In class 10, students get the chance to delve into the poetic world of Meera Ke Pad, where they encounter the devotional fervor and spiritual depth of Meera Bai's poetry. These pads (poems) are not just verses, but they are a window into the soul of one of the most revered saints in Indian history. As students explore Meera Ke Pad in their Hindi literature syllabus, they uncover a blend of passion, devotion, and a timeless spiritual journey.
The explanation of Meera Ke Pad for class 10 is designed to make the profound messages accessible to young minds. It helps students understand the context of the time when Meera Bai wrote these poems and her intense devotion to Lord Krishna. The summary of Meera Ke Pad for class 10 goes beyond mere translation, offering a glimpse into the essence of her poetic expressions, making it easier for students to connect with the emotional and spiritual layers of the text.
Understanding Meera Ke Pad can be an enlightening experience, as it opens up discussions about love, faith, and the idea of surrender to a higher power. The bhavarth, or the deeper meaning of Meera Ke Pad, is an essential part of class 10 learning, where educators help students appreciate the subtleties and learnings from Meera Bai’s life and writings.
The class curriculum also includes a focused section on Meera Ke Pad class 10 question and answer, which is instrumental in testing the students' comprehension of the text. These questions not only prepare students for their examinations but also encourage them to think critically about the themes and philosophies presented in the poetry.
Meera Ke Pad question answers for class 10 are thoughtfully created to provoke reflection and discussion, ensuring students are not just memorizing the content but are also engaging with it on a deeper level. The Pad class 10 question answers segment also helps students in developing their abilities to analyze literary works, a skill that is valuable in any academic pursuit.
In summary, Meera Ke Pad in class 10 is not just about understanding a piece of literary work; it's about immersing oneself in the devotional and lyrical world of a saint who left a lasting mark on the cultural and spiritual fabric of India. Through her poetry, students get a chance to explore themes of devotion and the quest for the divine, making it a significant part of their educational journey.
अध्याय-2: पद
- मीराबाई
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढतो गजराज राख्यो , काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।
भावार्थ - इस पद में मीराबाई अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण
से विनती करते हुए कहतीं हैं कि हे प्रभु अब आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें। जिस तरह
आपने अपमानित द्रोपदी की लाज उसे चीर प्रदान करके बचाई थी जब दु:शासन ने उसे निर्वस्त्र
करने का प्रयास किया था। अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण
किया था। आपने ही डुबते हुए हाथी की रक्षा की थी और उसे मगरमच्छ के मुँह से बचाया था।
इस प्रकार आपने उस हाथी की पीड़ा दूर की थी। इन उदाहरणों को देकर दासी मीरा कहतीं हैं
की हे गिरिधर लाल! आप मेरी पीडा भी दूर कर मुझे छुटकारा दीजिये।
स्याम म्हाने चाकर राखे जी,गिरिधरी लाल म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में भेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥
भावार्थ - इन पदों में मीरा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना
करते हुए कहतीं हैं कि हे श्याम! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिये। आपकी दासी बनकर में
आपके लिए बाग–बगीचे लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें। इसी बहाने मैं रोज आपके दर्शन
कर सकूँगी। मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करुँगी। इससे
उन्हें कृष्ण के नाम स्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीर भी
प्राप्त होगी। इस प्रकार दर्शन, स्मरण और भाव–भक्ति नामक तीनों बातें मेरे जीवन में
रच–बस जाएँगी।
अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य
का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोरपंखों का बना हुआ मुकुट
सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में वनफूलों की माला शोभायमान है।
वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु
का बहुत ऊँचे-ऊँचे महल हैं। वे उस महल के आँगन के बीच–बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी
बनाना चाहती हैं। वे कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं।
मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! आप आधी रात के समय मुझे
यमुना जी के किनारे अपने दर्शन देकर कृतार्थ करें। हे गिरिधर नागर! मेरा मन आप से मिलने
के लिए बहुत व्याकुल है इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI SPARSH CHAPTER 2
प्रश्न अभ्यास (पृष्ठ संख्या 11)
प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
a. पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने
की विनती किस प्रकार की है?
b. दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों
करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
c. मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रुप-सौंदर्य का
वर्णन कैसे किया है?
d. मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
e. वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य
करने को तैयार हैं?
उत्तर-
a. पहले पद में मीरा ने हरि ‘कृष्ण’ से कहा
है कि जिस प्रकार आपने भरी सभा में द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर उसका अपमान होने से
बचाया था। भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा भगवान नरसिंह का रूप धारण करके की। उसी
प्रकार आप मुझे भी अपने दर्शन देकर मेरी पीड़ा को हर लो।
b. मीरा का हृदय कृष्ण के पास रहना चाहता है।
उसे पाने के लिए इतना अधीर है कि वह उनकी सेविका बनना चाहती हैं। वह बाग-बगीचे लगाना
चाहती हैं जिसमें श्री कृष्ण घूमें, कुंज गलियों में कृष्ण की लीला के गीत गाएँ ताकि
उनके नाम के स्मरण का लाभ उठा सके। इस प्रकार वह कृष्ण का नाम, भावभक्ति और स्मरण की
जागीर अपने पास रखना चाहती हैं।
c. मीरा ने कृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन करते
हुए कहा है कि उनके सिर पर मोर मुकुट तथा शरीर पर पिले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं और
गले में वैजंती फूलों की माला पहनी है, मुरली की मधुर तान से सबको मोहित करते हुए वे
गायें चराते हैं और बहुत सुंदर लगते हैं।
d. मीराबाई की भाषा मूलतः बृजभाषा है, जो तत्कालीन
काव्य की भाषा के रूप में प्रचलित थी। मूलतः राजस्थान की होने के कारण उनकी भाषा पर
राजस्थानी भाषा का भी अच्छा प्रभाव है। मीरा की कविता में एक रहस्य है जो उनके लौकिक
प्रेम को उनके अलौकिक प्रेम से जोड़ता है। जब वे कृष्ण से अपने वियोग की बात करती हैं
तो वे कहती हैं कि इस वियोग से वे अत्यंत दुखी हैं और कृष्ण से मिलन के लिए बेचैन हैं।
दूसरे रूप में वे आत्मा और परमात्मा के मिलन की ओर संकेत करती दिखाई देती हैं, क्योंकि
किसी भी जीव को संपूर्ण आनन्द परमात्मा से मिलन के बाद ही प्राप्त होता है।
e. मीरा कृष्ण को पाने के लिए अनेकों कार्य
करने को तैयार हैं। वह सेवक बन कर उनकी सेवा कर उनके साथ रहना चाहती हैं, उनके विहार
करने के लिए बाग बगीचे लगाना चाहती है। वृंदावन की गलियों में उनकी लीलाओं का गुणगान
करना चाहती हैं, ऊँचे-ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि आसानी से कृष्ण
के दर्शन कर सकें। कुसुम्बी रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को कृष्ण से मिलकर उनके दर्शन
करना चाहती हैं।
प्रश्न 2 निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य
स्पष्ट कीजिए-
a. हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रुप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
b. बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीरॉ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
c. चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
उत्तर-
a. इस पद में मीरा ने कृष्ण के भक्तों पर कृपा
दृष्टि रखने वाले रुप का वर्णन किया है। वे कहती हैं - "हे हरि जिस प्रकार आपने
अपने भक्तजनों की पीड़ा हरी है, मेरी भी पीड़ा उसी प्रकार दूर करो। जिस प्रकार द्रोपदी
का चीर बढ़ाकर, प्रह्लाद के लिए नरसिंह रुप धारण कर आपने रक्षा की, उसी प्रकार मेरी
भी रक्षा करो।" इसकी भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। 'र' ध्वनि का बार बार प्रयोग
हुआ है तथा 'हरि' शब्द में श्लेष अलंकार है।
b. मीरा कहती हैं कि आपने गजराज की रक्षा करने
के लिए मगरमच्छ का वध किया। हे गिरधरलाल आप अपनी दासी मीरा की पीड़ा को भी दूर करो।
काटी कुजर में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है राजस्थानी मिश्रित बृजभाषा के
कारण गेयता और संगीतात्मकता की भी प्रचुरता है।
c. इसमें मीरा कृष्ण की चाकरी करने के लिए तैयार
है क्योंकि इससे वह उनके दर्शन, नाम, स्मरण और भावभक्ति पा सकती है। इसमें दास्य भाव
दर्शाया गया है। भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है। अनुप्रास अलंकार, रुपक अलंकार और
कुछ तुकांत शब्दों का प्रयोग भी किया गया है।
प्रश्न अभ्यास
(पृष्ठ संख्या 11)
प्रश्न 1 उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित
शब्दों के प्रचलित रुप लिखिए-
उदाहरण - भीर - पीड़ा/ कष्ट/ दुख; री - की
a. चीर।
b. बूढ़ता।
c. धर्यो।
d. लगास्यूँ।
e. कुण्जर
f. घणा।
g. बिन्दरावन।
h. सरसी।
i. रहस्यूँ।
j. हिवड़ा।
k. राखो।
l. कुसुम्बी।
उत्तर-
a. चीर- वस्त्र।
b. बूढ़ता- डूबना।
c. धर्यो- धारण।
d. लगास्यूँ- लगाना।
e. कुण्जर- हाथी।
f. घणा- बहूत।
g. बिन्दरावन- वृंदावन।
h. सरसी- हर्ष।
i. रहस्यूँ- रहूँ ।
j. हिवड़ा- हृदय।
k. राखो- रखना ।
l. कुसुम्बी - लाल (केसरिया)।