Aao Milkar Bachaye Question Answer

The poem Aao Milkar Bachaye in the Class 11 Hindi syllabus is a stirring call to come together for a common cause. It emphasizes the strength of unity and the impact that can be made when people join forces to save or protect something valuable.

Questions about Aao Milkar Bachaye typically encourage students to think deeply about the themes of cooperation and the importance of collective efforts. The explanations, or vyakhya, of the poem help students to understand the poet's persuasive message and the passionate appeal woven through the lines.

A summary of Aao Milkar Bachaye would highlight the central idea that unity can lead to powerful outcomes and that each person's contribution is essential for the success of a greater mission. The poem likely uses compelling imagery and strong language to ignite the spirit of activism and responsibility in readers.

For students looking to fully appreciate the intricacies of the poem, the answers to their questions should reflect a thorough understanding of the text. These answers are essential for students to not only analyze the literary components of the poem but also to comprehend its broader social and ethical messages, which are significant in shaping their views and actions in the real world.

Overall, Aao Milkar Bachaye teaches a vital lesson beyond the classroom: the lesson of teamwork and shared duty. It's a resonant work for young individuals learning about the power of collective action, an idea that remains pertinent in today's society.

अध्याय- 8: आओ, मिलकर बचाएँ

सारांश


अपनी बस्तियों की

नगी होने से

शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

अपने चहरे पर

सथिल परगान की माटी का रंग

 

बचाएँ डूबने से

पूरी की पूरी बस्ती को

हड़िया में

भाषा में झारखडीपन

अर्थ - कवयित्री लोगों को आहवान करती है कि हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है। हमें अपनी बस्ती को शोषण से बचाना है नहीं तो पूरी बस्ती हड्डयों के ढेर में दब जाएगी। कवयित्री कहती है कि हमें अपनी संस्कृति को बचाना है। हमारे चेहरे पर संथाल परगने की मिट्टी का रंग झलकना चाहिए। भाषा में बनावटीपन न होकर झारखंड का प्रभाव होना चाहिए।

ठडी होती दिनचय में

जीवन की गर्माहट

मन का हरापन

 

भोलापन दिल का

अक्खड़पन, जुझारूपन भी

अर्थ - कवयित्री कहती है कि शहरी संस्कृति से इस क्षेत्र के लोगों की दिनचर्या धीमी पड़ती जा रही है। उनके जीवन का उत्साह समाप्त हो रहा है। उनके मन में जो खुशियाँ थीं, वे समाप्त हो रही हैं। कवयित्री चाहती है कि उन्हें प्रयास करना चाहिए ताकि लोगों के मन उत्साह, दिल का भोलापन, अक्खड़पन व संघर्ष करने की क्षमता वापिस लौट आए।

भीतर की आग

धनुष की डोरी

तीर का नुकीलापन

कुल्हाड़ी की धार

जगंल की ताज हवा

 

नदियों की निर्मलता

पहाड़ों का मौन

गीतों की धुन

मिट्टी का सोंधाप

फसलों की लहलहाहट

अर्थ - कवयित्री कहती है कि उन्हें संघर्ष करने की प्रवृत्ति, परिश्रम करने की आदत के साथ अपने पारंपरिक हथियार धनुष व उसकी डोरी, तीरों के नुकीलेपन तथा कुल्हाड़ी की धार को बचाना चाहिए। वह समाज से कहती है कि हम अपने जंगलों को कटने से बचाएँ ताकि ताजा हवा मिलती रहे। नदियों को दूषित न करके उनकी स्वच्छता को बनाए रखें। पहाड़ों पर शोर को रोककर शांति बनाए रखनी चाहिए। हमें अपने गीतों की धुन को बचाना है, क्योंकि यह हमारी संस्कृति की पहचान हैं। हमें मिट्टी की सुगंध तथा लहलहाती फसलों को बचाना है। ये हमारी संस्कृति के परिचायक हैं।

नाचने के लिए खुला आँगन

गाने के लिए गीत

हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट

रोने के लिए मुट्ठी भर एकात

 

बच्चों के लिए मैदान

पशुओं के लिए हरी-हरी घास

बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति

अर्थ - कवयित्री कहती है कि आबादी व विकास के कारण घर छोटे होते जा रहे हैं। यदि नाचने के लिए खुला आँगन चाहिए तो आबादी पर नियंत्रण करना होगा। फिल्मी प्रभाव से मुक्त होने के लिए अपने गीत होने चाहिए। व्यर्थ के तनाव को दूर करने के लिए थोड़ी हँसी बचाकर रखनी चाहिए ताकि खिलखिला कर हँसा जा सके। अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए थोड़ा-सा एकांत भी चाहिए। बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के चरने के लिए हरी-हरी घास तथा बूढ़ों के लिए पहाड़ी प्रदेश का शांत वातावरण चाहिए। इन सबके लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे।

और इस अविश्वास-भरे दौर में

थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ी-सी उम्मीद

थोडे-से सपने

 

आओ, मिलकर बचाएँ

कि इस दौर में भी बचाने को

बहुत कुछ बचा हैं

अब भी हमारे पास!

अर्थ - कवयित्री कहती है कि आज चारों तरफ अविश्वास का माहौल है। कोई किसी पर विश्वास नहीं करता। अत: ऐसे माहौल में हमें थोड़ा-सा विश्वास बचाए रखना चाहिए। हमें अच्छे कार्य होने के लिए थोड़ी-सी उम्मीदें भी बचानी चाहिए। हमें थोड़े-से सपने भी बचाने चाहिए ताकि हम अपनी कल्पना के अनुसार कार्य कर सकें। अंत में कवयित्री कहती है कि हम सबको मिलकर इन सभी चीजों को बचाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि आज आपाधापी के इस दौर में अभी भी हमारे पास बहुत कुछ बचाने के लिए बचा है। हमारी सभ्यता व संस्कृति की अनेक चीजें अभी शेष हैं।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 11 HINDI AAROH CHAPTER 8

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 183)

कविता के साथ

प्रश्न. 1 माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर- कवयित्री ने ‘माटी का रंग’ प्रयोग करके स्थानीय विशेषताओं को उजागर करना चाहा है। संथाल परगने के लोगों में जुझारूपन, अक्खड़ता, नाच-गान, सरलता आदि विशेषताएँ जमीन से जुड़ी हैं। कवयित्री चाहती है कि आधुनिकता के चक्कर में हम अपनी संस्कृति को हीन न समझे। हमें अपनी पहचान बनाए रखनी चाहिए।

प्रश्न, 2 भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- झारखंडी’ का अभिप्राय है- झारखंड के लोगों की स्वाभाविक बोली। कवयित्री का मानना है कि यहाँ के लोगों को अपनी क्षेत्रीय भाषा को बाहरी भाषा के प्रभाव से मुक्त रखना चाहिए। उसके विशिष्ट उच्चारण व स्वभाव को बनाए रखना चाहिए।

प्रश्न. 3 दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?

उत्तर- दिल का भोलापन सच्चाई और ईमानदारी के लिए जरूरी है, परंतु हर समय भोलापन ठीक नहीं होता। भोलेपन का फायदा उठाने वालों के साथ अक्खड़पन दिखाना भी जरूरी है। अपनी बात को मनवाने के लिए अकड़ भी होनी चाहिए। साथ ही कर्म करने की प्रवृत्ति भी आवश्यक है। अत: कवयित्री भोलेपन, अक्खड़पन व जुझारूपन-तीनों गुणों को बचाने की आवश्यकता पर बल देती है।

प्रश्न. 4 प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?

उत्तर- कविता में प्रकृति के विनाश एवं विस्थापन के कठिन दौर के साथ-साथ संथाली समाज की अशिक्षा, कुरीतियों और शराब की ओर बढ़ते झुकाव को भी व्यक्त किया गया है जिसमें पूरी-पूरी बस्तियाँ डूबने जा रही हैं।

प्रश्न. 5 इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?

उत्तर- कवयित्री का कहना है कि आज के विकास के कारण भले ही मानवीय मूल्य उपेक्षित हो गए हों, प्राकृतिक संपदा नष्ट हो रही है, परंतु फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे अपने प्रयत्नों से बचा सकते हैं। लोगों का विश्वास, उनकी टूटती उम्मीदों को जीवित करना, सपनों को पूरा करना आदि ऐसे तत्व हैं, जिन्हें सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है।

प्रश्न. 6 निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए:

     i.        ठंडी होती दिनचर्या में,

जीवन की गर्माहट

   ii.        थोड़ा-सा विश्वास

थोड़ा-सी उम्मीद

थोड़े-से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ।

उत्तर-

     i.        इस पंक्ति में कवयित्री ने आदिवासी क्षेत्रों में विस्थापन की पीड़ा को व्यक्त किया है। विस्थापन से वहाँ के लोगों की दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। हम अपने प्रयासों से उनके जीवन में उत्साह जगा सकते हैं। यह काव्य पंक्ति लाक्षणिक है। इसका अर्थ है-उत्साहहीन जीवन। ‘गर्माहट’ उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों से अर्थ गंभीर्य आया है। शांत रस विद्यमान है। अतुकांत अभिव्यक्ति है।

   ii.        इस अंश में कवयित्री अपने प्रयासों से लोगों की उम्मीदें, विश्वास व सपनों को जीवित रखना चाहती है। समाज में बढ़ते अविश्वास के कारण व्यक्ति का विकास रुक-सा गया है। वह सभी लोगों से मिलकर प्रयास करने का आहवान करती है। उसका स्वर आशावादी है। ‘थोड़ा-सा’; ‘थोड़ी-सी’ वे ‘थोड़े-से’ तीनों प्रयोग एक ही अर्थ के वाहक है। अतः अनुप्रास अलंकार है। दूर्द (उम्मीद), संस्कृत (विश्वास) तथा तद्भव (सपने) शब्दों को मिला-जुला प्रयोग किया है। तुक, छंद और संगीत विहीन होते हुए कथ्य में आकर्षण है। खड़ी बोली है।

प्रश्न. 7 बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

उत्तर- बस्तियों को शहर की नग्नता व जड़ता से बचाने की जरूरत है। स्वभावगत, वेशभूषा व वनस्पति विहीन नग्नता से बचाने का प्रयास सामूहिक तौर पर हो सकता है। शहरी जिंदगी में उमंग, उत्साह व अपनेपन का अभाव होता है। शहर के लोग अलगाव भरी जिंदगी व्यतीत करते हैं।

कविता के आस-पास

प्रश्न. 1 आप अपने शहर या बस्ती की किन चीज़ों को बचाना चाहेंगे?

उत्तर- छात्र स्वयं करें।

प्रश्न. 2 आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

उत्तर- आदिवासी समाज आज स्वयं को आधुनिक बनाने के चक्कर में अपनी मौलिकता खो रहा है। स्वयं को पिछड़ा मानकर हीनभाव से ग्रस्त हो वे अपनी धरती की गंध भूलते जा रहे हैं, पर आज भी वहाँ शिक्षा और कुरीतियों के कारण पीढ़ियाँ बिगड़ रही हैं

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