Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain Class 9 Worksheet with Answer

In the bustling streets of life's intricate tapestry, the phrase Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain resonates with a poignant echo that tugs at the conscience of society. It is a stark reminder of the realities faced by countless children, encapsulated in the curriculum of Class 9, where these children's stories are not just heard, but felt and analyzed. As the sun peeks over the horizon, casting long shadows over the dew-kissed earth, the children of Class 9 prepare to delve into the depths of Chapter 13 in their Hindi Kshitij textbook—an exploration fraught with the bitter truth of child labor.

The phrase itself, Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain, is no mere grouping of words, but a mirror reflecting the harsh lines of a reality faced by the young. It is through the structured learning process, including a meticulously designed worksheet with answers, that students engage with the gravity of this societal issue. The worksheet isn't just another piece of homework; it's a tool, facilitating reflection, comprehension, and empathy among young learners.

As educators begin to navigate through the complex curricular demands, they introduce a variety of resources to bolster understanding, one of which includes the much sought-after Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain Class 9 MCQ. This not only challenges students to consider the material critically, but also provides a means to assess their grasp of the key concepts addressed in the chapter.

Furthermore, the classroom transmutes into a space of active inquiry as students pair off, clutching copies of bacche kaam par ja rahe question answer sheets. Their young voices fill the room, discussing, debating, and decoding the myriad layers of meaning found within the text. Each question serves as a stepping stone towards a deeper engagement with the text, and every answer adds another layer to their understanding.

For those hungry for more knowledge, bacche kaam par ja rahe Extra questions and answers offer an expanded landscape of learning. It is here that the critical thinking skills are polished, perspectives broadened, and insights deepened, strengthening the educational edifice upon which future learning is built.

And yet, nothing solidifies comprehension like the practice of retrieval and application seen in the classroom quizzes and discussions about class 9 chapter 13 hindi. The students of Class 9 stand at the cusp of adolescence, armed with knowledge and empathy, ready to confront the societal elements portrayed in बच्चे काम पर जा रहे हैं with maturity beyond their years. It is through these educational experiences that the next generations are sculpted, capable of envisioning and striving for a world where no child must sacrifice the sanctity of childhood at the altar of toil and labor.

बच्चे काम पर जा रहे है कविता का भावार्थ

इस कविता में बच्चों से बचपन छीन लिए जाने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि ने उस सामाजिक – आर्थिक विडंबना की ओर इशारा किया है जिसमें कुछ बच्चे खेल, शिक्षा और जीवन की उमंग से वंचित हैं। कवि कहता है कि बच्चों का काम पर जाना आज के ज़माने में बड़ी भयानक बात है। यह उनके खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने के दिन हैं। फिर भी वे काम करने को मजबूर हैं। उनके विकास के लिए सभी चीज़ों के रहते हुए भी उनका काम पर जाना कितनी भयानक बात है। अपनी कविता के माध्यम से वह समाज को जागृत करना चाहते हैं ताकि बच्चों के बचपन को काम की भट्टी में झौंकने से रोका जा सके।


काव्यांश 1.

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं

सुबह सुबह

बच्चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि सुबह-सुबह की कड़ाके की ठंड में, जब पूरी सड़क कोहरे से ढकी है। उस समय बच्चे काम पर जा रहे हैं। मजदूरी करने के लिए या रोजी-रोटी कमाने के लिए घर से निकल कर, वो इस भयानक ठंड में काम पर जा रहे हैं।

कवि आगे कहते हैं कि बच्चे काम पर जा रहे हैं। यह हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है अर्थात जिस उम्र में बच्चों को खेलना-कूदना चाहिए, स्कूल जाना चाहिए, मौज मस्ती करनी चाहिए। उस समय वो इतनी बड़ी जिम्मेदारी भरा काम कर रहे हैं। अपने गरीब मां-बाप की जिम्मेदारियां बांटने के लिए, अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अपना बचपन कुर्बान कर रहे हैं। और वो ऐसा करने के लिए विवश है, मजबूर हैं। इससे ज्यादा और क्या भयानक होगा।

अगली पंक्तियों में बच्चों को काम पर जाता देखकर कवि का मन बहुत दुखी है, व्यथित हैं। वो कहते हैं कि “बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं ”, इसे एक गंभीर प्रश्न की तरह हमें अपनी जिम्मेदार सरकार से पूछना चाहिए, समाज के तथाकथित ठेकेदारों से पूछना चाहिए।बजाय इसे एक विवरण की तरह लिखने के। यानि कागजों में आंकड़े इकठ्ठे करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

हमें यह बात पूछनी चाहिए कि ऐसी क्या स्थितियां बन गई कि छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ने लिखने, खेलने कूदने की उम्र में काम पर जाना पड़ रहा है। अपने घर की जिम्मेदारियों में हाथ बटाँना पड़ा है। स्कूल जाना छोड़ कर, मजदूरी करने जाना पड़ रहा है। आखिर क्यों उनसे उनका बचपन इस बेरहमी से छीना जा रहा है।

काव्यांश 2.

क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें

क्या दीमकों ने खा लिया है

सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्या काले पहाड़ के निचे दब गए हैं सारे खिलौने

क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं

सारे मदरसों की इमारतें

क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन

ख़त्म हो गए हैं एकाएक

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि बच्चों को काम पर जाना पड़ा है।यहां पर कवि एक साथ कई सारे सवाल करते हैं। वो कहते हैं कि क्या बच्चों के खेलने वाली सारी गेंदें अंतरिक्ष में गिर गयी हैं या फिर उनकी रंग-बिरंगी कार्टून वाली सारी कहानियां की किताबें दीमकों ने खा ली है।

क्या बच्चों के सारे खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं या फिर सारे स्कूलों के भवन किसी भूकंप की वजह से गिर गये हैं। यानी सारे स्कूल खत्म हो चुके हैं।

कवि आगे और सवाल करते हैं कि वो सारे खेल के मैदान, जहां बच्चे दिनभर खूब खेलते हैं। वो सारे बाग-बगीचे जिनमें बच्चे दौड़-दौड़ कर तितलियों पकड़ते हैं या फल-फूल खाने के लिए घूमते फिरते हैं।

और घरों के वो आंगन, जहां बच्चे दिनभर धमाचौकड़ी करते रहते हैं। वो कहाँ गये। क्या वह सब खत्म हो गए हैं ? जिस वजह से इन बच्चों को अब काम पर जाना पड़ रहा है। कवि पूछते हैं कि आखिर क्यों इन बच्चों को काम पर जाना पड़ रहा है।

काव्यांश 3.

तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?

कितना भयानक होता अगर ऐसा होता

भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह

कि हैं सारी चींजे हस्बमामूल

पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए

बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे

काम पर जा रहे हैं।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अगर सच में बच्चों की सारी गेंदें अंतरिक्ष में गिर गई हैं। और खेल के सभी मैदान खत्म हो गए हैं या बच्चों की कहानी की किताबें दीमकों ने खा ली हैं।तो फिर दुनिया में बचा ही क्या हैं ?

और अगर यह सब सच होता, तो यह वाकई में बहुत भयानक होता । लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है।सब पहले जैसा (हस्बमामूल) ही, अपनी जगह यथावत है। और सब पहले जैसा होने के बावजूद भी, बच्चों को काम पर जाना पड़ रहा है। यह उससे भी ज्यादा भयानक है।

कवि आगे कहते हैं कि सब कुछ यथावत होते हुए भी दुनिया की हजारों सड़कों से,  हर रोज हजारों बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। बहुत छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। अपना बचपन भुलाकर, वो काम करने जा रहे हैं।

Bache kam par ja rahe hai question answer

प्रश्न 1 कविता की पहली दो पक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकरव्यक्त कीजिए।

उत्तर- कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने से हमारे मन में कुछ गरीब बच्चों की अत्यंत दयनीय स्थिति का चित्र उभरता है। आर्थिक स्थिति के खराब होने के कारण उनका बचपन खो गया है। अपनी तथा अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को उठाते ये दो हाथ निरंतर क्रियाशील हैं। इनकी आँखों में कुछ सपने हैं जिन्हें पूरा करने में ये असमर्थ हैं।

प्रश्न 2 कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि 'काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?' कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?

उत्तर- बच्चो की इस स्थिति का जिम्मेवार समाज है। कवि द्वारा विवरण मात्र देकर उनके जरुरी आवश्यकताओं की पूर्ति नही की जा सकती। इसके लिए लिए समाज को इस समस्या से जागरूक करने के लिए तथा ठोस समाधान ढूँढने के लिए बात को प्रश्न रूप में ही पूछा जाना उचित होगा। लोगो को बैठ विमर्श कर इस समस्या का उचित समाधान करना होगा।

प्रश्न 3 सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?

उत्तर- सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चों के वंचित रहने के मुख्य कारण सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक मज़बूरी है। समाज के गरीब तबके के बच्चों को न चाहते हुए भी अपने माता-पिता का हाथ बँटाना पड़ता है। जहाँ जीविका के लिए इतनी मेहनत करनी पड़े तब सुख-सुविधाओं की कल्पना करना असंभव सा लगता है।

प्रश्न 4 दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/ रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर- इस प्रकार की उदासीनता के कई कारण हो सकते हैं जैसे–

     i.        आज के मनुष्य का आत्मकेंद्रित होना। वे केवल अपने और अपने बच्चों के बारे में ही सोचते हैं।

   ii.        जागरूकता तथा जिम्मेदारी की कमी के कारण लोग सोचते हैं कि यह उनका नहीं सरकार का काम है।

 iii.        व्यस्तता के कारण भी आज के लोग अपनी ही परेशानियों में इस कदर खोये हुए हैं कि उन्हें दूसरे की समस्या से कोई सरोकार नहीं होता है।

 iv.        लोगों को कम कीमत में अच्छे श्रमिक मिल जाते हैं इसलिए भी वे इसके विरूद्ध कोई कदम नहीं उठाना चाहते हैं।

प्रश्न 5 आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है?

उत्तर- शहर में अक्सर बच्चे-

     i.        दुकानों में काम करते नज़र आते हैं।

   ii.        ढ़ाबों में बरतन साफ़ करते नज़र आते हैं।

 iii.        बड़े-बड़े दफ्तरों में चाय देते नज़र आते हैं।

 iv.        बस में भी काम करते हैं।

   v.        घरों में अक्सर कम उम्र के बच्चे ही काम करते देखे गए हैं।

प्रश्न 6 बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?

उत्तर- बच्चे इस देश का भविष्य हैं। यदि बच्चे पढ़ लिख नही पाते तब हमारे देश की आने वाली पीढ़ी भी पिछड़ी होगी, देश का भविष्य अंधकारपूर्ण होगा। उन्हें उनके बचपन से वंचित रखना अपराध तथा अमानवीय कर्म है। इसलिए बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान है।

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न 1 काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आप को रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।

उत्तर- मुझे यदि इस तरह बाल मजदूरी करनी पड़े तो मैं अपने आप को हीन समझने लगूँगा। जिस घर में मै काम कर रहा हूँगा जब मैं वहाँ अपनी ही उम्र के बच्चों को देखूँगा कि वे किस तरह मजे और आराम का जीवन व्यतीत कर रहे है तो मुझे अत्यंत खेद होगा। माता-पिता की आर्थिक परेशानियों के प्रति सहानुभूति की अपेक्षा रोष उत्पन्न होने लगेगा मेरा आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगेगा। मेरे मन में तरह-तरह के प्रश्न उभरने लगेंगे। मेरा मन हमेशा अशांत और दुखी रहने लगेगा।

प्रश्न 2 आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?

उत्तर- हमारे विचार से बच्चों को काम पर नहीं भेजना चाहिए क्योंकि उनके छोटे से मस्तिष्क में इस घटना का दुखद प्रभाव पड़ सकता है, जो धीरे-धीरे बढ़कर विद्रोह का रुप धारण कर सकता है। इसी तरह के बच्चे आर्थिक अभाव तथा सामाजिक असमानता के कारण आगे चलकर आतंकवादी, चोरी जैसे गलत कामों को अंजाम दे सकते हैं। इससे समाज की हानि हो सकती है।

सबसे पहले तो समाज की यह कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे बच्चों को अन्य सभी बच्चों की तरह पढ़ने-लिखने तथा समाज के साथ आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए या फिर उनकी सहायता करने के लिए सरकार तथा समाज से सहायता की माँग करनी चाहिए।

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