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अध्याय-8: बालगोबिन भगत
सार
बालगोबिन
भगत मंझोले कद के गोर-चिट्टे आदमी थे। उनकी उम्र साठ वर्ष से उपर थी और बाल पक गए थे।
वे लम्बी ढाढ़ी नही रखते थे और कपडे बिल्कुल कम पहनते थे। कमर में लंगोटी पहनते और सिर
पर कबीरपंथियों की सी कनफटी टोपी। सर्दियों में ऊपर से कम्बल ओढ़ लेते। वे गृहस्थ होते
हुई भी सही मायनों में साधू थे। माथे पर रामानंदी चन्दन का टीका और गले में तुलसी की
जड़ों की बेडौल माला पहने रहते। उनका एक बेटा और पतोहू थे। वे कबीर को साहब मानते थे।
किसी दूसरे की चीज़ नही छूटे और न बिना वजह झगड़ा करते। उनके पास खेती बाड़ी थी तथा साफ़-सुथरा
मकान था। खेत से जो भी उपज होती, उसे पहले सिर पर लादकर कबीरपंथी मठ ले जाते और प्रसाद
स्वरुप जो भी मिलता उसी से गुजर बसर करते।
वे कबीर के
पद का बहुत मधुर गायन करते। आषाढ़ के दिनों में जब समूचा गाँव खेतों में काम कर रहा
होता तब बालगोबिन पूरा शरीर कीचड़ में लपेटे खेत में रोपनी करते हुए अपने मधुर गानों
को गाते। भादो की अंधियारी में उनकी खँजरी बजती थी, जब सारा संसार सोया होता तब उनका
संगीत जागता था। कार्तिक मास में उनकी प्रभातियाँ शुरू हो जातीं। वे अहले सुबह नदी-स्नान
को जाते और लौटकर पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खँजरी लेकर बैठ जाते और अपना गाना शुरू
कर देते। गर्मियों में अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष
तब देखा गया जिस दिन उनका इकलौता बेटा मरा। बड़े शौक से उन्होंने अपने बेटे कि शादी
करवाई थी, बहू भी बड़ी सुशील थी। उन्होंने मरे हुए बेटे को आँगन में चटाई पर लिटाकर
एक सफ़ेद कपड़े से ढक रखा था तथा उसपर कुछ फूल बिखरा पड़ा था। सामने बालगोबिन ज़मीन पर
आसन जमाये गीत गाये जा रहे थे और बहू को रोने के बजाये उत्सव मनाने को कह रहे थे चूँकि
उनके अनुसार आत्मा परमात्मा पास चली गयी है, ये आनंद की बात है। उन्होंने बेटे की चिता
को आग भी बहू से दिलवाई। जैसे ही श्राद्ध की अवधि पूरी हुई, बहू के भाई को बुलाकर उसके
दूसरा विवाह करने का आदेश दिया। बहू जाना नही चाहती थी, साथ रह उनकी सेवा करना चाहती
थी परन्तु बालगोबिन के आगे उनकी एक ना चली उन्होंने दलील अगर वो नही गयी तो वे घर छोड़कर
चले जायेंगे।
बालगोबिन
भगत की मृत्यु भी उनके अनुरूप ही हुई। वे हर वर्ष गंगा स्नान को जाते। गंगा तीस कोस
दूर पड़ती थी फिर भी वे पैदल ही जाते। घर से खाकर निकलते तथा वापस आकर खाते थे, बाकी
दिन उपवास पर। किन्तु अब उनका शरीर बूढ़ा हो चूका था। इस बार लौटे तो तबीयत ख़राब हो
चुकी थी किन्तु वी नेम-व्रत छोड़ने वाले ना थे, वही पुरानी दिनचर्या शुरू कर दी, लोगों
ने मन किया परन्तु वे टस से मस ना हुए। एक दिन अंध्या में गाना गया परन्तु भोर में
किसी ने गीत नही सुना, जाकर देखा तो पता चला बालगोबिन भगत नही रहे।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 CHAPTER 8 HINDI
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 74)
प्रश्न 1
खेतीबाड़ी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते
थे?
उत्तर-खेतीबाड़ी
से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत वेशभूषा से साधु नहीं लगते थे परंतु उनका व्यवहार साधु
जैसा था। वे कबीर के भगत थे। कबीर के ही गीत गाते थे। उनके बताए मार्ग पर चलते थे।
वे कभी भी झूठ नहीं बोलते थे। वे कभी भी किसी से निरर्थक बातों के लिए नहीं लड़ते थे
परंतु गलत बातों का विरोध करने में संकोच नहीं करते थे। वे कभी भी किसी की चीज को नहीं
छूते थे और न ही व्यवहार में लाते थे। उनकी सब चीज साहब (कबीर) की थी। उनके खेत में
जो पैदावार होती थी उसे लेकर कबीर के मठ पर जाते थे। वहाँ से उन्हें जो प्रसाद के रूप
में मिलता था उसी में अपने परिवार का निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत की इन्हीं चारित्रिक
विशेषताओं के कारण लेखक उन्हें साधु मानता था।
प्रश्न 2
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर- भगत
की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह
एकमात्र सहारा थी। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।
प्रश्न 3
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर- भगत
ने अपने बेटे की मृत्यु को ईश्वर की इच्छा कहकर उसका सम्मान किया। उन्होंने उस मृत्यु
को आत्मा-परमात्मा का शुभ मिलन माना। इसलिए उसे उत्सव की तरह मनाया। उन्होंने पुत्र
के शव को सफेद वस्त्र से ढंककर उसे फूलों से सजाया। उसके सिरहाने दीपक रखा। फिर वे
उसके सामने प्रभु-भक्ति के गीत गाने लगे। वे बँजड़ी की ताल पर तल्लीन होकर गाते चले
गए। उन्होंने विलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।
प्रश्न 4
भगत के व्यक्तित्व और उनकी बेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-बालगोबिन
भगत मँझोलेकद के गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे जिनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल
सफेद थे। वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे पर उनके चेहरे पर सफेद बाल जगमगाते ही रहते थे। वे
कपड़े बिलकुल कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीर पंथियों जैसी कनफटी टोपी
पहनते थे। जब सरदियां आतीं तो एक काली कमली ऊपर से ओढ़ लेते थे। माथे पर सदा चमकता रामानंदी
चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह शुरू होता था। अपने गले में तुलसी
की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते थे। उनमें साधुओं वाली सारी बातें थीं। वे कबीर
को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीत गाते रहते थे और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे। कभी
झूठ नहीं बोलते थे और सदा खरा न्यवहार करते थे। हर बात साफ-साफ करते थे और किसी से
व्यर्थ झगड़ा नहीं करते थे। किसी की चीज को तो कभी छूते नहीं थे। वह दूसरों के खेत में
शौच तक के लिए नहीं बैठते थे। उनके खेत में जो कुछ पैदा होता उसे सिर पर रख कर चार
कोस दूर कबीर पंथी मठ में ले जाते थे और प्रमाद रूप में कुछ वापिस ले आते थे।
प्रश्न 5
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-वृद्ध
होते हुए भी उनकी स्फूर्ति में कोई कमी नहीं थी। सर्दी के मौसम में भी, भरे बादलों
वाले भादों की आधी रात में भी वे भोर में सबसे पहले उठकर गाँव से दो मील दूर स्थित
गंगा स्नान करने जाते थे, खेतों में अकेले ही खेती करते तथा गीत गाते रहते। विपरीत
परिस्थिति होने के बाद भी उनकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था। एक वृद्ध में
अपने कार्य के प्रति इतनी सजगता को देखकर लोग दंग रह जाते थे।
प्रश्न 6
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- बालगोबिन
भगत प्रभु-भक्ति के मस्ती-भरे गीत गाया करते थे। उनके गानों में सच्ची टेर होती थी।
उनका स्वर इतना मोहक, ऊँचा और आरोही होता था कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे।
औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगती थीं। खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पाँव
एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत में जादुई प्रभाव था। वह मनमोहक प्रभाव सारे
वातावरण पर छा जाता था। यहाँ तक कि घनघोर सर्दी और गर्मियों की उमस भी उन्हें डिगा
नहीं पाती थी।
प्रश्न 7
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक
मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर- बालगोबिन
भगत समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते
थे। सब लोगों को एक समझते थे। वे भी भगवान के निराकार रूप को मानते थे। भगत मृत्यु
को भी आनंद मनाने का अवसर मानते हैं। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु होती है तो वे
अपने बेटे के मृत शरीर को फूलों से सजाते हैं और गीत गाते हैं। उनके अनुसार आज आत्मा
रूपी प्रेमिका परमात्मा रूपी प्रेमी से मिल गई हैं उसके मिलन पर आनंद मनाना चाहिए अफसोस
नहीं। भगत ने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से कराया। उनकी पुत्रवधू ने ही
अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। उनकी जाति में विधवा के पुनर्विवाह को अनुचित नहीं
मानते थे परंतु उनकी पुत्रवधू इसके लिए तैयार नहीं थी। वह उन्हीं के पास रहकर उनकी
सेवा करना चाहती थी लेकिन उन्होंने उसे यौवन की ऊँच-नीच का ज्ञान करवाया और पुनर्विवाह
के लिए तैयार किया। इससे हम कह सकते हैं कि बालगोबिन पुरानी सामाजिक मान्यताओं के समर्थक
नहीं थे। वे अपने स्वार्थ की अपेक्षा दूसरों के हित का ध्यान रखते थे।
प्रश्न 8
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं?
उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- आषाढ़
की रिमझिम फुहारों के बीच खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बादल से घिरे आसमान में,
ठंडी हवाओं के चलने के समय अचानक खेतों में से किसी के मीठे स्वर गाते हुए सुनाई देते
हैं। बालगोबिन भगत के कंठ से निकला मधुर संगीत वहाँ खेतों में काम कर रहे लोगों के
मन में झंकार उत्पन्न करने लगा। स्वर के आरोह के साथ एक-एक शब्द जैसे स्वर्ग की ओर
भेजा जा रहा हो। उनकी मधुर वाणी को सुनते ही लोग झूमने लगते हैं, स्त्रियाँ स्वयं को
रोक नहीं पाती है तथा अपने आप उनके होंठ काँपकर गुनगुनाते लगते हैं। हलवाहों के पैर
गीत के ताल के साथ उठने लगे। रोपाई करने वाले लोगों की उँगलियाँ गीत की स्वरलहरी के
अनुरूप एक विशेष क्रम से चलने लगीं बालगोबिन भगत के गाने से संपूर्ण सृष्टि मिठास में
खों जाती है।
रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न (पृष्ठ संख्या 74)
प्रश्न 1
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट
हुई?
उत्तर- बालगोबिन
भगत कबीर के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। उन्होंने अपनी श्रद्धा को निम्न रूपों में
व्यक्त किया-
उन्होंने
स्वयं को कबीर-पंथ के प्रति समर्पित कर दिया। वे अपना जीवन कबीर के आदेशों पर चलाते
थे। कबीर ने गृहस्थी करते हुए संसार के आकर्षणों से दूर रहने की सलाह दी थी। बालगोबिन
भगत ने भी यही किया। उन्होंने खेतीबारी करते हुए कभी लोभ-लालच, स्वार्थ या आडंबर-भरा
जीवन नहीं जिया। जैसे कबीर अपने व्यवहार में खरे थे, उसी प्रकार बालगोबिन भगत भी व्यवहार
में खरे रहे।
भगत जी ने
अपनी फसलों को भी ईश्वर की संपत्ति माना। वे फसलों को कबीरमठ में अर्पित करके प्रसाद
रूप में पाई फसलों का भोग करते थे।
कबीर ने नर-नारी
की समानता पर बल दिया। बाहरी आडंबरों पर चोट की। बालगोबिन भगत ने भी कबीर के आदेशानुसार
अपनी आत्मा की आवाज़ पर व्यवहार किया। उन्होंने वही किया, जो उन्हें उचित और हितकारी
लगा।।
कबीर मनुष्य-शरीर
को नश्वर मानते थे। वे जीवन को प्रभु-भक्ति में लगाने की सीख देते थे। बालगोबिन भगत
ने उनके इन आदेशों को पूरी तरह माना। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को भी उत्सव में
बदल दिया। वे अंत तक मस्ती-भरे गीत गाते रहे।
प्रश्न 2
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर- भगत
की कबीर पर अगाध श्रद्धा के कई कारण रहे होंगे जैसे कि भगत समाज में प्रचलित रूढ़िवादी
सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान के निराकार रूप को मानते थे जिसमें मनुष्य
के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। वे गृहस्थी होते हुए भी व्यवहार
से साधु थे। वे सब चीजों की प्राप्ति में भगवान को सहायक मानते थे। जिन बातों को भगत
मानते थे वही बातें कबीर जी ने अपनी वाणी में कही थीं इसलिए बालगोबिन भगत की कबीर जी
में श्रद्धा थी।
प्रश्न 3
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर- भारत
कृषि प्रधान देश है। यहाँ के गाँव कृषि पर आधारित हैं। वर्षा भी आषाढ़ मास में ही शुरू
होती है। आषाढ़ की रिमझिम बारिश में भगत जी अपने मधुर गीतों को गुनगुनाकर खेती करते
हैं। उनके इन गीतों के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि रम जाती है, स्त्रियाँ भी इससे प्रभावित
होकर गाने लगती हैं। बच्चे भी वर्षा का आनन्द लेते हैं। किसान भी अच्छी फसल की आशा
में हर्ष से भर उठते हैं। इस लिए गाँव का परिवेश उल्लास से भर जाता है।
प्रश्न 4
ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।'' क्या ‘साधु' की पहचान
पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति
‘साधु' है?
उत्तर- साधु
की पहचान उसके पहनावे से भी होती है। साधु व्यक्ति अगर संसारी आकर्षणों से बँधा नहीं
है तो वह सुंदर पहनावे की ओर ध्यान नहीं देता। वह कम-से-कम कपड़े पहनता है। प्रायः
वह धोती, कंबल जैसे बिना सिले कपड़े पहनता है और सादगी से रहता है। परंतु साधु की सच्ची
पहचान ये कपड़े नहीं हैं। बहुत से ढोंगी लोग साधुओं का वेश धारण करके संसार के सुखों
का भोग करते हैं।
मेरे विचार
से साधु की सच्ची पहचान उसके व्यवहार से होती है। सच्चा साधु अपना ध्यान संसार की ओर
नहीं, प्रभु-भक्ति की ओर लगाता है। वह व्यवहार में सच्चा, सादा, आडंबरहीन, खरा और साफ़
रहता है। वह किसी से झगड़ा मोल नहीं लेता। कभी किसी का अधिकार नहीं छीनता। वह अपनी
कमाई को भी प्रभु-चरणों में अर्पित कर देता है।
प्रश्न 5
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर आप इस कथन को सच
सिद्ध करेंगे?
उत्तर-
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के एक ही बेटा था।
वह बेटा भी दिमाग से सुस्त था अर्थात् उसका दिमाग कमज़ोर था। भगत ने उसकी परवरिश बहुत
प्यार से की थी। भगत के अनुसार कम दिमाग वालों को अधिक प्यार और देखभाल की आवश्यकता
होती है। उन्होंने उसकी शादी की। बेटे की बहू भी सुशील और सुघड़ थी। एक दिन बेटा मर
गया। भगत ने बेटे के मोह में पड़कर शोक नहीं मनाया। उन्होंने तो उसकी मृत्यु को आनंद
मनाने का अवसर बताया। वे शरीर के मोह में नहीं थे। वे तो मनुष्य की आत्मा से प्रेम
करते थे और वह प्रेमिका रूपी आत्मा तो शरीर से निकलकर अपने प्रेमी रूपी परमात्मा से
मिल गई है। इसलिए उन्होंने उसके मृत शरीर का शृंगार किया और मिलन के गीत गाए। भगत ने
मृत्यु के सच को जान लिया था इसीलिए वे अपने बेटे के मोह में नहीं पड़े। उन्हें उस समय
भो परमात्मा से प्रेम की बातें याद रही थीं। इसीलिए उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक
मनाने से मना कर दिया था।
भाषा-अध्ययन प्रश्न (पृष्ठ संख्या 74)
प्रश्न 1
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर-
पाठ से उद्धृत क्रियाविशेषण-
1. गाँव से दो मील दूर।
दो मील - क्रिया विशेषण
2. पोखरे के ऊँचें भिंडे पर अपनी खंजरी लेकर जा बैठते।
ऊँचे भिंडे - क्रिया विशेषण
3. उनकी अँगुलियाँ खँजड़ी पर लगातार चल रही थी।
लगातार - क्रिया विशेषण
4. कितनी उमस भरी शाम है।
उमस भरी - क्रिया विशेषण
5. ठंडी पुरवाई चल रही थी।
ठंडी पुरवाई - क्रिया विशेषण
6. उनकी खँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है।
डिमक-डिमक - क्रिया विशेषण
7. कपड़े बिल्कुल कम पहनते।
बिल्कुल कम - क्रिया विशेषण
8. लोगों को कुतुहल होता।
कुतुहल - क्रिया विशेषण
9. समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है।
खेतों में - क्रिया विशेषण
10. एक अच्छा साफ़-सुथरा मकान भी था।
साफ़-सुथरा - क्रिया विशेषण