Surdas Ke Pad Class 10 Question Answer

Welcome to the journey through the heart of Hindi literature with the enchanting first chapter of Class 10 – the world of 'सूरदास के पद'. This chapter isn't just about learning a poem; it's an immersive experience into the devotional world of Surdas, where each verse serves as a bridge to the divine. Surdas’s devotion to Lord Krishna comes alive in every line, making this not just a lesson but a soulful exploration.

For students gearing up to grasp the depth of these verses, the 'सूरदास के पद सारांश' acts as a guide, leading you through the poet's vision and unwavering love for the divine. As you explore the 'प्रश्न उत्तर', you're not just preparing for your exams; you're taking a step closer to understanding the beauty of Hindi poetry and its power to move hearts.

Parents and educators looking for a comprehensive understanding will find the 'सूरदास के पद कक्षा 10 व्याख्या' invaluable. This explanation sheds light on the timeless appeal of bhakti poetry, making it accessible and engaging for every learner. As you navigate through the chapter, each 'प्रश्न उत्तर' becomes more than just a Q&A; it's a revelation of the poet's inner world.

So, whether you're curious about the poet's descriptions, the lyrical beauty of his compositions, or the eternal bond between Surdas and Krishna, this chapter is your gateway to a profound literary adventure. Embrace the elegance and spirituality that is Hindi literature in Class 10 – a beautiful beginning that sets the stage for an enriching academic year.


अध्याय-1: पद

surdas ke pad class 10th explanation

सारांश

उधौ, तुम हौ अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।

पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।

प्रीति-नदी में पाँव न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।

'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।


अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करती हैं, कहती हैं कि तुम बहुत ही भाग्यशाली हो जो कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम और स्नेह से वंचित हो। तुम कमल के उस पत्ते के समान हो जो रहता तो जल में है परन्तु जल में डूबने से बचा रहता है। जिस प्रकार तेल की गगरी को जल में भिगोने पर भी उसपर पानी की एक भी बूँद नहीं ठहर पाती,ठीक उसी प्रकार तुम श्री कृष्ण रूपी प्रेम की नदी के साथ रहते हुए भी उसमें स्नान करने की बात तो दूर तुम पर तो श्रीकृष्ण प्रेम की एक छींट भी नहीं पड़ी। तुमने कभी प्रीति रूपी नदी में पैर नही डुबोए। तुम बहुत विद्यवान हो इसलिए कृष्ण के प्रेम में नही रंगे परन्तु हम भोली-भाली गोपिकाएँ हैं इसलिए हम उनके प्रति ठीक उस तरह आकर्षित हैं जैसे चीटियाँ गुड़ के प्रति आकर्षित होती हैं। हमें उनके प्रेम में लीन हैं मन की मन ही माँझ रही।


कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

अवधि असार आस आवन की,तन मन बिथा सही।

अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि,बिरहिनि बिरह दही।

चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उर तैं धार बही ।

'सूरदास'अब धीर धरहिं क्यौं,मरजादा न लही।।


अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि उनकी मन की बात मन में ही रह गयी। वे कृष्ण से बहुत कुछ कहना चाहती थीं परन्तु अब वे नही कह पाएंगी। वे उद्धव को अपने सन्देश देने का उचित पात्र नही समझती हैं और कहती हैं कि उन्हें बातें सिर्फ कृष्ण से कहनी हैं, किसी और को कहकर संदेश नहीं भेज सकती। वे कहतीं हैं कि इतने समय से कृष्ण के लौट कर आने की आशा को हम आधार मान कर तन मन, हर प्रकार से विरह की ये व्यथा सह रहीं थीं ये सोचकर कि वे आएँगे तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएँगे। परन्तु श्री कृष्ण ने हमारे लिए ज्ञान-योग का संदेश भेजकर हमें और भी दुखी कर दिया। हम विरह की आग मे और भी जलने लगीं हैं। ऐसे समय में कोई अपने रक्षक को पुकारता है परन्तु हमारे जो रक्षक हैं वहीं आज हमारे दुःख का कारण हैं। हे उद्धव, अब हम धीरज क्यूँ धरें, कैसे धरें. जब हमारी आशा का एकमात्र तिनका भी डूब गया। प्रेम की मर्यादा है कि प्रेम के बदले प्रेम ही दिया जाए पर श्री कृष्ण ने हमारे साथ छल किया है उन्होने मर्यादा का उल्लंघन किया है।

हमारैं हरि हारिल की लकरी।

मन क्रम  बचन नंद -नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

जागत सोवत स्वप्न दिवस - निसि, कान्ह- कान्ह जक री।

सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।

सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौपौं, जिनके मन चकरी ।।


अर्थ - इन पंक्तियों में गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी हैं। जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी के टुकड़े को अपने जीवन का सहारा मानता है उसी प्रकार श्री कृष्ण भी गोपियों के जीने का आधार हैं। उन्होंने  मन कर्म और वचन से नन्द बाबा के पुत्र कृष्ण को अपना माना है। गोपियाँ कहती हैं कि जागते हुए, सोते हुए दिन में, रात में, स्वप्न में हमारा रोम-रोम कृष्ण नाम जपता रहा है। उन्हें उद्धव का सन्देश कड़वी ककड़ी के समान लगता है। हमें कृष्ण के प्रेम का रोग लग चुका है अब हम आपके कहने पर योग का रोग नहीं लगा सकतीं क्योंकि हमने तो इसके बारे में न कभी सुना, न देखा और न कभी इसको भोगा ही है। आप जो यह योग सन्देश लायें हैं वो उन्हें जाकर सौपें जिनका मन चंचल हो चूँकि हमारा मन पहले ही कहीं और लग चुका है।

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।

समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

इक अति चतुर हुते पहिलैं हीं , अब गुरु ग्रंथ पढाए।

बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग-सँदेस पठाए।

ऊधौ भले लोग आगे के , पर हित डोलत धाए।

अब अपने  मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।

ते क्यौं अनीति करैं आपुन ,जे और अनीति छुड़ाए।

राज धरम तौ यहै ' सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।।

अर्थ - गोपियाँ कहतीं हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है। गोपियाँ बात करती हुई व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि वे तो पहले से ही बहुत चालाक थे पर अब उन्होंने बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़ लिए हैं जिससे उनकी बुद्धि बढ़ गई है तभी तो हमारे बारे में सब कुछ जानते हुए भी उन्होंने हमारे पास उद्धव से योग का सन्देश भेजा है। उद्धव जी का इसमे कोई दोष नहीं है, ये भले लोग हैं जो दूसरों के कल्याण करने में आनन्द का अनुभव करते हैं। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं की आप जाकर कहिएगा कि यहाँ से मथुरा जाते वक्त श्रीकृष्ण हमारा मन भी अपने साथ ले गए थे, उसे वे वापस कर दें। वे अत्याचारियों को दंड देने का काम करने मथुरा गए हैं परन्तु वे स्वयं अत्याचार करते हैं। आप उनसे कहिएगा कि एक राजा को हमेशा चाहिए की वो प्रजा की हित का ख्याल रखे। उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचने दे, यही राजधर्म है।


 

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI CHAPTER 1

प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 7)

class 10 hindi chapter 1 question answer

प्रश्न 1 गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?

उत्तर- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य निहित है कि उद्धव वास्तव में भाग्यवान न होकर अति भाग्यहीन हैं। वे कृष्णरूपी सौन्दर्य तथा प्रेम-रस के सागर के सानिध्य में रहते हुए भी उस असीम आनंद से वंचित हैं। वे प्रेम बंधन में बँधने एवं मन के प्रेम में अनुरक्त होने की सुखद अनुभूति से पूर्णतया अपरिचित हैं।

प्रश्न 2 उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?

उत्तर- गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित उदाहरणों से की है-

1.   गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते से की है जो नदी के जल में रहते हुए भी जल की ऊपरी सतह पर ही रहता है। अर्थात् जल का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। श्री कृष्ण का सानिध्य पाकर भी वह श्री कृष्ण के प्रभाव से मुक्त हैं।

2.   वह जल के मध्य रखे तेल के गागर (मटके) की भाँति हैं, जिस पर जल की एक बूंद भी टिक नहीं पातीं। उद्धव पर श्री कृष्ण का प्रेम अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया है, जो ज्ञानियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

प्रश्न 3 गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?

उत्तर- गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए थे। उन्होंने उसे ‘बड़भागी’ कह कर प्रेम से रहित माना था जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया था। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण वे वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियो को पहले तो आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल ही जाएंगी पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था। उद्धव का योग तो कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह तो योग रूपी बीमारी उन्हें देने वाला था। गोपियों ने उद्धव को वह गुरु माना था जिसने श्रीकृष्ण को भी राजनीति की शिक्षा दे दी थी। गोपियों ने वास्तव में जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्‌चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव धव को उलाहने दिए हैं। वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्रतिपादन हुआ है।

प्रश्न 4 उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?

उत्तर- गोपियाँ कृष्ण के आगमन की आशा में दिन गिनती जा रही थीं। वे अपने तन-मन की व्यथा को चुपचाप सहती हुई कृष्ण के प्रेम रस में डूबी हुई थीं। कृष्ण को आना था परन्तु उन्होंने योग का संदेश देने के लिए उद्धव को भेज दिया। विरह की अग्नि में जलती हुई गोपियों को जब उद्धव ने कृष्ण को भूल जाने और योग-साधना करने का उपदेश देना प्रारम्भ किया, तब गोपियों की विरह वेदना और भी बढ़ गयी। इस प्रकार उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया।

प्रश्न 5 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

उत्तर- 'मरजादा न लही’ के माध्यम से प्रेम की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है। कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग में जल रही थीं। कृष्ण के आने पर ही उनकी विरह-वेदना मिट सकती थीं, परन्तु कृष्ण ने स्वयं न आकर उद्धव को यह संदेश देकर भेज दिया की गोपियाँ कृष्ण का प्रेम भूलकर योग-साधना में लग जाएँ। प्रेम के बदले प्रेम का प्रतिदान ही प्रेम की मर्यादा है, लेकिन कृष्ण ने गोपियों की प्रेम रस के उत्तर में योग की शुष्क धारा भेज दी। इस प्रकार कृष्ण ने प्रेम की मर्यादा नहीं रखी। वापस लौटने का वचन देकर भी वे गोपियों से मिलने नहीं आए।

प्रश्न 6 कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?

उत्तर- गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। उन्हें तो सिवाय श्रीकृष्ण के और कुछ सूझता ही नहीं था। वे तो उनकी रूप माधुरी में इस प्रकार उलझी हुई थीं जिस प्रकार चींटी गुड पर आसक्त होती है। जब एक बार चींटी गुड से चिपट जाती है तो फिर वहाँ से कभी भी छूट नहीं पाती। वे उसके लगाव में अपना जीवन वहीं लगा देती हैं। गोपियों को तो ऐसा प्रतीत होता था कि उनका मन श्रीकृष्ण के साथ ही मथुरा चला गया था। वे तो हारिल पक्षी के तिनके के समान मन वचन और कर्म से उनसे जुड़ी हुई थीं। उनकी प्रेम की अनन्यता ऐसी थी कि रात-दिन, सोते-जागते वे उन्हें ही याद करती रहती थीं।

प्रश्न 7 गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?

उत्तर- गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनका मन चंचल है और इधर-उधर भटकता है। उद्धव अपने योग के संदेश में मन की एकाग्रता का उपदेश देते हैं, परन्तु गोपियों का मन तो कृष्ण के अनन्य प्रेम में पहले से ही एकाग्र है। इस प्रकार योग-साधना का उपदेश उनके लिए निरर्थक है। योग की आवश्यकता तो उन्हें है जिनका मन स्थिर नहीं हो पाता, इसीलिये गोपियाँ चंचल मन वाले लोगों को योग का उपदेश देने की बात कहती हैं।

प्रश्न 8 प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

उत्तर- प्रस्तुत पदों में योग साधना के ज्ञान को निरर्थक बताया गया है। यह ज्ञान गोपियों के अनुसार अव्यवारिक और अनुपयुक्त है। उनके अनुसार यह ज्ञान उनके लिए कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बड़ा ही मुश्किल है। सूरदास जी गोपियों के माध्यम से आगे कहते हैं कि वे एक बीमारी है। वो भी ऐसा रोग जिसके बारे में तो उन्होंने पहले कभी न सुना है और न देखा है। इसलिए उन्हें इस ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। उन्हें योग का आश्रय तभी लेना पड़ेगा। जब उनका चित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्तु कृष्णमय होकर यह योग शिक्षा तो उनके लिए अनुपयोगी है। उनके अनुसार कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से भक्ति करने वाले को योग की ज़रूरत नहीं होती।

प्रश्न 9 गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

उत्तर- गोपियों के अनुसार राजा का धर्म तो यह होना चाहिए कि वह किसी भी दशा में प्रजा को न सताए। वह प्रजा के सुख चैन का ध्यान रखे।

प्रश्न 10 गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?

उत्तर- गोपियों को लगता है कि कृष्ण ने अब राजनीति सिख ली है। उनकी बुद्धि पहले से भी अधिक चतुर हो गयी है। पहले वे प्रेम का बदला प्रेम से चुकाते थे, परंतु अब प्रेम की मर्यादा भूलकर योग का संदेश देने लगे हैं। कृष्ण पहले दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित रहते थे, परंतु अब अपना भला ही देख रहे हैं। उन्होंने पहले दूसरों के अन्याय से लोगों को मुक्ति दिलाई है, परंतु अब नहीं। श्रीकृष्ण गोपियों से मिलने के बजाय योग के शिक्षा देने के लिए उद्धव को भेज दिए हैं। श्रीकृष्ण के इस कदम से गोपियों के मन और भी आहत हुआ है। कृष्ण में आये इन्हीं परिवर्तनों को देखकर गोपियाँ अपनों को श्रीकृष्ण के अनुराग से वापस लेना चाहती है।

प्रश्न 11 गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?

उत्तर-

1.   तानों द्वारा (उपालंभ द्वारा)- गोपियाँ उद्धव को अपने तानों के द्वारा चुप करा देती हैं। उद्धव के पास उनका कोई जवाब नहीं होता। वे कृष्ण तक को उपालंभ दे डालती हैं। उदाहरण के लिए-

इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।

बढी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदैस पठाए।

2.   तर्क क्षमता- गोपियों ने अपनी बात तर्क पूर्ण ढंग से कही है। वह स्थान-स्थान पर तर्क देकर उद्धव को निरुत्तर कर देती हैं। उदाहरण के लिए-

"सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यों करुई ककरी।"

सु ती व्याधि हमकौं ले आए, देखी सुनी न करी।

यह ती 'सूर' तिनहि ले सौंपी, जिनके मन चकरी।।

3.   व्यंग्यात्मकता- गोपियों में व्यंग्य करने की अदुभूत क्षमता है। वह अपने व्यंग्य बाणों द्वारा उद्धव को घायल कर देती हैं। उनके द्वारा उद्धव को भाग्यवान बताना उसका उपहास उड़ाना था।

4.   तीखे प्रहारों द्वारा- गोपियों ने तीखे प्रहारों द्वारा उद्धव को प्रताड़ना दी है।

प्रश्न 12 संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?

उत्तर-

सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी-साहित्य के सबसे अधिक भावपूर्ण उलाहनों के रूप में प्रकट किया जाने वाला काव्य है। यह काव्य मानव हृदय की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम का सच्चा, भव्य और सात्विक पक्ष प्रस्तुत हुआ है। कवि ने कृष्ण और गोपियों के हृदय की गहराइयों को अनेक ढंगों से परखा है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं निन्नलिखित हैं-

1.   गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम- गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ गहरा प्रेम था। वे उन्हें पलभर भी भुला नहीं पाती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन के आधार थे जिनके बिना वे पलभर जीवित नहीं रह सकती थीं। वे तो उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान थे जो उन्हें जीने के लिए मानसिक सहारा देने वाले थे।

हमारैं हरि हारिल की लकरी।

मन क्रम वचन नंद नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

गोपियां तो सोते-जागते श्रीकृष्ण की ओर अपना ध्यान लगाए रहती थीं। उन्हें लगता था कि उनका हृदय तो उनके पास था ही नहीं। उसे तो श्रीकृष्ण चुरा कर ले गए थे। इसलिए वे अपने मन को योग की तरफ लगा ही नहीं सकती थी।

2.   वियोग श्रृंगार- गोपियां हर समय श्रीकृष्ण के वियोग में तड़पती रहती थीं। वे उनकी सुंदर छवि को अपने मन से दूर कर ही नहीं पाती थीं। श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे पर गोपियां तो रात-दिन उन्हीं की यादों में डूब कर उन्हें ही रटती रहती थीं-

जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।

वे अपने हृदय की वियोग पीड़ा को अपने मन में ही छिपा कर रखना चाहती थीं। वे अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने कहना भी नहीं चाहती थीं। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे कभी-न-कभी अवश्य वापिस आएंगे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण अपने जीवन में मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी।

3.   व्यंग्यात्मकता- गोपियां चाहे श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं पर उन्हें सदा यही लगता था कि श्रीकृष्ण ने उनसे चालाकी की थी; उन्हें धोखा दिया था। वे मधुरा में रहकर उनसे चालाकियां कर रहे थे; राजनीति के खेल से उन्हें मूर्ख बना रहे थे। इसलिए व्यंग्य करते हुए वे कहती हैं-

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।

समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।

उद्धव पर व्यंग्य करते हुए उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जो प्रेम के स्वरूप श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम से दूर रहा। उसने कभी प्रेम की नदी में अपने पैर तक डुबोने का प्रयत्न नहीं किया। वे श्रीकृष्ण को बड़ी बुद्धि वाला मानती हैं जिन्होंने उन्हें योग का पाठ भिजवाया था।

4.   स्पष्टवादिता- गोपियां समय-समय पर अपनी स्पष्टवादिता से प्रभावित करती हैं। वे योग-साधना को ‘व्याधि’ कहती हैं जिसके बारे में कभी देखा या सुना ही न गया हो। योग तो केवल उनके लिए ही उपयोगी हो सकता था जिन के मन में चकरी हो; जो अस्थिर और चंचल हों।

5.   भावुकता- गोपियां स्वभाव से ही भावुक और सरल हृदय वाली थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था और उसी प्रेम में डूबी रहना चाहती थीं। वे उसी प्रेम में मर-मिटना चाहती थीं जिस प्रकार चींटी गुड से चिपट जाती है तो वह भी उससे अलग न हो कर अपना जीवन ही गवा देना चाहती है। भावुक होने के कारण ही वे योग के संदेशों को सुनकर दुःखी हो जाती हैं। अधिक भावुकता ही उनकी पीड़ा का बड़ा कारण बनती है।

6.   सहज ज्ञान- गोपियां चाहे गाँव में रहती थीं पर उन्हें अपने वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि राजा के अपनी प्रजा के लिए क्या कर्त्तव्य थे और उसे क्या करना चाहिए था-

ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।

राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

7.   संगीतात्मकता- सूरदास के भ्रमरगीत संगीतमय हैं। कवि ने विभिन्न राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर भ्रमरगीतों की रचना की है। उन सब में गेयता है जिस कारण सूरदास के भ्रमर गीतों का साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान हैं।

रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 7)

प्रश्न 1 गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए|

उत्तर- गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, हम निम्न तर्क दे सकते हैं-

·       प्रेम कर विरह की वेदना के साथ योग साधना की शिक्षा देना कहाँ का न्याय है?

·       अपनी बात पूरी ना कर पाने वाले कृष्ण एक धोखेबाज हैं।

·       कृष्ण अपने अन्य प्रेम करने वाले सगों को योग साधना का पाठ क्यों नहीं पढ़ाते?

प्रश्न 2 उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखिरत हो उठी?

उत्तर- गोपियों के पास श्री कृष्ण के प्रति सच्चे प्रेम तथा भक्ति की शक्ति थी जिस कारण उन्होंने उद्धव जैसे ज्ञानी तथा नीतिज्ञ को भी अपने वाक्वातुर्य से परास्त कर दिया।

प्रश्न 3 गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- गोपियों ने सोच-विचार कर ही यह कहा था कि अब हरि राजनीति पढ़ गए थे। राजनीति मनुष्य को दोहरी चालें चलना सिखाती है। श्रीकृष्ण गोपियों से प्रेम करते थे और प्रेम सदा सीधी राह पर चलता है। जब वे मथुरा चले गए थे तो उन्होंने गोपियों को योग का संदेश उद्धव के माध्यम से भिजवा दिया था। कृष्ण के इस दोहरे आचरण के कारण ही गोपियों को कहना पड़ा था कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं। गोपियों का यह कथन आज की राजनीति में साफ-साफ दिखाई देता है। नेता जनता से कुछ कहते हैं और स्वयं कुछ और करते हैं। वे धर्म और राजनीति, अपराध और राजनीति, शिक्षा और राजनीति, अर्थव्यवस्था और राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में दोहरी चालें चलते हैं और जनता को मूर्ख बनाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी करनी-कथनी में सदा अंतर दिखाई देता है।

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