Lhasa Ki Aur Class 9 Worksheet with Answers

Premium Lhasa Ki Aur Class 9 Worksheet with Answers
Share this

Embark on a thrilling expedition to the mystical city of Lhasa with the Lhasa Ki Aur Class 9 curriculum! As part of the diverse and enriching Class 9 Hindi syllabus, this chapter, Lhasa Ki Aur Class 9th, not only presents a captivating narrative but also serves as an educational journey exploring the depths of Tibetan culture, geography, and historical significance. A profound exploration of friendship, adventure, and discovery awaits students who engage with this intriguing material.

In the classroom, Class 9 Lhasa Ki Aur is more than just a simple reading; it is a pathway to understanding resilience and the spirit of exploration. Teachers and students alike find value in the meticulous detail and vivid descriptions that bring the distant city of Lhasa to life. To aid in deeper understanding and revision, Lhasa Ki Aur Class 9 worksheet with answers provides a perfect practice tool. These worksheets challenge students to delve deeper, ensuring that every significant detail of the journey is comprehended and appreciated fully.

Further exploration can be pursued through Lhasa Ki Aur Class 9 extra questions and answers, a resource rich with additional information and perspectives that broaden the students’ learning experience. For those looking to test their knowledge and recall, Lhasa Ki Aur Class 9 MCQ presents an excellent opportunity. This series of multiple-choice questions makes revising key concepts from the chapter both engaging and educational.

Every learner's quest for understanding can be supported with the Lhasa Ki Aur summary in Hindi, which encapsulates the chapter's essence succinctly, ensuring that students grasp the storyline quickly. This summary is an excellent tool for revision, especially before examinations or class assessments.

In addition, class 9 Hindi chapter 2 Lhasa Ki Aur and class 9 Hindi ch 2 Lhasa Ki Aur question answer sessions in the classroom stimulate critical thinking and enhance textual analysis skills as students discuss and dissect various aspects of the chapter. These discussions contribute greatly to a student’s ability to connect with the text on a deeper level.

For those desiring comprehensive answers and insights, Lhasa Ki Aur Class 9 Questions and Answers along with class 9 Hindi chapter Lhasa Ki Aur question answer and Lhasa Ki Aur extra question answer resources are invaluable. They provide extensive coverage of all potential queries a student might have, enabling a thorough understanding of the text.

In conclusion, Lhasa Ki Aur Class 9 is not just an academic requirement; it's a gateway to understanding a vibrant culture, historical adventures, and the boundless human spirit. As such, this chapter is a cornerstone of the Class 9 Hindi curriculum, providing both intellectual and emotional education to young minds ready to explore far beyond their immediate surroundings.

 Lhasa Ki Aur Class 9 Summary


इस पाठ में राहुल सांकृत्यायन जी ने अपनी पहली तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है जो उन्होंने सन् 1929-30 में नेपाल के रास्ते की थी। चूंकि उस समय भारतीयो को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं  थी, इसलिए उन्होंने  यह यात्रा एक भिखमन्गो के छद्म वेश में  की थी।


लेखक की यात्रा बहुत वर्ष पहले जब फटी–कलिङ्पोङ् का रास्ता नहीं बना था, तो नेपाल से तिब्बत जाने का एक ही रास्ता था। इस रास्ते पर नेपाल के लोगों के साथ–साथ भारत के लोग भी जाते थे। यह रास्ता व्यापारिक और सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए इसे लेखक ने मुख्य रास्ता बताया है। तिब्बत में जाति–पाति, छुआछूत का सवाल नहीं उठता और वहाँ औरतें परदा नहीं डालती है। चोरी की आशंका के कारण भिखमंगो को कोई घर में घुसने नहीं देता। नहीं तो अपरिचित होने पर भी आप घर के अंदर जा सकते हैं और जरूरत अनुसार अपनी झोली से चाय दे सकते हैं, घर की बहु अथवा सास उसे आपके लिए पका देगी।


परित्यक्त चीनी किले से जब वह चले तो एक व्यक्ति को दो चिटें राहदारी देकर थोड़ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गए। यहाँ सुमति (मंगोल भिक्ष, राहुल का दोस्त) पहचान तथा भिखारी होने के कारण रहने को अच्छी जगह मिली। पांच साल बाद वे लोग इसी रास्ते से लौटे थे तब उन्हें रहने की जगह नहीं मिली थी और गरीब के झोपड़ी में ठहरना पड़ा था क्योंकि वे भिखारी नहीं बल्कि भद्र यात्री के वेश में थे।


अगले दिन राहुल जी एवं सुमति जी को एक विकट डाँडा थोङ्ला पार करना था। डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगह थी। सोलह–सत्रह हजार फीट उंची होने के कारण दोनों ओर गाँव का नामोनिशान न था। डाकुओं के छिपने की जगह तथा सरकार की नरमी के कारण यहाँ अक्सर खून हो जाते थे। चूँकि वे लोग भिखारी के वेश में थे इसलिए हत्या की उन्हें परवाह नहीं थी परन्तु उंचाई का डर बना था। दूसरे दिन उन्होंने डाँडे की चढ़ाई घोड़े से की जिसमें उन्हें दक्षिण–पूरब ओर बिना बर्फ और हरियाली के नंगे पहाड़ दिखे तथा उत्तर की ओर पहाड़ों पर कुछ बर्फ दिखी। उतरते समय लेखक का घोडा थोड़ा पीछे चलने लगा और वे बाएं की ओर डेढ़ मील आगे चल दिए। बाद में पूछ कर पता चला लङ्कोर का रास्ता दाहिने के तरफ तथा जिससे लेखक को देर हो गयी तथा सुमति नाराज हो गए परन्तु जल्द ही गुस्सा ठंडा हो गया और वे लङ्कोर में एक अच्छी जगह पर ठहरे।


वे अब तिट्टी के मैदान में थे जो की पहाड़ों से घिरा टापूथा सामने एक छोटी सी पहाड़ी दिखाई पड़ती थी जिसका नाम तिट्टी–समाधि–गिटी था। आसपास के गाँवों में सुमति के बहुत परिचित थे वे उनसे जाकर मिलना चाहते थे परन्तु लेखक ने उन्हें मना कर दिया और ल्हासा पहुंचकर पैसे देने का वादा किया। सुमति मान गए और उन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया। उन्होंने सुबह चलना शुरू नहीं किया था इसीलिए उन्हें कड़ी धूप में आगे बढ़ना पड़ रहा था, वे पीठ पे अपनी चीज़े लादे और हाथ में डंडा लिए चल रहे थे। सुमति एक ओर यजमान से मिलना चाहते थे इसलिए उन्होंने बहाना कर टोकर विहार की ओर चलने को कहा। तिब्बत की जमीन छोटे–बड़े जागीरदारों के हाथों में बँटी है। इन जागीरों का बड़ा हिस्सा मठों के हाथ में है।अपनी–अपनी जागीर में हर जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है जिसके लिए मजदुर उन्हें बेगार में मिल जाते हैं।


लेखक शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु न्मसे से मिले। वहां एक अच्छा मंदिर था जिसमें बुद्ध वचन की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी थीं जिसे लेखक पढ़ने में लग गए इसी दौरान सुमति ने आसपास अपने यजमानों से मिलकर आने के लिए लेखक से पूछा जिसे लेखक ने मान लिया, दोपहर तक सुमति वापस आ गए। चूँकि तिट्टी वहां से ज्यादा दूर नहीं था इसीलिए उन्होंने अपना सामान पीठ पर उठाया और न्मसे से विदा लेकर चल दिए।

सुमित का परिचय–वह लेखक को यात्रा के दौरान मिला जो एक मंगोल भिक्षु था। उनका नाम लोब्ज़टोख था। इसका अर्थ हैं सुमति प्रज. अतः सुविधा के लिए लेखक ने उसे सुमति नाम से पुकारा हैं।


Lhasa Ki Aur Class 9 Questions and Answers

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 29)

प्रश्न 1 थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?

उत्तर- लेखक के मित्र सुमति की यहाँ के लोगों से जान-पहचान होने के कारण भिखमंगों के वेश में रहने के बावजूद भी उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली।

जबकि दूसरी यात्रा के समय जानकारी न होने के कारण भद्र यात्री के वेश में आने पर भी उन्हें रहने के लिए उचित स्थान नहीं मिला। उन्हें गाँव के एक सबसे गरीब झोंपड़े में ठहरने को स्थान मिला। ऐसा होना बहुत कुछ, लोगों की उस वक्त की मनोवृति पर भी निर्भर करता है। क्योंकि शाम के वक्त छङ् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रख पाते हैं।

प्रश्न 2 उस समय के तिब्बत में हथियार का क़ानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?

उत्तर- उस समय के तिब्बत में हथियार रखने से सम्बंधित कोई क़ानून नहीं था। इस कारण लोग खुलेआम पिस्तौल बन्दूक आदि रखते थे। साथ ही, वहाँ अनेक निर्जन स्थान भी थे, जहाँ न पुलिस का प्रबंध था, न खुफिया बिभाग का। वहाँ डाकू किसी को भी आसानी से मार सकते थे। इसीलिए यात्रियों को हत्या और लूटमार का भय बना रहता था।

प्रश्न 3 लेखक लङ्‌कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गए थे?

उत्तर- लङ्‌कोर के मार्ग में लेखक का घोड़ा थककर धीमा चलने लगा था इसलिए वे अपने साथियों से पिछड़कर रास्ता भटक गए।

प्रश्न 4 लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परन्तु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?

उत्तर- लेखक ने शेकर विहार में सुमति को यजमानों के पासजाने से रोका था क्योंकि अगर वह जाता तो उसे बहुत वक्त लग जाता और इससे लेखक को एक सप्ताह तक उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती। परंतु दूसरी बार लेखक ने उसे रोकने का प्रयास इसलिए नहीं किया क्योंकि वे अकेले रहकर मंदिर में रखी हुई हस्तलिखित पोथियों का अध्ययन करना चाहते थे।

प्रश्न 5 यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

उत्तर- यात्रा के दौरान लेखक को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-

     i.        उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। इसलिए उन्हें भिखमंगे के रुप में यात्रा करना पड़ी।

   ii.        चोरी के डर से भिखमंगों को वहाँ के लोग घर में घुसने नहीं देते थे। इसी कारण लेखक को भी ठहरने के स्थान को लेकर कठिनाई का सामना करना पड़ा।

 iii.        डाँड़ा थोङ्‌ला जैसी खतरनाक जगह को पार करना पड़ा।

 iv.        लङ्कोर का रास्ता तय करते समय रास्ता भटक जाने के कारण वे अपने साथियों से बिछड़ गए।

प्रश्न 6 प्रस्तुत यात्रा-वृत्तान्त के आधार पर बताइए की उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?

उत्तर- उस समय तिब्बती समाज में छुआछूत, जाती-पाँति आदि कुप्रथाएँ नहीं थी । औरतें परदा नहीं करती कोई अपरिचित व्यक्ति भी किसी के घर में अन्दर तक जा सकता था परन्तु भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर में घुसने नही देते थे।

प्रश्न 7 ‘मैं अब पुस्तकों के भीतर था ।’नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन -सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है?

(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।

(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।

(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें हैं थीं।

(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।

उत्तर- (क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।

रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 

प्रश्न 1 सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?

उत्तर- सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग हर गाँव में लेखक को मिले। इससे सुमति के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएँ प्रकट होती हैं: जैसे–

     i.        सुमति मिलनसार एवं हँसमुख व्यक्ति हैं।

   ii.        सुमति के परिचय और सम्मान का दायरा बहुत बड़ा है।

 iii.        सुमति उनके यहाँ धर्मगुरु के रूप में सम्मानित होता हैं।

 iv.        सुमति सबको बोध गया का गंडा प्रदान करता है। लोग गंडे को पाकर धन्य अनुभव करते हैं।

   v.        सुमति स्वभाव से सरल, मिलनसार, स्नेही और मृदु रहा होगा। तभी लोग उसे उचित आदर देते होंगे।

 vi.        सुमति बौद्ध धर्म में आस्था रखते थे तथा तिब्बत का अच्छा भौगोलिक ज्ञान रखते थे।

प्रश्न 2 'हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-

व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं

आपकी समझ से यहउचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।

उत्तर- बहुत हद तक वेश-भूषा हमारे आचार-व्यवहार से सम्बन्धित होती है। वेश-भूषा मनुष्य के व्यक्तित्व को दर्शाती है। उदाहरण के तौर पर साधु-संत को देखकर उनका सात्विक रूप हमारे सामने उभरता है। उसी प्रकार एक भिखमंगे की वेश-भूषा देखने पर उसकी आर्थिक विप्पणता सामने आती है।

प्रश्न 3 यात्रा वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द -चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य/ शहर से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर- तिब्बत एक पहाड़ी प्रदेश है जिस कारण यहाँ बर्फ़ पड़ती है। इसकी सीमा हिमालय पर्वत से शुरू होती है। डाँड़े के ऊपर से समुद्र तल की गहराई लगभग 17-18 हज़ार फीट है। पूरब से पश्चिम की ओर हिमालय के हज़ारों श्वेत शिखर दिखते है। भीटे की ओर दीखने वाले पहाड़ों पर न तो बरफ़ की सफ़ेदी थी, न किसी तरह की हरियाली। उत्तर की तरफ पत्थरों का ढ़ेर है।

प्रश्न 4 आपने किसी भी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी ? यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।

उत्तर- ग्रीष्मावकाश में इस बार मैंने अपने माता-पिता, बहन और दो मित्रों के साथ देहरादून घूमने जाने की योजना बनाई। सबको मेरा प्रस्ताव पसंद आया और हम सब 24 मई को अपनी गाड़ी में बैठकर प्रात: 4 बजे देहरादून के लिए रवाना हुए। अभी गाड़ी 25-30 किमी 0 ही चली थी कि अचानक वह घरघराकर रूक गई। गाड़ी खराब हो गई थी। यहाँ आस-पास कोई शहर या कस्बा नहीं था। सड़क के दोनों ओर खेत थे। रास्ता सुनसान था। हम सब परेशान हो गए। पिताजी ने उतरकर देखा, पर उन्हें भी समझ नहीं आया कि गाड़ी क्यों नहीं चल रही थी। हमें वहीं खड़े-खड़े तीन घंटे बीत गए। उस सड़क पर आने-जाने वाली गाडि़यों को हमने हाथ देकर रोकने की कोशिश की, जिससे कुछ सहायता प्राप्त की जा सके,परंतु सभी लोग जल्दी में थे और कोई भी हमारी बात सुनने के लिए नहीं रूकना चाहता था।

शाम होने जा रही थी। हम लोगों का भूख और गर्मी के कारण बुरा हाल था। मेरी छोटी बहन तो परेशान होकर रोने लगी, मां ने मुशिकल से उसे चुप कराया। जब कोई हल नहीं सूझा तो मेरे पिता जी ने चाचा जी को फ़ोन किया और वे अपने साथ मैकेनिक को लेकर आए, तब कहीं जाकर गाड़ी ठीक हो सकी।

इस बीच मेरठ से खाना खरीदा गया और हम लोग रात में 12:30 बजे देहरादून पहुँच पाए। हमारा पूरा दिन बर्बाद हो गया था। अब जब कभी हम लोग गाड़ी में बैठकर बाहर जाते हैं या कहीं घूमने की योजना बनाते हैं, वह समस्याओं से भरा दिन बरबस याद आ जाता है।

प्रश्न 5 यात्रा वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ्यपुस्तक में “महादेवी वर्मा” द्वारा रचित “मेरे बचपन के दिन” संस्मरण है। संस्मरण भी गद्य साहित्य की एक विधा है। इसमें लेखिका के बचपन की यादों का एक अंश प्रस्तुत किया गया है।

यात्रा वृत्तांत तथा संस्मरण दोनों ही गद्य साहित्य की विधाएँ हैं जोकि एक दूसरे से भिन्न है। यात्रा वृत्तांत किसी एक क्षेत्र की यात्रा के अपने अनुभवों पर आधारित है तथा संस्मरण जीवन के किसी व्यक्ति विशेष या किसी खास स्थान की स्मृति पर आधारित है। संस्मरण का क्षेत्र यात्रा वृत्तांत से अधिक व्यापक है।

भाषा- अध्ययन प्रश्न 

प्रश्न 1 किसी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है; जैसे-

सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।

पौ फटने वाला था कि हम गाँव में थे।

तारों की छाँव रहते -रहते हम गाँव पहुँच गए।

नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीकों में लिखिए–

‘ जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे। ‘

उत्तर-

     i.        यह पता ही नहीं चल पा रहा था कि घोड़ा चल भी रहा है या नहीं।

   ii.        कभी लगता था घोड़ा आगे जा रहा है, कभी लगता था पीछे जा रहा है।

प्रश्न 2 ऐसे शब्द जो किसी अंचल यानी क्षेत्र विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढकर लिखिए।

पाठ में आए हुए आंचलिक शब्द–

उत्तर- कुची, भीटा, थुक्पा, खोटी, राहदारी

प्रश्न 3 पाठ में कागज़, अक्षर, मैदान के आगे क्रमश : मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।

उत्तर- बहुत पिछड़ना , धीमे चलना , कड़ी धूप , ख़ुफ़िया विभाग

  • Tags :
  • Lhasa ki aur

You may like these also

© 2024 Witknowlearn - All Rights Reserved.