Kabir Ke Pad Class 11 Question Answer

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Understanding 'Hum To Ek Ek Kari Jana' is not just about memorizing the lines; it's about connecting with the spirit of Kabir's message. We make this connection smoother by offering clear and easy-to-understand explanations, summaries, and question answers tailored specifically for Class 11 students. The beauty of Kabir's 'pads' or verses is made accessible as we unravel each line, each word at a time, just like Kabir suggests—'ek ek kari'.

Our resources for Class 11 Hindi Kavya Khand Chapter 1 are meticulously designed to guide students through the intricate layers of Kabir's poetry. Whether it's the chapter summary for quick revision or the detailed explanation and context, students are well-equipped to tackle every question that may come their way. Answers to questions from 'Kabir ke pad' for Class 11th are crafted with care, ensuring that students not only find the right answers but also grasp the philosophical depths of the text.

As educators and facilitators, we ensure that the learning journey of Class 11 Hindi Chapter 1 is filled with enlightenment and understanding. From 'vyakhya' to comprehensive analyses, every aspect of the chapter is covered, making the learning process a fulfilling adventure. Join us at WitKnowLearn, where we take learning one step at a time, ensuring that each step is solid, enriching, and enlightening, just as Kabir would have wanted.

अध्याय-1: कबीर के पद

सारांश

हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।

दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।

जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।

सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।

 

एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।

एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।

माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां

निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां।

अर्थ - कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

सतों दखत जग बौराना।

साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।

नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।

आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।

बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।

कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।

आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।

 

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।

हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।

आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।

घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।

गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।

कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।

केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।

अर्थ - कबीरदास सज्जनों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि देखो, यह संसार पागल हो गया है। जो व्यक्ति सच बातें बताता है, उसे यह मारने के लिए दौड़ता है तथा जो झूठ बोलता है, उस पर यह विश्वास कर लेता है। कवि हिंदुओं के बारे में बताता है कि ऐसे लोग बहुत हैं जो नियमों का पालन करते हैं तथा धर्म के अनुसार अनुष्ठान आदि करते हैं। ये प्रातः उठकर स्नान करते हैं। ये अपनी आत्मा को मारकर पत्थरों को पूजते हैं। वे आत्मचिंतन नहीं करते। इन्हें अपने ज्ञान पर घमंड है, परंतु उन्होंने कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया है। मुसलमानों के विषय में कबीर बताते हैं कि उन्होंने ऐसे अनेक पीर, औलिया देखे हैं जो कुरान का नियमित पाठ करते हैं। वे अपने शिष्यों को तरह-तरह के उपाय बताते हैं जबकि ऐसे पाखंडी स्वयं खुदा के बारे में नहीं जानते हैं। वे ढोंगी योगियों पर भी चोट करते हैं जो आसन लगाकर अहंकार धारण किए बैठे हैं और उनके मन में बहुत घमंड भरा पड़ा है।

कबीरदास कहते हैं कि लोग पीपल, पत्थर को पूजने लगे हैं। वे तीर्थ-यात्रा आदि करके गर्व का अनुभव करते हैं। वे ईश्वर को भूल जाते हैं। कुछ लोग टोपी पहनते हैं, माला धारण करते हैं, माथे पर तिलक लगाते हैं तथा शरीर पर छापे बनाते हैं। वे साखी व शब्द को गाना भूल गए हैं तथा अपनी आत्मा के रहस्य को नहीं जानते हैं। इन लोगों को सांसारिक जीवन पर घमंड है। हिंदू कहते हैं कि उन्हें राम प्यारा है तो तुर्क रहीम को अपना बताते हैं। दोनों समूह ईश्वर की श्रेष्ठता के चक्कर में लड़कर मार जाते हैं, परंतु किसी ने भी ईश्वर की सत्ता के रहस्य को नहीं जाना।

समाज में पाखंडी गुरु घर-घर जाकर लोगों को मंत्र देते फिरते हैं। उन्हें सांसारिक माया का बहुत अभिमान है। ऐसे गुरु व शिष्य सब अज्ञान में डूबे हुए हैं। इन सबको अंतकाल में पछताना पड़ेगा। कबीरदास कहते हैं कि हे संतों, वे सब माया को सब कुछ मानते हैं तथा ईश्वर-भक्ति को भूल बैठे हैं। इन्हें कितना ही समझाओ, ये नहीं मानते हैं। सच यही है कि ईश्वर तो सहज साधना से मिल जाते हैं।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 11 HINDI KAVYA CHAPTER 1

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 132-133)

पद के साथ

प्रश्न. 1 कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

उत्तर- कबीर ने ईश्वर को एक माना है। उन्होंने इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए हैं

·       संसार में सब जगह एक पवन व एक ही जल है।

·       सभी में एक ही ज्योति समाई है।

·       एक ही मिट्टी से सभी बर्तन बने हैं।

·       एक ही कुम्हार मिट्टी को सानता है।

·       सभी प्राणियों में एक ही ईश्वर विद्यमान है, भले ही प्राणी का रूप कोई भी हो।

प्रश्न. 2 मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?

उत्तर- मानव शरीर का निर्माण धरती, पानी, वायु, अग्नि व आकाश इन पाँच तत्वों से हुआ है। मृत्यु के बाद में तत्व अलग-अलग हो जाते हैं।

प्रश्न. 3 जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।

सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई॥

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

उत्तर- कबीरदास ईश्वर के स्वरूप के विषय में अपनी बात उदाहरण से पुष्ट करते हैं। वह कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट देता है, परंतु उस लकड़ी में समाई हुई अग्नि को नहीं काट पाता, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में ईश्वर व्याप्त है। शरीर नष्ट होने पर आत्मा नष्ट नहीं होती। वह अमर है। आगे वह कहता है कि संसार में अनेक तरह के प्राणी हैं, परंतु सभी के हृदय में ईश्वर समाया हुआ है और वह एक ही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ईश्वर एक है। वह सर्वव्यापक तथा अजर-अमर है। वह सभी के हृदयों में आत्मा के रूप में व्याप्त है।

प्रश्न. 4 कबीर ने अपने को दीवाना’ क्यों कहा है?

उत्तर- ‘दीवाना’ शब्द का अर्थ है-पागल। कबीर स्वयं के लिए इस शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वे झूठे संसार से दूर प्रभु (परमात्मा) में लीन हैं, भक्ति में सराबोर हैं। उनकी यह स्थिति संसार के लोगों की समझ से परे है, अतः वे स्वयं के लिए इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।

प्रश्न. 5 कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?

उत्तर- कबीरदास कहते हैं कि यह संसार बौरा गया है, क्योंकि जो व्यक्ति सच बोलता है, उसे यह मारने को दौड़ता है। उसे सच पर विश्वास नहीं है। कबीरदास तीर्थ स्थान, तीर्थ यात्रा, टोपी पहनना, माला पहनना, तिलक, ध्यान आदि लगाना, मंत्र देना आदि तौर-तरीकों को गलत बताते हैं। वे राम-रहीम की श्रेष्ठता के नाम पर लड़ने वालों को गलत मानते हैं, क्योंकि कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। वह सहज भक्ति से प्राप्त हो सकता है। इन बातों को सुनकर समाज उनकी निंदा करता है तथा पाखडियों की झूठी बातों पर विश्वास करता है। अत: कबीर को लगता है कि संसार पागल हो गया है।

प्रश्न. 6 कबीर ने नियम और धर्म का पालन करनेवाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?

उत्तर- कबीर के अनुसार स्वयं को नियम और धर्म का पालन करनेवाला माननेवाले लोग आत्मतत्व की सर्वव्यापकता को छोड़कर पत्थरों को पूजते हैं। वे आत्मा की आवाज़ को मारकर पत्थरों में ईश्वर को ढूंढ़ रहे हैं जो उनके भीतर ही विद्यमान है, उसे मारकर बेजान पत्थरों में परमात्मा को खोजना भारी भूल है।

प्रश्न. 7 अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?

उत्तर- अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों का उपकार नहीं होता अपितु ऐसे गुरु शिष्यों को गलत रास्ते दिखाते हैं। वे घर-घर मंत्र देते फिरते हैं तथा अभिमान में डूबे जाते हैं। अभिमान के कारण ये ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाते और दोनों का अंत बुरा होता है।

प्रश्न. 8 बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- पंक्तियाँ-‘आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।’

‘साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।’

कबीर ने उपर्युक्त पंक्तियों में स्वयं (आत्मा) को पहचानने की बात कही है। आत्मा हम सभी के भीतर सजग-सचेत अवस्था है। उसे मारकर बेजान पत्थरों में खोजने की बजाय स्वयं को पहचानना चाहिए। साखियाँ और सबद गाते हुए हमें उसको नहीं भुलाना चाहिए, जो चरम और परम तत्व हमारे भीतर है। सब प्रकार के आडंबरों का त्यागकर स्वयं को पहचानना ही उचित मार्ग है।

पद के आस-पास

प्रश्न. 1 अन्य संत कवियों नानक, दादू और रैदास आदि के ईश्वर संबंधी विचारों का संग्रह करें और उन पर एक परिचर्चा करें।

उत्तर- कबीर की भाँति नानक, दादू और रैदास भी निराकार ब्रह्म के उपासक थे। नानक सिक्खों के धर्म गुरु भी थे। अतः उनकी स्चनाएँ गुरुग्रंथ साहब में संकलित हैं। उनके विचार बिलकुल कबीर के समान ही थे –

एक नूर से सब जग उपज्या,

कुदरत दे सब बंदे। – नानक

इसी तरह दादू और रैदास भी ईश्वर को निराकार मानकर मन की शुद्धता पर बल देते हैं

प्रभुजी तुम चंदन हम पानी,

जाकी अंग अंग बास समानी। – रैदास

रैदास मीरा के समकालीन कवि माने जाते हैं। वे भी ब्रह्म को निराकार मानकर मनुष्य से उसका संबंध अभिन्न मानते हैं।

प्रश्न. 2 कबीर के पदों को शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत दोनों में लयबद्ध भी किया गया है; जैसे-कुमार गंधर्व, भारती बंधु और प्रहलाद सिंह टिपाणिया आदि द्वारा गाए गए पद। इनके कैसेट्स अपने पुस्तकालय के लिए मँगवाएँ और पाठ्यपुस्तक के पदों को भी लयबद्ध करने का प्रयास करें।

उत्तर- पुस्तकालय के लिए उपर्युक्त कैसेट्स अध्यापक की मदद से मँगवाएँ । संगीत अध्यापक की सहायता से पदों को लयबद्ध किया जा सकता है।

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