Rahim Ke Dohe Class 9 Worksheet with Answers

The study of Rahim Ke Dohe Class 9 promises a journey through the timeless wisdom of Abdul Rahim Khan-I-Khana, a revered poet and composer from the Mughal era. As part of the Class 9 Hindi curriculum, these couplets not only enhance the linguistic skills of students but also impart moral and practical wisdom that remains relevant across centuries. Rahim Ke Dohe Class 9th encapsulates life’s intricate lessons through simple, yet profound, poetic expressions, making it a pivotal chapter for young learners in Class 9 Rahim Ke Dohe.

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The Dohe Class 9 question answers and Rahim Ke Dohe Class 9th NCERT solutions are meticulously aligned with the curriculum, ensuring that every aspect of Rahim’s wisdom is explored and understood. The addition of Rahim Ke Dohe Class 9 with meaning in the study materials specifically aids students in connecting with the practical and ethical guidance that Rahim’s couplets offer.

Studying Rahim Ke Dohe Class 9 is not just an academic endeavor but a passage through India’s rich poetic tradition, sparking a profound appreciation for the depth of Indian literature and the universality of its values. Through Rahim’s couplets, students gain not only knowledge and insight for their exams but also timeless wisdom for life.

Rahim ke dohe class 9 explanation


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।

टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

अर्थ  रहीम के अनुसार प्रेम रूपी धागा अगर एक बार टूट जाता है तो दोबारा नहीं जुड़ता। अगर इसे जबरदस्ती जोड़ भी दिया जाए तो पहले की तरह सामान्य नही रह जाता, इसमें गांठ पड़ जाती है।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी लेंहैं कोय।।

अर्थ रहीम कहते हैं कि अपने दुःख को मन के भीतर ही रखना चाहिए क्योंकि उस दुःख को कोई बाँटता नही है बल्कि लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय।।

अर्थ रहीम के अनुसार अगर हम एक-एक कर कार्यों को पूरा करने का प्रयास करें तो हमारे सारे कार्य पूरे हो जाएंगे, सभी काम एक साथ शुरू कर दियें तो तो कोई भी कार्य पूरा नही हो पायेगा। वैसे ही जैसे सिर्फ जड़ को सींचने से ही पूरा वृक्ष हरा-भरा, फूल-फलों से लदा रहता है।

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस।

जा पर बिपदा परत है, सो आवत यह देश।।

अर्थ रहीम कहते हैं कि चित्रकूट में अयोध्या के राजा राम आकर रहे थे जब उन्हें 14 वर्षों के वनवास प्राप्त हुआ था। इस स्थान की याद दुःख में ही आती है, जिस पर भी विपत्ति आती है वह शांति पाने के लिए इसी प्रदेश में खिंचा चला आता है।

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूदि चढिं जाहिं॥

अर्थ रहीम कहते हैं कि दोहा छंद ऐसा है जिसमें अक्षर थोड़े होते हैं किंतु उनमें बहुत गहरा और दीर्घ अर्थ छिपा रहता है। जिस प्रकार कोई कुशल बाजीगर अपने शरीर को सिकोड़कर तंग मुँह वाली कुंडली के बीच में से कुशलतापूर्वक निकल जाता है उसी प्रकार कुशल दोहाकार दोहे के सीमित शब्दों में बहुत बड़ी और गहरी बातें कह देते हैं

धनि रहीम जल पंक को,लघु जिय पिअत अघाय।

उदधि बड़ाई कौन है,जगत पिआसो जाय।।

अर्थ- रहीम कहते हैं कि कीचड़ का जल सागर के जल से महान है क्योंकि कीचड़ के जल से कितने ही लघु जीव प्यास बुझा लेते हैं। सागर का जल अधिक होने पर भी पीने योग्य नहीं है। संसार के लोग उसके किनारे आकर भी प्यासे के प्यासे रह जाते हैं। मतलब यह कि महान वही है जो किसी के काम आए।

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछु दे।।

अर्थ रहीम कहते हैं कि संगीत की तान पर रीझकर हिरन शिकार हो जाता है। उसी तरह मनुष्य भी प्रेम के वशीभूत होकर अपना तन, मन और धन न्यौछावर कर देता है लेकिन वह लोग पशु से भी बदतर हैं जो किसी से खुशी तो पाते हैं पर उसे देते कुछ नहीं है।

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे माखन होय।।

अर्थ रहीम कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथकर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु दीजिए डारि।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

अर्थ रहीम के अनुसार हमें बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु अनादर नहीं करना चाहिए, उनकी भी अपना महत्व होता। जैसे छोटी सी सुई का काम बड़ा तलवार नही कर सकता।

रहिमन निज संपति बिना, कोउ बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

अर्थ रहीम कहते हैं कि संकट की स्थिति में मनुष्य की निजी धन-दौलत ही उसकी सहायता करती है।जिस प्रकार पानी का अभाव होने पर सूर्य कमल की कितनी ही रक्षा करने की कोशिश करे, फिर भी उसे बचाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार मनुष्य को बाहरी सहायता कितनी ही क्यों मिले, किंतु उसकी वास्तविक रक्षक तो निजी संपत्ति ही होती है।

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

अर्थ रहीम कहते हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है। इसे बनाए रखो। यदि पानी समाप्त हो गया तो तो मोती का कोई महत्त्व है, मनुष्य का और आटे का। पानी अर्थात चमक के बिना मोती बेकार है। पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है और जल के बिना रोटी नहीं बन सकती, इसलिए आटा बेकार है।

Rahim ke dohe class 9 solutions

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 80-81)

प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

     i.        प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?

   ii.        हमें अपना दुःख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?

 iii.        रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?

 iv.        एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?

   v.        जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?

 vi.        अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?

vii.        ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?

viii.        “मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

     i.        प्रेम का धागा टूटने पर पहले जैसा इसलिए नहीं हो पाता है, क्योंकि टूटने पर जब प्रेम-संबंधों को जोड़ने की कोशिश की जाती है तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। ऐसा करने पर भी मन की मलिनता पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाती है। इससे प्रेम संबंधों में पहले जैसी घनिष्ठता नहीं आ पाती है।

   ii.        हमें अपना दुख दूसरों पर इसलिए प्रकट नहीं करना चाहिए क्योंकि जिस अपेक्षा के कारण हम दूसरों को अपना दुख सुनाते हैं, सुनने वाले की प्रतिक्रिया उसके विपरीत होती है। जो व्यक्ति हमारे दुखों के बारे में सुनता है वह मदद करने के बजाय हँसी उड़ाने लगता है।

 iii.        रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य इसलिए कहा है क्योंकि कीचड़ के बीच स्थित थोड़ा-सा पानी दूसरों के काम आता है। विभिन्न पक्षी, कीड़े-मकोड़े और अन्य छोटे-छोटे जीव इसे पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं, जबकि सागर का जल जो असीमित मात्रा में होता है, खारा होने के कारण किसी के काम नहीं आता है।

 iv.        एक को साधने अर्थात् एक काम में मन लगाकर पूरा प्रयास करने से काम उसी तरह सध जाता है जिस प्रकार पेड़ की पत्तियों, तना, शाखा आदि को पानी देने के बजाय केवल उसकी जड़ों को पानी देने पर वह भरपूर मात्रा में फल देता है। इसके विपरीत जड़ के अलावा हर जगह पानी देने पर भी वह सूख जाता है।

   v.        जलहीन कमल की रक्षा सूर्य इसलिए नहीं कर पाता है क्योंकि जल ही कमल की अपनी संपत्ति होती है जिसके सहारे वह जीवित रहता है। इस जल रूपी संपत्ति के अभाव में सूर्य भी कमल की रक्षा करने में असमर्थ हो जाता। है और कमल सूख जाता है।

 vi.        अवध नरेश अर्थात् श्रीराम को चित्रकूट इसलिए जाना पड़ा था, क्योंकि अपने पिता के वचनों की रक्षा करने एवं उन्हें निभाने के लिए चौदह वर्ष के वनवास के लिए गए। वनवास जाते हुए उन्होंने अपने वनवास के कुछ दिन चित्रकूट में बिताए थे।

vii.        नट अपने शरीर को सिकोड़कर छोटा बनाने और कुंडली मारने की कला में पारंगत होने के कारण ऊपर चढ़ जाता। है, जहाँ जन सामान्य के लिए पहुँचना कठिन होता है।

viii.        मोती के संदर्भ में ‘पानी’ का अर्थ है-उसकी चमक, जिसके कारण मोती बहुमूल्य मानी जाती है और आभूषण बनती है। मनुष्य के संदर्भ में ‘पानी’ का अर्थ है-इज्ज़त, प्रतिष्ठा और मान-सम्मान। इसके कारण ही व्यक्ति समाज में आदर का पात्र समझा जाता है। चून (आटा) के संदर्भ में पानी’ का अर्थ जल है जिसके मेल से वह रोटियों के रूप में वह प्राणियों का पोषण करता है।

प्रश्न 2 निम्नलिखित को भाव स्पष्ट कीजिए-

     i.        टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।

   ii.        सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय।

 iii.        रहिमन मूलहिं सचिबो, फूलै फलै अघाय।।

 iv.        दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

   v.        नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

 vi.        जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।

vii.        पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून। ‘

उत्तर-

     i.        प्रेम संबंध एक बार टूटने से दुबारा नहीं बनते। यदि दुबारा बनते भी हैं तो उनमें पहले के समान घनिष्ठता नहीं रहती। मन में अविश्वास बना रहता है।

   ii.        मनुष्य को अपना दुख सबके सामने प्रकट नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहिए। लोग उसे जानकर केवल मज़ाक उड़ाते हैं। कोई भी उन दु:खों को बाँटता नहीं है।

 iii.        अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करने की अपेक्षा अपने इष्टदेव के प्रति आस्था रखना अधिक अच्छा होता है। जिस प्रकार जड़ को सींचने से पेड़ के फूल-पत्तों तक का पोषण हो जाता है। उसी प्रकार इष्ट के प्रति ध्यान कर लें तो सांसारिक सुख स्वयं मिल जाते हैं।

 iv.        दोहा छंद आकार में छोटा है, परंतु अर्थ बहुत गहरा लिए हुए होता है। उसका गूढ़ अर्थ ही उसकी गागर में सागर भरने की प्रवृत्ति को स्पष्ट कर देता है। ठीक वैसे ही जैसे नट कुंडली को समेटकर रस्सी पर चढ़ जाता है।

   v.        हिरण संगीत पर मुग्ध होकर शिकारियों को अपना जीवन तक दे देता है अर्थात अपनी अस्तित्व समर्पित कर देता है तथा मनुष्य दूसरों पर प्रसन्न होकर उसे धन देता है और उसका हित भी करता है। किंतु जो दूसरों पर प्रसन्न होकर भी उसे कुछ नहीं देता, वह पशु तुल्य होता है।

 vi.        प्रत्येक मनुष्य का अपना महत्त्व होता है। समयानुसार उसकी उपयोगिता है। कवि ने तलवार और सुई के उदाहरण द्वारा यह तथ्य सिद्ध किया है। जहाँ छोटी वस्तु का उपयोग होता है वहाँ बड़ी वस्तु किसी काम की नहीं होती और जहाँ बड़ी वस्तु उपयोगी सिद्ध होती है वहाँ छोटी वस्तु बेकार साबित होती है। सुई जो काम करती है वह काम तलवार नहीं कर सकती और जिस काम के लिए तलवार है वह काम सुई नहीं कर सकती। हर चीज़ की अपनी उपयोगिता है।

vii.        मोती में यदि चमक न रहे, वह व्यर्थ है। मनुष्य यदि आत्म-सम्मान न बनाए रखे तो बेकार है। सूखा आटा पानी के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं होता। पानी के बिना मोती, मनुष्य और चून नहीं उबर सकते। मोती की चमक, मनुष्य को आत्म-सम्मान व आटे की गुँथना सभी पानी के द्वारा ही संभव है।

प्रश्न 3 निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है

     i.        जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।

   ii.        कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।

 iii.        पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।

उत्तर-

     i.        जा पर विपदा पड़त है, सो आवत यह देश।

   ii.        बिगरी बात बनत नहिं, लाख करौ किन कोय।

 iii.        रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।

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