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अध्याय-4: मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय
-धर्मवीर भारती
सारांश
यह पाठ लेखक ‘धर्मवीर भारती’ की आत्मकथा है। सन् 1989 में लेखक को लगातार तीन
हार्ट अटैक आए। उनकी नब्ज़, साँसें, धड़कन सब बंद हो चुकी थीं। डॉक्टरों ने उन्हें
मृत घोषित कर दिया परन्तु डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी और उनके मृत पड़ चुके
शरीर को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक दिए जिससे उनके प्राण तो लौटे परन्तु हार्ट का चालीस
प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो गया और उसमें में भी तीन अवरोध थे। तय हुआ कि उनका ऑपरेशन बाद
में किया जाएगा। उन्हें घर लाया गया। लेखक की जिद पर उन्हें उनकी किताबों वाले कमरे
में लिटाया गया। उनका चलना, बोलना, पढ़ना सब बन्द हो गया।
लेखक को सामने रखीं किताबें देखकर ऐसा लगता मानो उनके प्राण किताबों में ही
बसें हों। उन किताबों को लेखक ने पिछले चालीस-पचास सालों में जमा किया था जो अब एक
पुस्तकालय का रूप ले चुका था।
उस समय आर्य समाज का सुधारवादी पुरे ज़ोर पर था। लेखक के पिता आर्यसमाज रानीमंडी
के प्रधान थे और माँ ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।
पिता की अच्छी खासी नौकरी थी लेकिन लेखक के जन्म से पहले उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़
दी थी। लेखक के घर में नियमित पत्र-पत्रिकाएँ आतीं थीं जैसे ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’,
‘वेदोदम’,’सरस्वती’,’गृहिणी’। उनके लिए ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ दो बाल पत्रिकाएँ भी आतीं
थीं जिन्हें पढ़ना लेखक को बहुत अच्छा लगता था। लेखक बाल पत्रिकाओं के अलावा ‘सरस्वती’
और ‘आर्यमित्र’ भी पढ़ने की कोशिश करते। लेखक को ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ना बहुत पसंद
था। वे पाठ्यक्रम की किताबों से अधिक इन्हीं किताबों और पत्रिकाओं को पढ़ते थे।
लेखक के पिता नहीं चाहते थे की लेखक बुरे संगति में पड़े इसलिए उन्हें स्कूल
नहीं भेजा गया और शुरू की पढाई के लिए घर पर मास्टर रखे गए। तीसरी कक्षा में उनका दाखिला
स्कूल में करवाया गया। उस दिन शाम को पिता लेखक को घुमाने ले गए और उनसे वादा करवाया
कि वह पाठ्यक्रम की पुस्तकें भी ध्यान से पढेंगे। पांचवीं में लेखक फर्स्ट आये और अंग्रेजी
में उन्हें सबसे ज्यादा नंबर आया। इस कारण उन्हें स्कूल से दो किताबें इनाम में मिलीं।
एक किताब में लेखक को विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी मिली तथा दूसरे पानी की
जहाजों की जानकारी मिली। लेखक के पिता ने अलमारी के खाने से अपनी चीज़ें हटाकर जगह
बनाई और बोले ‘यह अब तुम्हारी लाइब्रेरी। यहीं से लेखक की निजी लाइब्रेरी की शुरुआत
हुई।
लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी जिसमें लेखक बैठकर किताबें पढ़ते थे उन्हें
साहित्यिक किताबें पढ़ने में बहुत आनंद आता। उन दिनों विश्व साहित्य के किताबों के
हिंदी में खूब अनुवाद हो रहे थे जिससे लेखक को विश्व का भी अनुभव होता था। चूँकि लेखक
के पिता की मृत्यु हो चुकी थी इसलिए वे किताबें घर नही ले जा पाते थे जिसका उन्हें
बहुत दुःख होता था। लेखक का आर्थिक संकट बहुत बढ़ गया था। वे अपने प्रमुख पाठ्यक्रम
की पुस्तकें भी सेकंड-हैंड ही लेते थे और बाकी के पुस्तकों का सहपाठियों से लेकर नोट्स
बनाते थे।
लेखक ने किस तरह से अपनी पहली साहित्यिक पुस्तक खरीदी उसका वर्णन किया है।
उन्होंने उस साल इंटरमीडिएट पास किया था और अपनी पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए की
पुस्तकें लेने सेकंड-हैण्ड पुस्तकों की दूकान पर खड़े थे। पाठ्यपुस्तकें खरीद कर लेखक
के पास दो रूपए बचे। सामने के सिनेमाघर में ‘देवदास’ लगी थी। लेखक उस फिल्म के एक गाना
हमेशा गुनगुनाते रहते थे जिसे सुनकर एक दिन माँ ने कहा ‘जा फिल्म देख आ।’ लेखक बचे
दो रूपए लेकर सिनेमा घर गए। फिल्म शुरू होने में देरी थी। लेखक सामने एक परिचित की
पुस्तकों की दूकान के सामने चक्कर लगाने लगे। तभी वहाँ उन्हें ‘देवदास’ की पुस्तक दिखाई
दी। लेखक ने उस पुस्तक को ले लिया चूँकि पुस्तक की कीमत केवल दस आने थी जबकि फिल्म
देखने में डेढ़ रूपए लगते हुए। बचे हुए पैसे लेखक ने माँ को दे दिए। यह उनकी निजी लाइब्रेरी
की पहली किताब थी।
आज लेखक के लाइब्रेरी में उपन्यास, नाटक, कथा संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण सभी
प्रकार की किताबें हैं लेखक देश-विदेश के महान लेखकों-चिंतकों के कृतियों के बीच अपने
को भरा-भरा महसूस करते हैं।
लेखक मानते हैं कि उनके ऑपरेशन के सफल होने के बाद उनसे मिलने आये मराठी के
वरिष्ठ कवि विंदा करंदीकर ने उस दिन सच कहा था कि ये सैकड़ों महापुरुषों के आश्रीवाद
के कारण ही उन्हें पुनर्जीवन मिला है।
NCERT SOLUTIONS
बोध-प्रश्न प्रश्न (पृष्ठ संख्या 34)
प्रश्न 1 लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन
क्यों हिचक रहे थे?
उत्तर- लेखक को तीन-तीन हार्ट अटैक हुए
थे। बिजली के झटकों से प्राण तो लौटे, मगर दिल को साठ प्रतिशत भाग नष्ट हो गया। बाकी
बचे चालीस प्रतिशत में भी रुकावटें थीं। सर्जन इसलिए हिचक रहे थे कि चालीस प्रतिशत
हृदय ऑपरेशन के बाद हरकत में न आया तो लेखक की जान भी जा सकती थी।
प्रश्न 2 ‘किताबों वाले कमरे में रहने के
पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?
उत्तर- ‘किताबों वाले कमरे में रहने के
पीछे लेखक के मन में यह भावना थी कि जिस प्रकार परी कथाओं के अनुसार राजा के प्राण
उसके शरीर में नहीं बल्कि तोते में रहते हैं, वैसे ही उसके (लेखक) निकले प्राण अब इन
हज़ारों किताबों में बसे हैं, जिन्हें उसने जमा किया है।
प्रश्न 3 लेखक के घर कौन-कौन-सी पत्रिकाएँ
आती थीं?
उत्तर- लेखक के घर वेदोदम, सरस्वती, गृहिणी,
बालसखा और चमचम आदि पत्रिकाएँ आती थीं।
प्रश्न 4 लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने
का शौक कैसे लगा?
उत्तर- लेखक के घर में पहले से ही बहुत-सी
पुस्तकें थीं। दयानंद की एक जीवनी, बालसखा और ‘चमचम’ पुस्तकें पढ़ते-पढ़ते उसे पढ़ने
का शौक लगा। पाँचवीं कक्षा में प्रथम आने पर पुरस्कार स्वरूप मिली दो पुस्तकों को पिताजी
की प्रेरणा से उसे सहेजने का शौक लग गया।
प्रश्न 5 माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर
क्यों चिंतित रहती थी?
उत्तर- माँ लेखक की स्कूली पढाई को लेकर
इसलिए चिंतित रहती थी, क्योंकि लेखक हर समय कहानियों की पुस्तकें ही पढ़ता रहता था।
माँ सोचती थी कि लेखक पाठ्यपुस्तकों को भी इसी तरह रुचि लेकर पढेगा या नहीं।
प्रश्न 6 स्कूल से ईनाम में मिली अंग्रेजी
की पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए?
उत्तर- पाँचवी कक्षा में फर्स्ट आने पर
लेखक को दो पुस्तकें पुरस्कारस्वरूप मिली। उनमें से एक में विभिन्न पक्षियों की जातियों,
उनकी बोलियों, उनकी आदतों की जानकारी थी। दूसरी किताब ‘टस्टी दे रग’ में पानी के जहाजों,
नाविकों की जिंदगी, विभिन्न प्रकार के द्वीप, वेल और शार्क के बारे में थी। इस प्रकार
इन पुस्तकों ने लेखक के लिए नई दुनिया का द्वार खोल दिया।
प्रश्न 7 ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी
किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है’-पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा
मिली?
उत्तर- पिता के इस कथन से लेखक के मन पर
गहरा प्रभाव पड़ा। लेखक को पुस्तक सहेजकर रखने तथा पुस्तक संकलन करने की प्रेरणा मिली।
प्रश्न 8 लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदने
की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- लेखक पुरानी पुस्तकें खरीदकर पढ़ता
और उन्हें बेचकर अगली कक्षा की पुरानी पुस्तकें खरीदता। ऐसे ही एक बार उसके पास दो
रुपए बच गए। माँ की आज्ञा से वह देवदास फ़िल्म देखने गया। शो छूटने में देर होने के
कारण वह पुस्तकों की दुकान पर चला गया। वहाँ देवदास पुस्तक देखी। उसने डेढ़ रुपए में
फ़िल्म देखने के बजाए दस आने में पुस्तक खरीदकर बचे पैसे माँ को दे दिए। इस प्रकार
लेखक ने पुस्तकालय हेतु पहली पुस्तक खरीदी।
प्रश्न 9 ‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना
भरा-भरा महसूस करता हूँ’-को आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक के पुस्तकालय में अनेक भाषाओं
के अनेक लेखकों, कवियों की पुस्तकें हैं। इनमें उपन्यास, नाटक, कथा । संकलन, जीवनियाँ,
संस्मरण, इतिहास, कला, पुसतात्विक, राजनीतिक आदि अनगिनत पुस्तकें हैं। वह देशी-विदेशी
लेखकों, चिंतकों की पुस्तकों के बीच स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता। वह स्वयं को भरा-भरा
महसूस करता है।