Embark on a journey through the heart of India's heritage with the chapter on Sanskriti in Class 10 Hindi. This chapter is not just a segment of the syllabus but a vibrant exploration of the cultural tapestry that India is celebrated for. Students uncover the multilayered aspects of Indian culture, the traditions that have shaped our society, and the values that continue to guide us. The Sanskriti question answers are crucial tools that help students navigate through this chapter, encouraging them to ponder deeply about the roots and ethos of Indian civilization.
As they dive into Class 10 Hindi Chapter 12, students are welcomed with engaging question answers that challenge their understanding and enrich their knowledge of Indian Sanskriti. These question answers are thoughtfully curated to spark curiosity and provide insights into the profound significance of cultural practices and their roles in contemporary life. The Sanskriti class 10 question answers act as a bridge, connecting young minds to the wisdom passed down through generations.
When tackling Class 10 Hindi CH 12, students find that the questions are designed not just to test their recall abilities but to encourage analysis and appreciation of the cultural narratives presented in the text. This chapter, especially, serves as a mirror reflecting the richness of India’s Sanskriti through the lens of literature.
Delving into Chapter 12 Hindi Class 10, every learner is equipped with the necessary tools to decode complex concepts and articulate their understanding with clarity. The Class 10 Hindi CH 12 question answer sections help reinforce this learning, making the chapter a rewarding experience for both the mind and the spirit.
Understanding Sanskriti in Class 10 is a step towards understanding the foundations of India itself. As students prepare for their exams, they are simultaneously preparing to become ambassadors of the culture they are learning about. Every page turned, every question answered, every concept learned in this chapter is an invitation to celebrate and carry forward the legacy of Indian Sanskriti.
अध्याय-12: संस्कृति
-भदंत आनंद कौसल्यायन
सारांश
लेखक कहते हैं की सभ्यता और संस्कृति दो ऐसे शब्द हैं जिनका उपयोग अधिक होता
है परन्तु समझ में कम आता है। इनके साथ विशेषण लगा देने से इन्हे समझना और भी कठिन
हो जाता है। कभी-कभी दोनों को एक समझ लिया जाता है तो कभी अलग। आखिर ये दोनों एक हैं
या अलग। लेखक समझाने का प्रयास करते हुए आग और सुई-धागे के आविष्कार उदाहरण देते हैं।
वह उनके आविष्कर्ता की बात कहकर व्यक्ति विशेष की योग्यता, प्रवृत्ति और प्रेरणा को
व्यक्ति विशेष की संस्कृति कहता है जिसके बल पर आविष्कार किया गया।
लेखक संस्कृति और सभ्यता में अंतर स्थापित करने के लिए आग और सुई-धागे के आविष्कार
से जुड़ी प्रारंभिक प्रयत्नशीलता और बाद में हुई उन्नति के उदहारण देते हैं। वे कहते
हैं लौहे के टुकड़े को घिसकर छेद बनाना और धागा पिरोकर दो अलग-अलग टुकड़ों को जोड़ने की
सोच ही संस्कृति है। इन खोजों को आधार बनाकर आगे जो इन क्षेत्रों में विकास हुआ वह
सभ्यता कहलाता है। अपनी बुद्धि के आधार पर नए निश्चित तथ्य को खोज आने वाली पीढ़ी को
सौंपने वाला संस्कृत होता है जबकि उसी तथ्य को आधार बनाकर आगे बढ़ने वाला सभ्यता का
विकास करने वाला होता है। भौतिक विज्ञान के सभी विद्यार्थी जानते हैं की न्यूटन ने
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया इसलिए वह संस्कृत कहलाया परन्तु वह और
अनेक बातों को नही जान पाया। आज के विद्यार्थी उन बातों को भी जानते है लेकिन हम इन्हे
अधिक सभ्य भले ही कहे परन्तु संस्कृत नही कह सकते।
लेखक के अनुसार भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे और आग के आविष्कार
करते तथ्य संस्कृत संस्कृत होने या बनने के आधार नही बनते, बल्कि मनुष्य में सदा बसने
वाली सहज चेतना भी इसकी उत्पत्ति या बनने का कारण बनती है। इस सहज चेतना का प्रेरक
अंश हमें अपने मनीषियों से भी मिला है। मुँह के कौर को दूसरे के मुँह में डाल देना और रोगी बच्चे को रात-रात भर गोदी
में लेकर माता का बैठे रहना इसी इसी चेतना से प्रेरित होता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व
बुद्ध का मनुष्य को तृष्णा से मुक्ति के लिए उपायों को खोजने में गृह त्यागकर कठोर
तपस्या करना, कार्ल मार्क्स का मजदूरों के सुखद जीवन के सपने पूरा करने के लिए दुखपूर्ण
जीवन बिताना और लेनिन का मुश्किलों से मिले डबल रोटी के टुकड़ों को दूसरों को खिला देना
इसी चेतना से संस्कृत बनने का उदाहरण हैं। लेखक कहते हैं की खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने
के तरीके आवागमन के साधन से लेकर परस्पर मर-कटने के तरीके भी संस्कृति का ही परिणाम
सभ्यताके उदाहरण हैं।
मानव हित में काम ना करने वाली संस्कृति का नाम असंस्कृति है। इसे संस्कृति
नही कहा जा सकता। यह निश्चित ही असभ्यता को जन्म देती है। मानव हित में निरंतर परिवर्तनशीलता
का ही नाम संस्कृति है। यह बुद्धि और विवेक
से बना एक ऐसा तथ्य है जिसकी कभी दल बाँधकर रक्षा करने की जरुरत नही पड़ती। इसका कल्याणकारी
अंश अकल्याणकारी अंश की तुलना में सदा श्रेष्ठ और स्थायी है।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI KSHITIZ CHAPTER 12
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 130-131)
प्रश्न 1 लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' की सही समझ अब तक क्यों
नहीं बन पाई है?
उत्तर- लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और ‘संस्कृति' शब्दों का प्रयोग बहुत मनमाने
ढंग से होता रहा है। यहाँ तक कि उनके साथ 'भौतिक' और 'आध्यात्मिक' जैसे विशेषण जोड़े
जाते रहे हैं। इन विशेषणों के कारण इन शब्दों की समझ और अधिक गड़बड़ा जाती है।
प्रश्न 2 आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही
प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर- आग की खोज मानव की सबसे बड़ी आवश्कता की पूर्ति करती है। आग की खोज के
पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, सम्भवत: आग की खोज का मुख्य कारण रोशनी की ज़रुरत, पेट
की ज्वाला, ठण्ड या जानवरों से बचाव की रही होगी। अंधेरे में जब मनुष्य कुछ नहीं देख
पा रहा था या ठण्ड से उसका बुरा हाल था, तब उसे आग की ज़रुरत महसूस हुई होगी। कच्चे
माँस का स्वाद अच्छा न लगने के कारण उसे पकाकर खाने की इच्छा से या खूँखार जानवरों
को भगाने के लिए आग का आविष्कार हुआ हो।
प्रश्न 3 वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है?
उत्तर- लेखक के अनुसार संस्कृत व्यक्ति वह है जो अपनी बुद्धि तथा विवेक से
किसी नए तथ्य का अनुसन्धान और दर्शन करता हो। जिस व्यक्ति में ऐसी बुद्धि तथा योग्यता
जितनी अधिक मात्रा में होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक संस्कृत होगा। जैसे- न्यूटन ने
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। तथा जिसने भी अपनी
योग्यता से सुई-धागे की खोज की हो वह भी संस्कृत व्यक्ति था।
प्रश्न 4 न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन
द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी
न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर- लेखक ने संस्कृत मानव की परिभाषा ऐसी दी है कि उसमें न्यूटन जैसे आविष्कारक
और चिंतक ही आ पाते हैं। उनके अनुसार, जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से किसी नए
तथ्य का अनुसंधान और दर्शन कर सकता है, वही संस्कृत व्यक्ति है। न्यूटन ने भी यही किया।
उसने अपनी योग्यता, प्रेरणा और प्रवृत्ति से विज्ञान के विभिन्न नियमों को जाना और
उसे जनता के सामने रखा। इस कारण वह संस्कृत व्यक्ति हुआ।
अन्य लोग, जो न्यूटन द्वारा खोजे गए सभी सिद्धांतों की जानकारी रखते हैं और
अन्य सूक्ष्म सिद्धांत भी जानते हैं, न्यूटन जैसे संस्कृत नहीं हो सकते। कारण? उन्होंने
अपनी योग्यता और प्रवृत्ति से ज्ञान का आविष्कार नहीं किया। उन्होंने तो न्यूटन या
अन्य वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए सिद्धांतों को जाना-भर।
प्रश्न 5 किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार
हुआ होगा?
उत्तर- कुछ महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं
की पूर्ति के किए सुई धागे का आविष्कार हुआ होगा–
1. सुई-धागे का आविष्कार शरीर को ढ़कने तथा सर्दियों में ठंड से बचने के उद्देश्य
से हुआ होगा।
2. आवश्यकतानुसार शरीर को सजाने की जरूरत महसूस हुई होगी, इसलिए कपड़े के दो टुकडों
को एक करके जोड़ने के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा।
प्रश्न 6 मानव संस्कृत एक अविभाज्य वस्तु है। किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख
कीजिए जब–
a. मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।
b. जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर-
a.
1.
वर्ण व्यवस्था के नाम पर मानव
संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं।
2.
धर्म के नाम पर भी मानव संस्कृति
को विभाजित करने की चेष्टाएँ की जाती हैं जिसका परिणाम हम हिंदुस्तान तथा पाकिस्तान
नामक दो देश के रूप में देखते हैं।
b.
मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण भी दिया है–
1.
संसार के मज़दूरों को सुखी
देखने के लिए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया।
2.
सिद्धार्थ ने अपना घर केवल
मानव कल्याण के लिए छोड़ दिया।
3.
जब जापान पर परमाणु बम गिराया
गया तब सारी संस्कृतियों ने इसका विरोध किया।
4. सांप्रदायिक हिंसा का सारा विश्व विरोधी है, तो सारा विश्व धर्म-भेद को भूलकर
सारी संस्कृतियो की अच्छी बातों को खुले मन से स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 7 आशय स्पष्ट कीजिए-
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे
उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उत्तर-
लेखक प्रश्न करता है-मानव की जो योग्यता, भावना, प्रेरणा
और प्रवृत्ति उससे विनाशकारी हथियारों का निर्माण करवाती है, उसे हम संस्कृति कैसे
कहें? वह तो आत्म-विनाश कराती है। लेखक कहता है- ऐसी भावना और योग्यता को असंस्कृति
कहना चाहिए।
रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 131)
प्रश्न 1 लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है।
आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।
उत्तर- सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे से अति सूक्ष्म रूप से जुड़े हैं, एक के
अभाव में दूसरे को स्पष्ट करना कठिन हैं, जहाँ हम ये कह सकते हैं कि संस्कृति एक विचार
है, तो वहीँ सभ्यता जीवन जीने की कला है।
संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन है, जो जीवन को समृद्ध बनाती है, तथा
मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आता है।
भाषा-अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 131)
प्रश्न 1 निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए-
गलत-सलत |
आत्म-विनाश |
महामानव |
पददलित |
हिंदू-मुसलिम |
यथोचित |
सप्तर्षि |
सुलोचना |
उत्तर-
1. गलत-सलत - गलत और सलत (द्वंद समास)
2. महामानव - महान है जो मानव (कर्म धारय समास)
3. हिंदू-मुसलिम - हिंदू और मुसलिम (द्वंद समास)
4. सप्तर्षि - सात ऋषियों का समूह (द्विगु समास)