अध्याय-5: उषा
कवि ने ‘उषा’ कविता में सुबह-सवेरे सूर्य के निकलने से पहले
को प्राकृतिक शोभा का सुंदर चित्रण किया है। आकाश का गहरा नीलापन सफ़ेद शंख के समान
दिखाई देने लगता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है जैसे किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप-पोत
दिया हो जो अभी गीला है। उसका रंग गहरा है। जैसे ही सूर्य कुछ ऊँचा उठता है और उसकी
लाली फैलती है तो ऐसे प्रतीत होने लगता है जैसे केसर से युक्त काली सिल को किसी ने
धो दिया है या उसपर लाल खड़िया चाक मल दी हो। नीले आकाश में सूर्य ऐसे शोभा देने लगता
है जैसे कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आती हुई रह-रहकर अपने गोरेपन की आभा बिखेर रही
हो। जब सूर्य पूर्व दिशा में दिखाई देने लगता है तो उसका जादुई प्रभाव समाप्त हो जाता
है।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 12 HINDI CHAPTER 5 AAROH
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 37)
कविता के साथ
प्रश्न 1 कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि
उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है?
उत्तर- कवि ने गाँव की सुबह का सुंदर चित्रण करने के लिए गतिशील
बिंब-योजना की है। भोर के समय आकाश नीले शंख की तरह पवित्र लगता है। उसे राख से लिपे
चौके के समान बताया गया है जो सुबह की नमी के कारण गीला लगता है। फिर वह लाल केसर से
धोए हुए सिल-सा लगता है। कवि दूसरी उपमा स्लेट पर लाल खड़िया मलने से देता है। ये सारे
उपमान ग्रामीण परिवेश से संबंधित हैं। आकाश के नीलेपन में जब सूर्य प्रकट होता है तो
ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युवती का गोरा शरीर झिलमिला रहा है। सूर्य के उदय
होते ही उषा का जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दृश्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें
गतिशीलता है।
प्रश्न 2 भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का
स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या
विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर- नई कविता के लगभग सभी कवियों ने सदा कुछ विशेष कहना चाहा
है अथवा कविता की विषयवस्तु को नए ढंग से प्रस्तुत करना चाहा है। उन्होंने इसके लिए
कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच स्थान छोड़ दिया है। जो कुछ उन्होंने इसके
माध्यम से कहा है, कविता उससे नए अर्थ देती है। उपरोक्त पंक्तियों में यद्यपि सुबह
के आकाश को चौका जैसा माना है और यदि इसके कोष्ठक में दी गई पंक्ति को देखा जाए तो
तब चौका जो अभी-अभी राख से लीपा है, उसका रंग मटमैला है। इसी तरह सुबह का आकाश भी दिखाई
देता है।
अपनी रचना
अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त
का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर-
सूर्योदय
लो पूर्व दिशा में उग आया
सूरज
लाल-लाल गोले के समान
चारों ओर लालिमा फैलती चली गई
और सभी प्राणी जड़ से चेतन
बन गए।
सूर्यास्त
सूरज हुक्के की चिलम जैसा लगता है,
इसे किसान खींच रहा है
पशुओं के झुंड चले आ रहे हैं
और पक्षियों की वापिसी की उड़ान
तेज हो चली है
धीरे-धीरे सब कुछ अदृश्य
हो चला है
और
सूरज पहाड़ की ओट दुबक गया।
आपसदारी
प्रश्न 1 सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है।
प्रसाद की कविता 'बीती विभावरी जाग री' और अज्ञेय की 'बावरा अहेरी' की पंक्तियाँ आगे
बॉक्स में दी जा रही है। 'उषा' कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए
गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको
ज़्यादा अच्छी लगी और क्यों?
·
उपमान
·
शब्दचयन
·
परिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए-
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
जयशंकर प्रसाद-
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बैडौल
उड़ने जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिकर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा
को
और दूर कचरा चलानेवाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी।
- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन 'अज्ञेय'
उत्तर-
उपमान: हमने तीनों कविताओं का विश्लेषण किया है। जयशंकर प्रसाद की 'बीती विभावरी जाग
री' कविता हमें बहुत अच्छी लगी है। इसके उपमान इस प्रकार हैं-
·
अंबर को पनघट के समान
बताया गया है।
·
ऊषा को स्त्री के समान
तथा तारों को घड़े के समान बताया गया है।
·
पत्तों से भरी डाली
को आंचल के समान बताया है।
·
ओस से भरी लता को स्त्री
की संज्ञा दी गई है
·
लता रूपी स्त्री फूलों
रूपी गागर में पराग रूपी शहद भर लाई है।
जैसे उपमानों का प्रयोग कर प्रसाद जी ने कविता में जान डाल दी
है। प्रकृति का जितना सुंदर मानवीकरण इस कविता में जान पड़ा है, वह बाकी दो कविता में
जीवंत नहीं हो पाया है।
शब्दाचयन: प्रसाद जी ने जिस प्रकार के शब्दों
का चयन किया है, उसने कविता के सौंदर्य में चार चांद लगा दिए हैं। उदाहरण के लिए- बीती
विभावरी, तारा-घट ऊषा नागरी, खग-कुल कुल-कुल सा, किसलय का अंचल, मधु मुकुल नवल रस गागरी,
अमंद, अलकों, मलयज शब्दों का प्रयोग कर प्रसाद जी ने कविता में गेयता का गुण ही नहीं
जोड़ा बल्कि पाठक का मन भी इनके साथ जोड़ दिया है। ऐसे बेजोड़ शब्द रचना बहुत ही कम
कविताओं में देखने को मिलती है। बाकी कविताओं में इस प्रकार का शब्दाचयन देखने को नहीं
मिलता है।
परिवेश: तीनों कविता में सुबह के परिवेश का ही वर्णन है। परन्तु स्थिति अलग-अलग है।
'उषा' कविता के कवि ने गाँव का चित्र चित्रित किया है। 'बीती विभावरी जाग री' के कवि
ने पनघट, नदी तथा लता का चित्र चित्रित किया है। 'बावरा अहेरी' के कवि ने पक्षीवृंदों,
मंदिर तथा बाग का चित्र चित्रित किया है। अतः बेशक भोर का वर्णन हो लेकिन परिवेश भिन्न-भिन्न हैं।