The piece Parvat Pradesh Mein Pavas is a beautiful depiction of the monsoon season in the mountain regions. This chapter is part of the class 10th curriculum and paints a vivid picture of the rainy season, as it comes to life in the lap of mountains. Students get to explore the scenic beauty and the transformative power of nature through this text.
When it comes to summarizing Parvat Pradesh Mein Pavas, students are led through the lush landscapes, where every raindrop tells a story, and every gust of wind sings a song. The summary not only covers the physical changes that monsoon brings to the mountains but also delves into the emotional and cultural impact on the lives of the people residing there.
The question-answer section for Parvat Pradesh Mein Pavas is crafted to check students' understanding and to push them to think about the deeper meanings behind the descriptions. It's not just about what is visible to the eye, but also about what is felt by the heart. The solutions to these questions help clarify any doubts and provide a stronger grasp of the chapter's essence.
In class 10, the Parvat Pradesh Mein Pavas solutions are crucial for students to gain a full understanding of the chapter. Teachers ensure that the explanations are detailed and that they encapsulate the chapter's beauty and message. The solutions are tailored to provide clarity and insight, aiding students in their studies and preparation for exams.
For Parvat Pradesh Mein Pavas in class 10th, the question-answer discussions are an essential part of the learning process, serving to deepen the students' appreciation of Hindi literature. Each answer sheds light on the profound connection between nature and human emotions, as depicted in the text.
By studying Parvat Pradesh Mein Pavas, students of class 10th are invited to witness the monsoon as it drenches the mountainous terrain, a scene that is as much an external occurrence as it is an internal experience. It is an opportunity for them to understand the literary portrayal of nature's dance with the environment and its inhabitants, and how beautifully it can be captured through words.
अध्याय-4: पर्वत प्रदेश में पावस
सुमित्रानंदन पंत
व्याख्या
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
इस कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने पर्वतीय
इलाके में वर्षा ऋतु का सजीव चित्रण किया है। पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु होने से
वहाँ प्रकृति में पल-पल बदलाव हो रहे हैं। कभी बादल छा जाने से मूसलधार बारिश हो रही
थी तो कभी धूप निकल जाती है।
मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में
पला ताल
दर्पण सा फैला
है विशाल!
पर्वतों की श्रृंखला मंडप का आकार लिए अपने पुष्प
रूपी नेत्रों को फाड़े अपने नीचे देख रहा है। कवि को ऐसा लग रहा है मानो तालाब पर्वत
के चरणों में पला हुआ है जो की दर्पण जैसा विशाल दिख रहा है। पर्वतों में उगे हुए फूल
कवि को पर्वत के नेत्र जैसे लग रहे हैं जिनसे पर्वत दर्पण समान तालाब में अपनी विशालता
और सौंदर्य का अवलोकन कर रहा है।
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षायों से तरूवर
है झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
झरने पर्वत के गौरव का गुणगान करते हुए झर-झर बह
रहे हैं। इन झरनों की करतल ध्वनि कवि के नस-नस में उत्साह का संचार करती है। पर्वतों
पर बहने वाले झाग भरे झरने कवि को मोती की लड़ियों के समान लग रहे हैं जिससे पर्वत की
सुंदरता में और निखार आ रहा है।
पर्वत के खड़े अनेक वृक्ष कवि को ऐसे लग रहे हैं
मानो वे पर्वत के हृदय से उठकर उँची आकांक्षायें लिए अपलक और स्थिर होकर शांत आकाश
को देख रहे हैं तथा थोड़े चिंतित मालुम हो रहे हैं।
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
पल-पल बदलते इस मौसम में अचानक बादलों के आकाश में
छाने से कवि को लगता है की पर्वत जैसे गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है मानो आकाश धरती
पर टूटकर आ गिरा हो। केवल झरनों का शोर ही सुनाई दे रहा है।
तेज बारिश के कारण धुंध सा उठता दिखाई दे रहा है
जिससे ऐसा लग रहा है मानो तालाब में आग लगी हो। मौसम के ऐसे रौद्र रूप को देखकर शाल
के वृक्ष डरकर धरती में धँस गए हैं ऐसे प्रतीत होते हैं। इंद्र भी अपने बादलरूपी विमान
में सवार होकर इधर-उधर अपना खेल दिखाते घूम रहे हैं।
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 HINDI SPARSH CHAPTER 4
प्रश्न अभ्यास (पृष्ठ संख्या 28)
प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
a. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन
आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
b. मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने
इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
c. ‘सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि
ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
d. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई
है और क्यों?
e. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश
की और क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
f. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों
धंस गए?
g. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते
हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर-
a. वर्षा ऋतु में मौसम बदलता रहता है। तेज़
वर्षा होती है। जल पहाड़ों के नीचे इकट्ठा होता है तो दर्पण जैसा लगता है। पर्वत माला
पर अनगिनत फूल खिल जाते हैं। ऐसा लगता है कि अनेकों नेत्र खोलकर पर्वत देख रहा है।
पर्वतों पर बहते झरने मानो उनका गौरव गान गा रहे हैं। लंबे-लंबे वृक्ष आसमान को निहारते
चिंतामग्न दिखाई दे रहे हैं। अचानक काले काले बादल घिर आते हैं। ऐसा लगता है मानो बादल
रुपी पंख लगाकर पर्वत उड़ना चाहते हैं। कोहरा धुएँ जैसा लगता है। इंद्र देवता बादलों
के यान पर बैठकर नए-नए जादू दिखाना चाहते हैं।
b. 'मेखला' का अर्थ तगड़ी होता है जिसे स्त्रियाँ
कमर में पहनती हैं इस प्रकार मेखलाकार का अर्थ तगड़ी का गोल आकार हुआ पर्वत भी मेखला
की तरह गोल दिखाई दे रहे हैं। जो धरती की कटि को घेरे हुए हैं प्रकृति के सौंदर्य को
उभरने के लिए कवि ने इसका प्रयोग किया है।
c. वर्षा ऋतु में चारों तरफ खिले हुए फूल ऐसे
लगते हैं मानों विशाल पर्वत अपनी सैकड़ों आँखों से पूरी प्रकृति को निहार रहा हो।
d. कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है क्योंकि
तालाब भी दर्पण की तरह स्वच्छ और निर्मल प्रतिबिम्ब दिखा रहा है।
e. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आसमान
की ओर अपनी ऊच्चाकंशाओ के कारण देख रहे थे। वे आसमान जितना ऊँचा उठना चाहते हैं। वे
शांत भाव से एकटक आसमान को निहारते हैं। जो इस बात की ओर संकेत करता है कि अपनी आकांशाओं
को पाने के लिए शांत तथा एकाग्रता आवश्यक है।
f. घनघोर वर्षा और धुंध के कारण ऐसा प्रतीत
होता हैं कि शाल के वृक्ष धरती में धंस गए हैं।
g. झरने पर्वतों की गाथा का गान कर रहे हैं।
बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गयी है।
प्रश्न 1 निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-
a. है टूट पड़ा भू पर अंबर।
b. यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
c. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर-
a. सुमित्रानंदन पंत जी ने इस पंक्ति में पर्वत
प्रदेश के मूसलाधार वर्षा का वर्णन किया है। पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में प्रकृति
की छटा निराली हो जाती है। कभी-कभी इतनी धुआँधार वर्षा होती है मानो आकाश टूट पड़ेगा।
b. अचानक वर्षा का होना और अचानक ही धूप खिल
जाना अचानक ही अंधेरा छा जाना प्रकृति के पल-पल बदलते इतने रूप देखकर ऐसा लग रहा जैसे
खुद इंद्र ही अपना काला जादू इंद्रजाल दिखा रहा हो।
c. इन पंक्तियों का भाव यह है कि पर्वत पर उगे
विशाल वृक्ष ऐसे लगते हैं मानो इनके हृदय में अनेकों महत्वकांक्षाएँ हैं और ये चिंतातुर
आसमान को देख रहे हैं।
कविता का सौंदर्य (पृष्ठ संख्या 29)
प्रश्न 1 इस कविता में मानवीकरण अलंकार का
प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत कविता में जगह-जगह पर मानवीकरण
अलंकार का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो
रही है, जैसे - पर्वत पर उगे फूल को आँखों के द्वारा मानवकृत कर उसे सजीव प्राणी की
तरह प्रस्तुत किया गया है।
‘उच्चाकांक्षाओं से तरूवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर’
इन पंक्तियों में तरूवर के झाँकने में मानवीकरण
अलंकार है, मानो कोई व्यक्ति झाँक रहा हो।
प्रश्न 2 आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य
इनमें से किस पर निर्भर करता है-
(क) अनेक शब्दों की आवृति पर।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।
उत्तर- (ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।
इस कविता का सौंदर्य शब्दों की चित्रमयी
भाषा पर निर्भर करता है। कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का
सुन्दर रुप प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 3 कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग
करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर- कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग
करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन स्थलों पर चित्रात्मक
शैली की छटा बिखरी हुई है-
1. मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण फैला है विशाल।
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।