अध्याय-7: कवितावली
(i) कवितावली (उत्तर-कांड से) प्रसंग में कवि ने अपने समय का
यथार्थ चित्रण किया है। कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर,
चोर आदि सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है। समाज का उच्च और निम्न वर्ग धर्म-अधर्म का
प्रत्येक कार्य करता है। यहाँ तक कि लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा-बेटी को बेच रहे
हैं।
पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है। समाज में किसान के पास
करने को खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती। व्यापारी के पास व्यापार नहीं तथा नौकरों
के पास करने के लिए कोई कार्य नहीं। समाज में चारों ओर बेकारी, भूख, गरीबी और अधर्म
का बोलबाला है। अब तो ऐसी अवस्था में दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाले श्री राम ही कृपा
कर सकते हैं। अंत में कवि समाज में फैली जाति-पाति और छुआछूत का भी – खंडन करते हैं।
(ii) ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग लोक-नायक तुलसीदास
के श्रेष्ठ महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड से लिया गया । है। प्रस्तुत प्रसंग
में कवि ने लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के पश्चात उनकी मूर्छा-अवस्था तथा राम के विलाप
का कारुणिक चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ कवि ने शोक में डूबे राम के प्रलाप तथा हनुमान
जी का संजीवनी बूटी लेकर आने की घटना का सजीव अंकन किया है।
कवि ने करुण रस में वीर रस का अनूठा मिश्रण किया है। लक्ष्मण-मूर्छा
के पश्चात हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे तो भरत ने उन्हें राक्षस समझकर
तीर मारा था, जिससे वे मूर्च्छित हो गए थे। भरत जी ने उन्हें स्वस्थ कर अपने बाण पर
बैठाकर राम जी के पास जाने के लिए कहा था। हनुमान जी भरत जी का गुणगान करते हुए प्रस्थान
कर गए थे। उधर श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को हृदय से लगा विलाप कर रहे हैं।
वे एकटक हनुमान जी के आने की प्रतीक्षा में हैं। श्री रामचंद्र
अपने अनुज लक्ष्मण को नसीहतें दे रहे हैं कि आप मेरे लिए माता-पिता को छोड़ यहाँ जंगल
में चले आए। जिस प्रेम के कारण तुमने सब कुछ त्याग दिया आज वही प्रेम मुझे दिखाओ। श्री
राम जी लक्ष्मण को संबोधन कर कह रहे हैं कि हे भाई! जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी अत्यंत
दीन होता है और मणि के बिना साँप दीन हो जाता है उसी प्रकार आपके बिना भी मेरा जीवन
भी अत्यंत दीन एवं असहाय हो जाएगा। राम सोच रहे हैं कि वह अयोध्या में क्या मुँह लेकर
जाएंगे। अयोध्यावासी तो यही समझेंगे कि नारी के लिए राम ने एक भाई को गवाँ दिया। समस्त
संसार में अपयश फैल जाएगा।
माता सुमित्रा ने लक्ष्मण को मेरे हाथ में यह सोचकर सौंपा था
कि मैं सब प्रकार से उसकी रक्षा करूँगा। श्री राम जी के सोचते-सोचते उनकी आँखों से
आँसू बहने लगे। वे ! फूट-कूटकर रोने लगे। हनुमान के संजीवनी बूटी ले आने पर श्री राम
अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। वैद्य ने तुरंत
लक्ष्मण का उपचार किया जिससे लक्ष्मण को होश आ गया। राम ने अपने अनुज को हृदय से लगाया।
इस दृश्य को देख राम-सेना के सभी सैनिक बहुत प्रसन्न हुए।
हनुमान जी ने पुनः वैद्य को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया।
रावण इस वृत्तांत को सुनकर अत्यधिक उदास हो उठा और व्याकुल होकर कुंभकरण के महल में
गया। कुंभकरण को जब रावण ने जगाया तो वह यमराज के समान शरीर धारण कर उठ खड़ा हुआ। रावण
ने उसके समक्ष अपनी संपूर्ण कथा का बखान किया। साथ ही हनुमान जी के रण-कौशल और बहादुरी
का परिचय भी दिया कि उसने अनेक असुरों का संहार कर दिया है।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 12 HINDI CHAPTER 7 AAROH
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 51-52)
पाठ के साथ
प्रश्न 1. कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें
कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
उत्तर- ‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के अध्ययन से पता चलता है
कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज
का यथार्थपरक चित्रण किया है। वे समाज के विभिन्न वगों का वर्णन करते हैं जो कई तरह
के कार्य करके अपना निर्वाह करते हैं। तुलसी दास तो यहाँ तक बताते हैं कि पेट भरने
के लिए लोग गलत-सही सभी कार्य करते हैं। उनके समय में भयंकर गरीबी व बेरोजगारी थी।
गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच देते थे। बेरोजगारी इतनी अधिक थी कि लोगों
को भीख तक नहीं मिलती थी। दरिद्रता रूपी रावण ने हर तरफ हाहाकार मचा रखा था।
प्रश्न 2. पेट की आग का शमन ईश्वर ( राम ) भक्ति का मेघ ही कर
सकता है—तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तुर्क संगत उत्तर दीजिए।
उत्तर- जब पेट में आग जलती है तो उसे बुझाने के लिए व्यक्ति
हर तरह का उलटा अथवा बुरा कार्य करता है, किंतु यदि वह ईश्वर का नाम जप ले तो उसकी
अग्नि का शमन हो सकता है क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है। तुलसी
का यह काव्य सत्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। ईश्वर भक्ति का मेघ
ही मनुष्य को अनुचित कार्य करने से रोकने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 3. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ,
अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति
बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में
क्या परिवर्तन आती?
उत्तर- तुलसीदास के युग में जाति संबंधी नियम अत्यधिक कठोर हो
गए थे। तुलसी के संबंध में भी समाज ने उनके कुल व जाति पर प्रश्नचिहन लगाए थे। कवि
भक्त था तथा उसे सांसारिक संबंधों में कोई रुचि नहीं थी। वह कहता है कि उसे अपने बेटे
का विवाह किसी की बेटी से नहीं करना। इससे किसी की जाति खराब नहीं होगी क्योंकि लड़की
वाला अपनी जाति के वर ढूँढ़ता है। पुरुष-प्रधान समाज में लड़की की जाति विवाह के बाद
बदल जाती है। तुलसी इस सवैये में अगर अपनी बेटी की शादी की बात करते तो संदर्भ में
बहुत अंतर आ जाता। इससे तुलसी के परिवार की जाति खराब हो जाती। दूसरे, समाज में लड़की
का विवाह न करना गलत समझा जाता है। तीसरे, तुलसी बिना जाँच के अपनी लड़की की शादी करते
तो समाज में जाति-प्रथा पर कठोर आघात होता। इससे सामाजिक संघर्ष भी बढ़ सकता था।
प्रश्न 4. धूत कहौ ….. वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई
पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक
सहमत हैं?
उत्तर- तुलसीदास का जीवन सदा अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने
अपने स्वाभिमान को जगाए रखा। इसी प्रकार के भाव उनकी भक्ति में भी आए हैं। वे राम के
सामने गिड़गिड़ाते नहीं बल्कि जो कुछ उनसे प्राप्त करना चाहते हैं वह भक्त के अधिकार
की दृष्टि से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी स्वाभिमानी भक्ति का परिचय देते
हुए राम से यही कहा है कि मुझ पर कृपा करो तो भक्त समझकर न कि कोई याचक या भिखारी समझकर।।
प्रश्न 5. व्याख्या करें-
i.
मम हित लागि तजेहु
पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥
ii.
जथा पंख बिनु खग अति
दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
iii.
माँग के खैबो, मसीत
को सोइबो, लैबोको एकु ने दैबको दोऊ॥
iv.
ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम
करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥
उत्तर-
i.
लक्ष्मण के मूर्चिछत
होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग
कर दिया और वनवास स्वीकार किया। तुमने वन में रहते हुए सर्दी, धूप, आँधी आदि सहन किया।
यदि मुझे पहले ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा तो मैं पिता की बात
नहीं मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता। राम लक्ष्मण की नि:स्वार्थ सेवा
को याद कर रहे हैं।
ii.
मूर्चिछत लक्ष्मण को
गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों
के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सँड़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती
है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे
जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम
के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।
iii.
तुलसीदास ने समाज से
अपनी तटस्थता की बात कही है। वे कहते हैं कि समाज की बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं
पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं हैं वे मात्र राम के सेवक हैं। जीवन-निर्वाह के लिए
भिक्षावृत्ति करते हैं तथा मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं
है।
iv.
तुलसीदास ने अपने समय
की आर्थिक दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस समय लोग छोटे-बड़े, गलतसही सभी प्रकार
के कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूख मिटानी है। वे कर्म की प्रवृत्ति व तरीके
की परवाह नहीं करते। पेट की आग को शांत करने के लिए वे अपने बेटा-बेटी अर्थात संतानों
को भी बेचने के लिए विवश हैं अर्थात पेट भरने के लिए व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है।
प्रश्न 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की
नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं?
तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर- जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा तो राम एकदम विह्वल हो उठे।
वे ऐसे रोए जैसे कोई बालक पिता से बिछुड़कर होता है। सारी मानवीय संवेदनाएँ उन्होंने
प्रकट कर दीं। जिस प्रकार मानव-मानव के लिए रोता है ठीक वैसा ही राम ने किया। राम के
ऐसे रूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की
अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। मानव में अपेक्षित सारी अनुभूतियाँ
इस शोक सभा में दिखाई देती हैं।
प्रश्न 7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के
बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
उत्तर- हनुमान लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय
पर्वत गए थे। उन्हें आने में देर हो रही थी। इधर राम बहुत व्याकुल हो रहे थे। उनके
विलाप से वानर सेना में शोक की लहर थी। चारों तरफ शोक का माहौल था। इसी बीच हनुमान
संजीवनी बूटी लेकर आ गए। सुषेण वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी से दवा तैयार कर के लक्ष्मण
को पिलाई तथा लक्ष्मण ठीक हो गए। लक्ष्मण के उठने से राम का शोक समाप्त हो गया और सेना
में उत्साह की लहर दौड़ गई। लक्ष्मण स्वयं उत्साही वीर थे। उनके आ जाने से सेना का
खोया पराक्रम प्रगाढ़ होकर वापस आ गया। इस तरह हनुमान द्वारा पर्वत उठाकर लाने से शोक-ग्रस्त
माहौल में वीर रस का आविर्भाव हो गया था।
प्रश्न 8. “जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई॥
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति
कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
उत्तर- इस वचन में नारी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई
देता है। राम ने अपनी पत्नी के खो जाने से बढ़कर लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने को महत्त्व
दिया है। उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि नारी के लिए मैंने भाई खो दिया है यह
सबसे बड़ा कलंक है। यदि नारी खो जाए तो उसके खो जाने से कोई बड़ी हानि नहीं होती। नारी
से बढ़कर तो भाई-बंधु हैं जिनके कारण व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाता है, यदि वही
खो जाए तो माथे पर जीवनभर के लिए कलंक लग जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1. कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के
मृत्यु-शोक पर ‘अज’ तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर
पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना
करें।
उत्तर- ‘सरोज-स्मृति’ में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु
पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक
मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है।
लक्ष्मण अभी सिर्फ़ मूर्चिछत ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे,
सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं
कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।
प्रश्न 2. ‘पेट ही को पचत, बेचते बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का
ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर
बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान
परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
उत्तर- भुखमरी की स्थिति बहुत दयनीय होती है। व्यक्ति भुखमरी
की इस दयनीय स्थिति में हर प्रकार का नीच कार्य करता है। कर्ज लेता है, बेटा-बेटी तक
को बेच देता है। जब कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है तो आत्महत्या तक कर लेता है। तुलसी का
समाज भी लगभग वैसा ही था जैसा कि आज का भारतीय मध्यवर्गीय समाज। उस समय की परिस्थिति
भी बहुत भयानक थी। लोगों के पास कमाने का कोई साधन न था ऊपर से अकाल ने लोगों को भुखमरी
के किनारे तक पहुँचा दिया। इस स्थिति से तंग आकर व्यक्ति वे सभी अनैतिक कार्य करने
लगे। बेटा-बेटी का सौदा करने लगे। यदि साहूकार का ऋण नहीं उतरता है तो स्वयं मर जाते
थे। ठीक यही परिस्थिति हमारे समाज की है। किसान कर्ज न चुकाने की स्थिति में आत्महत्याएँ
कर रहे हैं। कह सकते हैं कि तुलसी का युग और आज का युग एक ही है। आर्थिक दृष्टि से
दोनों युगों में विषमताएँ रहीं।
प्रश्न 3. तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं?
आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।
उत्तर- तुलसी के युग में बेकारी के निम्नलिखित कारण हो सकते
हैं-
·
खेती के लिए पानी उपलब्ध
न होना।
·
बार-बार अकाल पडना।
·
अराजकता।
·
व्यापार व वाणिज्य
में गिरावट।
आज बेकारी के कारण पहले की अपेक्षा भिन्न हैं-
·
भ्रष्टाचार।
·
शारीरिक श्रम से नफ़रत
करना।
·
कृषि-कार्य के प्रति
अरुचि।
·
जनसंख्या विस्फोट,
अशिक्षा तथा अकुशलता।
प्रश्न 4. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के।
इस प्रकार वे परस्पर सहोदर ( एक ही माँ के पेट से जन्मे ) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें
लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा-“मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।
उत्तर- राम और लक्ष्मण का जन्म यद्यपि एक ही माँ के पेट से नहीं
हुआ था, लेकिन इनके पिता एक ही थे-महाराज दशरथ। इसलिए राम ने लक्ष्मण को सहोदर भ्राता
कहा। लक्ष्मण ने सदा राम की सेवा की। उनके सुख के लिए अपने सुखों का त्याग कर दिया।
केवल एक ही पेट से जन्म लेने वाले सगे नहीं होते बल्कि वही भाई सहोदर होता है जो पारिवारिक
संबंधों को अच्छी तरह निभाता है। लक्ष्मण ने श्रीराम के दुख दूर करने के लिए जीवनभर
कष्ट उठाए। राम का छोटा-सा दुख भी उनसे देखा नहीं जाता था। इसलिए राम ने उन्हें लक्ष्य
कर ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ कहा।
प्रश्न 5. यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये
पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं।
ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।
उत्तर-
काव्य-रूप-
प्रबंध काव्य- रामचरितमानस (महाकाव्य)।
मुक्तक काव्य- विनयपत्रिका।
गेय पद शैली- गीतावली, कृष्ण गीतावली।