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हरिवंश राय बच्चन
प्रस्तुत कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को ‘अग्नि पथ’
कहते हुए मनुष्य को यह संदेश दिया है कि राह में सुख रूपी छाँह की चाह न कर अपनी मंजिल
की ओर कर्मठतापूर्वक बिना थकान महसूस किए बढते ही जाना चाहिए। कवि कहते हैं कि जीवन
संघर्षपूर्ण है। जीवन का रास्ता कठिनाइयों से भरा हुआ है। परन्तु हमें अपना रास्ता
खुद तय करना है। किसी भी परिस्थिति में हमें दूसरों का सहारा नही लेना है। हमें कष्ट-मुसीबतों
पर जीत पाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है।
अग्नि
पथ कविता का भावार्थ व्याख्या:
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अग्नि पथ’ कविता से उद्धृत हैं, जो
कवि ‘हरिवंशराय बच्चन’ जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते
हैं कि , जीवन संघर्ष से भरा है, रास्तें अंगारों से बना है, लेकिन हमें इस कठिन राह
पर निरन्तर आगे बढ़ते रहना है | पेड़ भले ही कितना भी मज़बूत बने खड़े हो, चाहे वह
कितना भी घना हो, कितना भी विशाल हो, लेकिन उससे कभी एक पत्ते की भी छाया नहीं माँगना
चाहिए। अर्थात् मनुष्य को अपने कर्म के रास्ते
पर किसी का भी सहारा नहीं लेना चाहिए, चाहे रास्ते पर आग ही क्यों न बिछा हो | मनुष्य
को अपना मार्ग स्वयं सुनिश्चित कर निरन्तर आगे बढ़ना होगा, यही जीवन का सार है। जीवन
के मार्ग बहुत कठिन है |
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अग्नि पथ’ कविता से उद्धृत हैं, जो
कवि ‘हरिवंशराय बच्चन’ जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते
हैं कि मनुष्य को अपने कर्म के रास्ते पर कभी थकना नहीं चाहिए, चाहे जितनी भी कठिनाई
क्यूँ न हो, डर कर कभी बीच में रुकना नहीं चाहिए, और ना ही अपने कर्म के मार्ग से कभी
लौटना है, निरन्तर आगे बढ़ना है, यह प्रतिज्ञा कर लेना चाहिए। बेशक, जीवन संघर्ष से
भरा हुआ है | जीवन के रास्ते अंगारों से भरें हैं। हमें हरदम निडर होकर जीवन में आगे
बढ़ते रहना चाहिए |
यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अग्नि पथ’ कविता से उद्धृत हैं, जो
कवि ‘हरिवंशराय बच्चन’ जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते
हैं कि जब मनुष्य अपने कर्म के रास्ते पर कड़ी मेहनत या परिश्रम करके, बिना रुके, बिना
थके आगे बढ़ता है, तो वह दृश्य अद्भुत होता है | वह मनुष्य महान होता है, जब अंगारों
के रास्तों पर आँसु, पसीना, और रक्त से भीग कर सदैव मेहनत करके ऊँची शिखर तक पहुँचता
है तथा जीवन के संघर्ष में हमेशा जीत हासिल करता है |
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न-अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 105)
प्रश्न 1 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
i.
कवि
ने ‘अग्नि पथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है?
ii.
माँग
मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है?
iii.
“एक
पत्र-छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
i.
कवि ने ‘अग्नि पथ’ का प्रयोग मनुष्य के
जीवन में आने वाली नाना प्रकार की कठिनाइयों के कारण कठिन एवं संघर्षपूर्ण
जीवन के लिए किया है। कवि का मानना
है कि मनुष्य को जीवन में कठिनाइयाँ ही कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। ऐसे में उसका जीवन
किसी अग्नि पथ से कम नहीं है।
ii.
‘माँग
मत’, ‘कर शपथ’ और ‘लथपथ’ शब्दों को बार-बार प्रयोग कर कवि क्रमशः कहना चाहता है कि
जीवन में संघर्ष करते हुए लोगों से सुख की माँग मत करो, संघर्ष को बीच में छोड़कर कठिनाइयों
से हार मान कर वापस न लौटने की कसम लेने तथा कठिनाइयाँ से जूझते हुए कर्मशील बने रहने
की प्रेरणा दे रहा है।
iii.
‘एक
पत्र-छाँह भी माँग मत’ का आशय है कि मनुष्य जब कठिनाइयों से लगातार संघर्ष करता है
तो थककर, निराश होकर संघर्ष का मार्ग त्यागकर सुख की कामना करने लगता है तथा सुख पाकर
लक्ष्य प्राप्ति को भूल जाता है, अतः मंजिल मिले बिना सुख की लालसा नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 2 निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
i.
तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा
कभी
ii.
चल रहा मनुष्य है।
अश्रु-स्वेद-रक्त
से लथपथ, लथपथ, लथपथ
उत्तर-
i.
इसका
आशय यह है कि मनुष्य को कष्टों से भरे मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए कभी पीछे नहीं मुड़ना
चाहिए। इस मार्ग पर केवल अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाहिए। उसके जीवन
में अकर्मण्यता का कोई स्थान नहीं होना चाहिए क्योंकि आगे बढ़ते रहना ही उसके जीवन
का लक्ष्य है। वह संघर्षों से भी न घबराए। वह सुख त्यागकर अग्निपथ को चुनौती देता रहे।
ii.
कवि
के अनुसार मनुष्य को अपना जीवन सफल बनाने के लिए निरंतर संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते
जाना चाहिए। इस मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति को कई बार आँसू बहाने पड़ते हैं। शरीर से
पसीने बहाते हुए खून से लथपथ होते हुए भी उसे निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए क्योंकि
संघर्ष करनेवाला मनुष्य ही सफलता प्राप्त करता है और महान कहलाता है।
प्रश्न 3 इस कविता का मूलभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘अग्नि पथ’ कविता का मूलभाव यह है कि मानव जीवन में
कठिनाइयाँ ही कठिनाइयाँ हैं। इस पथ पर बढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जीवन पथ
पर आगे बढ़ते हुए मनुष्य को सुख की कामना नहीं चाहिए। उसे कठिनाइयों से हार मानकर न
रुकना चाहिए और न वापस लौटना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए भले ही आँसू, खून और
पसीने से लथपथ होना पड़े, पर संघर्ष का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।