विराम चिह्न
जैसा कि विराम
का अर्थ रुकना होता है, उसी प्रकार हिंदी व्याकरण में विराम शब्द का अर्थ है – ठहराव
या रुक जाना। एक व्यक्ति अपनी बात कहने के लिए, उसे समझाने के लिए, किसी कथन पर बल
देने के लिए, आश्चर्य आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए कहीं कम, कहीं अधिक समय के लिए
ठहरता है। भाषा के लिखित रूप में कुछ समय ठहरने के स्थान पर जो निश्चित संकेत चिह्न
लगाये जाते है, उन्हें विराम–चिह्न कहते है।
वाक्य में
विराम–चिह्नों के प्रयोग से भाषा में स्पष्टता और सुन्दरता आ जाती है तथा भाव समझने
में भी आसानी होती है। यदि विराम–चिह्नों का यथा स्थान उचित प्रयोग न किया जाये तो
अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
उदाहरण-
·
रोको, मत जाने दो।
·
रोको मत, जाने दो।
इस प्रकार
विराम–चिह्नों से अर्थ एवं भाव में परिवर्तन हो जाता है। इनका ध्यान रखना आवश्यक है।
विराम चिन्ह
–
नाम | विराम चिह्न |
अल्प विराम | ( , ) |
अर्द्ध विराम | ( ; ) |
पूर्ण विराम | ( । ) |
प्रश्नवाचक चिह्न | ( ? ) |
विस्मयसूचक चिह्न | ( ! ) |
अवतरण या उद्धरण चिह्न | इकहरा — ( ‘ ’ ),दुहरा — ( “ ” ) |
योजक चिह्न | ( – ) |
कोष्ठक चिह्न | ( ) {
} [ ] |
विवरण चिह्न | ( :– ) |
लोप चिह्न | ( …… ) |
विस्मरण चिह्न | ( ^ ) |
संक्षेप चिह्न | ( . ) |
तुल्यतासूचक चिह्न | ( = ) |
संकेत चिह्न | ( * ) |
समाप्ति सूचक चिह्न | ( – :
–) |
विराम–चिह्नों का प्रयोग–
1.
अल्प विराम-
अल्प विराम का अर्थ है, थोड़ी
देर रुकना या ठहरना। अंग्रेजी में इसे हम ‘कोमा’ कह कर पुकारते है।
1.
वाक्य में जब दो या दो
से अधिक समान पदों पदांशो अथवा वाक्यों में संयोजक अव्यय ‘और’ की संभावना हो, वहाँ
अल्प विराम का प्रयोग होता है।
उदाहरण-
· पदों में—पंकज, लक्ष्मण, राजेश और मोहन ने विद्यालय में प्रवेश किया।
· वाक्यों में—मोहन रोज खेल के मैदान में जाता है, खेलता है और वापस अपने घर
चला जाता है।
· वह काम करता है, क्योंकि वह गरीब है।
· आज मैं बहुत थका हूँ, इसलिए जल्दी घर जाऊँगा।
यहाँ अल्प विराम द्वारा पार्थक्य/अलगाव को दिखाया गया है।
2.
जहाँ शब्दों की पुनरावृत्ति
की जाए और भावों की अधिकता के कारण उन पर अधिक बल दिया जाए।
उदाहरण-
सुनो, सुनो, वह नाच रही है।
3.
जब कई शब्द जोड़े से आते
है, तब प्रत्येक जोड़े के बाद अल्प विराम लगता है।
उदाहरण-
सुख और दुःख, रोना और हँसना,
4.
क्रिया विशेषण वाक्यांशों
के साथ,
उदाहरण-
वास्तव में यह बात, यदि सच पूछो तो, मैं भूल ही गया था।
5.
संज्ञा वाक्य के अलावा,
मिश्र वाक्य के शेष बड़े उपवाक्यों के बीच में।
उदाहरण-
·
यह वही पैन है, जिसकी मुझे
आवश्यकता है।
·
चिंता चाहे जैसी भी हो, मनुष्य
को जला देती है।
6.
वाक्य के भीतर एक ही प्रकार
के शब्दों को अलग करने में।
उदाहरण-
मोहन ने सेब, जामुन, केले आदि खरीदे।
7.
उद्धरण चिह्नों के पहले,
उदाहरण-
वह बोला, “मैं तुम्हेँ नहीं जानता।”
8.
समय सूचक शब्दों को अलग
करने में।
उदाहरण-
कल शुक्रवार, दिनांक 18 मार्च से परीक्षाएँ प्रारम्भ होंगी।
9.
पत्र में अभिवादन, समापन
के साथ।
उदाहरण-
· पूज्य पिताजी,
· भवदीय,
· मान्यवर ,
2.
अर्द्ध विराम चिह्न-
अर्द्ध विराम का प्रयोग प्रायः
विकल्पात्मक रूप में ही होता है। अंग्रेजी में इसे ‘सेमी कॉलन’ कहते है।
1.
जब अल्प विराम से अधिक
तथा पूर्ण विराम से कम ठहरना पड़े तो अर्द्ध विराम( ; ) का प्रयोग होता है।
उदाहरण-
· बिजली चमकी ; फिर भी वर्षा नहीं हुई
· एम. ए. ; एम. एड.
· शिक्षक ने मुझसे कहा; तुम पढ़ते नहीं हो।
· शिक्षा के क्षेत्र में छात्राएँ बढ़ती गई; छात्र पिछड़ते गए।
2.
एक प्रधान पर आश्रित अनेक
उपवाक्यों के बीच में।
उदाहरण-
· जब तक हम गरीब है; बलहीन है; दूसरे पर आश्रित है; तब तक हमारा कुछ नहीं हो
सकता।
· जैसे ही सूर्योदय हुआ; अँधेरा दूर हुआ; पक्षी चहचहाने लगे और मैं प्रातः भ्रमण
को चल पड़ा।
3.
पूर्ण विराम (।)-
पूर्ण विराम का अर्थ है पूरी तरह से विराम लेना, अर्थात् जब वाक्य पूर्णतः
अपना अर्थ स्पष्ट कर देता है तो पूर्ण विराम का प्रयोग होता है अर्थात जिस चिह्न के
प्रयोग करने से वाक्य के पूर्ण हो जाने का ज्ञान होता है, उसे पूर्ण विराम कहते है।
हिन्दी में इसका प्रयोग सबसे अधिक होता है। पूर्ण विराम का प्रयोग नीचे उदाहरणों में
देखें –
1.
साधारण, मिश्र या संयुक्त
वाक्य की समाप्ति पर।
उदाहरण-
· अजगर करे ना चाकर, पंछी करें ना काम।
· दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।
· पंछी डाल पर चहचहा रहे थे।
· राम स्कूल जाता है।
· प्रयाग में गंगा–यमुना का संगम है।
· यदि सुरेश पढ़ता, तो अवश्य पास होता।
2.
प्रायः शीर्षक के अन्त
में भी पूर्ण विराम का प्रयोग होता है।
उदाहरण-
नारी और वर्तमान भारतीय समाज।
3.
अप्रत्यक्ष प्रश्नवाचक
वाक्य के अन्त में पूर्ण विराम लगाया जाता है।
उदाहरण-
उसने मुझे बताया नहीं कि वह कहाँ जा रहा है।
4.
प्रश्नवाचक चिह्न (?)-
प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग
प्रश्न सूचक वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर किया जाता है। इसका प्रयोग
निम्न स्थिति में किया जाता है–
· क्या बोले, वे चोर है?
· क्या वे घर पर नहीं हैं?
· कल आप कहाँ थे?
· आप शायद यू. पी. के रहने वाले हो?
· जहाँ भ्रष्टाचार है, वहाँ ईमानदारी कैसे रहेगी?
· इतने लड़के कैसे आ पाएँगे?
5.
विस्मयादिबोधक चिह्न
(!)-
जब वाक्य में हर्ष, विषाद,
विस्मय, घृणा, आश्चर्य, करुणा, भय आदि भाव व्यक्त किए जाएँ तो वहाँ इस विस्मयादिबोधक
चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा आदर सूचक शब्दों, पदों और वाक्यों के
अन्त में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
1.
हर्ष सूचक–
· तुम्हारा कल्याण हो !
· हे भगवान! अब तो तुम्हारा ही आसरा है।
· हाय! अब क्या होगा।
· छिः! छिः! कितनी गंदगी है।
· शाबाश! तुमने गाँव का नाम रोशन कर दिया।
2.
करुणा सूचक–
हे प्रभु! मेरी रक्षा करो
3.
घृणा सूचक–
इस दुष्ट पर धिक्कार है!
4.
विषाद सूचक–
हाय राम! यह क्या हो गया।
5.
विस्मय सूचक–
सुनो! मोहन पास हो गया।
6.
उद्धरण या अवतरण चिह्न-
जब किसी कथन को ज्यों का त्यों
उद्धृत किया जाता है तो उस कथन के दोनों ओर इसका प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे अवतरण
चिह्न या उद्धरण चिह्न कहते है। इस चिह्न के दो रूप होते है–
7.
इकहरा उद्धरण ( ‘ ’ )-
जब किसी कवि का उपनाम, पुस्तक का नाम, पत्र–पत्रिका का नाम, लेख या कविता का
शीर्षक आदि का उल्लेख करना हो तो इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है।
उदाहरण-
· रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ओज के कवि है।
· सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’
· तुलसीदास ने कहा- ’’सिया राममय सब जग जानी, करऊं प्रणाम जोरि जुग पानि।’’
· ‘रामचरित मानस’ के रचयिता तुलसीदास है।
· ‘राजस्थान पत्रिका’ एक प्रमुख समाचार–पत्र है।
· कहावत सही है कि, ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’।
1.
दुहरा उद्धरण ( “ ” )
जब किसी व्यक्ति या विद्वान तथा पुस्तक के अवतरण या वाक्य को ज्यों का त्यों
उद्धृत किया जाए, तो वहाँ दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
· “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”—तिलक।
· “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हेँ आजादी दूँगा।”—सुभाषचन्द्र बोस।
2.
योजक चिह्न (-)
इसे समास चिह्न भी कहते है।अंग्रेजी में प्रयुक्त हाइफन (-) को हिन्दी में
योजक चिह्न कहते है। हिन्दी में अधिकतर इस चिह्न (-) के स्थान पर डेश (–) का प्रयोग
प्रचलित है। यह चिह्न सामान्यतः दो पदों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद
बनाता है लेकिन दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहता है।
· कमल-से पैर।
· कली-सी कोमलता।
· कभी-कभी
· खेलते-खेलते
· रात-दिन
· माता-पिता
1.
दो शब्दों को जोड़ने के
लिए तथा द्वन्द्व एवं तत्पुरुष समास में।
उदाहरण-
सुख-दुःख, माता-पिता,।
2.
पुनरुक्त शब्दों के बीच
में।
उदाहरण-
धीरे-धीरे, घर -घर, रोज -रोज।
3.
तुलना वाचक सा, सी, से
के पहले लगता है।
उदाहरण-
भरत-सा भाई, सीता-सी माता।
4.
शब्दों में लिखी जाने
वाली संख्याओं के बीच।
उदाहरण-
एक-चौथाई
8.
कोष्ठक चिह्न ( )-
किसी की बात को और स्पष्ट करने के लिए इसका
प्रयोग किया जाता है। कोष्ठक में लिखा गया शब्द प्रायः विशेषण होता है।
इस चिह्न का प्रयोग–
1.
वाक्य में प्रयुक्त किसी
पद का अर्थ स्पष्ट करने हेतु।
उदाहरण-
· आपकी ताकत (शक्ति) को मैं जानता हूँ।
· आवेदन-पत्र जमा कराने की तिथि में सात दिन की छूट दी गई है।
· डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) बेहद सादगी पसन्द थे।
2.
नाटक या एकांकी में पात्र
के अभिनय के भावों को प्रकट करने के लिए।
उदाहरण-
राम – (हँसते हुए) अच्छा जाइए।
9.
विवरण चिह्न (:–)-
किसी कही हुई बात को स्पष्ट
करने के लिए या उसका विवरण प्रस्तुत करने के लिए वाक्य के अंत में इसका प्रयोग होता
है। इसे अंग्रेजी में ‘कॉलन एंड डेश’ कहते है।
उदाहरण-
·
सर्वनाम छः प्रकार के होते
हैः- पुरुषवाचक, निजवाचक, सम्बन्धवाचक, निश्चितवाचक, अनिश्चितवाचक, प्रश्नवाचक।
·
वेद चार हैः- ऋग्वेद, यजुर्वेद,
सामवेद एवं अथर्ववेद।
·
पुरुषार्थ चार है:– धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष।
10.
लोप सूचक चिह्न (….)-
जहाँ किसी वाक्य या कथन का कुछ अंश छोड़ दिया जाता है,
वहाँ लोप सूचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
· तुम मान जाओ वरना……….।
· मैं तो परिणाम भोग रहा हूँ, कहीं आप भी……।
11.
विस्मरण चिह्न (^)-
इसे हंस पद या त्रुटिपूरक चिह्न भी कहते है। जब किसी वाक्य या वाक्यांश में
कोई शब्द लिखने से छूट जाये तो छूटे हुए शब्द के स्थान के नीचे इस चिह्न का प्रयोग
कर छूटे हुए शब्द या अक्षर को ऊपर लिख देते है।
उदाहरण-
· मेरा भारत ^ देश है।
· मुझे आपसे ^ परामर्श लेना है।
12.
संक्षेप चिह्न या लाघव चिह्न (०)-
किसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने हेतु
उस शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे यह चिह्न लगा देते है। प्रसिद्धि के कारण लाघव
चिह्न होते हुए भी वह पूर्ण शब्द पढ़ लिया जाता है।
उदाहरण-
· राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय – रा० उ० मा० वि०।
· भारतीय जनता पार्टी = भा० ज० पा०
· मास्टर ऑफ आर्ट्स = एम० ए०
· प्राध्यापक – प्रा०।
· डॉक्टर – डॉ०।
· पंडित – पं०।
13.
निर्देशक चिह्न (–)-
यह चिह्न योजक चिह्न (-) से बड़ा होता है। इस चिह्न के दो रूप है–1. (–) 2.
(—)। अंग्रेजी में इसे ‘डैश’ कहते है।
· महाराज- द्वारपाल! जाओ।
· द्वारपाल- जो आज्ञा स्वामी!
1.
उद्धृत वाक्य के पहले।
उदाहरण-
वह बोला –“मैं नहीं जाऊँगा।”
2.
समानाधिकरण शब्दों, वाक्यांशों
अथवा वाक्यों के बीच में।
उदाहरण-
आँगन में ज्योत्सना–चाँदनी–छिटकी हुई थी।
14.
तुल्यतासूचक चिह्न
(=)-
समानता या बराबरी बताने के लिए या मूल्य अथवा अर्थ का ज्ञान कराने के लिए तुल्यतासूचक
चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
· 1 लीटर = 1000 मिलीलीटर
· वायु = समीर
15.
संकेत चिह्न (*)-
जब कोई महत्त्वपूर्ण बातें बतानी हो तो उसके पहले संकेत चिह्न लगा देते है।
उदाहरण-
स्वास्थ्य सम्बन्धी निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए–
· प्रातःकाल उठना चाहिए।
· भ्रमण के लिए जाना चाहिए।
16.
समाप्ति सूचक चिह्न या इतिश्री चिह्न (–०–)-
किसी अध्याय या ग्रन्थ की समाप्ति पर इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। यह
चिह्न कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
(– :: –), (—x—x—)