Naubatkhane Mein Ibadat Question Answer

Step into the world of Naubatkhane Mein Ibadat, a fascinating chapter from Class 10 Hindi that takes students on a historical journey filled with culture and spirituality. This chapter isn't just a part of the syllabus; it is an experience that blends music, worship, and history, offering a unique perspective on how they intertwine within the setting of a Naubatkhane, which historically was a place where musicians performed in royal courts.

Finding the rhythm within the text is key, and as students engage with the Naubatkhane Mein Ibadat question answers, they tap into a deeper understanding of the text. The interaction with these question answers sharpens their minds, allowing them to explore the intricate layers of the chapter. Each question and answer session becomes an opportunity to delve further into the era and the ethos that the Naubatkhane symbolized.

The Naubatkhane Mein Ibadat summary provides a concise and compelling encapsulation of the chapter, presenting the core themes and essence of the narrative in a manner that is accessible and engaging. It acts as a window into the grandeur and solemnity of the Naubatkhane's past.

For those studying Naubatkhane Mein Ibadat in Class 10, the question answers are not merely academic exercises but invitations to immerse themselves in a world where devotion and music meet. They serve as a foundation for understanding how the MCQs and detailed prashn uttar relate to the chapter's context and content.

As you explore Class 10 Hindi Chapter 11, each question answered and every summary read brings you closer to understanding the historical and cultural significance of the Naubatkhane. This is where learning goes beyond textbooks and exams—it's where education becomes an exploration of India’s rich heritage.

With resources tailored to provide clarity on each point, NCERT Class 10 Hindi becomes less daunting. The study of Naubatkhane Mein Ibadat thus becomes not just a duty but a journey of discovery, resonating with the soulful harmony of the past and enriching the minds of the learners with timeless knowledge.

अध्याय-12: नौबतखाने में इबादत

सारांश

अम्मीरुद्दीन उर्फ़ बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म बिहार में डुमराँव के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ। इनके बड़े भाई का नाम शम्सुद्दीन था जो उम्र में उनसे तीन वर्ष बड़े थे। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव के निवासी थे। इनके पिता का नाम पैग़म्बरबख़्श खाँ तथा माँ मिट्ठन थीं। पांच-छह वर्ष होने पर वे डुमराँव छोड़कर अपने ननिहाल काशी आ गए। वहां उनके मामा सादिक हुसैन और अलीबक्श तथा नाना रहते थे जो की जाने माने शहनाईवादक थे।  वे लोग बाला जी के मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर अपनी दिनचर्या का आरम्भ करते थे। वे विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने का काम करते थे।

ननिहाल में 14 साल की उम्र से ही बिस्मिल्लाह खाँ ने बाला जी के मंदिर में रियाज़ करना शुरू कर दिया। उन्होंने वहां जाने का ऐसा रास्ता चुना जहाँ उन्हें रसूलन और बतूलन बाई की गीत सुनाई देती जिससे उन्हें ख़ुशी मिलती। अपने साक्षात्कारों में भी इन्होनें स्वीकार किया की बचपन में इनलोगों ने इनका संगीत के प्रति प्रेम पैदा करने में भूमिका निभायी। भले ही वैदिक इतिहास में शहनाई का जिक्र ना मिलता हो परन्तु मंगल कार्यों में इसका उपयोग प्रतिष्ठित करता है अर्थात यह मंगल ध्वनि का सम्पूरक है। बिस्मिल्लाह खाँ ने अस्सी वर्ष के हो जाने के वाबजूद हमेशा पाँचो वक्त वाली नमाज में शहनाई के सच्चे सुर को पाने की प्रार्थना में बिताया। मुहर्रम के दसों दिन बिस्मिल्लाह खाँ अपने पूरे खानदान के साथ ना तो शहनाई बजाते थे और ना ही किसी कार्यक्रम में भाग लेते। आठवीं तारीख को वे शहनाई बजाते और दालमंडी से फातमान की आठ किलोमीटर की दुरी तक भींगी आँखों से नोहा बजाकर निकलते हुए सबकी आँखों को भिंगो देते।

फुरसत के समय वे उस्ताद और अब्बाजान को काम याद कर अपनी पसंद की सुलोचना गीताबाली जैसी अभिनेत्रियों की देखी फिल्मों को याद करते थे। वे अपनी बचपन की घटनाओं को याद करते की कैसे वे छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनाता तथा बाद में उनकी 'मीठी शहनाई' को ढूंढने के लिए एक-एक कर शहनाई को फेंकते और कभी मामा की शहनाई पर पत्थर पटककर दाद देते। बचपन के समय वे फिल्मों के बड़े शौक़ीन थे, उस समय थर्ड क्लास का टिकट छः पैसे का मिलता था जिसे पूरा करने के लिए वो दो पैसे मामा से, दो पैसे मौसी से और दो पैसे नाना से लेते थे फिर बाद में घंटों लाइन में लगकर टिकट खरीदते थे। बाद में वे अपनी पसंदीदा अभिनेत्री सुलोचना की फिल्मों को देखने के लिए वे बालाजी मंदिर पर शहनाई बजाकर कमाई करते। वे सुलोचना की कोई फिल्म ना छोड़ते तथा कुलसुम की देसी घी वाली दूकान पर कचौड़ी खाना ना भूलते।

काशी के संगीत आयोजन में वे अवश्य भाग लेते। यह आयोजन कई वर्षों से संकटमोचन मंदिर में हनुमान जयंती के अवसर हो रहा था जिसमे शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन-वादन की सभा होती है। बिस्मिल्लाह खाँ जब काशी के बाहर भी रहते तब भी वो विश्वनाथ और बालाजी मंदिर की तरफ मुँह करके बैठते और अपनी शहनाई भी उस तरफ घुमा दिया करते। गंगा, काशी और शहनाई उनका जीवन थे। काशी का स्थान सदा से ही विशिष्ट रहा है, यह संस्कृति की पाठशाला है। बिस्मिल्लाह खाँ के शहनाई के धुनों की दुनिया दीवानी हो जाती थी।

सन 2000 के बाद पक्का महाल से मलाई-बर्फ वालों के जाने से, देसी घी तथा कचौड़ी-जलेबी में पहले जैसा स्वाद ना होने के कारण उन्हें इनकी कमी खलती। वे नए गायकों और वादकों में घटती आस्था और रियाज़ों का महत्व के प्रति चिंतित थे। बिस्मिल्लाह खाँ हमेशा से दो कौमों की एकता और भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देते रहे। नब्बे वर्ष की उम्र में 21 अगस्त 2006 को उन्हने दुनिया से विदा ली । वे भारतरत्न, अनेकों विश्वविद्यालय की मानद उपाधियाँ व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा पद्मविभूषण जैसे पुरस्कारों से जाने नहीं जाएँगे बल्कि अपने अजेय संगीतयात्रा के नायक के रूप में पहचाने जाएँगे।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI CHAPTER 11

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 122)

प्रश्न 1 शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

उत्तर- शहनाई की दुनिया में डुमराँव को दो कारणों से याद किया जाता है-

1.   डुमराँव प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मभूमि है।

2.   यहाँ सोन नदी के किनारे वह नरकट घास मिलती है जिसकी रीड का उपयोग शहनाई बजाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2 बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर- शहनाई ऐसा वाद्य है, जिसे मांगलिक अवसरों पर ही बजाया जाता है। "उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ" शहनाई वादन के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रखते हैं। इन्हीं कारणों की वजह से बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा जाता है।

प्रश्न 3 सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों में शाह' की उपाधि क्यों दी गई होगी?

उत्तर- अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को 'सुषिर-वाद्य' कहते हैं। शहनाई को भी फूँककर बजाया जाता है। यह अन्य सभी सुषिर वाद्यों में श्रेष्ठ है। इसलिए शहनाई को 'सुषिर-वाद्यों' में शाह' का उपाधि दी गई है।

प्रश्न 4 आशय स्पष्ट कीजिए-

'फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।'

'मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।'

उत्तर- शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ खुदा से विनती करते हैं- हे खुदा! तू मुझे कभी फटा हुआ सुर न देना। शहनाई का बेसुरा स्वर न देना। लुंगिया अगर फटी रह गई तो कोई बात नहीं। आज यह फटी है तो कल सिल जाएगी। आज गरीबी है तो कल समृद्धि भी आ जाएगी। परंतु भूलकर भी बेसुरा राग न देना, शहनाई की कला में कमी न रखना।

बिस्मिल्ला खाँ खुदा से विनती करते हैं-हे खुदा! तू मुझे ऐसा सच्चा और मार्मिक सुर प्रदान कर जिसे सुनकर श्रोताओं की आँखों से आँसू ढुलक पड़े। जिसमें हृदय को गदगद करने की, तरल करने की, करुणाई करने की शक्ति हो।

प्रश्न 5 काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?

उत्तर- काशी से बहुत सी परंपराएँ लुप्त हो गई है। संगीत, साहित्य और अदब की परंपराओं में धीरे-धीरे कमी आ रही है। अब काशी से धर्म की प्रतिष्ठा भी लुप्त होती जा रही है। वहाँ हिंदु और मुसलमानों में पहले जैसा भाईचारा नहीं है। पहले काशी खानपान की चीज़ों के लिए विख्यात हुआ करता था। परन्तु अब उनमें परिवर्तन आ रहा हैं। काशी की इन सभी लुप्त होती परंपराओं के कारण बिस्मिल्ला खाँ दु:खी थे।

प्रश्न 6 पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि–

a.   बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

b.   वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।

उत्तर-

a.   उनका धर्म मुस्लिम था। वे अपने मजहब के प्रति समर्पित थे। पाँचों वक्त की नमाज़ अदा करते थे। मुहर्रम के महीने में आठवी तारीख के दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते थे व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते थे।

इसी तरह इनकी श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी और बालाजी मंदिर के प्रति भी थी। वे जब भी काशी से बाहर रहते थे। तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे और उसी ओर शहनाई बजाते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि काशी छोड़कर कहाँ जाए, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। इसलिए हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

b.   बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे। वे धर्मों से अधिक मानवता, आपसी प्रेम तथा भाईचारे को महत्त्व देते थे। वे हिंदु तथा मुस्लिम धर्म दोनों का ही सम्मान करते थे। भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी उनमें लेश मात्र भी घमंड नहीं था। वे भेदभाव और बनावटीपन से दूर रहते थे। दौलत से अधिक सुर उनके लिए ज़रुरी था।

प्रश्न 7 बिस्मिल्ला ख़ाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत राधना को समृद्ध किया?

उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ के संगीत-जीवन को निम्नलिखित लोगों ने समृद्ध किया-

रसूलनबाई, बतूलनबाई, मामूजान अलीबख्श खाँ, नाना, कुलसुम हलवाइन, अभिनेत्री सुलोचना।

रसूलनबाई और बतूलनबाई की गायिकी ने उन्हें संगीत की ओर खींचा। उनके द्वारा गाई गई ठुमरी, टप्पे और दादरा सुनकर उनके मन में संगीत की ललक जागी। वे उनकी प्रारंभिक प्रेरिकाएँ थीं। बाद में वे अपने नाना को मधुर स्वर में शहनाई बजाते देखते थे तो उनकी शहनाई को खोजा करते थे। मामूजान अलीबख्श जब शहनाई बजाते-बजाते सम पर आते थे तो बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर जमीन में मारा करते थे। इस प्रकार उन्होंने संगीत में दाद देना सीखा।

बिस्मिल्ला खाँ कुलसुम की कचौड़ी तलने की कला में भी संगीत का आरोह-अवरोह देखा करते थे। अभिनेत्री सुलोचना की फिल्मों ने भी उन्हें समृद्ध किया।

रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 122)

प्रश्न 1 बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

उत्तर-"बिस्मिल्ला खाँ" के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें हमें प्रभावित करती हैं–

1.   भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।

2.   उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।

3.   वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।

4.   वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।

5.   ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।

6.   मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।

प्रश्न 2 मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- मुहर्रम पर्व के साथ बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई का सम्बन्ध बहुत गहरा है। मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते थे। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। इन दिनों कोई राग-रागिनी नहीं बजाई जाती थी। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।

प्रश्न 3 बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। उन्होंने 80 वर्षों तक लगातार शहनाई बजाई। उनसे बढ़कर शहनाई बजाने वाला भारत-भर में अन्य कोई नहीं हुआ। फिर भी वे अंत तक खुदा से सच्चे सुर की माँग करते रहे। उन्हें अंत तक लगा रहा कि शायद अब भी खुदा उन्हें कोई सच्चा सुर देगा जिसे पाकर वे श्रोताओं की आँखों में आँसू ला देंगे। उन्होंने अपने को कभी पूर्ण नहीं माना। वे अपने पर झल्लाते भी थे कि क्यों उन्हें अब तक शहनाई को सही ढंग से बजाना नहीं आया। इससे पता चलता है कि वे सच्चे कला-उपासक थे। वे दो-चार राग गाकर उस्ताद नहीं हो गए। उन्होंने जीवन-भर अभ्यास-साधना जारी रखी।

भाषा-अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 122-123)

प्रश्न 1 निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-

a.   यह जरूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

b.   रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

c.   रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।

d.   उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।

e.   हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।

f.    खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।

उत्तर-

a.   शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

b.   जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

c.   जो डुमराँव में मुख्यत: सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

d.   कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

e.   जिसकी गमक उसी में समाई है। (विशेषण आश्रित उपवाक्य)

f.    पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)

प्रश्न 2 निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-

a.   इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

b.   काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

c.   धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

d.   काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

उत्तर-

a.   यह वही बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।

b.   काशी में संगीत का आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

c.   धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, शहनईया पे मिला है,।

d.   यह जो काशी का नायाब हीरा है वह हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

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