Kya Nirash Hua Jaye Class 8 Worksheet With Answers

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क्या निराश हुआ जाए” पाठ के लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं। क्या निराश हुआ जाए” हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित एक निबंध है।लेखक आये दिन समाचार पत्रों में छपने वाली डकैती , चोरी , तस्करी और भ्रष्टाचार की घटनाओं से दुखी है। इसीलिए वो कहते हैं कि आये दिन जिस तरह से लोग एक दूसरे पर बेईमानी का आरोप लगाते हैं। उन्हें देखकर तो ऐसा लगता है कि दुनिया में कोई ईमानदार आदमी रहा ही नहीं।

लोग एक दूसरे पर संदेह करने लगे हैं। खासकर ऊंचे पदों पर बैठे जिम्मेदार लोगों पर ज्यादा संदेह किया जाता हैं। लेखक कहते हैं कि इस वक्त तो सबसे सुखी इंसान वही है जो कोई काम धंधा नहीं करता क्योंकि अगर कोई व्यक्ति अच्छा काम भी करता है तो लोग उसके गुणों व अच्छाईयों का बखान करने के बजाय पहले उसके अंदर के अवगुणों या बुराइयों का बखान जोर शोर से करने लगते हैं।

लेखक के अनुसार गुण और दोष हर आदमी के अंदर विद्यमान होते हैं लेकिन लोग गुणों को देखने के बजाय दोषों को अधिक देखते हैं। 

लेखक यहाँ पर कहते हैं कि अगर यही असली भारत हैं तो , यह चिंता का विषय हैं क्योंकि महात्मा गांधी और तिलक ने आजादी की लड़ाई लड़ने वक्त ऐसे भारत का सपना तो नहीं देखा था।  फिर वो प्रश्न पूछते हैं कि रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का “महान संस्कृति वाला सभ्य व सुसंस्कृत भारतवर्ष कहाँ खो गया”। 

लेखक कहते हैं कि जैसे सारी नदियों अंतत: आकर समुद्र में मिलती हैं। उसी प्रकार यह भारत भूमि आर्य , द्रविड़ , हिंदू  , मुसलमान , यूरोपीय और भारतीय आदर्शों व सभ्यता संस्कृति की मिलन-भूमि यानि संगम स्थल है।

अर्थात इस देश की संस्कृति कई धर्म व जातियों की संस्कृति के मिलन से समृद्ध हुई हैं। इसीलिए कुछ लोगों के गलत होने से हमारे ऋषि-मुनियों का समृद्धि व सुसंस्कृत पावन भारत खत्म नहीं हो सकता हैं। वह हमेशा सुंदर ही बना रहेगा। 

हाँ , अभी हमें ऐसा लग रहा है कि जो झूठ फरेब कर रहे हैं। वो बहुत तरक्की कर रहे हैं और जो ईमानदारी से रहते हैं। उनका जीना समाज में कठिन हो गया है। आज लोग ईमानदार व्यक्ति को मूर्ख समझते हैं। यह सब देख कर आदर्श जीवन के महान मूल्यों जैसे सच्चाई , ईमानदारी पर से विश्वास टूटता हुआ महसूस हो रहा है।

लेखक कहते हैं कि भारतवर्ष ने हमेशा भौतिक सुख-सुविधाओं की जगह व्यक्ति के गुणों को महत्व दिया है। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि हर व्यक्ति के अंदर लोभ मोह , काम , क्रोध की भावना छुपी होती हैं लेकिन इनको अपने ऊपर हावी होने देना , बहुत बुरी बात है।

भारतवर्ष में हमेशा अपने लोभ , मोह , काम , क्रोध जैसे दुर्गुणों पर संयम रखना सिखाया जाता है। मगर जिस तरह भूखे व्यक्ति के लिए रोटी आवश्यक है और बीमार व्यक्ति के लिए दवा आवश्यक है। उसी तरह जो व्यक्ति सच्चाई व अच्छाई का मार्ग भूल चुके हैं। उनको सही रास्ते में लाना अति आवश्यक है। 

लेखक कहते हैं कि भारत में कृषि , उद्योग , वाणिज्य , शिक्षा और स्वास्थ्य आदि से संबंधित अनेक कानून देशहित और लोकहित में बनाये गये हैं। लेकिन इनका क्रियान्वयन करने वाले लोगों के मन में ईमानदारी व सच्चाई का भाव नहीं रहता है। वो अपने लिए सुख सुविधाओं को जोड़ने में ज्यादा ध्यान देते हैं।

यूं तो भारतवर्ष में कानून को ही धर्म माना जाता है। लेकिन आज धर्म और कानून दोनों अलग अलग कर दिए गए हैं। क्योंकि धर्म में धोखा नहीं दिया जा सकता लेकिन कानून में कमी पेशी निकाल कर उसका फायदा उठाया जा सकता है।

समाज में चाहे कितना भी भ्रष्टाचार व बेईमानी फैल रही हो। और लोगों के मन से सच्चाई , ईमानदारी , प्रेम और दया का भाव कम जरूर हुआ हो लेकिन अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ हैं।ये सब आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।

लेखक मानते हैं कि भले ही लोग बुराई को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। और अच्छाई को बताने में हिचक महसूस करते हैं। लेकिन आज भी हमारे समाज में ऐसे मौजूद हैं जो एक दूसरे के साथ दया , प्रेम की भावना रखते हैं और महिलाओं का सम्मान करते हैं। भ्रष्टाचार , बेईमानी का पर्दाफाश कर समाचार पत्र भी इन बुरी चीजों के प्रति अपनी नाराजगी ही व्यक्त करते हैं।

हमारे समाज में आज भी ईमानदारी और सच्चाई मौजूद है इसके लिए लेखक दो उदाहरणों देते हैं। अपने पहले उदाहरण में वो बताते हैं कि एक बार उन्होंने रेलवे टिकट लेने के लिए गलती से 10 की जगह 100 का नोट टिकट बाबू को दे दिया। गाड़ी चलने वाली थी।

इसलिए वो जल्दी आ कर गाड़ी में बैठ गए लेकिन कुछ देर बाद टिकट बाबू उन्हें ढूंढते हुए आया और मांफी मांगते हुए उन्हें 90 रूपये वापस दे गया। तब उसके चेहरे पर आत्म संतोष साफ़ झलक रहा था।

दूसरे उदाहरण में वो कहते हैं कि एक बार वह अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ यात्रा कर रहे थे। अचानक बस एक सुनसान जंगल में खराब हो गई। और बस के रूकते ही बस का कंडक्टर एक साइकिल लेकर निकल पड़ा। तभी किसी व्यक्ति ने बताया कि इस रास्ते में दो दिन पहले ही एक बस को डकैतों ने लूटा। यह सुनकर बस में सवार सभी यात्री भयभीत हो गए।

और कंडक्टर का वहां से यूं चले जाना। उनके मन की शंका को और बढ़ा गया। सब लोगों के मन में यह था कि कहीं डकैत आकर उनके साथ मारपीट करके उन्हें लूट न लें। गुस्से में बस यात्रियों ने बस के ड्राइवर के साथ अभद्र व्यवहार करना शुरू कर दिया। लेखक ने लोगों को समझाने बुझाने की कोशिश की। लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ।

तभी अचानक बस का कंडक्टर एक नई बस लेकर आ पहुंचा। तब कंडक्टर ने यात्रियों को बताया कि पुरानी बस चलने लायक नहीं थी। इसीलिए वह नई बस लेने गया था और साथ में ही कंडक्टर लेखक के बच्चों के लिए दूध व पानी का इंतजाम भी करके लाया था।

इसके बाद यात्रियों ने बस ड्राइवर व कंडक्टर से अपने किये की माफी मांगी। और सभी यात्रियों ने नए बस में बैठ कर अपना सफर सकुशल पूरा किया।

लेखक कहते हैं कि दुनिया में आज भी ऐसे लोग हैं जो इमानदारी से अपना कार्य करते हैं। लेखक कहते हैं कि उन्होंने खुद भी धोखा खाया है। जीवन में खुद भी अनेक परेशानियों का सामना किया है। लेकिन फिर भी उनका मानना है कि दुनिया में आज भी ईमानदार , दूसरों की मदद करने वालों की संख्या कम नहीं है।

वो कहते हैं कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने एक प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि “हे प्रभो  !! तुम मुझे इतनी शक्ति अवश्य देना कि , अगर इस संसार में मुझे केवल नुकसान ही उठाना पड़े , या धोखा ही खाना पड़े , तब भी मेरा विश्वास तुझ पर बना रहे।

अंत में लेखक आशावादी हैं। वो कहते हैं कि मुझे तब तक निराश होने की जरूरत नहीं है जब तक भारत में ऐसे लोग मौजूद हैं जो दूसरों के प्रति दया , प्यार , ईमानदारी , सहिष्णुता का भाव रखते हैं और मेरे मन में अपने महान गौरवशाली भारत को पुनः पाने की आशा अभी भी जिंदा है। इसीलिए मेरे मन ! तुझे निराश होने की जरूरत नहीं है।

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प्रश्न 1 लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?

उत्तर- लेखक का यह स्वीकार करना कि लोगों ने उसे धोखा दिया है। यह उसकी पीड़ा को दर्शाता है। मगर फिर भी वह निराश नहीं है उसका मानना है कि समाज में अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो ईमानदार हैं। यदि वह अपने धोखे के बारे में समाज में बात करेगा तो वह उन लोगों का भी अपमान कर देगा जो ईमानदार हैं। उसे समाज में सुधार की उम्मीद है इसी कारण वह निराश नहीं है।

प्रश्न 2 समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविजिन पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।

उत्तर- दैनिक जागरण,

कॉलम-पाठकनामा,

दूसरों की भलाई,

आज के समय में अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन दूसरों के लिए कुछ करना वह भी पूरे जोश व संघर्ष के साथ एक अलग व्यक्तित्व की पहचान कराता है। महात्मा गाँधी से प्रभावित डॉ. एन. लैंग दक्षिण अफ्रीका ही नहीं, पूरे विश्व की महिलाओं के लिए आदर्श हैं। रंगभेद से त्रस्त यूरोप में एक श्वेत महिला द्वारा अश्वेत के जीवन को सही राह दिखाना, अंधेरे में दीपक जलाने के समान है। अपने चमकते भविष्य को दरकिनार कर डॉ. एन. लैंग जिस तरह हर बच्चे के भविष्य के लिए संघर्ष कर रही हैं, वह लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। दु:खद यह है कि दक्षिण अफ्रीका की सरकार ही डी एन लैंग के काम में बाधा डाल रही है। दक्षिण अफ्रीका की सरकार एवं विश्व के सभी लोगों को लैंग की सहायता करनी चाहिए और अपने देश में भी ऐसे अनाथ बच्चों के सहायतार्थ योजना बनानी चाहिए, जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है और वे इस मदद के बगैर आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

टिप्पणी- इस समाचार को पढ़कर हम यह कह सकते हैं कि हमें केवल अपने बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि समाज मैं कमजोर वर्ग का भी सहारा बनना चाहिए। जैसे डॉ. एन. लैंग पीड़ित महिलाओं व अनाथ बच्चों हेतु सहायतार्थ कार्यो के लिए अग्रसर है। हमारा यह भी कर्तव्य बनता है कि जो लोग लोकहित कार्यो में रुचि लेते हैं उनकी सहायता भी की जाए ताकि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें जिससे समाज लाभांवित हो।

दैनिक जागरण (आम समाचार),

स्वरोजगार भवन,

समाज में लाचार व विकलांगों की सहायता हेतु मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने ‘स्वरोजगार भवनों’ के निर्माण पर विचार किया है जिसमें जरूरतमंद लोग अपनी शारीरिक योग्यता के अनुसार कार्य करके धन कमा सकेंगे।

टिप्पणी- ऐसे कार्यो से ही समाज आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा। वर्ग भेद व ऊँच-नीच की भावना समाप्त होगी क्योंकि जब किसी स्थान पर लोग मिलकर कार्य करते हैं तो एकता की भावना को बल मिलता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।

प्रश्न 3 लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे के टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों।

उत्तर- लेखक ने अपने जीवन जुड़ी दो घटनाओं में लोगों की अच्छाई और ईमानदारी का जिक्र किया है। मेरे भाई अमित से जुड़ी ऐस ही एक घटना मुझे याद आती है। शादी के बाद मेरा भाई अपनी पत्नी के साथ हनीमून पर उत्तराखंड गया था। दोनों रोडवेज बस से वहां जा रहे थे। तभी बस में दोनों की आंख लग गई और कोई वहां से उनका कपड़ों से भरा बैग लेकर फरार हो गया। इस बैग में उनके खर्च के सारे पैसे थे। इस बात की चिंता पूरे रास्ते दोनों की सताती रही। दोनों पूरे रास्ते उस चोर कोसते रहे। यह सच बात है कि दुनिया में भले और ईमानदार लोगों की कमी नहीं है। शिवपुरी (उत्तराखंड) पहंचते ही दोनों बस से उतरकर अपने कैंप की तरफ लौटने लगे। तभी पीछे से एस शख्स की आवाज सुनाई दी, जिसने जोर से आवाज लगाते हुए कहा कि भाई साहब अपना बैग कहां छोड़े जा रहे हो। अपना खोया हुआ बैग देखकर दोनो की जान में जान आ गई। पास आकर उस व्यक्ति ने कहा कि वो गलती से अपना बैग समझकर आपका बैग ले गया था। उसने यह भी बताया कि आपका पूरा सामान और पैसे सुरक्षित हैं।

पर्दाफाश प्रश्न (पृष्ठ संख्या 43)

प्रश्न 1 दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?

उत्तर- किसी का उपहास उड़ाने के लिए और केवल उसकी बुराइयों को ही उजागर करने के लिए दोषों का पर्दाफाश किया जाना बुरा रूप ले सकता है हमें यदि किसी के दोषों को उजागर करना है तो उसकी अच्छाइयों को भी उजागर करना चाहिए जिससे तुलनात्मक व्यवहार किया जा सके।

प्रश्न 2 आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल 'दोषों का पर्दापफाश' कर रहे हैं। इस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए?

उत्तर- आजकल के लगभग सभी समाचार पत्र और न्यूज चैनल किसी न किसी पार्टी से प्रभावित दिखाई देते हैं। वे केवल अपनी पार्टी की भक्ति करते हैं उनके अनुरूप खबरें दिखाते हैं। वे केवल भटकाने का प्रयास करते हैं। सही खबर कभी नहीं दिखाते हैं। इस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता भी संदेहास्पद लगती।

कारण बताइए प्रश्न (पृष्ठ संख्या 43)

प्रश्न 1 निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? आपस में चर्चा कीजिए, जैसे-ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। परिणाम भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

a.   "सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।"……….

b.   झूठ और फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। .......

c.   हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम। ...........

उत्तर-

a.   सही लोगों के प्रति अत्याचार बढ़ना।

b.   बेईमानी का फलना–फूलना।

c.   भ्रष्टाचार का बढ़ना।

दो लेखक और बस यात्रा प्रश्न (पृष्ठ संख्या 43)

प्रश्न 1 आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ाइससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैंयदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए

उत्तर- दो लेखक और बस यात्रा-इससे पहले पाठ में लेखक हरिशंकर परसाई द्वारा अपनी बस यात्रा का वर्णन किया गया हैजिसमें बस खराब होने के कारण वे समय पर गंतव्य तक पहुँचने की आशा छोड़ देते हैंइस पाठ में लेखक यात्रा करते हुए कुछ नया एवं अलग अनुभव करता हैये दोनों लेखक जब मिलते तो कुछ इस तरह बातचीत करते

हरि – नमस्कार भाई हजारी, कहो कैसे हो?

हजारी – नमस्कार मैं तो ठीक हूँ, पर तुम अपनी सुनाओकुछ सुस्त से दिखाई दे रहे होक्या बात है?

हरि – भाई क्या बताऊँ, परसों मैंने ऐसी बस से यात्रा की जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगाउसकी थकान अब तक नहीं उतरी है

हजारी – क्या उस बस में सामान रखने की जगह नहीं थी या सामान ज्यादा था जिसे लेकर तुम बैठे रहे?

हरि – यार मेरे पास सामान तो था ही नहींवह बस बिल्कुल टूटी-फूटी, खटारा थीवह किसी बुढ़िया जैसी कमजोर तथा जर्जर हो रही थी

हजारी – टूटी-फूटी बस से थकान कैसी? तुम तो सीट पर बैठे थे न

हरि – मैं तो सीट पर बैठा था पर जब बस स्टार्ट हुई और चलने लगी तो पूरी बस बुरी तरह हिल रही थीलगता था कि हम इंजन पर बैठे हैंबस का खिड़कियों के काँच टूटे थेजो बचे थे वे भी गिरकर यात्रियों को चोटिल कर सकते थेमैं तो खिड़की से दूर बैठ गयाआठ-दस मील चलते ही हम टूटी सीटों के अंदर थेपता नहीं लग रहा था कि हम सीट पर हैं या सीटें हमारे ऊपर

हजारी – क्या तुम अपने गंतव्य पर समय से पहुँच गए थे?

हरि – ऐसी बस से भला समय पर गंतव्य तक कैसे पहुँचा जा सकता हैबस रास्ते में दसों बार खराब हुईउसकी लाइट भी खराब हो गई थीमैंने तो यह सोच लिया था कि जिंदगी ही इसी बस में बीत जाएगीमैंने तो गंतव्य पर पहुँचने की आशा छोड़कर आराम से मित्रों के साथ गपशप करने लगातुम अपनी सुनाओ बड़े खुश दिखाई दे रहे हो क्या बात है?

हजारी – मित्र मैंने भी तो कल बस की यात्रा की थी, और मेरी भी यात्री अविस्मरणीय है, पर तुम्हारी यात्रा से अलग है

हरि – कैसे?

हजारी – मैं बस में अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ यात्रा कर रहा था कि एक सुनसान जगह पर हमारी बस खराब हो गई

हरि – सुनसान जगह पर क्या बस को लुटेरों ने लूट लिया?

हजारी – नहीं हमारे बस का कंडक्टर एक साइकिल लेकर चलता बना

हरि – चलता बनी कहाँ चला गया वह? कहीं वह लुटेरों से तो नहीं मिलाथा?

हजारी – मित्र सभी यात्री ऐसा ही सोच रहे थेकुछ नौजवानों ने ड्राइवर को अलग ले जाकर बंधक बना लिया कि यदि लुटेरे आते हैं तो पहले इसे ही मार दें

हरि – फिर क्या हुआ? क्या लुटरे आ गए?

हजारी – नहीं लुटरे तो नहीं आए, पर कंडक्टर दूसरी बस लेकर आयासाथ में मेरे बच्चों के लिए दूध और पानी भी लायाउस बस से हम सभी बारह बजे से पहले ही बस अड्डे पहुँच गए

हरि – बहुत अच्छा कंडक्टर था वह तोऐसे कंडक्टर कम ही मिलते हैंपर उस ड्राइवर का क्या हुआ?

हजारी – हम सभी ने कंडक्टर को धन्यवाद दिया और ड्राइवर से माफी माँगीहमने उसे समझने में भूल कर दी थी

हरि – मित्र हम सभी इंसान हैंजाने-अनजाने में हमसे भी गलतियाँ हो जाती हैंहमें सभी को अविश्वास की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए

हजारी – मित्र यह हमारा दोष नहीं हैसमाज में गिरते मानवीय मूल्यों का परिणाम है यहहर किसी को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाने लगा है

हरि – अच्छा, अब मैं चलता हूँफिर मिलेंगे, नमस्कार।

हजारी – नमस्कार

सार्थक शीर्षक प्रश्न (पृष्ठ संख्या 43-44)

प्रश्न 1 लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?

उत्तर- लेखक ने इस लेख का शीर्षक क्या निराश हुआ जाए’ इसलिए रखा होगा क्योंकि आज हिंसा, भ्रष्टाचार, तस्करी, चोरी, डकैती, घटते मानवीय मूल्य से जो माहौल बन गया है उसमें आदमी का निराश होना स्वाभाविक हैऐसे माहौल में भी लेखक निराश नहीं है, तथा वह चाहता है कि दूसरे भी निराश न हों, इसलिए उनसे ही पूछना चाहता है कि क्या निराश हुआ जाए? अर्थात् निराश होने की आवश्यकता नहीं हैइसका अन्य शीर्षक ‘होगा नया सवेरा’, या, “बनो आशावादी’ भी हो सकता

प्रश्न 2 यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए।-,?.;-, …।

उत्तर -‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद मैं प्रश्नवाचक चिह्न (?) लगाऊँगा क्योंकि लेखक समाज से ही पूछना चाहता है कि क्या निराश का वातावरण पूरी तरह बन गया हैयदि लोगों का जवाब हाँ होगा तो वह उन्हें निराशा त्यागने की सलाह देगा।

प्रश्न 3 “आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर- आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत ही कठिन है। इस बात से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। जैसे हम कहते हैं कि ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। आखिर कितने लोग इसका पालन करते हैं? जरा सा अधिकार मिलते ही व्यक्ति भाई-भतीजावाद या ‘अंधा बांटे रेवड़ी पुनि-पुनि अपने को देय’ की नीति अपनाने लगते हैं। हाँ, जिनके हाथ में कुछ नहीं होता। वे ईमानदारी का राग जरूर अलापते हैं। वास्तव में ईमानदारी का पालन करते समय हमारी स्वार्थपूर्ण मनोवृत्ति सामने या आड़े आ जाती है।

सपनों का भारत प्रश्न (पृष्ठ संख्या 44)

“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।”

प्रश्न 1 आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।

उत्तर- मेरे विचार में हमारे मनीषियों ने उस भारत का सपना देखा था, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि विभिन्न धर्मों एवं मतों को मानने वाले मिलजुलकर रहें। उनके बीच आपसी सौहार्द्र हो। वे एक दूसरे से भाईचारा, प्रेम तथा बंधुत्व बनाए रखें। भारत प्राचीन काल में विश्व के लिए आदर्श था, वह भविष्य में भी अपना आदर्श रूप बनाए रखे। लोग भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को अपनाएँ तथा इसे बनाए रखें।

प्रश्न 2 आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए? लिखिए।

उत्तर-‘मैं चाहता हूँ कि मेरे सपनों के भारत में सभी स्वस्थ, निरोग, शिक्षित, संपन्न तथा ईमानदार हों। वे जाति, धर्म, प्रांत, संप्रदाय आदि की भावना से ऊपर उठकर एक दूसरे के साथ प्रेम तथा सद्भाव से रहें यहाँ भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बेकारी, गरीबी तथा अशिक्षा का नामोंनिशान न हो। इस देश को आतंकवाद सांप्रदायिकता से मुक्ति मिले। देश में विज्ञान, कृषि, उद्योग धंधों का विकास हो देश आत्मनिर्भर तथा समृद्ध हो यहाँ ज्ञान-विज्ञान की इतनी उन्नति हो कि भारत पुन: विश्वगुरु बन जाए।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 44)

प्रश्न 1 दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है-वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक दूसरे में वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे-चरम और परम = चरम-परम, भीरु-बेबस। दिन और रात = दिन-रात।

‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। दुवंद्व समास के बारह उदाहरण हूँढ़कर लिखिए।

उत्तर- पाठ से द्वंद्व समास के बारह उदाहरण

·       आरोप-प्रत्यारोप

·       कायदे-कानून

·       काम-क्रोध

·       दया-माया

·       लोभ-मोह

·       सुख-सुविधा

·       झूठ-फरेब

·       मारने-पीटने

·       गुण-दोष

·       लेन-देन

·       भोजन-पानी

·       सच्चाई-ईमानदारी


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