Mata Ka Aanchal Question Answer

When students dive into the chapters of the Class 10 Hindi Kritika textbook, they encounter the heart-touching story of Mata ka Aanchal. This chapter is not just another lesson; it is an emotional journey that unfolds the depth of maternal love and the warmth found in the folds of a mother's saree, often poetically called mata ka aanchal. Understanding Mata ka Aanchal is crucial for Class 10 students as it encapsulates values and emotions central to our culture.

The Mata ka Aanchal summary gives a glimpse into the layered narrative that is rich with cultural references and packed with life lessons. As students explore the Mata ka Aanchal question answer, they delve deeper into the text, uncovering the subtle nuances and the powerful expressions mata ka aanchal paath mein abhivyakti hui hai. Each question and answer session on Mata ka Aanchal helps in reinforcing the themes and messages of the chapter.

Class 10 Hindi Kritika Chapter 1, Mata ka Aanchal, is designed to resonate with the young minds, encouraging them to think and feel beyond the written word. The Mata ka Aanchal question answers for Class 10th are a crucial part of their studies as they navigate through their coursework. It's not just about memorizing the content; it's about connecting with the essence of Mata ka Aanchal.

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अध्याय-1: माता का अँचल

माता का अँचल सारांश 


'माता का आँचल' पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया है जिसमें लेखक ने माँ के साथ एक अद्भुत लगाव को दर्शाया है| इस पाठ में ग्राम संस्कृति का चित्रण किया गया है|

कथाकार का नाम तारकेश्वर था। पिता अपने साथ ही उसे सुलाते, सुबह उठाते और नहलाते थे। वे पूजा के समय उसे अपने पास बिठाकर शंकर जी जैसा तिलक लगाते जो लेखक को ख़ुशी देती थी| पूजा के बाद पिता जी उसे कंधे पर बिठाकर गंगा में मछलियों को दाना खिलाने के लिए ले जाते थे और रामनाम लिखी पर्चियों में लिपटीं आटे की गोलियाँ गंगा में डालकर लौटते हुए उसे रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों की डालों पर झुलाते। घर आकर बाबूजी उन्हें चौके पर बिठाकर अपने हाथों से खाना खिलाया करते थे। मना करने पर उनकी माँ बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर आदि के बनावटी नाम से टुकड़े बनाकर उन्हें खिलाती थीं।

खाना खाकर बाहर जाते हुए माँ उसे झपटकर पकड़ लेती थीं और रोते रहने के बाद भी बालों में तेल डाल कंघी कर देतीं। कुरता-टोपी पहनाकर चोटी गूँथकर फूलदार लट्टू लगा देती थीं।लेखक रोते-रोते बाबूजी की गोद में बाहर आते। बाहर आते ही वे बालकों के झुंड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे। वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक किया करते थे। मिठाइयों की दुकान लगाया करते थे। घरौंदे के खेल में खाने वालों की पंक्ति में आखिरी में चुपके से बैठ जाने पर जब लोगों को खाने से पहले ही उठा दिया जाता, तो वे पूछते कि भोजन फिर कब मिलेगा। किसी दूल्हे के आगे चलती पालकी देखते ही जोर-जोर से चिल्लाने लगते।

एक बार रास्ते में आते हुए लड़को की टोली ने मूसन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी ने उनको खूब खदेड़ा। जब वे लोग भाग गए तो मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए। अध्यापक ने लेखक की खूब पिटाई की। यह सुनकर पिताजी पाठशाला दौड़े आए। अध्यापक से विनती कर पिताजी उन्हें घर ले आए। फिर वे रोना-धोना भुलकर अपनी मित्र मंडली के साथ हो गए।

मित्र मंडली के साथ मिलकर लेखक खेतों में चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश करने लगे। चिड़ियों के उड़ जाने पर जब एक टीले पर आगे बढ़कर चूहे के बिल में उसने आस-पास का भरा पानी डाला, तो उसमें से एक साँप निकल आया। डर के मारे लुढ़ककर गिरते-पड़ते हुए लेखक लहूलुहान स्थिति में जब घर पहुँचे तो सामने पिता बैठे थे परन्तु पिता के साथ ज्यादा वक़्त बिताने के बावजूद लेखक को अंदर जाकर माँ से लिपटने में अधिक सुरक्षा महसूस हुई। माँ ने घबराते हुए आँचल से उसकी धूल साफ़ की और हल्दी लगाई।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI KRITIKA CHAPTER 1

Mata Ka Aanchal Question Answers

प्रश्न 1 प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?

उत्तर- यह बात सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं करते थे, उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। परंतु विपदा के समय उसे लाड़ की जरूरत थी, अत्यधिक ममता और माँ की गोदी की जरूरत थी। उसे 'अपनी माँ से जितनी कोमलता मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि संकट में बच्चे को माँ या नानी याद आती है, बाप या नाना नहीं। माँ का लाड़ घाव को भरने वाले मरहम का काम करता है।

प्रश्न 2 आपके विचार से भोलनाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर- भोलानाथ भी बच्चे की स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रूचि लेता है। उसे अपनी मित्र मंडली के साथ तरह-तरह की क्रीड़ा करना अच्छा लगता है। वे उसके हर खेल व हुदगड़ के साथी हैं। अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता। इसलिए रोना भूलकर वह दुबारा अपनी मित्र मंडली में खेल का मजा उठाने लगता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।

प्रश्न 3 आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।

उत्तर-

1.   अटकन - बटकन दही चटाके,

बनफूल बंगाले।

2.   अक्कड़ - बक्कड़ बम्बे बो,

अस्सी नब्बे पूरे सौ।

प्रश्न 4 भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर- आज जमाना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों की बहुत ध्यान रखते हैं। वे उसे गली-मुहल्ले में बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। जब से निठारी जैसे कांड होने लगे हैं, तब से बच्चे भी डरे-डरे रहने लगे हैं। अब न तो हुल्लडबाजी, शरारतें और तुकबंदियाँ रही हैं; न ही नंगधडंग घूमते रहने की आज़ादी। अब तो बच्चे प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक्स के महँगे खिलौनों से खेलते हैं। बरसात में बच्चे बाहर रह जाएँ तो माँ-बाप की जान निकल जाती है। आज न कुएँ रहे, न रहट, न खेती का शौक। इसलिए आज का युग पहले की तुलना में आधुनिक, बनावटी और रसहीन हो गया है।

प्रश्न 5 पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?

उत्तर- पाठ में ऐसे कई प्रसंग आए हैं जिन्होंने मेरे दिल को छू लिए-

रामायण पाठ कर रहे अपने पिता के पास बैठा हुआ भोलानाथ का आईने में अपने को देखकर खुश होना और जब उसके पिताजी उसे देखते हैं तो लजाकर उसका आईना रख देने की अदा बड़ी प्यारी लगती है।

बच्चों द्वारा बारात का स्वांग रचते हुए समधी का बकरे पर सवार होना। दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घूँघट उठाने ने पर सब बच्चों का भाग जाना, बच्चों के खेल में समाज के प्रति उनका रूझान झलकता है तो दूसरी और उनकी नाटकीयता, स्वांग उनका बचपना।

बच्चे का अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ना। शिथिल होकर बच्चे के बल को बढ़ावा देना और पछाड़ खा कर गिर जाना। बच्चे का अपने पिता की मूंछ खींचना और पिता का इसमें प्रसन्न होना बड़ा ही आनन्दमयी प्रसंग है।

कहानी के अन्त में भोलानाथ का माँ के आँचल में छिपना, सिसकना, माँ की चिंता, हल्दी लगाना, बाबू जी के बुलाने पर भी मन की गोद न छोड़ना मर्मस्पर्शी दृश्य उपस्थित करता है; अनायास माँ की याद दिला देता है।

प्रश्न 6 इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं?

उत्तर-

1.   गाँवों में हरे भरे खेतों के बीच वृक्षों के झुरमुट और ठंडी छाँव से घिरा कच्ची मिट्टी एवं छान का घर हुआ करता था। आज ज्यादातर गाँवों में पक्के मकान ही देखने मिलते हैं।

2.   पहले गाँवों में भरे पूरे परिवार होते थे। आज एकल संस्कृति ने जन्म लिया है।

3.   अब गाँवों में भी विज्ञान का प्रभाव बढ़ता जा रहा है; जैसे - लालटेन के स्थान पर बिजली, बैल के स्थान पर ट्रैक्टर का प्रयोग, घरेलू खाद के स्थान पर बाज़ार में उपलब्ध कृत्रिम खाद का प्रयोग तथा विदेशी दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है।

4.   पहले की तुलना में अब किसानों (खेतिहर मज़दूरों) की संख्या घट रही है।

5.   पहले गाँव में लोग बहुत ही सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते थे। आज बनावटीपन देखने मिलता है।

प्रश्न 7 पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।

उत्तर- मुझे भी मेरे बचपन की एक घटना याद आ रही है जो नीचे वर्णित है-

मैं आँगन में खेल रहा था। कुछ बच्चे पत्थर फेंक कर पेड़ पर फैंसी पतंग निकालने का प्रयास कर रहे थे।

अचानक एक पत्थर मेरी आँख पर लगा। मैं जोरों से रोने लगा। मुझे पीड़ा से रोता हुआ देखकर माँ भी रोने लगी फिर माँ और पिता जी मुझे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने जब कहा डरने की बात नहीं है तब दोनों की जान में जान आई।

प्रश्न 8 यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- माता का अँचल में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत सरस और मनमोहक वर्णन हुआ है। इसमें लेखक ने अपने शैशव काल का वर्णन किया है।

भोलानाथ के पिता के दिन का आरम्भ ही भोलानाथ के साथ शुरू होता है। उसे नहलाकर पूजा पाठ कराना, उसको अपने साथ घूमाने ले जाना, उसके साथ खेलना व उसकी बालसुलभ क्रीड़ा से प्रसन्न होना, उनके स्नेह व प्रेम को व्यक्त करता है।

भोलानाथ की माता वात्सल्य व ममत्व से भरपूर माता है। भोलानाथ को भोजन कराने के लिए उनका भिन्न-भिन्न तरह से स्वांग रचना एक स्नेही माता की ओर संकेत करता है। जो अपने पुत्र के भोजन को लेकर चिन्तित है। दूसरी ओर उसको लहुलुहान व भय से काँपता देखकर माँ भी स्वयं रोने व चिल्लाने लगती है। अपने पुत्र की ऐसी दशा देखकर माँ का ह्रदय भी दुखी हो जाता है। माँ का ममतालु मन इतना भावुक है कि वह बच्चे को डर के मारे काँपता देखकर रोने लगती है। उसकी ममता पाठक को बहुत प्रभावित करती है।

प्रश्न 9 माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

उत्तर- लेखक ने इस कहानी का नाम माँ का आँचल उपयुक्त रखा है। इस कहानी में माँ के आँचल की सार्थकता को समझाने का प्रयास किया गया है। भोलानाथ को माता व पिता दोनों से बहुत प्रेम मिला है। उसका दिन पिता की छत्रछाया में ही शुरू होता है। पिता उसकी हर क्रीड़ा में सदैव साथ रहते हैं, विपदा होने पर उसकी रक्षा करते हैं। परन्तु जब वह साँप को देखकर डर जाता है तो वह पिता की छत्रछाया के स्थान पर माता की गोद में छिपकर ही प्रेम व शान्ति का अनुभव करता है। माता उसके भय से भयभीत है, उसके दु:ख से दुखी है, उसके आँसु से खिन्न है। वह अपने पुत्र की पीड़ा को देखकर अपनी सुधबुध खो देती है। वह बस इसी प्रयास में है कि वह अपने पुत्र की पीड़ा को समाप्त कर सके। माँ का यही प्रयास उसके बच्चे को आत्मीय सुख व प्रेम का अनुभव कराता है। इसके लिए एक उपयुक्त शीषर्क और हो सकता था माँ की ममता क्योंकि कहानी में माँ का स्नेह ही प्रधान है। अत: यह शीर्षक भी उचित है।

प्रश्न 10 बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर- बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ रहकर, उनकी सिखाई हुई बातों में रुचि लेकर, उनके साथ खेल करके, उन्हें चूमकर, उनकी गोद में या कंधे पर बैठकर प्रकट करते हैं।

मेरे माता-पिताजी की बीसवीं वर्षगाँठ थी। मैंने उनके बीस वर्ष पुराने युगल-चित्र को सुंदर से फ्रेम में सजाया और उन्हें भेंट किया। उसी दिन मैं उनके लिए अपने हाथों से सब्जियों का सूप बनाकर लाई और उन्हें आदरपूर्वक दिया। माता-पिता मेरा यह प्रेम देखकर बहुत प्रसन्न हुए।

प्रश्न 11 इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। यह कहानी उस समय की कहानी प्रस्तुत करती हैं जब बच्चों के पास खेलने के लिए अत्याधिक साधन नहीं होते थे। वे लोग अपने खेल प्रकृति से ही प्राप्त करते थे और उसी प्रकृति के साथ खेलते थे। उनके लिए मिट्टी, खेत, पानी, पेड़, मिट्टी के बर्तन आदि साधन थे। परन्तु आज के बच्चों की दुनिया इन बच्चों से भिन्न है। आज के बच्चे विडियो गेम, टी.वी., कम्प्यूटर, शतरंज़ आदि खेलने में लगे रहते हैं या फिर क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, बेडमिण्टन या कार्टून आदि में ही अपना बचपन तथा समय बीता देते हैं।

प्रश्न 12 फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।

उत्तर-

1.   फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास 'मैला आँचल' पठनीय है।

2.   नागार्जुन का उपन्यास 'बलचनमा' आँचलिक है।

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