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-रैदास
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा।
प्रभु! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है? अब मै आपका परम भक्त हो गया हूँ। जिस तरह चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में आपके प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ। जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा आपका प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
हे प्रभु ! आप दीपक हो और मैं उस दिए की बाती जो सदा आपके प्रेम में जलता है। प्रभु आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो और मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। आपका और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है, उसी तरह मैं आपके संपर्क से शुद्ध हो जाता हूँ। हे प्रभु! आप स्वामी हो मैं आपका दास हूँ।
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै॥
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
हे प्रभु ! आपके बिना कौन कृपालु है। आप गरीब तथा दिन – दुखियों पर दया करने वाले हैं। आप ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया। आपने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया। मैं अभागा हूँ। मुझ पर आपकी असीम कृपा है। आप मुझ पर द्रवित हो गए । हे स्वामी आपने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया। आपकी दया से नामदेव , कबीर जैसे जुलाहे , त्रिलोचन जैसे सामान्य , सधना जैसे कसाई और सैन जैसे नाई संसार से तर गए। उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। अंतिम पंक्ति में रैदास कहते हैं – हे संतों, सुनो ! हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं। वे कुछ भी करने में सक्षम हैं।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 75)
प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर
दीजिए-
i.
पहले पद में भगवान और भक्त
की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
ii.
पहले पद की प्रत्येक पंक्ति
के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद सौंदर्य आ गया है, जैसे-पानी, समानी आदि।
इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
iii.
पहले पद में कुछ शब्द अर्थ
की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए- .
उदाहरण:
दीपक बाती
……………. …………….
…………… ……………
…………… ……………
…………… ……………
iv.
दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब
निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए। [CBSE]
v.
दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत
कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
vi.
रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन
नाम से पुकारा है? [CBSE]
vii.
निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित
रूप लिखिए-
मोरा, चंद,
बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धरै, छोति, तुहीं, गुसईआ।
उत्तर-
i.
पहले पद में भगवान और भक्त
की तुलना करते हुए कवि ने अपने प्रभु को चंदन, बताते हुए अपनी तुलना पानी से, घन बताते
हुए उसे देखकर प्रसन्न होने वाले मोर से, दीपक के साथ जलकर प्रकाश फैलाने वाली बाती
से, मोती। के साथ जुड़कर माला बनाने वाले धागे से और सोने में मिलकर उसको मूल्य बढ़ाने
वाले सुहागे से की है।
ii.
नाद सौंदर्य प्रस्तुत करने
वाले इस पद के अन्य शब्द हैं- मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा।
iii.
पहले पद में अर्थ की दृष्टि
से परस्पर संबद्ध पद हैं-
· चंदन – पानी
· दीपक – बाती
· घन – मोर
· मोती – धागा
· चाँद – चकोर
· सोना – सोहागा
· स्वामी – दास
iv.
दूसरे पद में कवि ने अपने आराध्य
प्रभु को ‘गरीब निवाजु’ कहा है। कवि को पता है कि उसके प्रभु ने समाज के उस वर्ग का
भी उधार किया है जिसे कोई स्पर्श भी नहीं करना चाहता है। उन्होंने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन,
सधना, सैन आदि का उद्धार किया जो समाज के अत्यंत पिछड़े एवं दबे वर्ग से थे। समाज में
इस वर्ग का सहायक ईश्वर के अलावा कोई और नहीं होता है। प्रभु द्वारा ऐसे लोगों का उद्धार
करने के कारण कवि ने उन्हें गरीब नवाजु कहा है।
v.
“जाकी छोति जगत कउ लागै ता
पर तुहीं ढरै’ पंक्ति का आशय है कि संत कवि रैदास समाज में फैली अस्पृश्यता को पसंद
नहीं करते हैं। समाज के लोग इस वर्ग से दूरी बनाकर रहना चाहते हैं। वे छुआछूत के कारण
उनके करीब भी नहीं जाते हैं, परंतु कवि के प्रभु इस भेदभाव को नहीं मानते हैं और अपने
स्पर्श से उसका भी कल्याण करते हैं। प्रभु अपनी समदर्शिता, दयालुता, उदारता के कारण
किसी भक्त से भेदभाव नहीं करते हैं।
vi.
रैदास ने अपने स्वामी को गरीब
निवाजु, गुसाईं हरिजीउ आदि नामों से पुकारा है।
vii.
प्रश्न 2 नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट
कीजिए-
i.
जाकी अँग-अँग बास समानी
ii.
जैसे चितवत चंद चकोरा
iii.
जाकी जोति बरै दिन राती
iv.
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करे
।
v.
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु
काहू ते न डरै
उत्तर-
i.
जिसकी सुगंध मेरे अंग-अंग में
समा चुकी है अर्थात् मेरे जीवन रूपी जल में परमात्मा रूपी चंदन की सुगंध समा गई है।
ii.
जिस प्रकार चकोर पक्षी दिन-रात
चाँद की ओर निहारता रहता है, वैसे ही मैं अपने प्रभु की ओर निहारता रहता हूँ।
iii.
रैदास कहते हैं कि उसके जीवन
में दिन-रात उसी प्रभु की ज्योति जल रही है।
iv.
रैदास कहते हैं कि प्रभु ही
सर्वसमर्थ हैं, दीनदयालु और कृपालु हैं। उन्होंने रैदास जैसे अछूत को महान संत बना
दिया। ऐसी असीम कृपा ईश्वर ही कर सकता है।
v.
रैदास कहते हैं-गोबिंद सर्वसमर्थ
है। वह निडर है। वह रैदास जैसे नीच प्राणी को उच्च कोटि का संत बना सकता है।
प्रश्न 3 रैदास के इन पदों का केंद्रीय
भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- संत कवि रैदास अपने आराध्य प्रभु से अत्यंत घनिष्ठ प्रेम करते हुए अनन्य भक्ति भाव रखते हैं। वे अपने प्रभु से मिलकर उसी प्रकार एकाकार हो जाते हैं; जैसे-चंदन के साथ पानी, घन के साथ मोर, चाँद के साथ चकोर और सोने के साथ सुहागा। वे अपने प्रभु से अनन्य भक्ति करते हैं। उनका प्रभु गरीबों को उद्धार करने वाला है। वह गरीब निवाज गरीबों के माथे पर भी छत्र सुशोभित करने वाला है, अछूतों का उद्धार करने वाला, नीचों को ऊँचा करने वाला तथा अपनी कृपा से सभी का उद्धार करने वाला है।