Manushyata Class 10 Question Answers

Discovering the core of humaneness through literature can be a transformative experience for learners, and this is exactly what the chapter on Manushyata in class 10th Hindi achieves. This chapter isn't just another part of the syllabus; it is a mirror reflecting the essence of humanity, encouraging students to understand and embrace compassion, empathy, and kindness in their lives.

Manushyata, a poignant poem woven into the Hindi curriculum, nudges young minds to question and reflect upon the real meaning of being human. It is not just a set of lines but a journey that guides students to see the world through the lens of human values. The synonyms of Manushyata, which students might explore, all revolve around the qualities that uplift human spirit.

As educators unravel the bhavarth, or the underlying message of the poem Manushyata in Hindi class 10, students gain insights into not only the text but also into the finer nuances of life's moral dilemmas. The solutions and summaries provided in the study materials help break down complex ideas into simpler concepts that resonate with the learners, facilitating an easier understanding.

The section dedicated to Manushyata class 10 question answers is meticulously crafted to test students' comprehension while simultaneously fostering a space for introspection. Through these question and answer exercises, the educational journey becomes not just about scoring well, but also about internalizing values that define our humanity.

The Kavita Manushyata, with its rhythmic verses, stays with the students, often humming in their minds, reminding them of the virtues that make life more meaningful. The poem is not merely a part of the curriculum but a lesson in itself, imparting wisdom that textbooks alone cannot offer.

Moreover, the solutions provided for Manushyata class 10 are not just about giving the right answers; they are about explaining the depth of each line, each word, to ensure that the message is not lost in translation. For those embarking on the journey through Class 10th Hindi Manushyata, it’s an opportunity to delve into a dialogue about what makes us truly human and how we can carry those lessons forward into our everyday lives.

अध्याय-3: मनुष्यता

-मैथिलीशरण गुप्त

व्याख्या - manushyata summary

प्रस्तुत पाठ में कवि मैथलीशरण गुप्त ने सही अर्थों में मनुष्य किसे कहते हैं उसे बताया है। कविता परोपकार की भावना का बखान करती है तथा मनुष्य को भलाई और भाईचारे के पथ पर चलने का सलाह देती है।

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,

मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।

हुई न यों सु-मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,

मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।

वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि कहते हैं मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए की वह मरणशील है इसलिए उसे मृत्यु से डरना नहीं चाहिए परन्तु उसे ऐसी सुमृत्यु को प्राप्त होना चाहिए जिससे सभी लोग मृत्यु के बाद भी याद करें। कवि के अनुसार ऐसे व्यक्ति का जीना या मरना व्यर्थ है जो खुद के लिए जीता हो। ऐसे व्यक्ति पशु के समान है असल मनुष्य वह है जो दूसरों की भलाई करे, उनके लिए जिए। ऐसे व्यक्ति को लोग मृत्यु के बाद भी याद रखते हैं।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,

उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।

उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,

तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।

अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि के अनुसार उदार व्यक्तियों की उदारशीलता को पुस्तकों, इतिहासों में स्थान देकर उनका बखान किया जाता है, उनका समस्त लोग आभार मानते हैं तथा पूजते हैं। जो व्यक्ति विश्व में एकता और अखंडता को फैलता है उसकी कीर्ति का सारे संसार में गुणगान होता है। असल मनुष्य वह है जो दूसरों के लिए जिए मरे।

क्षुदार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,

तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।

उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,

सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर-चर्म भी दिया।

अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

इन पंक्तियों में कवि ने पौरणिक कथाओं का उदारहण दिया है। भूख से व्याकुल रंतिदेव ने माँगने पर अपना भोजन का थाल भी दे दिया तथा देवताओं को बचाने के लिए दधीचि ने अपनी हड्डियों को व्रज बनाने के लिए दिया। राजा उशीनर ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस बहेलिए को दे दिया और वीर कर्ण ने अपना शारीरिक रक्षा कवच दान कर दिया। नश्वर शरीर के लिए मनुष्य को भयभीत नही होना चाहिए।

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही,

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।

विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,

विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?

अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,

वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि ने सहानुभूति, उपकार और करुणा की भावना को सबसे बड़ी पूंजी बताया है और कहा है की इससे ईश्वर भी वश में हो जाते हैं। बुद्ध ने करुणावश पुरानी परम्पराओं को तोड़ा जो कि दुनिया की भलाई के लिए था इसलिए लोग आज भी उन्हें पूजते हैं। उदार व्यक्ति वह है जो दूसरों की भलाई करे।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में

सन्त जन आपको करो न गर्व चित्त में

अन्त को हैं यहाँ त्रिलोकनाथ साथ में

दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं

अतीव भाग्यहीन हैं अंधेर भाव जो भरे

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि कहते हैं की अगर किसी मनुष्य के पास यश, धन-दौलत है तो उसे इस बात के गर्व में अँधा होकर दूसरों की उपेक्षा नही करनी नहीं चाहिए क्योंकि इस संसार में कोई अनाथ नहीं है। ईश्वर का हाथ सभी के सर पर है। प्रभु के रहते भी जो व्याकुल है वह बड़ा भाग्यहीन है।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸

समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।

परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸

अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।

रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

कवि के अनुसार अनंत आकाश में असंख्य देवता मौजूद हैं जो अपने हाथ बढ़ाकर परोपकारी और दयालु मनुष्यों के स्वागत के लिए खड़े हैं। इसलिए हमें परस्पर सहयोग बनाकर उन ऊचाइयों को प्राप्त करना चाहिए जहाँ देवता स्वयं हमें अपने गोद में बिठायें। इस मरणशील संसार में हमें एक-दूसरे के कल्याण के कामों को करते रहें और स्वयं का उद्धार करें।

'मनुष्य मात्र बन्धु है' यही बड़ा विवेक है¸

पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।

फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸

परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।

अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई-बंधू है यह बहुत बड़ी समझ है सबके पिता ईश्वर हैं। भले ही मनुष्य के कर्म अनेक हैं परन्तु उनकी आत्मा में एकता है। कवि कहते हैं कि अगर भाई ही भाई की मदद नही करेगा तो उसका जीवन व्यर्थ है यानी हर मनुष्य को दूसरे की मदद को तत्पर रहना चाहिए।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸

विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।

घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

अंतिम पंक्तियों में कवि मनुष्य को कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो बाधा पड़े उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ो। परन्तु इसमें मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका आपसी सामंजस्य न घटे और भेदभाव न बढ़े। जब हम एक दूसरे के दुखों को दूर करते हुए आगे बढ़ेंगे तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी और समस्त समाज की भी उन्नति होगी।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI SPARSH CHAPTER 3

प्रश्न अभ्यास (पृष्ठ संख्या)

प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

a.   कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?

b.   उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

c.   कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?

d.   कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

e.   'मनुष्य मात्र बंधु है' से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

f.    कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

g.   व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

h.   'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

उत्तर-

a.   जो व्यक्ति दूसरों के हित को सर्वोपरि मानता हैं तथा जिसमे मानवता, दया, साहनुभूति आदि गुण होते हैं, जो मृत्यु के बाद भी औरों के द्वारा सम्मान की दृष्टि से याद किया जाता है, उसी की मृत्यु को कवि ने सुमृत्यु कहा है।

b.   धरती कृतज्ञ होकर जिसका अहसान मानती है।

जिस व्यक्ति की कथा सरस्वती सुनाती है।

जिसकी कीर्ति सदा संसार में बनी रहती है।

ऐसे व्यक्ति सदा संसार में पूजनीय होते हैं और उदार व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं।

c.   कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों के उदाहरण देकर ‘मनुष्यता' के लिए यह संदेश दिया है कि परोपकार के लिए अपना सर्वस्व यहाँ तक कि अपने प्राण तक न्योछावर तक करने को तैयार रहना चाहिए। यहाँ तक कि परहित के लिए अपने शरीर तक का दान करने को तैयार रहना चाहिए। दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों तथा कर्ण ने खाल तक दान कर दी। हमारा शरीर तो नश्वर हैं उसका मोह रखना व्यर्थ है। परोपकार करना ही सच्ची मनुष्यता है। हमें यहीं करना चाहिए।

d.   कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों के द्वारा इस भाव को व्यक्त करना चाहा है।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में।

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में॥

e.   मनुष्य मात्र बंधु है' से यह अभिप्राय है कि संसार के सभी मनुष्य आपस में भाई-भाई हैं सभी उस परमपिता की संतान हैं इसलिए मानव-मानव में भेद नहीं करना चाहिए।

f.    कवि ने सबको एक साथ चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य उस एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं। इसलिए बंधुत्व के नाते हमें सभी को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि समर्थ भाव भी यही है कि हम सबका कल्याण करते हुए अपना कल्याण करें।

g.   व्यक्ति को मानव की सेवा करते हुए, परोपकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए, साथ ही अपने अभीष्ट मार्ग पर एकता के साथ बढ़ना चाहिए। अपने व्यक्तिगत स्वार्थों का त्याग कर दूसरों के हित का चिंतन करना चाहिए। धन संपति को लेकर कभी भी अहंकारी नही बनना चाहिए। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करते हैं, ईश्वर हमेशा उनके सहायक बनते हैं। इस दौरान जो भी विपत्तियाँ आएँ, उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए।

h.   कवि इस कविता द्वारा मानवता, प्रेम, एकता, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, सदभावना और उदारता का संदेश देना चाहता है। मनुष्य को नि:स्वार्थ जीवन जीना चाहिए।

वर्गवाद, अलगाव को दूर करके विश्व बंधुत्व की भावना को बढ़ाना चाहिए। धन होने पर घमंड नहीं करना चाहिए तथा खुद आगे बढ़ने के साथ-साथ औरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए।

प्रश्न 2 निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-

a.   सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।

विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,

विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?

b.   रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

c.   चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,

विपत्ति, विघ्न पड़ें उन्हें धकेलते हुए।

घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर-

a.   इन पंक्तियों द्वारा कवि ने एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना को उभारा है। इससे बढ़कर कोई पूँजी नहीं है। यदि प्रेम, सहानुभूति, करुणा के भाव हो तो वह जग को जीत सकता है। वह सम्मानित भी रहता है। महात्मा बुद्ध के विचारों का भी विरोध हुआ था परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा, प्रेम व दया का प्रवाह किया तो उनके सामने सब नतमस्तक हो गए।

b.   कवि कहता है कि कभी भूलकर भी अपने थोड़े से धन के अहंकार में अंधे होकर स्वयं को सनाथ अर्थात् सक्षम मानकर गर्व मत करो क्योंकि अनाथ तो कोई नहीं है। इस संसार का स्वामी ईश्वर तो सबके साथ है और ईश्वर तो बहुत दयालु, दीनों और असहायों का सहारा है और उनके हाथ बहुत विशाल है अर्थात् वह सबकी सहायता करने में सक्षम है। प्रभु के रहते भी जो व्याकुल रहता है वह बहुत भाग्यहीन ही है। सच्चा मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है।

c.   कवि मनुष्य को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि यह मनुष्य का इच्छित मार्ग है, इस पर उसे हर्ष के साथ खेलते हुए चलना चाहिए मार्ग में आने वाली बाधाओं विपत्तियों का मुस्कुराते हुए डटकर सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए आपस में भेदभाव को भूलकर मिलजुल कर रहना चाहिए तर्क करने वालों को एक होकर कुतर्क करने वालों को सही सबक सिखना चाहिए।

IconDownload