ वर्ष की अवस्था में
ही उसे छोड़कर चले गए थे। उसकी बचपन में शादी हो चुकी थी, इसलिए विधवा सास ने ही उसका
पालन-पोषण किया। ससुराल में पलते-बढ़ते वह पहलवान बन गया था। एक बार श्यामनगर में एक
मेला लगा। मेले के दंगल में लुट्टन सिंह ने एक प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को चुनौती
दे डाली, जो शेर के बच्चे के नाम से जाना जाता था। श्यामनगर के राजा ने बहुत कहने के
बाद ही लुट्टन सिंह को उस पहलवान के साथ लड़ने की आज्ञा दी, क्योंकि वह एक बहुत प्रसिद्ध
पहलवान था।
लुट्टन सिंह ने ढोलक की ‘धिना-धिना, धिकधिना’, आवाज
से प्रेरित होकर चाँद सिंह पहलवान को बड़ी मेहनत के बाद चित कर दिया। चाँद सिंह के
हारने के बाद लुट्टन सिंह की जय-जयकार होने लगी और वह लुट्टन सिंह पहलवान के नाम से
प्रसिद्ध हो गया। राजा ने उसकी वीरता से प्रभावित होकर उसे अपने दरबार में रख लिया।
अब लुट्टन सिंह की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। लुट्टन सिंह पहलवान की पली भी दो पुत्रों
को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई थी।
लट्टन सिंह अपने दोनों बेटों को भी पहलवान बनाना
चाहता था,इसलिए वह बचपन से ही उन्हें कसरत आदि करवाने लग गया। उसने बेटों को दंगल की
संस्कृति का पूरा ज्ञान दिया। लेकिन दुर्भाग्य से एक दिन उसके वयोवृद्ध राजा का स्वर्गवास
हो गया। तत्पश्चात विलायत से नए महाराज आए। राज्य की गद्दी संभालते ही नए राजा साहब
ने अनेक परिवर्तन कर दिए।
दंगल का
स्थान घोड़ों की रेस ने ले लिया। बेचारे लुट्टन सिंह पहलवान पर कुठाराघात हुआ। वह हतप्रभ
रह गया। राजा के इस रवैये को देखकर लुट्टन सिंह अपनी ढोलक कंधे में लटकाकर बच्चों सहित
अपने गाँव वापस लौट आया। वह गाँव के एक किनारे पर झोपड़ी में रहता हुआ नौजवानों और
चरवाहों को कुश्ती सिखाने लगा। गाँव के किसान व खेतिहर मजदूर भला क्या कुश्ती सीखते।
अचानक गाँव में अनावृष्टि अनाज की कमी, मलेरिया,
हैजे आदि भयंकर समस्याओं का वज्रपात हुआ। चारों ओर लोग भूख, हैजे और मलेरिये से मरने
लगे। सारे गाँव में तबाही मच गई। लोग इस त्रासदी से इतना डर गए कि सूर्यास्त होते ही
अपनी-अपनी । झोंपडियों में घस जाते। रात्रि की विभीषिका और सन्नाटे को केवल लट्टन सिंह
पहलवान की ढोलक की तान ही ललकारकर चुनौती देती थी। यही तान इस भीषण समय में धैर्य प्रदान
करती थी। यही तान शक्तिहीन गाँववालों में संजीवनी शक्ति भरने का कार्य करती थी।
पहलवान के दोनों बेटे भी इसी भीषण विभीषिका के शिकार
हुए। प्रातः होते ही पहलवान ने अपने दोनों बेटों को निस्तेज पाया। बाद में वह अशांत
मन से दोनों को उठाकर नदी में बहा आया। लोग इस बात को सुनकर दंग रह गए। इस असह्य वेदना
और त्रासदी से भी पहलवान नहीं टूटा।
रात्रि में फिर पहले की तरह ढोलक बजाता रहा; इससे
लोगों को सहारा मिला, लेकिन चार-पाँच दिन बीतने के पश्चात जब रात्रि में ढोलक की आवाज
सुनाई नहीं पड़ी, तो प्रात:काल उसके कुछ शिष्यों ने पहलवान की लाश को सियारों द्वारा
खाया हुआ पाया। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी के अंत में पहलवान भी भूख-महामारी की शक्ल
में आई मौत का शिकार बन गया। यह कहानी हमारे समक्ष व्यवस्था की पोल खोलती है। साथ ही
व्यवस्था के कारण लोक कलाओं के लुप्त होने की ओर संकेत भी करती है तथा हमारे सामने
ऐसे । अनेक प्रश्न पैदा करती है कि यह सब क्यों हो रहा है?
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 12 HINDI AAROH CHAPTER 13
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 25-26)
पाठ के साथ
प्रश्न 1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्ट्टन
के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके
मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
उत्तर- कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के
दाँव-पेंच में अद्भुत तालमेल था। ढोल बजते ही लुट्टन की रगों में खून दौड़ने लगता था।
उसे हर थाप में नए दाँव-पेंच सुनाई पड़ते थे। ढोल की आवाज उसे साहस प्रदान करती थी।
ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में निम्नलिखित तालमेल था
i.
धाक-धिना, तिरकट तिना
– दाँव काटो, बाहर हो जाओ।
ii.
चटाक्र-चट्-धा – उठा
पटक दे।
iii.
धिना-धिना, धिक-धिना
— चित करो, चित करो।
iv.
ढाक्र-ढिना – वाह पट्ठे।
v.
चट्-गिड-धा – मत डरना।
ये ध्वन्यात्मक शब्द हमारे मन में उत्साह का संचार करते हैं।
प्रश्न 2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुटेन के जीवन
में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर- लुट्न पहलवान का जीवन उतार-चढ़ावों से भरपूर
रहा। जीवन के हर दुख-सुख से उसे दो-चार होना पड़ा। सबसे पहले उसने चाँद सिंह पहलवान
को हराकरे राजकीय पहलवान का दर्जा प्राप्त किया। फिर काला खाँ को भी परास्त कर अपनी
धाक आसपास के गाँवों में स्थापित कर ली। वह पंद्रह वर्षों तक अजेय पहलवान रहा। अपने
दोनों बेटों को भी उसने राजाश्रित पहलवान बना दिया। राजा के मरते ही उस पर दुखों का
पहाड़ टूट पड़ा। विलायत से राजकुमार ने आते ही पहलवान और उसके दोनों बेटों को राजदरबार
से अवकाश दे दिए। गाँव में फैली बीमारी के कारण एक दिन दोनों बेटे चल बसे। एक दिन पहलवान
भी चल बसा और उसकी लाश को सियारों ने खा लिया। इस प्रकार दूसरों को जीवन संदेश देने
वाला पहलवान स्वयं खामोश हो गया।
प्रश्न 3. लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा
कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
उत्तर- पहलवान ने ढोल को अपना गुरु माना और एकलव्य
की भाँति हमेशा उसी की आज्ञा का अनुकरण करता रहा। ढोल को ही उसने अपने बेटों का गुरु
बनाकर शिक्षा दी कि सदा इसको मान देना। ढोल लेकर ही वह राज-दरबार से रुखसत हुआ। ढोल
बजा-बजाकर ही उसने अपने अखाड़े में बच्चों-लड़कों को शिक्षा दी, कुश्ती के गुर सिखाए।
ढोल से ही उसने गाँव वालों को भीषण दुख में भी संजीवनी शक्ति प्रदान की थी। ढोल के
सहारे ही बेटों की मृत्यु का दुख पाँच दिन तक दिलेरी से सहन किया और अंत में वह भी
मर गया। यह सब देखकर लगता है कि उसका ढोल उसके जीवन का संबल, जीवन-साथी ही था।
प्रश्न 4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों
के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?
उत्तर- ढोलक की आवाज़ सुनकर लोगों में जीने की इच्छा
जाग उठती थी। पहलवान नहीं चाहता था कि उसके गाँव का कोई आदमी अपने संबंधी की मौत पर
मायूस हो जाए। इसलिए वह ढोल बजाता रहा। वास्तव में ढोल बजाकर पहलवान ने अन्य ग्रामीणों
को जीने की कला सिखाई। साथ ही अपने बेटों की अकाल मृत्यु के दुख को भी वह कम करना चाहता
था।
प्रश्न 5. ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर
होता था।
उत्तर- महामारी की त्रासदी से जूझते हुए ग्रामीणों
को ढोलक की आवाज संजीवनी शक्ति की तरह मौत से लड़ने की प्रेरणा देती थी। यह आवाज बूढ़े-बच्चों
व जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य उपस्थित कर देती थी। उनकी स्पंदन
शक्ति से शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। ठीक है कि ढोलक की आवाज में बुखार
को दूर करने की ताकत न थी, पर उसे सुनकर मरते हुए प्राणियों को अपनी आँखें मूंदते समय
कोई तकलीफ़ नहीं होती थी। उस समय वे मृत्यु से नहीं डरते थे। इस प्रकार ढोलक की आवाज
गाँव वालों को मृत्यु से लड़ने की प्रेरणा देती थी।
प्रश्न 6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय
और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
उत्तर- महामारी ने सारे गाँव को बुरी तरह से प्रभावित
किया था। लोग सुर्योदय होते ही अपने मृत संबंधियों की लाशें उठाकर गाँव के श्मशान की
ओर जाते थे ताकि उनका अंतिम संस्कार किया जा सके। सूर्यास्त होते ही सारे गाँव में
मातम छा जाता था। किसी न किसी बच्चे, बूढ़े अथवा जवान के मरने की खबर आग की तरह फैल
जाती थी। सारा गाँव श्मशान घाट बन चुका था।
प्रश्न 7. कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं
का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा
विशेष सम्मान दिया जाता था।
i.
ऐसी स्थिति अब क्यों
नहीं है?
ii.
इसकी जगह अब किन खेलों
ने ले ली है?
iii.
कुश्ती को फिर से प्रिय
खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
उत्तर-
i.
कुश्ती या दंगल पहले
लोगों व राजाओं के प्रिय शौक हुआ करते थे। राजा पहलवानों को सम्मान देते थे, परंतु
आज स्थिति बदल गई है। अब पहले की तरह राजा नहीं रहे। दूसरे, मनोरंजन के अनेक साधन प्रचलित
हो गए हैं।
ii.
कुश्ती की जगह अब अनेक
आधुनिक खेल प्रचलन में हैं; जैसे-क्रिकेट, हॉकी, बैडमिंटन, टेनिस, शतरंज, फुटबॉल आदि।
iii.
कुश्ती को फिर से लोकप्रिय
बनाने के लिए ग्रामीण स्तर पर कुश्ती की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जा सकती साथ-साथ पहलवानों
को उचित प्रशिक्षण तथा कुश्ती को बढ़ावा देने हेतु मीडिया का सहयोग लिया जा सकता है।
प्रश्न 8. आंशय स्पष्ट करें आकाश से टूटकर यदि कोई
भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो
जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर- लेखक ने इस कहानी में कई जगह प्रकृति का
मानवीकरण किया है। यह गद्यांश भी प्रकृति का मानवीकरण ही है। यहाँ लेखक के कहने का
आशय है कि जब सारा गाँव मातम और सिसकियों में डूबा हुआ था तो आकाश के तारे भी गाँव
की दुर्दशा पर आँसू बहाते प्रतीत होते हैं। क्योंकि आकाश में चारों ओर निस्तब्धता छाई
हुई थी। यदि कोई तारा अपने मंडल से टूटकर पृथ्वी पर फैले दुख को बाँटने आता भी था तो
वह रास्ते में विलीन (नष्ट) हो जाता था। अर्थात् वह पृथ्वी तक पहुँच नहीं पाता था।
अन्य सभी तारे उसकी इस भावना को नहीं समझते थे। वे तो केवल उसका मजाक उड़ाते थे और
उस पर हँस देते थे।
प्रश्न 9. पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण
किया गया है। पाठ में ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मानवीकरण के अंश
i.
औधेरी रात चुपचाप आँसू
बहा रही थी।
आशय-रात का मानवीकरण किया गया है। ठंड में ओस रात
के आँसू जैसे प्रतीत होते हैं। वे ऐसे लगते हैं मानो गाँव वालों की पीड़ा पर रात आँसू
बहा रही है।
ii.
तारे उसकी भावुकता
अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे। आशय-तारों को हँसते हुए दिखाकर उनका मानवीकरण
किया गया है। वे मजाक उड़ाते प्रतीत होते हैं।
iii.
ढोलक लुढ़की पड़ी थी।
आशय-यहाँ पहलवान की मृत्यु का वर्णन है। पहलवान व ढोलक का गहरा संबंध है। ढोलक का बजना
पहलवान के जीवन का पर्याय है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1. पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव
की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें
और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे/करेंगी?
उत्तर- पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव
की दयनीय स्थिति का चित्रण किया गया है। आजकल ‘स्वाइन फ्लू’ जैसी बीमारी से आम जनता
में दहशत है। मैं ऐसी स्थिति में निम्नलिखित कार्य करूंगा
i.
लोगों को स्वाइन फ्लू
के विषय में जानकारी दूँगा।
ii.
स्वाइन फ्लू के रोगियों
को उचित इलाज करवाने की सलाह दूँगा।
iii.
जुकाम व बुखार के रोगियों
को घर में रहने तथा मास्क लगाने का परामर्श दूँगा।
iv.
मरीजों की जाँच में
सहायता करूंगा।
प्रश्न 2. ढोलक की थाप मृत गाँव में संजीवनी भरती
रहती थी-कला और जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर- कला और जीवन का गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे
के पूरक हैं। कला जीवन को जीने का ढंग सिखाती है। व्यक्ति का जीवन आनंदमय बना रहे इसके
लिए कला बहुत ज़रूरी है। यह कई रूपों में हमारे सामने आती है; जैसे नृत्य कला, संगीत
कला, चित्रकला आदि। कला जीवन की प्राण शक्ति है। कला के बिना जीवन की कल्पना करना बेमानी
लगता है।
प्रश्न 3. चर्चा करें – कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था
का मोहताज नहीं है।
उत्तर- कलाएँ सरकारी सहायता से नहीं फलतीं-फूलतीं।
ये कलाकार के निष्ठाभाव, मेहनत व समर्पण से विकसित होती हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1. हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ
विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है।
उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई
पाँच-पाँच शब्द बताइए –
चिकित्सा, क्रिकेट, न्यायालय, या अपनी पसंद का कोई
क्षेत्र
उत्तर-
·
चिकित्सा – अस्पताल,
नर्स, डॉक्टर, टीका, पथ्य, औषधि, जाँच।
·
क्रिकेट – बैट, गेंद,
विकेट, छक्का, चौका, क्लीन बोल्ड।
·
न्यायालय – जज, वकील,
नोटिस, जमानत, अपील, साक्षी, केस।
·
शिक्षा – पुस्तक, अध्यापक,
विद्यार्थी, स्कूल, बोर्ड, पुस्तकालय।
पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली सूची
कसरत, धुन, थाप, दांवपेंच, पठान, पहलवान, बच्चू,
शेर का बच्चा, चित, दाँव काटो, मिट्टी के शेर, चारों खाने चित, आली आदि।
प्रश्न 2. पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के
विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई
सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों,
वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार
और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं –
·
फिर बाज की तरह उस
पर टूट पड़ा।
·
राजा साहेब की स्नेह-दृष्टि
ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
·
पहलवान की स्त्री भी
दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
उत्तर- उसकी पहलवानी के किस्से दूर-दराज के गाँवों
में मशहूर थे। अच्छे से अच्छा पहलवान भी उससे हार जाता। यदि कोई उसे ललकारने की हिम्मत
करता तो वह उस पर बाज की तरह टूट पड़ता। उसकी पहलवानी के चर्चे राजा साहब के कानों
तक भी पहुँची। राजा साहब ने उसकी पहलवानी पर प्रसन्न होकर उसे नकद इनाम दिया और आजीवन
राजमहल में रख लिया। इस प्रकार राजा, साहब की स्नेह दृष्टि ने उसकी प्रसिधि में चार
चाँद लगा दिए। वह और अधिक मन लगाकर पहलवानी करने लगा। पहलवान की स्त्री ने उसी जैसे
दो पहलवान बेटों को पैदा किया। दुर्भाग्य से वह स्वर्ग सिधार गई। इन दोनों बेटों को
भी उसने दंगल में उतारने का निर्णय ले लिया। उसके दोनों बेटों ने भी अपने बाप की लाज
रखी।
प्रश्न 3. जैसे क्रिकेट में कमेंट्री की जाती है
वैसे ही कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर – दिखाई
पड़ता है?
उत्तर-
i.
क्रिकेट में बल्लेबाज,
क्षेत्ररक्षण व गेंदबाजी का वर्णन होता है, जबकि कुश्ती में दाँव-पेंच का।
ii.
क्रिकेट में स्कोर
बताया जाता है, जबकि कुश्ती में चित या पट का।
iii.
कुश्ती में प्रशिक्षित
कमेंटेटर निश्चित नहीं होते, जबकि क्रिकेट में प्रशिक्षित कमेंटेटर होते हैं।