Megh Aaye class 9 - MCQ And Extra Questions Answers

Megh Aaye class 9 - MCQ And Extra Questions Answers
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Chapter 12 of Class 9 Hindi, titled Megh Aaye, is a fascinating piece that brings the beauty and essence of the monsoon season to life. This chapter is particularly significant for Class 9 students as it not only enhances their appreciation for natures splendor but also introduces them to the rich imagery and emotive expressions in Hindi literature. At WitKnowLearn, we understand the importance of this chapter in nurturing students connection with nature and their skills in literary interpretation.

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Megh Aaye is a vivid portrayal of the monsoon season, capturing its impact on nature, people, and the overall environment. The poem is replete with imagery that evokes the senses, painting a picture of the lush greenery, the rhythmic raindrops, and the rejuvenating atmosphere brought by the monsoon. This chapter allows students to explore the thematic depth of Hindi poetry, understanding how natural phenomena are depicted and celebrated in literature.

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megh aaye bhavarth

‘मेघ आए’ कविता में कवि श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने प्रकृति का अद्भुत वर्णन किया है। मानवीकरण के माध्यम से कवि ने कविता को चत्ताकर्षक बना दिया है। कवि ने बादलों को मेहमान के समान बताया है। पूरे साल भर के इंतशार के बाद जब बादल आएए ग्रामीण लोग बादलों का स्वागत उसी प्रकार करने लगे जिस प्रकार कोई अपने (दामाद) का स्वागत करता है। किसी ने स्वागत किया तो किसी ने उलाहना भी दिया। बादलों के स्वागत में सारी प्रकृति ही उपस्थित हो गई। बादल मेहमान अर्थात दामाद की तरह बन-ठन कर तथा सज-ध्जकर आए हैं। हवा भी चंचल बालिका की तरह नाच-गाकर उनका स्वागत कर रही है। मेघों को देखने के लिए हर आदमी उतावला हो रहा है।

इसीलिए सबने अपने.अपने घरों के दरवाजे तथा खिड़कियाँ खोल दिए हैं और बादलों को देख रहे हैं। आँधी चली और धूल इधर-उधर भागने लगी। धूल का भागना ऐसा लगाए मानो कोई गाँव की लड़की अपना घाघरा उठाकर घर की तरपफ भाग चली। गाँव की नदी भी एक प्रेमिका की तरह अपने मेहमान मेघों को देखकर ठिठक गई तथा उन्हें तिरछी नजर से देखने लगी। गाँव की सुंदरियों ने अपना घूँघट उठाकर बने-ठने? सजे.सँवरे मेहमानों के समान बादलों को देखा। बादल रूपी मेहमानों के आने पर पीपल ने गाँव के एक बड़े-बूढ़े बुजुर्ग की तरह झुककर उनका स्वागत किया। साल भर की गर्मी सहकर मुरझाई लताएँ ऐसे दरवाजे के पीछे चिपकी खड़ी थीं जैसे कोई नायिका दरवाशे के पीछे खड़े होकर आने वाले को उलाहना दे रही हो कि पूरा साल बिताकर अब आए हो। अभी तक याद नहीं आई कि मैं मरी या जी। तालाब भी पानी से लबालब भरा हुआ ऐसे लहरा रहा था कि मानो वह बादलों के स्वागत के लिए परात में पानी भर कर लाया हो। चारों ओर बादल गरजने लगेए बिजली चमकने लगी और झरझर पानी बरसने लगा। कोई कहने लगा कि मुझे क्षमा कर दोए ‘वर्षा होगी कि नहीं’ यह मेरा भ्रम टूट गया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि वर्षा अवश्य होगी। मेघ रूपी मेहमान को लता रूपी अपनी प्रिया से मिलते देखकर सारी प्रकृति खुश हो गई। सभी खुश हुए। वर्षा रूपी खुशी के आँसू बहने लगे।

काव्यांश 1.

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली ,

दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली ,

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।

मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जिस प्रकार लंबे समय बाद जब एक दामाद अपने ससुराल  सज धज कर आता है। तो गांव की नवयुवतियों (किशोर लड़कियों) उसके आने की खबर पूरे गांव वालों को उसके गांव पहुंचने से पहले ही दे देती हैं। और सभी लोग अपने घरों की खिड़कियों और दरवाजे गली की तरफ खोल कर शहर से आए अपने उस दामाद को देखने लगते हैं।

ठीक उसी प्रकार जब भीषण गर्मी के बाद वर्षा ऋतु का आगमन होता है।और काले-काले धने , पानी से भरे हुए बादल आकाश में छाने लगते हैं। उन बादलों के आकाश में छाने से पहले तेज हवायें चलने लगती हैं। जो काले धने बादलों के आकाश में छाने का संकेत देती है।

कवि आगे कहते हैं कि तेज हवाओं के कारण घर के दरवाजे व खिड़की खुलने लगती हैं। लोग अपने घरों से बाहर निकल कर उत्सुकुतावश आकाश की तरफ देखने लगते हैं। और आकाश में काले-काले धने बादलों को देखकर सबके मन उल्लास व प्रसन्नता से भर जाते हैं।

उस समय ऐसा प्रतीत होता है मानो शहर से रहने वाला बादल रूपी दामाद बड़े बड़े लंबे समय बाद बन सँवर कर गांव लौटा हो। “पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के” में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं। गली-गली में पुनरुक्ति अलंकार हैं।

काव्यांश 2.

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,

आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,

बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ –

जब तेज हवाएं बहने लगती है तो पेड़ कभी नीचे की तरफ झुक जाते हैं तो कभी ऊपर की तरफ उठ जाते हैं। उन पेड़ों को देखकर ऐसा लगता हैं जैसे गांव के लोग (यहां पर पेड़ों की तुलना गांव के लोग से की हैं) अपने उस मेहमान को गरदन उचका-उचका कर देख रहे हैं ।यानि गांव के सभी लोग शहर से आये अपने उस मेहमान को एक नजर भर देख लेना चाहती हो।

तेज आंधी के आने से धूल एक जगह से उड़ कर तेजी से दूसरी जगह पहुंच जाती है। कवि ने उस धूल की तुलना गांव की उस किशोरी से की हैं जो मेहमान के आने की खबर गांव के लोगों को देने के लिए अपना घागरा उठा कर तेजी से भागती हैं। कवि को ऐसा लगता है कि जैसे गांव की किशोरी मेहमान आने की खबर गांव वालों को देने के लिए अपना घागरा उठाए दौड़ रही है।

 अगली पंक्तियों में कवि नदी को गांव की एक बहू के रूप में देखते हैं। जो गांव में दामाद के आने की खबर सुनकर , थोड़ा रुक कर और अपने घुंघट को थोड़ा सरका कर , तिरछी निगाहों से  , उस दामाद की झलक पाना चाहती है। यानि आकाश में बादलों के आने से नदी में भी हलचल शुरू हो जाती हैं। क्योंकि बादल रूपी दामाद बड़े बन सँवर कर लौटे हैं।

काव्यांश 3.

बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,

‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –

बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,

हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ –

तेज हवाओं के चलने के कारण बूढा पीपल का पेड़ कभी झुक जाता है तो कभी ऊपर उठ जाता हैं। पीपल के पेड़ की बहुत लंबी उम्र होती है। इसीलिए यहां पर उसे बूढा कहा गया है ।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जैसे गांव में कोई मेहमान आता हैं तो गांव के बड़े -बुजुर्ग आगे बढ़ कर उसका स्वागत करते हैं। उसको प्रणाम करते हैं। ठीक उसी प्रकार बादलों के आने पर बूढ़े पीपल के पेड़ ने झुक कर उसका स्वागत किया। और उसको प्रणाम किया।

कवि आगे कहते हैं कि उस बूढ़े पीपल के पेड़ से लिपटी लता (बेल) भी थोड़ी हरकत में आ गई। कवि ने यहां पीपल से लिपटी हुई लता को उस घर की बेटी के रूप में माना है जो घर आये उस मेहमान को किवाड़ की ओट से देख रही है। यानि भीषण गर्मी में प्यासी लता बादलों के आने से बेहद खुश हैं।

साथ ही साथ वह (लता) मेहमान (बादल) से शिकायत भी कर रही है कि पूरे एक साल के बाद तुमने मेरी खबर ली। क्योंकि बरसात का मौसम साल भर के बाद आता है।

जैसे पुराने समय में दामाद के आने पर परात में उसके पैर रखकर , घर के किसी सदस्य द्वारा पानी से उसके पैर धोये जाते थे। यहां पर तालाब को उसी सदस्य के रूप में माना गया है। कवि कहते हैं कि तालब खुश होकर परात के पानी से उस मेहमान के पैर धोता है। तालाब इसलिये खुश हैं क्योंकि बरसात में पानी से वह फिर से भर जायेगा।

काव्यांश 4.

क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,

‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,

बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जिस प्रकार अटारी (ऊंची जगह ) पर पहुंचे अपने पति को देखकर पत्नी का तन-मन खुशी से भर जाता है। उसके मन में जो संदेह था कि उसका पति नहीं लौटेगा। अब वह भी दूर हो चुका हैं क्योंकि अब उसका पति लौट चुका है। वह मन ही मन उससे माफी मांगती है और दोनों के मिलन से खुशी के आंसू छलक पड़ते हैं।

ठीक उसी प्रकार बादल (पति)  क्षितिज ( जहाँ धरती आसमान मिलते हुए प्रतीत होते हैं ) में छा चुके हैं। और बिजली जोर जोर से चमकती हैं। क्षितिज पर छाये बादलों को देखकर धरती (पत्नी)  बेहद प्रसन्न हैं। उसका यह संदेह भी समाप्त हो जाता कि वर्षा नहीं होगी। यानि अब धरती को पक्का विश्वास हो जाता हैं कि बादल बरसेंगे। और फिर बादल और बिजली के मिलने से झर-झर कर पानी बरसने लगता हैं। और धरती का आँचल भीग जाता हैं।

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