Atmatran Class 10 Question Answer

Understanding your child's curriculum can be a big task, especially when it comes to the beauty and depth of literature. When students reach class 10, the Hindi poem Aatmatran becomes a key part of their learning journey. This poem is not just a set of lines, but a gateway to understanding complex emotions and cultural values that are important for young minds to grasp. The poem, with its rich use of language, has the power to transport students into a world of self-reflection and empowerment.

Parents and teachers often look for resources that can help explain this poem in a clear and straightforward manner. The poem's explanation is crucial because it helps students appreciate the nuances and learnings it holds. At class 10 level, the questions and answers associated with Aatmatran are designed to challenge students and improve their critical thinking and interpretative skills. These questions are not just about finding the right answer but also understanding the underlying messages and themes of the poem.

For those studying this poem, finding the right solutions and summaries is important for their exams and also for their personal growth. The Aatmkathya, or self-narrative aspect of the poem, allows students to dive deep into the thought process of the poet. A summary of Aatmkathya can serve as a guide to understanding the core ideas and help students relate them to their own lives.

With the right explanation and resources, the poem Aatmatran becomes more than just a part of the syllabus; it becomes a lesson in life. It teaches students about resilience, inner strength, and the power of self-reliance. Parents can help their children by discussing the themes of the poem and relating them to real-life situations. In the process, both students and parents can discover the joy of learning and discussing literature together.

When it comes to answering questions on Aatmatran in exams, students need to be well prepared with clear solutions. It's not just about memorizing the poem but understanding its essence. As a piece of literature that has been carefully crafted to convey a powerful message, Aatmatran deserves attention and thoughtful study. With the right approach, students can excel in this part of their class 10 Hindi curriculum and carry its lessons with them long after the school year ends.

अध्याय-9: आत्मत्राण

-रवीन्द्रनाथ ठाकुर

व्याख्या

aatmkathya class 10 summary

विपदाओं से मुझे बचाओ ,यह मेरी प्रार्थना नहीं

केवल इतना हो (करुणामय)

कभी न विपदा में पाऊँ भय।

दुःख ताप से व्यथित चित को न दो सांत्वना नहीं सहीं

पर इतना होवे (करुणामय)

दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय।

कोई कहीं सहायक न मिले,

तो अपना बल पौरुष न हिले,

हानि उठानी पड़े जगत में लाभ वंचना रही

तो भी मन में न मानूँ क्षय।।

इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से कह रहे हैं कि दुखों से मुझे दूर रखें ऐसी आपसे में प्रार्थना नही कर रहा हूँ बल्कि मैं चाहता हूँ आप मुझे उन दुखों को झेलने की शक्ति दें। उन कष्ट के समय में मैं भयभीत ना हूँ। वे दुःख के समय में ईश्वर से सांत्वना बल्कि उन दुखों पर विजय पाने की आत्मविश्वास और हौंसला चाहते हैं। कोई कहीं कष्ट में सहायता करने वाला भी नही मिले फिर भी उनका पुरुषार्थ ना डगमगाए। अगर मुझे इस संसार में हानि भी उठानी पड़े, कोई लाभ प्राप्त ना हो या धोखा ही खाना पड़े तब भी मेरा मन दुखी ना हो। कभी भी मेरे मन की शक्ति का नाश ना हो।

मेरा त्राण करो अनुहदन तुम यह मेरी प्रार्थना नही

बस इतना होवे (करुणामय)

तरने की हो शक्ति अनामय।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नही सही।

केवल इतना रखना अनुनय -

वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

नत शिर होकर सुख के दिन में

तव मुख पहचानूँ छीन-छीन में।

दुख रात्रि मे करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही

उस दिन ऎसा हो करुणामय ,

तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

कवि कहते हैं कि हे भगवन्! मेरी यह प्रार्थना नहीं है आप प्रतिदिन मुझे भय से छुटकारा दिलाएँ। आप मुझे केवल रोग रहित यानी स्वस्थ रखें ताकि मैं अपने बल और शक्ति के सहारे इस संसार रूपी भवसागर को पार कर सकूँ। मैं यह नहीं चाहता की आप मेरे कष्टों का भार कम करें और ढाँढस बँधायें। आप मुझे निर्भयता सिखायें ताकि मैं सभी मुसीबतों से डटकर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी आपको ना भूलूँ। दुःखों से भरी रात में जब सारा संसार मुझे धोखा दे यानी मदद ना करें फिर भी फिर भी मेरे मन में आपके प्रति संदेह ना हो ऐसी शक्ति मुझमें भरें।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI SPARSH CHAPTER 7

प्रश्न अभ्यास (पृष्ठ संख्या 49)

aatmatran class 10 question answers


प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

a.   कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?

b.   विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’। कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

c.   कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?

d.   अंत में कवि क्या अनुनय करता है?

e.   ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

f.    अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।

g.   क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?

उत्तर-

a.   कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि उसे जीवन की विपदाओं से दूर चाहे ना रखे पर इतनी शक्ति दे कि इन मुश्किलों पर विजय पा सके। दुखों में भी ईश्वर को न भूले, उसका विश्वास अटल रहे।

b.   कवि ईश्वर से यह कह रहा है कि आप मुझे आने वाली परेशानियों से बचाओ, मैं यह प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ केवल मुझे उनसे लड़ने की और सामना करने की शक्ति प्रदान कर दो।

c.   कवि सहायक के न मिलने पर प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह सदा बना रहे और कोई भी कष्ट वह धैर्य से सह ले।

d.   अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दे, सब दुख उसे घेर ले पर ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो, सुखों के आने पर भी ईश्वर को हर क्षण याद करता रहें। उसका विश्वास बना रहे। उसका ईश्वर के प्रति विश्वास कभी न डगमगाए। इस पूरी कविता में कवि ने ईश्वर से साहस और आत्मबल माँगा है।

e.   आत्मत्राण’ का अर्थ है अपनी आत्मा का त्राण करना या शुद्धि करना कवि यही चाहता है कि कितनी ही सांसारिक परेशानियॉ झेलनी पड़े लेकिन उनका सामना करने की ताकत कम न हो और ईश्वर पर विश्वास भी सदा बना रहे। यही इस शीर्षक की सार्थकता है जो अपने आप में पूर्ण है।

f.    अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त परिश्रम और संघर्ष, सहनशीलता, कठिनाईयों का सामना करना और सतत प्रयत्न जैसे प्रयास आवश्यक हैं। धैर्यपूर्वक यह प्रयास करके इच्छापूर्ण करने की कोशिश करते हैं।

g.   यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य प्रार्थना गीतों में दास्य भाव, आत्म समर्पण, समस्त दुखों को दूर करके सुखशांति की प्रार्थना, कल्याण, मानवता का विकास, ईश्वर सभी कार्य पूरे करें ऐसी प्रार्थनाएँ होती हैं परन्तु इस कविता में कष्टों से छुटकारा नहीं कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है। यहाँ ईश्वर में आस्था बनी रहे, कर्मशील बने रहने की प्रार्थना की गई है। यह प्रार्थना किसी सांसारिक या भौतिक सुख की कामना के लिए नहीं है।

प्रश्न 2 निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए-

a.   नत शिर होकर सुख के दिन में

तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

b.   हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही

तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

c.   तरने की हो शक्ति अनामय

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

उत्तर-

a.   कवि का कहना है कि वह सुख के दिनों में भी अपने ईश्वर को वैसे ही याद रखे जैसे दुख के दिनों में रखता था, बल्कि और ज्यादा प्रसन्नता के साथ।

b.   कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जीवन में उसे लाभ मिले या हानि ही उठानी पड़े तब भी वह अपना मनोबल न खोए। वह उस स्थिति का सामना भी साहसपूर्वक करे

c.   कवि कामना करता है कि यदि प्रभु दुख दे तो उसे सहने की शक्ति भी दे। कवि इस संसार रूपी भवसागर को पार करना चाहते हैं, वह यह नहीं चाहता कि ईश्वर उसे इस दुख के भार को कम कर दे या सांत्वना दे। वह अपने जीवन की ज़िम्मेदारियों को कम करने के लिए नहीं कहता बल्कि उससे संघर्ष करने, उसे सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना करता है।

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