Ashudh vakya ko shudh karo class 6

शुद्ध वर्तनी

भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है और शब्द भाषा की सबसे छोटी सार्थक इकाई है। भाषा के माध्यम से ही मानव मौखिक एवं लिखित रूपों में अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है। इस वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए शब्दों का शुद्ध प्रयोग आवश्यक है। अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने में भी देर नहीं लगती। कई बार क्षेत्रीयता, उच्चारण भेद और व्याकरणिक ज्ञान के अभाव के कारण वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ हो जाती हैं।

वर्तनी संबंधी अशुद्धियों के कई कारण हो सकते हैं जिसमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है –

1. मात्रा प्रयोग –

हिन्दी के कई शब्द ऐसे हैं जिनको लिखते समय मात्रा के प्रयोग विषयक संशय उत्पन्न हो जाता है। ऐसे शब्दों का ठीक से उच्चारण करने पर उचित मात्रा प्रयोग किया जाना संभव होता है।

जैसे –


अशुद्ध
शुद्ध
अतिथी
अतिथि
इंदोर
इंदौर
उर्जा
ऊर्जा
ऊषा
उषा
करूण
करुणा
क्योंकी
क्योंकि
गितांजली
गीताजंलि
तियालीस
तैंतालिस
त्रिपुरारी
त्रिपुरारि
दवाईयाँ
दवाइयाँ
दीयासलाइ
दियासलाई

2. आगम –

शब्दों के प्रयोग में अज्ञानवश या भूलवश जब अनावश्यक वर्णों का प्रयोग किया जाए तो उसे आगम कहते हैं। आगम स्वर व व्यंजन दोनों का हो सकता है। अतिरिक्त रूप से प्रयुक्त इन वर्णों को हटाकर शब्दों का शुद्ध प्रयोग किया जा सकता है।

स्वर का आगम –

जैसे –

अशुद्ध
शुद्ध
अत्याधिक
अत्यधिक
अहोरात्रि
अहोरात्र
पहिला
पहला
प्रदर्शिनी
प्रदर्शनी
द्वारिका
द्वारका
अहिल्या
अहल्या
आधीन
अधीन
तदानुकूल
तदनुकूल
वापिस
वापस

व्यंजन का आगम –

जैसे –

अशुद्ध
शुद्ध
अंतर्ध्यान
अंतर्धान
चिक्कीर्षा
चिकीर्षा
मानवीयकरण
मानवीकरण
सदृश्य
सदृश
सौजन्यता
सौजन्य
कृत्यकृत्य
कृतकृत्य
षष्ठम्
षष्ठ
समुन्द्र
समुद्र

3. लोप –

शब्दों के प्रयोग में जब किसी आवश्यक वर्ण (स्वर या व्यंजन) का प्रयोग होने से रह जाए तो वह लोप कहलाता है। इस आधार पर भी शब्दों के सही प्रयोग करने हेतु आवश्यक स्वर या व्यंजन जोङकर त्रुटि रहित प्रयोग किया जा सकता है।

स्वर का लोप –

जैसे –

अशुद्ध
शुद्ध
अगामी
आगामी
उज्यनी
उज्जयिनी
जमाता
जामाता
मोक्षदायनी
मोक्षदायिनी
स्वस्थ्य
स्वास्थ्य
आजीवका
आजीविका
कालंदि
कालिंदी
वयाकरण
वैयाकरण

व्यंजन का लोप –

जैसे –

अशुद्ध
शुद्ध
अनुछेद
अनुच्छेद
गणमान्य
गण्यमान्य
जोत्सना
ज्योत्स्ना
प्रतिछाया
प्रतिच्छाया
मत्सेंद्र
मत्स्येंद्र
मिष्ठान
मिष्टान्न
व्यंग
व्यंग्य
स्वालंबन
स्वावलंबन
उपलक्ष
उपलक्ष्य

4. वर्ण व्यतिक्रम (क्रम भंग) –

शब्दों में प्रयुक्त वर्णों को उनके क्रम से प्रयुक्त न कर शब्द में उसके नियत स्थान की अपेक्षा किसी अन्य क्रम पर प्रयुक्त् करना वर्ण व्यतिक्रम कहलाता है।

जैसे –

अशुद्ध
शुद्ध
अथिति
अतिथि
आवाहन
आह्वान
चिन्ह
चिह्न
पूर्वान्ह
पूर्वाह्न
ब्रम्हा
ब्रह्म
विव्हल
विह्वल
अपरान्ह
अपराह्न
आल्हाद
आह्लाद
जिव्हा
जिह्वा

5. वर्ण परिवर्तन –

कई बार वर्ण प्रयुक्त करते समय असावधानीवश किसी वर्ण विशेष के स्थान पर किसी दूसरे वर्ण का प्रयोग हो जाता है। यह प्रयोग वर्तनी की अशुद्धि को दर्शाता है। अतः इस प्रकार के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए।

जैसे –

अशुद्ध
शुद्ध
अधिशाषी
अधिशासी
आंसिक
आंशिक
कनिष्ट
कनिष्ठ
छीद्रान्वेशी
छिद्रान्वेषी
निशंग
निषंग (तरकश)

6. संयुक्ताक्षरों व व्यंजन द्वित्व का अशुद्ध प्रयोग –

दो व्यंजनों के बीच स्वर का अभाव संयुक्ताक्षर बनाता है वहीं दो समान व्यंजनों में से कोई एक जब स्वर रहित हो व तुरंत एक-दूसरे के बाद आए तो ऐसा प्रयोग द्वित्व कहलाता है। शुद्ध लेखन के लिए इन संयुक्त एवं द्वित्व वर्णों के प्रयोग में भी सावधानी रखनी चाहिए।

जैसे –


अशुद्ध
शुद्ध
अद्वितिय
अद्वितीय
उतीर्ण
उत्तीर्ण
उल्लेखित
उल्लिखित
न्यौछावर
न्योछावर
बुद्धवार
बुधवार


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