Delving into the depth of Kabir's wisdom, students of class 10 encounter an intriguing section in their Hindi curriculum — Sakhi. This portion is not just a collection of words, but a treasure trove of moral teachings that have stood the test of time. As they explore Kabir ki Sakhi in class 10, learners embark on a journey through couplets that offer a peek into life's truths. Each sakhi, with its simplicity and depth, invites young minds to ponder and reflect.
Understanding these Sakhis can be a delightful yet complex task, which is why the Sakhi explanation for class 10 is crafted to aid students in grasping the profound meanings effortlessly. The beauty of Kabir ke Dohe lies in their relevance, even after centuries, especially for the youth standing at the threshold of their future. These dohe, or couplets, serve as guideposts, enlightening and guiding students with their moral compass.
Kabir ki Sakhiyan for class 10 are not mere verses in a textbook; they are conversations that Kabir has with the reader, urging them to look beyond the obvious. For educators and parents guiding the young learners, these teachings can be integrated into life lessons, helping students navigate through the complexities of life with ease.
Moreover, Sakhi class 10 question answers section is carefully designed to challenge the students and encourage them to dive deeper into the text, thereby enhancing their comprehension and analytical skills. The question and answer format not only prepares students for their exams but also for thoughtful discussions that go beyond the classroom.
When it comes to examinations, Kabir ki Sakhiyan class 10 question answer discussions are instrumental in enabling students to articulate their understanding with clarity. As they articulate answers to these questions, they’re also learning to voice their thoughts on ethical and philosophical matters, a skill that will benefit them throughout their lives.
Every verse of Kabir in the curriculum opens a door to introspection and discussion, making Sakhi class 10 an essential part of the educational journey. This exploration is not just about scoring well in exams but also about building a foundation for thoughtful living. Hence, Kabir’s timeless wisdom, encapsulated in his Sakhis, remains an integral part of the class 10 Hindi syllabus, resonating with the hearts and minds of young learners.
अध्याय-1: साखी
भावार्थ
ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ।।
भावार्थ
- कबीर कहते हैं की हमें ऐसी बातें करनी चाहिए जिसमें हमारा
अहं ना झलकता हो। इससे हमारा मन शांत रहेगा तथा सुनने वाले को भी सुख और शान्ति प्राप्त
होगी।
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै वन माँहि।
ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि।।
भावार्थ
- यहाँ कबीर ईश्वर की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है
कि कस्तूरी हिरन की नाभि में होती है लेकिन इससे अनजान हिरन उसके सुगंध के कारण उसे
पूरे जंगल में ढूंढ़ता फिरता है ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के हृदय में
निवास करते हैं परन्तु मनुष्य इसे वहाँ नही देख पाता। वह ईश्वर को मंदिर-मस्जिद और
तीर्थ स्थानों में ढूंढ़ता रहता है।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
भावार्थ
- यहाँ कबीर कह रहे हैं की जब तक मनुष्य के मन में अहंकार
होता है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नही होती। जब उसके अंदर का अंहकार मिट जाता है
तब ईश्वर की प्राप्ति होती है। ठीक उसी प्रकार जैसे दीपक के जलने पर उसके प्रकाश से
आँधियारा मिट जाता है। यहाँ अहं का प्रयोग अन्धकार के लिए तथा दीपक का प्रयोग ईश्वर
के लिए किया गया है।
सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।
भावार्थ
- कबीरदास के अनुसार ये सारी दुनिया सुखी है क्योंकि ये
केवल खाने और सोने का काम करता है। इसे किसी भी प्रकार की चिंता नहीं है। उनके अनुसार
सबसे दुखी व्यक्ति वो हैं जो प्रभु के वियोग में जागते रहते हैं। उन्हें कहीं भी चैन
नही मिलता, वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में रहते हैं।
बिरह भुवंगम तन बसै, मन्त्र ना लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।
भावार्थ
- जब किसी मनुष्य के शरीर के अंदर अपने प्रिय से बिछड़ने
का साँप बसता है तो उसपर कोई मन्त्र या दवा का असर नहीं होता ठीक उसी प्रकार राम यानी
ईश्वर के वियोग में मनुष्य भी जीवित नही रहता। अगर जीवित रह भी जाता है तो उसकी स्थिति
पागलों जैसी हो जाती है।
निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ।।
भावार्थ
- संत कबीर कहते हैं की निंदा करने वाले व्यक्ति को सदा
अपने पास रखना चाहिए, हो सके तो उसके लिए अपने पास रखने का प्रबंध करना चाहिए ताकि
हमें उसके द्वारा अपनी त्रुटियों को सुन सकें और उसे दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव
साबुन और पानी की मदद के बिना निर्मल हो जाएगा।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया ना कोइ।
ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई।।
भावार्थ
- कबीर कहते हैं की इस संसार में मोटी-मोटी पुस्तकें पढ़-पढ़
कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी पंडित ना बन पाया। यदि किसी मनुष्य ने ईश्वर-भक्ति
का एक अक्षर भी पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता यानी ईश्वर ही एकमात्र सत्य है, इसे
जाननेवाला ही वास्तविक ज्ञानी है।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराडा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चले हमारे साथि।।
भावार्थ
- कबीर कहते हैं की उन्होंने अपने हाथों से अपना घर जला
लिया है यानी उन्होंने मोह-माया रूपी घर को जलाकर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके
हाथों में जलती हुई मशाल है यानी ज्ञान है। अब वो उसका घर जालयेंगे जो उनके साथ जाना
चाहता है यानी उसे भी मोह-माया के बंधन से आजाद होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता
है।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI SPARSH CHAPTER 1
बोध-प्रश्न (पृष्ठ संख्या 6)
प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
a.
मीठी वाणी बोलने से औरों को
सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
b.
दीपक दिखाई देने पर अंधियारा
कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
c.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है,
पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
d.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन
है और दुखी कौन? यहाँ 'सोना' और 'जागना' किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों
किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
e.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने
के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
f.
ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित
होई'- इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
g.
कबीर की उद्धत साखियों की भाषा
की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
a.
मीठी वाणी बोलने वाले व्यक्तियों
में अहंकार नहीं होता, मन शांत रहता है और दूसरे व्यक्ति भी उसके मधुर वचन सुनकर सुखी
होते हैं। इसके विपरीत कर्कश और कटु वचन मन को पीड़ा देने वाले होते हैं।
b.
यहाँ दीपक का मतलब भक्तिरूपी
ज्ञान तथा अन्धकार का मतलब अज्ञानता से है। जिस प्रकार दीपक के जलने अन्धकार समाप्त
हो जाता है। ठीक इसी प्रकार जब ज्ञान का प्रकाश हृदय में जलता है तब मन के सारे विकार
अर्थात भ्रम, संशय का नाश हो जाता है।
c.
इसमें कोई संदेह नही कि ईश्वर
हर प्राणी के भीतर ही नही, बल्कि हर कण में है। किन्तु हमारा मन अज्ञानता, अहंकार,
विलासिताओं, इत्यादि में लिप्त है। हम उसे
मंदिर, मस्जिदों, गिरजाघरों में ढूंढ़ते हैं जबकि वह सर्वव्यापी है। इस कारण हम ईश्वर
को नहीं देख पाते हैं।
d.
इस संसार में अज्ञानी और भोगी
व्यक्ति सुखी हैं, जो ज्ञानी हैं वे दुनिया की स्थिति देखकर दुखी हैं सोना और जागना
ज्ञान और अज्ञान दोनों के प्रतीक हैं। ज्ञान ओर अज्ञान के प्रयोग से कवि संसार में
नई चेतना लाना चाहता है।
e.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने
के लिए कबीर ने बताया है कि हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमारी त्रुटियों
को बता सके। निंदक हमारे सबसे अच्छे हितैषी होते हैं। उनके द्वारा बताए गए त्रुटियों
को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।
f.
इन पंक्तियों द्वारा कवि ने
प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए लोग न जाने कितने यतन-जतन करते
हैं पर उन्हें समझना चाहिए कि ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर
को पढ़ लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथे या ग्रन्थ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बन जाता।
केवल इस निराकार परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है।
g.
कबीरदास जी की भाषा की सबसे
बड़ी विशेषता अभिव्यक्ति की निर्भीकता है। अपनी शिक्षा के बारे में बताते हुए उन्होने
कहा है कि - ‘मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ' अर्थात उन्होने कभी भी कागज और
कलम को हाथ तक नहीं लगाया। कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा या खिचड़ी भाषा की संज्ञा
भी दी गई है। उनकी भाषा में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग मिलता है। उनकी भाषा में एक
ऐसा सौंदर्य है जो अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है। हृदय से निकली अभिव्यक्तियों
के कारण उनकी भाषा सहज, सरल और मन पर सीधा प्रहार करने वाली है।
भाव स्पष्ट कीजिए-
a.
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र
न लागै कोइ।
b.
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे
बन माँहि।
c.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब
हरि है मैं नाहीं।
d.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित
भया न कोइ।
उत्तर-
a.
इस पंक्ति का भाव हैं कि जिस
व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई
मंत्र असर नहीं करता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है।
उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है।
b.
इस पंक्ति में कवि कहता है
कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि से आती सुगंध पर मोहित रहता है। परन्तु वह यह नहीं जानता
कि यह सुगंध उसकी नाभि में से आ रही है। वह उसे इधर-उधर हूँढता रहता है। उसी प्रकार
मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर उसी में निवास करता है और
उसे प्राप्त करने के लिए धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढता रहता है। परमात्मा
को केवल अपनी आत्मा द्वारा ही जाना जा सकता हैं। वह तो जीवन रूपी प्रकाश हैं।
c.
कबीरदास जी कहते हैं कि जब
तक मेरे अंदर मैं का भाव 'अहंकार' तब तक मुझे हरी की प्राप्ति नहीं हुई थी। अब मेरे
अंदर से अहंकार समाप्त हो गया है और मुझ पर ईश्वर की कृपा हो गई है।
d.
कबीर के अनुसार बड़े ग्रंथ,
शास्त्र पढ़ने भर से कोई ज्ञानी नहीं होता। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाता।
प्रेम से ईश्वर का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में बहुत शक्ति
होती है।
भाषा अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 6)
प्रश्न 1 पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए।
उदाहरण - जिवै - जीना
a.
औरन।
b.
माँहि।
c.
देख्या।
d.
भुवंगम।
e.
नेड़ा।
f.
आँगणि।
g.
साबण।
h.
मुवा।
i.
पीव।
j.
जालौं।
k.
तास।
उत्तर-
a.
औरन - दूसरों।
b.
माँहि - के अंदर (में)।
c.
देख्या - देखा।
d.
भुवंगम - साँप।
e.
नेड़ा - निकट।
f.
आँगणि - आँगन।
g.
साबण - साबुन।
h.
मुवा - मरा।
i.
पीव - प्रेम।
j.
जालौं - जलना।
k. तास - उसका।